कुरुक्षेत्र: बचपन में आपने भूत-प्रेत की कहानियां सुनी होंगी. ये भी सुना होगा कि अगर कोई व्यक्ति दुर्घटना में मर जाता है तो उसकी आत्मा भूत बनकर भटकती रहती है. ये आत्माएं लोगों को परेशान करती हैं. इन भटकती आत्माओं के लिए धर्मनगरी कुरुक्षेत्र में एक ऐसी जगह है, जहां सूत का कच्चा धागा या अकाल मृत्यु मरने वाले का कपड़ा बांधा जाता है. जिससे उसकी आत्मा भटकना बंद कर देती है.
48 कोस की पवित्र धरती कुरुक्षेत्र
कुरुक्षेत्र की 48 कोस की धरती जहां महाभारत का युद्ध हुआ था. इस युद्ध में बहुत से योद्धा मारे गए थे. इस युद्ध में मारे गए योद्धाओं के दाह संस्कार के बाद अस्थियां नहीं चुनी गई थी. ऐसा कहा जाता है कि कुरुक्षेत्र की धरती पवित्र है. यहां मरने वाले को मोक्ष की प्राप्ति होती है. इस लिए यहां पर महाभारत का युद्ध हुआ था. इसलिए यहां आज भी अस्थियों को गंगा में जलांजलि देने के लिए चुना नहीं जाता.
यहां मिलती है पितरों को शांति
कुरुक्षेत्र से 25 किलोमीटर दूर पिहोवा में सरस्वती सरोवर के तट पर एक पीपल का पेड़ है. पीपल के इस पेड़ को प्रेत पीपल भी कहते हैं. इस पेड़ की मान्यता ऐसी है जहां कि अकाल मृत्यु से मरने वाले लोगों के लिए यहां पर पूजा अर्चना और पिंड दान किया जाता है. जिससे उनकी आत्मा को शांति मिलती और उनको इस पेड़ पर स्थान मिल जाता है. लोग हर साल यहां आकर पिंडदान और पूजा अर्चना करते हैं. ये पीपल का पेड़ सरस्वती नदी के मुहाने पर है.
दूर से पिंड दान करने आते हैं लोग
हर साल अपने पितरों की शांति के लिए हजारो की संख्या में यहां लोग आते हैं. ऐसा भी बताया जाता है कि गुरु नानक देव और गोविंद सिंह भी यहां आए थे. इसी वजह से सिख समुदाय के लाखों श्रद्धालु यहां पिंडदान करने के लिए आते हैं. यहां कपड़ा बांधने से उपरी चक्कर, हवा और भूत जैसे कष्ट दूर हो जाते हैं.
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इस पेड़ पर लाखों की संख्या में धागे बंदे हैं. मरने वालों के परिजन इस पीपल के पेड़ को पुरोहित के कहे अनुसार पानी भी दे जाते हैं. पानी अकाल मृत्यु मरने वाले शख्स के लिए साल भर का होता है,ये सच्चाई है या अंधविश्वास इसका तो पता नहीं पर 48 कोस की धरती की देखरेख करने वाले कुरुक्षेत्र विकास बोर्ड के रिकॉर्ड में भी इस प्रेत पीपल का जिक्र आता है.