भिवानी: एक ओर जहां सरकार कृषि से जुड़े नए अध्यादेशों को किसानों के हित में बताते नहीं थक रही, वहीं दूसरी ओर किसान और आढ़ती शुरू से ही इनके विरोध में हैं. शुक्रवार को हरियाणा सहित राजस्थान, पंजाब और चंडीगढ़ में आढ़तियों ने सांकेतिक धरना दिया. जिसमें किसान संगठनों ने भी उनका साथ दिया.
भिवानी में भी आढ़तियों ने सरकार के खिलाफ जमकर प्रदर्शन किया और सरकार के खिलाफ जोरदार नारेबाजी की. प्रदर्शन के बाद आढ़तियों ने डीसी के माध्यम से सीएम खट्टर और पीएम मोदी को ज्ञापन भेज कर अध्यादेश वापस लेने की अपील की.
आढ़ती सुभाष मित्तल ने बताया कि ये अध्यादेश किसान, आढ़ती, व्यापारी व मुनीमों को बर्बाद कर देंगें. इसके बाद खुद केंद्र सरकार को भी प्रति माह 50 हजार करोड़ रुपये का नुकसान होगा. उन्होंने कहा कि ये सांकेतिक हड़ताल है. आने वाले दिनों में जब कपास व बाजरे की फसल आएगी, तब आढ़ती व व्यापारी अपनी ताकत सरकार को दिखा देंगे.
वहीं भारतीय किसान यूनियन के जिला प्रधान राकेश आर्य ने भी तीनों अध्यादेशों को किसान विरोधी बताया और कहा कि ये अध्यादेश छोटूराम की आढ़ती व किसान की व्यवस्था को खत्म कर देंगे. उन्होंने कहा कि सरकार अगर तय करे कि कोई कंपनी किसी भी फसल को एमएसपी के कम खरीदेगी तो सजा का प्रावधान होगा, तो किसान इन अध्यादेशों को मान लेंगे.
क्या है कृषि अध्यादेश 2020?
गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने कृषि से जुड़े तीन अध्यादेश व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) अध्यादेश, मुल्य आश्वासन एवं कृषि सेवा समझौता अध्यादेश और आवश्यक वस्तु अधिनियम (संशोधन ) अध्यादेश पारित किए हैं. इन अध्यादेशों के विरोध में किसान लगातार प्रदर्शन कर रहे हैं.
व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) अध्यादेश: इस अध्यादेश में किसानों को देश में कहीं भी अपनी फसल बेचने की सुविधा मिलेगी. किसानों की फसल को कोई भी कंपनी या व्यक्ति खरीद सकता है. वहीं इस अध्यादेश में किसानों को तीन दिन के अंदर पैसे मिलने की बात कही गई है. इस अध्यादेश की सबसे बड़ी बात तो ये है कि अगर किसान और व्यापारी में कोई विवाद होगा तो उसका निपटारा जिला स्तरीय प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा तीस दिनों के भीतर किया जाएगा. इस विवाद को न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती है. जिससे किसानों को डर है कि कंपनियों के दबाव में आकर सरकार उनके साथ विश्वासघात ना कर दे. इस बात को लेकर किसान डरे हुए हैं.
मुल्य आश्वासन एवं कृषि सेवा समझौता अध्यादेश: इस अध्यादेश के तहत सरकार ने कॉन्ट्रैक्ट खेती को बढ़ावा देने की बात कही है. कॉन्ट्रैक्ट खेती में खेती बड़ी-बड़ी कंपनियां करेंगी. जिससे किसान अपने ही खेतों में मजदूर बनकर रह जाएंगे. जिसके विरोध में किसान सड़क पर प्रदर्शन कर रहे हैं.
आवश्यक वस्तु अधिनियम (संशोधन )अध्यादेश: देश में कालाबाजारी को रोकने के लिए साल 1955 में आवश्यक वस्तु अधिनियम बनाया गया था. इस अधिनियम के तहत कोई भी व्यक्ति एक निश्चित मात्रा से अधिक खाद्य वस्तुओं का भंडारण नहीं कर सकता था.अब केंद्र सरकार द्वारा लागू किए गए नए अध्यादेश में आलू, प्याज और तिलहन जैसे दैनिक उपयोग की वस्तुओं पर लगाई गई रोक को हटा लिया गया है. इस अध्यादेश के माध्यम से लोग इन सामानों की जितनी चाहें स्टॉक जमा कर सकते हैं. किसानों के पास लंबे समय तक भंडारण करने की क्षमता नहीं है. जिससे उनको अपने उत्पादों को कंपनियों को बेचना ही पड़ेगा और कंपनियां जब चाहें इन वस्तुओं का दाम बढ़ा कर लोगों से पैसे ऐंठ सकती हैं.
इन्हीं मुद्दों को लेकर किसान सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं. अब देखने वाली बात होगी कि सरकार किसानों की बात मानती है या फिर किसान इसी तरह सड़कों पर उतरकर प्रदर्शन करते रहेंगे.
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