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पिहोवा का 'प्रेत पीपल': अकाल मृत्यु आत्माओं को यहां मिलती है मुक्ति! - क्यों पवित्र है कुरुक्षेत्र नगरी

पिहोवा में सरस्वती सरोवर पर एक पीपल का पेड़ है. इस पेड़ पर लाखों के संख्या में धागे और कपड़े बंधे हैं. इस पेड़ की मान्यता है कि यहां अकाल मरने वालो की आत्मशांति के लिए पूजा अर्चना कर पिंडदान किया जाता है. इससे लोगों के कष्ट दूर होते हैं इसलिए इस पेड़ को प्रेत पीपल भी कहा जाता है.

kurukshetra pehowa pret pipal tree kissa haryane ka
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Published : Jan 11, 2020, 7:06 AM IST

Updated : Jan 11, 2020, 4:43 PM IST

कुरुक्षेत्र: बचपन में आपने भूत-प्रेत की कहानियां सुनी होंगी. ये भी सुना होगा कि अगर कोई व्यक्ति दुर्घटना में मर जाता है तो उसकी आत्मा भूत बनकर भटकती रहती है. ये आत्माएं लोगों को परेशान करती हैं. इन भटकती आत्माओं के लिए धर्मनगरी कुरुक्षेत्र में एक ऐसी जगह है, जहां सूत का कच्चा धागा या अकाल मृत्यु मरने वाले का कपड़ा बांधा जाता है. जिससे उसकी आत्मा भटकना बंद कर देती है.

48 कोस की पवित्र धरती कुरुक्षेत्र

कुरुक्षेत्र की 48 कोस की धरती जहां महाभारत का युद्ध हुआ था. इस युद्ध में बहुत से योद्धा मारे गए थे. इस युद्ध में मारे गए योद्धाओं के दाह संस्कार के बाद अस्थियां नहीं चुनी गई थी. ऐसा कहा जाता है कि कुरुक्षेत्र की धरती पवित्र है. यहां मरने वाले को मोक्ष की प्राप्ति होती है. इस लिए यहां पर महाभारत का युद्ध हुआ था. इसलिए यहां आज भी अस्थियों को गंगा में जलांजलि देने के लिए चुना नहीं जाता.

पिहोवा का 'प्रेत पीपल': अकाल मृत्यु आत्माओं को यहां मिलती है मुक्ति!

यहां मिलती है पितरों को शांति

कुरुक्षेत्र से 25 किलोमीटर दूर पिहोवा में सरस्वती सरोवर के तट पर एक पीपल का पेड़ है. पीपल के इस पेड़ को प्रेत पीपल भी कहते हैं. इस पेड़ की मान्यता ऐसी है जहां कि अकाल मृत्यु से मरने वाले लोगों के लिए यहां पर पूजा अर्चना और पिंड दान किया जाता है. जिससे उनकी आत्मा को शांति मिलती और उनको इस पेड़ पर स्थान मिल जाता है. लोग हर साल यहां आकर पिंडदान और पूजा अर्चना करते हैं. ये पीपल का पेड़ सरस्वती नदी के मुहाने पर है.

दूर से पिंड दान करने आते हैं लोग

हर साल अपने पितरों की शांति के लिए हजारो की संख्या में यहां लोग आते हैं. ऐसा भी बताया जाता है कि गुरु नानक देव और गोविंद सिंह भी यहां आए थे. इसी वजह से सिख समुदाय के लाखों श्रद्धालु यहां पिंडदान करने के लिए आते हैं. यहां कपड़ा बांधने से उपरी चक्कर, हवा और भूत जैसे कष्ट दूर हो जाते हैं.

ये भी पढ़ें:- किस्सा हरियाणे का: यहां लोग 22 सौ साल से एक जिन्न के खौफ में जीते हैं!

इस पेड़ पर लाखों की संख्या में धागे बंदे हैं. मरने वालों के परिजन इस पीपल के पेड़ को पुरोहित के कहे अनुसार पानी भी दे जाते हैं. पानी अकाल मृत्यु मरने वाले शख्स के लिए साल भर का होता है,ये सच्चाई है या अंधविश्वास इसका तो पता नहीं पर 48 कोस की धरती की देखरेख करने वाले कुरुक्षेत्र विकास बोर्ड के रिकॉर्ड में भी इस प्रेत पीपल का जिक्र आता है.

कुरुक्षेत्र: बचपन में आपने भूत-प्रेत की कहानियां सुनी होंगी. ये भी सुना होगा कि अगर कोई व्यक्ति दुर्घटना में मर जाता है तो उसकी आत्मा भूत बनकर भटकती रहती है. ये आत्माएं लोगों को परेशान करती हैं. इन भटकती आत्माओं के लिए धर्मनगरी कुरुक्षेत्र में एक ऐसी जगह है, जहां सूत का कच्चा धागा या अकाल मृत्यु मरने वाले का कपड़ा बांधा जाता है. जिससे उसकी आत्मा भटकना बंद कर देती है.

48 कोस की पवित्र धरती कुरुक्षेत्र

कुरुक्षेत्र की 48 कोस की धरती जहां महाभारत का युद्ध हुआ था. इस युद्ध में बहुत से योद्धा मारे गए थे. इस युद्ध में मारे गए योद्धाओं के दाह संस्कार के बाद अस्थियां नहीं चुनी गई थी. ऐसा कहा जाता है कि कुरुक्षेत्र की धरती पवित्र है. यहां मरने वाले को मोक्ष की प्राप्ति होती है. इस लिए यहां पर महाभारत का युद्ध हुआ था. इसलिए यहां आज भी अस्थियों को गंगा में जलांजलि देने के लिए चुना नहीं जाता.

पिहोवा का 'प्रेत पीपल': अकाल मृत्यु आत्माओं को यहां मिलती है मुक्ति!

यहां मिलती है पितरों को शांति

कुरुक्षेत्र से 25 किलोमीटर दूर पिहोवा में सरस्वती सरोवर के तट पर एक पीपल का पेड़ है. पीपल के इस पेड़ को प्रेत पीपल भी कहते हैं. इस पेड़ की मान्यता ऐसी है जहां कि अकाल मृत्यु से मरने वाले लोगों के लिए यहां पर पूजा अर्चना और पिंड दान किया जाता है. जिससे उनकी आत्मा को शांति मिलती और उनको इस पेड़ पर स्थान मिल जाता है. लोग हर साल यहां आकर पिंडदान और पूजा अर्चना करते हैं. ये पीपल का पेड़ सरस्वती नदी के मुहाने पर है.

दूर से पिंड दान करने आते हैं लोग

हर साल अपने पितरों की शांति के लिए हजारो की संख्या में यहां लोग आते हैं. ऐसा भी बताया जाता है कि गुरु नानक देव और गोविंद सिंह भी यहां आए थे. इसी वजह से सिख समुदाय के लाखों श्रद्धालु यहां पिंडदान करने के लिए आते हैं. यहां कपड़ा बांधने से उपरी चक्कर, हवा और भूत जैसे कष्ट दूर हो जाते हैं.

ये भी पढ़ें:- किस्सा हरियाणे का: यहां लोग 22 सौ साल से एक जिन्न के खौफ में जीते हैं!

इस पेड़ पर लाखों की संख्या में धागे बंदे हैं. मरने वालों के परिजन इस पीपल के पेड़ को पुरोहित के कहे अनुसार पानी भी दे जाते हैं. पानी अकाल मृत्यु मरने वाले शख्स के लिए साल भर का होता है,ये सच्चाई है या अंधविश्वास इसका तो पता नहीं पर 48 कोस की धरती की देखरेख करने वाले कुरुक्षेत्र विकास बोर्ड के रिकॉर्ड में भी इस प्रेत पीपल का जिक्र आता है.

Intro:कुरुक्षेत्र की 48 कोस की धरती जहां हुआ था प्राचीन काल में महाभारत का युद्ध और इस युद्ध में बहुत से योद्धा मारे गए थे इस युद्ध में मारे गए योद्धाओं का संस्कार के बाद अस्थियां नहीं चुनी गई थी इसी कारण से महाभारत युद्ध के लिए कुरुक्षेत्र की भूमि को ही चुना गया था आज भी यहीं पर था यहां पर चलित है मृत्यु उपरांत किसी भी व्यक्ति की अस्थियों को नहीं चुना जाता


Body:लगभग कुरुक्षेत्र से 25 किलोमीटर की दूरी पर स्थित कस्बा पिहोवा जहां दूर-दूर से लोग इत्र मुक्ति के लिए पिंडदान करने के लिए आते हैं और यहां कहा जाता है कि गया के बाद खोवा की सरस्वती तट पर पिंड दान करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है और अकाल मृत्यु मरने वाले की आत्मा को शांति मिलती है नदी के तट पर बसेस पिहोवा कस्बे को पहले पृथ्वी तक के नाम से जाना जाता था सरस्वती नदी के तट पर लाखों लोग यहां पिंडदान के लिए आते हैं नदी के मुहाने पर एक पीपल का पेड़ है जिसे प्रतिफल भी कहा जाता है इस पीपल के पेड़ पर बहुत से सूत कच्चे धागे बंदे हैं लोगों के कहे अनुसार यह कपड़ा इसलिए बांदा जाता है की अकाल मृत्यु मरने वाले इसी पेड़ पर रहने लगे और सूत से इन भूत प्रेत जैसी अदृश्य शक्ति को बांध दिया जाता है और उसे ध्यान मुक्ति के लिए छोड़ दिया जाता है


Conclusion:इस पेड़ पर लाखों की संख्या में धागे बंदे हैं मरने वाले की परिजन इस पीपल के पेड़ को पुरोहित के कहे अनुसार पानी भी दे जाते हैं पानी अकाल मृत्यु मरने वाले शख्स के लिए साल भर का होता है यह सच्चाई है या अंधविश्वास इसका तो पता नहीं पर 48 कोस की धरती की देखरेख करने वाले कुरुक्षेत्र विकास बोर्ड के रिकॉर्ड में भी इस प्रेत पीपल का जिक्र आता है और यहां सिखों के गुरु गुरु नानक देव वह गुरु गोविंद सिंह भी यहां आए थे तभी से यहां सिख समुदाय भी लाखों की संख्या में पिंडदान के लिए पहुंचता है सरस्वती नदी पर यह पेड़ हजारों वर्ष पुराना है और इस पर लोग प्रथा अनुसार पितरों या अकाल मृत्यु मरने वाले के लिए सूत बांधते आ रहे हैं।

बाईट:-,पुरोहीत
Last Updated : Jan 11, 2020, 4:43 PM IST
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