करनाल: 2014 तक आम विधायक देते आ रहे करनाल हल्के ने इस बार प्रदेश को मुख्यमंत्री दिया था. इस विधानसभा सीट ने जैसा गौरव 2014 में प्राप्त किया, वैसा पहले कभी नहीं किया था. करनाल सीट पर हुई भाजपा उम्मीदवार मनोहर लाल की जीत वोट प्रतिशत के हिसाब से पूरे हरियाणा में 2014 की सबसे बड़ी जीत रही. उनके मुकाबले चुनाव में उतरे हर उम्मीदवार की जमानत जब्त हो गई.
करनाल सीट पर बीजेपी ने अब तक 1987 आर 1996 में ही जीत हासिल की थी. इससे पहले जनसंघ के उम्मीदवार भी 1967 और 1972 में जीते थे. इस सामान्य इतिहास के बावजूद भाजपा के एक बड़े नेता को ये अपने लिए एक सुरक्षित सीट नजर आई. भावी मुख्यमंत्री मनोहर लाल की नजर गुरुग्राम, फरीदाबाद, रोहतक जैसी सीटों पर भी थी, लेकिन उन्होंने अपनी मर्जी से टिकट लेते हुए करनाल को चुना था.
मनोहर लाल ने आरएसएस और भाजपा संगठन में खूब काम किया था लेकिन हरियाणा भाजपा में वे कम ही सक्रिय रहे थे. भाजपा में उन्होंने लंबे समय तक हरियाणा संगठन महामंत्री का पद संभाला था. उन्होंने करनाल में आरएसएस के स्वयंसेवक वाले जीवन की तरह खूब मेहनत और दमदार जीत हासिल की.
मनोहर लाल ने 58.78 प्रतिशत वोट हासिल किए थे. वहीं दूसरे नंबर पर रहे उम्मीदवार को 45.64 प्रतिशत वोट मिले थे. जीत का ये अंतर प्रतिशत के हिसाब से प्रदेश में सबसे बड़ा था. हालांकि वोटों की संख्या के हिसाब से गुरुग्राम से बीजेपी के उमेश अग्रवाल ने सबसे बड़ी जीत दर्ज की थी.
मनोहर लाल खट्टर ने 1977 में आरएसएस की सदस्यता ली थी और 1980 में वे संघ के पूर्णकालिक प्रचारक बन गए. घर-बार त्याग कर और बिना शादी किए उन्होंने संघ में 14 साल विभिन्न जिम्मेदारियों के साथ काम किया और 1994 में वे बीजेपी में आ गए.
साल 2000 के बाद वे हरियाणा भाजपा के संगठन महामंत्री बन गए और आखिरकार 2014 लोकसभा चुनाव में उन्हें पार्टी ने हरियाणा की चुनाव प्रचार समिति का अध्यक्ष बना दिया. 2014 के लोकसभा चुनाव में शानदार जीत के बाद मनोहर लाल हरियाणा के मामले में और ज्यादा दिलचस्पी लेने लगे थे. धीरे-धीरे उनका नाम पार्टी की ओर से सीएम पद के उम्मीदवारों में मजबूती के साथ लिया जाने लगा.
करनाल सीट पर 2005 और 2009 के चुनावों से सुमिता सिंह कांग्रेस के लिए चुनाव लड़ रही थी लेकिन 2009 तक आते-आते उनका जीत का प्रतिशत घट कर 4 प्रतिशत से भी कम रह गया था. इस गिरावट के बाद माहौल को भांपकर सुमिता सिंह ने 2014 से पहले ही अपनी सीट बदलने का फैसला किया.
सुमिता सिंह 2014 में चुनाव लड़ने असंध चली गईं और कांग्रेस ने करनाल से सुरेंद्र सिंह नरवाल को टिकट दी. सुरेंद्र सिंह ने खट्टर को बाहरी बताकर 'अपना करनाल, अपना नरवाल' नारा चलाने की कोशिश की लेकिन कोई असर नहीं हुआ और वो मामूली समर्थन के साथ खट्टर के सामने मात्र 9.12 प्रतिशत वोट ही ले पाए.
वहीं इनेलो के लिए करनाल कमजोर सीट ही रही और उनका उम्मीदवार यहां कभी दूसरे स्थान पर भी नहीं आया. इनेलो ने यहां से मनोज वधवा को टिकट दी थी जो 12.60 वोट प्रतिशत वोट के साथ अपनी जमानत भी जब्त करवा गए. हालांकि इनेलो के लिए यहां संतोषजनक बात ये रही कि उनका उम्मीदवार 2009 के चुनाव से ज्यादा वोट लेकर आया था.
2009 में इनेलो उम्मीदवार को यहां केवल 3.88 प्रतिशत वोट ही मिले थे. करनाल सीट के एक पुराने खिलाड़ी हैं जयप्रकाश गुप्ता जो 1987 से यहां से चुनाव लड़ते रहे हैं. 2014 को मिलाकर कुल 7 बार चुनाव लड़ चुके गुप्ता ने 2 बार जीत हासिल की जबकि 5 बार वे दूसरे स्थान पर रहे थे.
2014 के चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर उतरे गुप्ता को 13.33 प्रतिशत वोट मिले और वो दूसरे स्थान पर रहे थे. 2000 और 2005 में भी गुप्ता आजाद उम्मीदवार तौर पर ही लड़े थे जबकि 2009 में उनको हजका ने टिकट दी थी. 2000 से पहले सभी चुनाव उन्होंने कांग्रेस की टिकट पर लड़े थे.
10 साल तक विधायक रही सुमिता सिंह का करनाल से मैदान छोड़कर जाना कुछ हद तक बीजेपी के लिए फायदेमंद रहा लेकिन इस सीट पर मनोहर लाल खट्टर की शानदार जीत की असल वजह तो देश में चली मोदी लहर ही थी.