अंबालाः पिछले कई महिनों से आपने बैंड-बाजे की आवाज शायद ही सुनी होगी. हमारे देश में बैंड-बाजे के बिना बहुत कम शादियां देखने के मिलती है. वैसे भी एक पुरानी कहावत है कि "बिन बैंड बाजा कैसी बारात".
कोरोना के चलते पूरे देश में शादी-विवाह के कार्यक्रमों में ज्यादा लोगों की भीड़ एकत्र करने पर प्रतिबंध है. यही कारण है कि लोग शादी तो कर रहे हैं, लेकिन कम लोगों को आंमत्रित किया जा रहा है. जिसके चलते बैंड-बाजे का चलन भी समाप्ति की कगार पर है.
ऐसे में बैंड-बाजे का काम करने वाले लोगों के सामने भी आर्थिक संकट खड़ा हो गया है. ईटीवी भारत ने इन्ही लोगों का दुख-दर्द जानने अंबाला पहुंचा. अंबाला में करीब तीन से चार दर्जन बैंड बाजे की दुकाने हैं.
लोगों के चेहरों पर खुशी बिखेरने वाले आजकल आंसू बहा रहे हैं. कोरोना संक्रमण के चलते शासन-प्रशासन ने शादियों में जब से 50 लोगों की अनिवार्यता की है, तब से लोग इनकी ओर मुड़कर ही नहीं देख रहे हैं. मार्च से कोई शादी-विवाह की बुकिग की चर्चा करने भी नहीं आ रहा है. कई जगह लोगों ने पहले बुकिग में दी गई धनराशि को वापस मांगना भी शुरू कर दिया है.
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बैंडबाजा बजाने वाले बंसत सिंह कहते है कि सरकार हर तबके की मदद कर रही है, लेकिन हमारी मदद कोई नहीं कर रहा है. इतना ही नहीं, बैंड मालिक आत्महत्या तक का जिक्र कर रहे हैं. उनका कहना है कि हिसार और यूपी से बैंडबाजा बजाने वाले कई लोगों द्धारा आत्महत्या करने की खबरें सामने आ चुकी हैं.
अंबाला छावनी स्तिथ विनय कुमार ने बताया कि वो पिछले करीब 30 सालों से बैंड बाजे का काम करते हैं. कोरोना से पहले लोगों ने एडवांस भी दिया था लेकिन जब शादी ही रद्द हो गई तो हम बैंड बाजा कहां बजाएं.
बैंडवालों का कहना है कि ऑनलॉक प्रक्रिया जरुर जरुर शुरु हो गई है लेकिन ये हमारे लिए नहीं हुई है क्योंकि लोग अभी भी डरे हुए है. बैंड बाजा मालिकों का कहना है कि काम ठप्प है तो ऐसे में हम कारीगरों को कैसे तनख्वा दें.
अब आलम यह है कि इन लोगों का ये काम बंद होने की कगार पर है. इन लोगों की सरकार से गुजारिश है कि जल्द से जल्द शादी या अन्य धार्मिक समारोह में बैंड बजाने की अनुमति दी जाए. इनका कहना है कि हम कोरोना के नियमावली का पालन करने को भी तैयार है अगर सरकार इसकी आज्ञा दें तो.
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