फरीदाबाद: पाकिस्तान में हो रहे जुल्मों के चलते सालों पहले भारत आए हिन्दू परिवार के लोग आए दिन भारी परेशानी का सामना कर रहे हैं. भारतीय नागरिकता न मिलने के कारण शरणार्थियों के बच्चों के भविष्य (Refugees facing problen regarding Indian citizenship) पर तलवार लटक रही है. नागरिकता नहीं मिलने के चलते परिवारों के मूल दस्तावेज तैयार नहीं हो रहे हैं, जिसकी वजह से उनको न तो निजी स्कूल में दाखिला मिल रहा है न ही सरकारी स्कूल में उनको दाखिला मिल रहा है.
भारत-पाकिस्तान के बंटवारे (partition of india pakistan) के बाद पाकिस्तान में भारतीय परिवारों पर किए गए जुल्म से आहत होकर हजारों परिवार पाकिस्तान में अपना सब कुछ छोड़ कर भारत आ गए. यह परिवार इस उम्मीद के साथ भारत आए थे कि यहां पर उनको भारत की नागरिकता मिलेगी और उनके बच्चों का भविष्य भी उज्ज्वल होगा, लेकिन यहां आने के बाद भी उनकी मुसीबतें कम नहीं हुई है. यहां पर भी उनको आने के बाद से ही मुसीबतों का सामना करना पड़ रहा है. इन परिवारों को अपनी नागरिकता पाने के लिए दर-दर की ठोकरें खानी पड़ी है, लेकिन आज भी बहुत से परिवारों को भारतीय नागरिकता नसीब नहीं हुई है.
फरीदाबाद में 2008 में आए शरणार्थी: सरकारों के दो-दो नोटिफिकेशन के बाद भी भारतीय नागरिकता नहीं मिल पाने के कारण दिल्ली से करीब 800 पाकिस्तानी हिंदू पाकिस्तान लौट गए हैं. वहीं, पाकिस्तान से आए शरणार्थी 2008 में फरीदाबाद एनआईटी इलाके में आकर बस गए. नागरिकता मिलने की आस में पुलिस कमिश्नर कार्यालय और डीसी कार्यालय के चक्कर लगाते रहते हैं और समय-समय पर वीजा और पासपोर्ट रिन्यू करवाते हैं. नागरिकता न मिलने के चलते इन लोगों के मूल दस्तावेज जैसे राशन कार्ड, आधार कार्ड, परिवार पहचान पत्र और मतदाता पहचान पत्र नहीं बन पा रहे हैं.
इस वजह से बच्चों का स्कूल में नहीं हो रहा एडमिशन: इन मूल दस्तावेजों के न होने के चलते इन बच्चों के दाखिले स्कूलों में नहीं हो पा रहे हैं. लॉकडाउन के बाद से यह बच्चे घरों पर बैठे हुए हैं. उन्होंने कहा कि लॉकडाउन लगने से पहले वह किसी न किसी तरह छोटे बच्चों को अलग-अलग निजी स्कूलों में भेजकर पढ़ा लेते थे, लेकिन लॉकडाउन खुलने के बाद अब बच्चों का बड़ी क्लासों में दाखिला कराना है, जिसके लिए दस्तावेजों (Refugees from Pakistan in Faridabad) का होना बेहद जरूरी है.
अंधकार में बच्चों का भविष्य: दस्तावेज न होने के चलते कोई भी सकूल उनके बच्चों का दाखिला करने के लिए तैयार नहीं है. ऐसे में उनके सामने सबसे बड़ी मुसीबत यह है कि वह किस तरह से अपने बच्चों के भविष्य को अंधकार में होने से बचा सकते हैं. उन्होंने कहा कि लंबे समय से वह नागरिकता पाने के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं, लेकिन लाख प्रयास करने के बावजूद भी उनको आज तक नागरिकता नहीं मिली है. उन्होंने कहा कि 16 परिवार यहां पर रहते हैं और करीब 10-12 बच्चे स्कूल जाने की उम्मीद लगाए बैठे हैं.