पानीपतः जापान की राजधानी टोक्यो में ओलंपिक चल रहा है और पल-पल की खबर के साथ हम हर खेल अपनी आंखो से घर बैठे देख रहे हैं. ये कमाल है टैक्नोलॉजी का, जिसने दूरियों को ना सिर्फ समेटा है बल्कि एक दूसरे को जानने में भी हमारी बेहद मदद की है. डिजिटल इंडिया प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का एक ड्रीम प्रोजेक्ट भी है. अब हमारे देश के ज्यादातर गांवों तक इंटरनेट की पहुंच है और बिजली के साथ-साथ डायरेक्ट टू होम सर्विस ने देश को जोड़ने में भूमिका अदा की है. लेकिन टैक्नोलॉजी के इस दौर में भी हरियाणा के पानीपत जिले का गांव जलालपुर कहीं पीछे छूट गया है.
आप यकीन करेंगे कि पानीपत जिले के इस गांव में एक भी टीवी नहीं है. लगभग 1200 लोगों की आबादी वाले इस गांव के लोग आज से नहीं बल्कि पहले से ही टीवी नहीं देखते हैं. जलालपुर में टीवी ना होने का कारण बेहद गरीबी या पैसे ना होना नहीं है. बल्कि गांव वाले कहते हैं कि हमारे धर्म में टीवी देखने की मनाही है इसलिए हमारे पूरे गांव में एक भी टीवी नहीं है.
दरअसल जलालपुर की पूरी आबादी मुस्लिम है और यहां के लोगों का मानना है कि उनके धर्म में टीवी देखने के लिए मना किया गया है. जिसका पालन वो सदियों से करते आ रहे हैं.
गांव के एक शाहीन से जब ईटीवी भारत संवाददाता ने बात की तो उन्होंने कहा कि हमारे गांव में कभी भी किसी के पास टीवी नहीं रहा है और ना ही हमें इसकी कभी जरूरत महसूस हुई. जब शाहीन से पूछा गया कि फिर आप खबरों से कैसे जुड़ते हैं, तो उनका जवाब था कि या तो हम मोबाइल पर देख लेते हैं या फिर पड़ोस के गांव में जाते हैं.
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ये बेहद चौंकाने वाला था कि इस दौर में भी किसी की सोच इतनी रूढ़िवादी है. ऐसे में हमें किसी युवा की तलाश थी कि शायद उसके विचारों में कुछ बदलाव आया हो, लेकिन जब ईटीवी भारत की टीम शाद से मिली तो उनका भी जवाब वैसा ही था. हालांकि उन्होंने इसके पीछे की वजह धर्म से ज्यादा नापसंद होना बताया.
पानीपत जिले के गांव जलालपुर के लोग इसे धर्म से जोड़कर देखते हैं, उनका मानना है कि इस्लाम में टीवी देखने से इनकार किया गया है तो हम उसका पालन कर रहे हैं. लेकिन क्या ये इस जमाने में व्यवहारिक है क्योंकि दुनिया बहुत आगे निकल चुकी है, विज्ञान ने कितनी तरक्की कर ली है. जब गांव के बच्चे बाकी दुनिया से जुड़ेंगे ही नहीं तो आगे कैसे बढ़ेंगे.
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गांव के पिछड़ेपन का अंदाजा आप इस बात से लगाइए कि इस गांव में एक भी सरकारी नौकर नहीं है. दो लोग बस डीसी रेट पर काम करते हैं. इसकी वजह है कि यहां के मात्र 5 प्रतिशत लोग ही साक्षर हैं. और लड़कियों की साक्षरता तो लगभग जीरो है.