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पानीपत: सरकार से नाराज किसानों ने लघु सचिवालय के सामने किया प्रदर्शन

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Published : Jul 20, 2020, 10:39 PM IST

केंद्र सरकार के कृषि से जुड़े तीन अध्यादेशों के खिलाफ पानीपत में किसानों ने प्रदर्शन किया. किसानों ने सरकार ने अध्यादेशों को वापस लेने की मांग की है.

farmers protest in panipat
farmers protest in panipat

पानीपत: लघु सचिवालय के सामने फ्लाइओवर के नीचे सोमवार को अन्नदाता किसान यूनियन हरियाणा के किसानों ने सरकार के तीन अध्यादेशों खिलाफ प्रदर्शन किया. किसानों का आरोप है कि केंद्र सरकार किसान विरोधी तीन अध्यादेश लेकर आई है. जो कि किसानों के बिल्कुल हक में नहीं है.

किसानों ने केंद्र सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि मंडियों को खत्म करने का काम सरकार करने जा रही हैं. इसके साथ ही भंडारण की कैपेसिटी का जो कानून बना था उसको हटा दिया गया है. कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के कानून को खत्म किया जाए. जिसके कारण 2 से 3 एकड़ का किसान बिल्कुल खत्म हो जाएगा. डीजल के दाम बढ़ने से भी किसानों में खासा रोष है. अन्नदाता किसान यूनियन हरियाणा के प्रधान सुरेश दहिया का कहना है कि अगर सरकार इन काले कानूनों को वापस नहीं लेती तो वो आंदोलन करेंगे.

सरकार से नाराज किसानों ने लघु सचिवालय के सामने किया प्रदर्शन, देखें वीडियो

इन अध्यादेशों के खिलाफ हो रहा है प्रदर्शन

  1. एसेंशियल एक्ट 1955 में बदलाव
  2. फॉर्मर्स प्रोड्यूस ट्रेड एंड कॉमर्स (प्रमोशन एंड फैसिलिटेशन) ऑर्डिनेंस
  3. फॉर्मर्स अग्रीमेंट ऑन प्राइस एश्योरेंस एंड फार्म सर्विस ऑर्डिनेंस- कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग

1. एसेंशियल एक्ट 1955 में बदलाव

पहले व्यापारी फसलों को किसानों के औने-पौने दामों में खरीदकर उसका भंडारण कर लेते थे और कालाबाजारी करते थे, उसको रोकने के लिए आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 बनाया गया था जिसके तहत व्यापारियों द्वारा कृषि उत्पादों के एक लिमिट से अधिक भंडारण पर रोक लगा दी गयी थी. अब इस नए अध्यादेश के तहत आलू, प्याज, दलहन, तिलहन व तेल के भंडारण पर लगी रोक को हटा लिया गया है.

किसान और किसान संगठनों का मानना है कि सरकार की इस नीति से किसानों को नुकसान होगा. किसानों का कहना है कि हमारे देश में 85% लघु किसान हैं, किसानों के पास लंबे समय तक भंडारण की व्यवस्था नहीं होती है यानी यह अध्यादेश बड़ी कम्पनियों द्वारा कृषि उत्पादों की कालाबाजारी के लिए लाया गया है. कम्पनियां और सुपर मार्केट अपने बड़े-बड़े गोदामों में कृषि उत्पादों का भंडारण करेंगे और बाद में ऊंचे दामों पर ग्राहकों को बेचेंगे.

2. फॉर्मर्स प्रोड्यूस ट्रेड एंड कॉमर्स (प्रमोशन एंड फैसिलिटेशन) ऑर्डिनेंस

कृषि उपज, वाणिज्य और व्यापार (संवर्धन एवं सुविधा) अध्यादेश किसानों को उनकी उपज देश में किसी भी व्यक्ति या संस्था (APMC सहित) को बेचने की इजाजत देता है. किसान अपना प्रोडक्ट खेत में या व्यापारिक प्लेटफॉर्म पर देश में कहीं भी बेच सकते हैं. वहीं इसको लेकर किसानों को सबसे बड़ा डर मंडी एक्ट के प्रभाव को सीमित करने वाले अध्यादेश कृषि उपज, वाणिज्य और व्यापार (संवर्धन एवं सुविधा) को लेकर है. इसके जरिए राज्यों के मंडी एक्ट को केवल मंडी परिसर तक ही सीमित कर दिया गया है. यानी अब कहीं पर भी फसलों की खरीद-बिक्री की जा सकेगी. बस फर्क इतना होगा कि मंडी में खरीद-बिक्री पर मंडी शुल्क लगेगा, जबकि बाहर शुल्क से छूट होगी.

3. फॉर्मर्स अग्रीमेंट ऑन प्राइस एश्योरेंस एंड फार्म सर्विस ऑर्डिनेंस- कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग

सरकार प्रवक्ता का कहना है कि व्यावसायिक खेती के समझौते वक्त की जरूरत है. विशेषकर छोटे और सीमांत किसानों के लिए, जो ऊंचे मूल्य की फसलें उगाना चाहते हैं, मगर पैदावार का जोखिम उठाते और घाटा सहते हैं. इस अध्यादेश से किसान अपना यह जोखिम कॉरपोरेट खरीदारों को सौंपकर फायदा कमा सकेंगे. वहीं किसानों कहा कहना है कि इसके जरिये कॉन्ट्रैक्ट फॉर्मिंग को आगे बढ़ाया जाएगा. कंपनियां खेती करेंगी और किसान मजदूर बनकर रह जाएगा. उसकी सुरक्षा की कोई गारंटी नहीं होगी. हाल में सरकार ने कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग की गाइडलाइन जारी की है. इसमें कॉन्ट्रैक्ट की भाषा से लेकर कीमत तय करने का फॉर्मूला तक दिया गया है. लेकिन कहीं भी फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य का कोई जिक्र नहीं है, जिस पर किसान नेता सवाल उठा रहे हैं.

ये भी पढ़ें- गोहाना: आर्थिक संकट से जूझ रही अंतरराष्ट्रीय रेसलर टीना मलिक, नहीं काम आई खेल नीति

पानीपत: लघु सचिवालय के सामने फ्लाइओवर के नीचे सोमवार को अन्नदाता किसान यूनियन हरियाणा के किसानों ने सरकार के तीन अध्यादेशों खिलाफ प्रदर्शन किया. किसानों का आरोप है कि केंद्र सरकार किसान विरोधी तीन अध्यादेश लेकर आई है. जो कि किसानों के बिल्कुल हक में नहीं है.

किसानों ने केंद्र सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि मंडियों को खत्म करने का काम सरकार करने जा रही हैं. इसके साथ ही भंडारण की कैपेसिटी का जो कानून बना था उसको हटा दिया गया है. कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के कानून को खत्म किया जाए. जिसके कारण 2 से 3 एकड़ का किसान बिल्कुल खत्म हो जाएगा. डीजल के दाम बढ़ने से भी किसानों में खासा रोष है. अन्नदाता किसान यूनियन हरियाणा के प्रधान सुरेश दहिया का कहना है कि अगर सरकार इन काले कानूनों को वापस नहीं लेती तो वो आंदोलन करेंगे.

सरकार से नाराज किसानों ने लघु सचिवालय के सामने किया प्रदर्शन, देखें वीडियो

इन अध्यादेशों के खिलाफ हो रहा है प्रदर्शन

  1. एसेंशियल एक्ट 1955 में बदलाव
  2. फॉर्मर्स प्रोड्यूस ट्रेड एंड कॉमर्स (प्रमोशन एंड फैसिलिटेशन) ऑर्डिनेंस
  3. फॉर्मर्स अग्रीमेंट ऑन प्राइस एश्योरेंस एंड फार्म सर्विस ऑर्डिनेंस- कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग

1. एसेंशियल एक्ट 1955 में बदलाव

पहले व्यापारी फसलों को किसानों के औने-पौने दामों में खरीदकर उसका भंडारण कर लेते थे और कालाबाजारी करते थे, उसको रोकने के लिए आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 बनाया गया था जिसके तहत व्यापारियों द्वारा कृषि उत्पादों के एक लिमिट से अधिक भंडारण पर रोक लगा दी गयी थी. अब इस नए अध्यादेश के तहत आलू, प्याज, दलहन, तिलहन व तेल के भंडारण पर लगी रोक को हटा लिया गया है.

किसान और किसान संगठनों का मानना है कि सरकार की इस नीति से किसानों को नुकसान होगा. किसानों का कहना है कि हमारे देश में 85% लघु किसान हैं, किसानों के पास लंबे समय तक भंडारण की व्यवस्था नहीं होती है यानी यह अध्यादेश बड़ी कम्पनियों द्वारा कृषि उत्पादों की कालाबाजारी के लिए लाया गया है. कम्पनियां और सुपर मार्केट अपने बड़े-बड़े गोदामों में कृषि उत्पादों का भंडारण करेंगे और बाद में ऊंचे दामों पर ग्राहकों को बेचेंगे.

2. फॉर्मर्स प्रोड्यूस ट्रेड एंड कॉमर्स (प्रमोशन एंड फैसिलिटेशन) ऑर्डिनेंस

कृषि उपज, वाणिज्य और व्यापार (संवर्धन एवं सुविधा) अध्यादेश किसानों को उनकी उपज देश में किसी भी व्यक्ति या संस्था (APMC सहित) को बेचने की इजाजत देता है. किसान अपना प्रोडक्ट खेत में या व्यापारिक प्लेटफॉर्म पर देश में कहीं भी बेच सकते हैं. वहीं इसको लेकर किसानों को सबसे बड़ा डर मंडी एक्ट के प्रभाव को सीमित करने वाले अध्यादेश कृषि उपज, वाणिज्य और व्यापार (संवर्धन एवं सुविधा) को लेकर है. इसके जरिए राज्यों के मंडी एक्ट को केवल मंडी परिसर तक ही सीमित कर दिया गया है. यानी अब कहीं पर भी फसलों की खरीद-बिक्री की जा सकेगी. बस फर्क इतना होगा कि मंडी में खरीद-बिक्री पर मंडी शुल्क लगेगा, जबकि बाहर शुल्क से छूट होगी.

3. फॉर्मर्स अग्रीमेंट ऑन प्राइस एश्योरेंस एंड फार्म सर्विस ऑर्डिनेंस- कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग

सरकार प्रवक्ता का कहना है कि व्यावसायिक खेती के समझौते वक्त की जरूरत है. विशेषकर छोटे और सीमांत किसानों के लिए, जो ऊंचे मूल्य की फसलें उगाना चाहते हैं, मगर पैदावार का जोखिम उठाते और घाटा सहते हैं. इस अध्यादेश से किसान अपना यह जोखिम कॉरपोरेट खरीदारों को सौंपकर फायदा कमा सकेंगे. वहीं किसानों कहा कहना है कि इसके जरिये कॉन्ट्रैक्ट फॉर्मिंग को आगे बढ़ाया जाएगा. कंपनियां खेती करेंगी और किसान मजदूर बनकर रह जाएगा. उसकी सुरक्षा की कोई गारंटी नहीं होगी. हाल में सरकार ने कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग की गाइडलाइन जारी की है. इसमें कॉन्ट्रैक्ट की भाषा से लेकर कीमत तय करने का फॉर्मूला तक दिया गया है. लेकिन कहीं भी फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य का कोई जिक्र नहीं है, जिस पर किसान नेता सवाल उठा रहे हैं.

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