चंडीगढ़: मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के पहले बजट में सबसे ज्यादा चर्चा जिस बात की हो रही है वो है जीरो बजट खेती. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि जीरो बजट खेती से किसानों की आय दोगुनी करने के लक्ष्य को पाया जा सकता है.
क्या है जीरो बजट खेती?
जीरो बजट खेती का मतलब है कि किसान को किसी भी फसल को उगाने के लिए किसी तरह का कर्ज ना लेना पड़े. इस तरह की खेती में कीटनाशक, रासायनिक खाद और संकर बीज का इस्तेमाल नहीं होता. रसायनिक खाद की जगह देशी खाद का इस्तेमाल होता है. यह खाद गाय के गोबर, गौमूत्र, चने के बेसन, गुड़, मिट्टी तथा पानी से बनती है. वहीं रासायनिक कीटनाशकों के स्थान पर नीम, गोबर और गौमूत्र का और देशी बीजों का इस्तेमाल किया जाता है. इसमें किसी भी प्रकार के डीजल या ईंधन से चलने वाले संसाधनों का प्रयोग नहीं होता. जिससे खेती में किसान की लागत बेहद कम होती है.
दक्षिण भारत के राज्य में हुआ सफल प्रयोग
वित्त मंत्री ने आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, छत्तीसगढ़ के राज्य सरकारों को जीरो बजट खेती के लिए किसानों को ट्रेंड करने के लिए कहा है. खासकर दक्षिण भारत के किसान जीरो बजट खेती का सफल प्रयोग कर रहे हैं. सिर्फ आंध्र प्रदेश की बात करें तो 5 लाख 23 हजार किसान 3 हजार पंद्रह गांवों में 5 लाख चार हजार एकड़ जमीन पर जीरो बजट खेती कर रहे हैं.
क्या कहते हैं हरियाणा के किसान?
ईटीवी भारत ने हरियाणा में ये जानने की कोशिश की आखिर जीरो बजट खेती कितनी मुमकिन है. कृषि के जानकारों की मानें तो हरियाणा जैसे प्रदेश में ये संभव नहीं लगता. वहीं जीरो बजट खेती के बारे में हरियाणा के कई किसानों का कहना है कि वो काफी समय से खेती कर रहे हैं. उन्हें नहीं लगता कि जीरो बजट की खेती वो कर पाएंगे, क्योंकि बगैर खाद, दवाइयों और बेहतर बीज के प्रयोग किए फसलें पैदा ही नहीं होती.
बेशक कई राज्य जीरो बजट खेती को अपना चुके हैं, फिर भी हरियाणा के किसान तो इस प्रकार की खेती को फायदे का सौदा नहीं बता रहे हैं, लेकिन सरकार का कहना है कि जीरो बजट खेती को बढ़ावा देकर देश के किसानों को कर्जमुक्त और खुशहाल बना सकते हैं. अब देखना होगा कि सरकार का ये प्लान वाकई सफल हो पाता है या नहीं.