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कौन थे जस्टिस हंस राज खन्ना? जिनसे CJI संजीव खन्ना ने ली प्रेरणा, एक असहमित की वजह से नहीं बन सके मुख्य न्यायाधीश - JUSTICE HANS KHANNA

मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना को प्रेरणा देने वाले दिवंगत जस्टिस हंस राज खन्ना का जन्म 1912 में हुआ था.

CJI संजीव खन्ना
CJI संजीव खन्ना (ANI)
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Nov 11, 2024, 5:55 PM IST

नई दिल्ली: भारत के नए मुख्य न्यायाधीश (CJI) संजीव खन्ना अपने परिवार में देश के टॉप कानूनी पद पर पहुंचने वाले पहले व्यक्ति हैं. हालांकि, 47 साल पहले उनके चाचा परिवार में पहले सीजेआई बन जाते अगर इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली सरकार ने उन्हें नजरअंदाज नहीं किया होता.

सीजेआई खन्ना को उनके कानूनी करियर में प्रेरणा देने वाले दिवंगत जस्टिस हंस राज खन्ना 1977 में देश के शीर्ष कानूनी पद के लिए उम्मीदवार थे, लेकिन इमरजेंसी के दौरान उन्होंने असहमतिपूर्ण फैसला सुनाया, जिसके बाद उन्होंने यह अवसर खो दिया.

कौन थे जस्टिस हंस राज खन्ना?
1912 में जन्मे जस्टिस हंस राज खन्ना ने अमृतसर में अपनी शिक्षा पूरी की. शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने एक वकील के रूप में अपना करियर शुरू किया. उसके बाद, उन्हें 1952 में जिला और सत्र न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया और बाद में उन्होंने दिल्ली और पंजाब के हाई कोर्ट में भी जज के रूप में काम किया.1971 में, वे सर्वोच्च न्यायालय में पहुंचे. वह1977 में भारत के मुख्य न्यायाधीश पद के लिए एक मजबूत दावेदार थे.

किस निर्णय के कारण हंस राज खन्ना नहीं बन सके चीफ जस्टिस
बता दें कि 1976 में पांच जजों की संविधान पीठ ने एडीएम जबलपुर बनाम शिवकांत शुक्ला मामले में फैसला सुनाया, जिसमें यह निर्धारित करना था कि राज्य के हित में व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार को निलंबित किया जा सकता है.

जस्टिस खन्ना 4:1 के उस फैसले में अकेले असहमति जताने वाले जज थे, जिसमें मुख्य न्यायाधीश एएन रे और न्यायमूर्ति एमएच बेग, वाईवी चंद्रचूड़ और पीएन भगवती शामिल थे. इस असहमति के कारण हंस राज खन्ना को चीफ ऑफ जस्टिस नहीं बन सके.

अपने असहमति वाले बयान में जस्टिस खन्ना ने दोहराया कि बिना सुनवाई के प्रीवेंटेटिव डिटेंशन उन सभी के लिए अभिशाप है, जो व्यक्तिगत स्वतंत्रता से प्यार करते हैं. अपने समय के टॉप जस्टिस खन्ना ने इस बात पर भी जोर दिया कि ऐसे कानून हमारे समाज के लिए महत्वपूर्ण मौलिक स्वतंत्रता का गहरा उल्लंघन करते हैं.

इंदिरा गांधी प्रशासन ने जस्टिस बेग को किया था नियुक्त

उनके साहसिक फैसले के ठीक नौ महीने बाद इंदिरा गांधी प्रशासन ने जस्टिस खन्ना की जगह जस्टिस बेग को चीफ जस्टिस नियुक्त किया. जस्टिस खन्ना ने इसके तुरंत बाद इस्तीफा देने का फैसला किया, जो न्यायिक इतिहास में एक महत्वपूर्ण क्षण था.

यह भी पढ़ें- अनुच्छेद 370 से लेकर केजरीवाल की जमानत तक, जस्टिस खन्ना ने दिए कई फैसले, इन मुद्दों का करना होगा निपटान

नई दिल्ली: भारत के नए मुख्य न्यायाधीश (CJI) संजीव खन्ना अपने परिवार में देश के टॉप कानूनी पद पर पहुंचने वाले पहले व्यक्ति हैं. हालांकि, 47 साल पहले उनके चाचा परिवार में पहले सीजेआई बन जाते अगर इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली सरकार ने उन्हें नजरअंदाज नहीं किया होता.

सीजेआई खन्ना को उनके कानूनी करियर में प्रेरणा देने वाले दिवंगत जस्टिस हंस राज खन्ना 1977 में देश के शीर्ष कानूनी पद के लिए उम्मीदवार थे, लेकिन इमरजेंसी के दौरान उन्होंने असहमतिपूर्ण फैसला सुनाया, जिसके बाद उन्होंने यह अवसर खो दिया.

कौन थे जस्टिस हंस राज खन्ना?
1912 में जन्मे जस्टिस हंस राज खन्ना ने अमृतसर में अपनी शिक्षा पूरी की. शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने एक वकील के रूप में अपना करियर शुरू किया. उसके बाद, उन्हें 1952 में जिला और सत्र न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया और बाद में उन्होंने दिल्ली और पंजाब के हाई कोर्ट में भी जज के रूप में काम किया.1971 में, वे सर्वोच्च न्यायालय में पहुंचे. वह1977 में भारत के मुख्य न्यायाधीश पद के लिए एक मजबूत दावेदार थे.

किस निर्णय के कारण हंस राज खन्ना नहीं बन सके चीफ जस्टिस
बता दें कि 1976 में पांच जजों की संविधान पीठ ने एडीएम जबलपुर बनाम शिवकांत शुक्ला मामले में फैसला सुनाया, जिसमें यह निर्धारित करना था कि राज्य के हित में व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार को निलंबित किया जा सकता है.

जस्टिस खन्ना 4:1 के उस फैसले में अकेले असहमति जताने वाले जज थे, जिसमें मुख्य न्यायाधीश एएन रे और न्यायमूर्ति एमएच बेग, वाईवी चंद्रचूड़ और पीएन भगवती शामिल थे. इस असहमति के कारण हंस राज खन्ना को चीफ ऑफ जस्टिस नहीं बन सके.

अपने असहमति वाले बयान में जस्टिस खन्ना ने दोहराया कि बिना सुनवाई के प्रीवेंटेटिव डिटेंशन उन सभी के लिए अभिशाप है, जो व्यक्तिगत स्वतंत्रता से प्यार करते हैं. अपने समय के टॉप जस्टिस खन्ना ने इस बात पर भी जोर दिया कि ऐसे कानून हमारे समाज के लिए महत्वपूर्ण मौलिक स्वतंत्रता का गहरा उल्लंघन करते हैं.

इंदिरा गांधी प्रशासन ने जस्टिस बेग को किया था नियुक्त

उनके साहसिक फैसले के ठीक नौ महीने बाद इंदिरा गांधी प्रशासन ने जस्टिस खन्ना की जगह जस्टिस बेग को चीफ जस्टिस नियुक्त किया. जस्टिस खन्ना ने इसके तुरंत बाद इस्तीफा देने का फैसला किया, जो न्यायिक इतिहास में एक महत्वपूर्ण क्षण था.

यह भी पढ़ें- अनुच्छेद 370 से लेकर केजरीवाल की जमानत तक, जस्टिस खन्ना ने दिए कई फैसले, इन मुद्दों का करना होगा निपटान

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