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आजाद देश के वो परवाने जिन्होंने देश के लिए दे दी जान लेकिन सरकार ने किया निराश

इस स्वतंत्रता दिवस हम आपको अंबाला के दो ऐसे शहीदों के बारे में बताने जा रहा हैं. जिन्होंने आतंकियों से लोहा लेते हुए अपने प्राणों की आहुति दे दी, लेकिन आज उनका परिवार सरकार की बेरुखी का शिकार हो रहा है.

अंबाला के वो दो शहीदों के परिवार जो हुए सरकार की बेरुखी के शिकार
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Published : Aug 15, 2019, 12:19 PM IST

अंबाला: आज देश आजादी की 73वीं सालगिरह मना रहा है. देश गुलामी की जंजीरों से आजाद होने का जश्न मना रहा है. स्वतंत्रता सेनानियों और शहीदों की शहादत को नमन कर उनके परिवार को सम्मान दिया जा रहा है लेकिन आज भी ऐसे कई शहीदों के परिवार हैं जिन्हें सम्मान के नाम पर सरकार ने सिर्फ धोखा दिया है. ऐसा ही एक परिवार शहीद सुरजीत सिंह का भी है. वो सुरजीत सिंह जो 1998 में जम्मू कश्मीर के राजौरी में आतंकियों से लोहा लेते हुए शहीद हो गए थे. तब सुरजीत सिंह की उम्र महज 21 साल थी और वो अपने माता-पिता के इकलौते बेटे थे.

क्लिक कर देखिए ईटीवी भारत की स्पेशल रिपोर्ट

ठोकरें खाने को मजबूर शहीद के बुजुर्ग पिता
शहीद सुरजीत सिंह के पिता रि. सूबेदार रवैल सिंह ने बताया कि उनके बेटे को मरणोपरांत शौर्य चक्र दिया गया, लेकिन आर्थिक सहायता के नाम पर उन्हें सिर्फ 20 हजार रुपये दिए गए. उन्हें हरियाणा सरकार ने पेट्रोल पंप देने जैसे ना जाने कितने वादे किए, लेकिन सरकार ने वो वादे आज तक पूरे नहीं किए. शहीद सुरजीत सिंह का परिवार सरकार की बेरुखी का इकलौता शिकार परिवार नहीं है. अंबाला के ही शहीद रणबीर सिंह का परिवार भी ऐसी ही अनदेखी का शिकार है.

ये भी पढ़िए:कुरुक्षेत्र: आजादी का वो 'परवाना', जिसने आजाद भारत के ख्वाब के लिए जिंदगी भर नहीं की शादी

शहीद रणबीर सिंह के बलिदान को भूल गई सरकार!
शहीद रणबीर सिंह साल 2008 में जम्मू कश्मीर के कुपवाड़ा में आतंकियों के साथ हुई मुठभेड़ में शहीद हो गए थे. शहीद रणबीर सिंह की पत्नी कमलेश ने उनकी बाइक को कांच के शीशे में संभालकर रखा है. जिससे शहीद रणबीर सिंह की यादों को संजो कर रखा जा सके. उनके बड़े बेटे को हाल ही में हरियाणा सरकार ने सरकारी नौकरी दे दी है लेकिन शहीद रणबीर सिंह के परिवार की मांग है कि उनके सम्मान में शहीद स्मारक बनाया जाए. जिससे पूरा देश उनके बलिदान को याद रखें.

शहीदों के परिवार की अनदेखी कब तक?
एक तरफ शहीद सुरजीत सिंह के बूढ़े पिता हैं जो इस उम्र में भी चंडीगढ़ से लेकर दिल्ली तक के चक्क काट रहे हैं. सिर्फ इस उम्मीद में की शायद सरकार को अपना वादा याद आ जाए. वहीं दूसरी तरफ शहीद रणबीर सिंह का परिवार है जो उनकी याद में शहीद स्मारक की मांग कर रहा है.

अंबाला: आज देश आजादी की 73वीं सालगिरह मना रहा है. देश गुलामी की जंजीरों से आजाद होने का जश्न मना रहा है. स्वतंत्रता सेनानियों और शहीदों की शहादत को नमन कर उनके परिवार को सम्मान दिया जा रहा है लेकिन आज भी ऐसे कई शहीदों के परिवार हैं जिन्हें सम्मान के नाम पर सरकार ने सिर्फ धोखा दिया है. ऐसा ही एक परिवार शहीद सुरजीत सिंह का भी है. वो सुरजीत सिंह जो 1998 में जम्मू कश्मीर के राजौरी में आतंकियों से लोहा लेते हुए शहीद हो गए थे. तब सुरजीत सिंह की उम्र महज 21 साल थी और वो अपने माता-पिता के इकलौते बेटे थे.

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ठोकरें खाने को मजबूर शहीद के बुजुर्ग पिता
शहीद सुरजीत सिंह के पिता रि. सूबेदार रवैल सिंह ने बताया कि उनके बेटे को मरणोपरांत शौर्य चक्र दिया गया, लेकिन आर्थिक सहायता के नाम पर उन्हें सिर्फ 20 हजार रुपये दिए गए. उन्हें हरियाणा सरकार ने पेट्रोल पंप देने जैसे ना जाने कितने वादे किए, लेकिन सरकार ने वो वादे आज तक पूरे नहीं किए. शहीद सुरजीत सिंह का परिवार सरकार की बेरुखी का इकलौता शिकार परिवार नहीं है. अंबाला के ही शहीद रणबीर सिंह का परिवार भी ऐसी ही अनदेखी का शिकार है.

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शहीद रणबीर सिंह के बलिदान को भूल गई सरकार!
शहीद रणबीर सिंह साल 2008 में जम्मू कश्मीर के कुपवाड़ा में आतंकियों के साथ हुई मुठभेड़ में शहीद हो गए थे. शहीद रणबीर सिंह की पत्नी कमलेश ने उनकी बाइक को कांच के शीशे में संभालकर रखा है. जिससे शहीद रणबीर सिंह की यादों को संजो कर रखा जा सके. उनके बड़े बेटे को हाल ही में हरियाणा सरकार ने सरकारी नौकरी दे दी है लेकिन शहीद रणबीर सिंह के परिवार की मांग है कि उनके सम्मान में शहीद स्मारक बनाया जाए. जिससे पूरा देश उनके बलिदान को याद रखें.

शहीदों के परिवार की अनदेखी कब तक?
एक तरफ शहीद सुरजीत सिंह के बूढ़े पिता हैं जो इस उम्र में भी चंडीगढ़ से लेकर दिल्ली तक के चक्क काट रहे हैं. सिर्फ इस उम्मीद में की शायद सरकार को अपना वादा याद आ जाए. वहीं दूसरी तरफ शहीद रणबीर सिंह का परिवार है जो उनकी याद में शहीद स्मारक की मांग कर रहा है.

Intro:लाख सरकारी दावों के बावजूद हरियाणा सरकार शहीद परिवारों को सहूलियतें देना भूल गई है। आरोप है कि सरकार 26 जनवरी ओर 15 अगस्त समारोह में बुलाकर शहीदों के परिजनों को एक शॉल भेंट करके इतिश्री जरूर कर देती है, लेकिन लगता है इन परिवारों पर मुसीबतों का क्या पहाड़ टूट रहा है इसको हल करना तो दूर बल्कि सुनना भी पसंद नही करती। 21 साल की उम्र में दुश्मन से लोहा लेते राजौरी में शहीद हुए बोह के शहीद सुरजीत सिंह के पिता का कहना है कि पेट्रोल पंप के लिए वे दिल्ली तक के चक्कर काट काट कर थक चुके हैं लेकिन कोई सुनवाई नही हो रही। वही 2008 में सीमा पर शहीद हुए सूबेदार रणबीर सिंह के परिजनों का भी यही कहना है कि सरकार ने वायदे करने के बाद भूलने का काम किया है !Body:-21 साल की बाली उम्र में दुश्मन से लोहा लेते जम्मू- कश्मीर के राजौरी सेक्टर में 1998 में शहीद हुए गॉव बोह के सुरजीत सिंह के पिता सरकारी घोषणाओं को मात्र छलावा बताते हैं। उनका कहना है कि बेटे की शहादत के बाद सरकार ने उन्हें रोजी रोटी चलाने के लिए पेट्रोल पंप देने की घोषणा की थी, लेकिन आज 22 साल गुजर जाने के बाद भी लाख धक्के खाने के बाद उन्हें इसकी अलॉटमेंट नही की। शहीद के पिता सेना से सेवानिवृत्त हुए सूबेदार रावेल सिंह की आंखे उस समय नम जो गई जब उनसे सरकारी मदद मिलने की बात की गई। उनका कहना है कि उस समय तो सरकार व उसके अधिकारियों आंसू पोछने के लिए उनके परिवार की मदद का आश्वासन देते जल्द पेट्रोल पम्प देने की घोषणा की थी, मगर अभी तक वे इसके लिए कई बार दिल्ली में बैठे मंत्रियों और उच्च अधिकारियों की चौखट पर माथा पीटते आये हैं लेकिन उनकी किसी ने नही सुनी, हर बार मात्रा आश्वांसनो के अलावा कुछ नही मिला।

बाईट--रिटायर्ड सूबेदार रवैल सिंह--शहीद का पिता ।

वीओ-यह कोई एक मामला नही है कि शहीद परिवार सरकारी बेरुखी का शिकार हुए हो बल्कि अनेकों परिवार शहीदों की याद ओर सरकार के दिये आश्वासनों को याद करके दुखी हो उठते हैं। ऐसा ही एक परिवार सूबेदार का है जो 2008 में आतंकवादियों से लोहा लेते वीरगति को प्राप्त हुआ था। उनकी पत्नी की आंखे आज भी अपने वीर पति की याद में भर उठती हैं। इस वीरांगना ने तो अपनी पति की याद ताजा रखने के लिए उसका स्प्लेंडर" मोटर साइकिल शीशे के शो केस बना कर उसमें सजा रखा है। शहीद की पत्नी कमलेश का कहना है सरकार उसके वीर पति के नाम पर किये स्कूल का नाम उनके नाम रखने के वायदे पूरे करे। कमलेश का कहना है कि आज भी वे इस उम्मीद पर जी रही है कि सरकार का कोई नुमाइंदा उनके परिवार से किये वायदे पूरे करेगा।वही शहीद के बेटे विजय का कहना है कि सरकार ने उनके नाम न तो कोई स्मारक बनाई न स्कूल का नाम रखा वायदे तो सरकार ने किये लेकिन निभाए नहीं !

बाईट--कमलेश--शहीद रणबीर की पत्नी।
बाईट--विजय कुमार--शहीद रणबीर का बेटा !Conclusion:
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