चंडीगढ़ः हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटालाचौटाला (op chautala) की सजा पूरी होने के बाद एक बार फिर जेबीटी(jbt recruitment scam) का जिन्न बोतल से बाहर निकल आया है. जब से ओपी चौटाला के जेल से बाहर आने की खबर आम हुआ है तब से इनेलो में एक नया जोश है और अभय चौटाला लगातार ये कह रहे हैं कि कांग्रेस सरकार के वक्त भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने ओपी चौटाला को फंसाया था, जिसका हर्जाना उन्हें अब चुकाना पड़ेगा. इसी का जवाब देने के लिए कांग्रेस ने अभय चौटाला से 7 सवाल पूछे.
कांग्रेस के अभय चौटाला से सवाल
- अभय चौटाला ये बताएं कि संजीव कुमार आईएएस कौन थे? उन्हें हरियाणा में डायरेक्टर प्राइमरी एजुकेशन किसने लगाया था और कब लगाया था ?
- संजीव कुमार ने 5 जून, 2003 को सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की थी. उन्होंने जेबीटी सलेक्शन की दो लिस्ट पेश की थी. अभय चौटाला ये बताएं कि इनमें से कौन सी पहली लिस्ट असली थी और कौन सी दूसरी लिस्ट नकली थी. जिसके आधार पर शिक्षा विभाग ने 3206 को सिलेक्शन लेटर जारी किया? अभय सिंह चौटाला बताएं कि हरियाणा में उस समय किसकी सरकार थी और उस समय शिक्षा मंत्री कौन थे ?
- अभय चौटाला बताने का कष्ट करें कि रजनी शेखरी सिब्बल आईएएस ने जुलाई 2000 से पहले जो असली लिस्ट को अलमारी के अंदर सील करके रखा था. वो लिस्ट कैसे बदली, किसने बदली और दूसरी सिलेक्शन लिस्ट उस अलमारी में कैसे पहुंची? उस समय हरियाणा में किसकी सरकार थी?
- 25 नवंबर 2003 को सुप्रीम कोर्ट की खंडपीठ के चीफ जस्टिस ने (संजीव कुमार बनाम हरियाणा सरकार और अन्य) संजीव कुमार (तत्कालीन आईएएस डायरेक्टर प्राइमरी एजुकेशन हरियाणा) की याचिका पर सीबीआई को ये जांच सौंपी. अदालत ने हरियाणा सरकार की हाजिरी में आदेश जारी किए. जिसमें बाद में ओपी चौटाला और अन्य पर मुकदमा चला. अभय चौटाला बताएं कि उस समय हरियाणा में किसकी सरकार थी और केंद्र में सरकार किसकी थी ?
- अभय सिंह चौटाला क्या बताएंगे कि सीबीआई ने जो जांच की वो किसके आदेश से की? अभय चौटाला जनता को बताएं कि क्या सुप्रीम कोर्ट ने उस जांच को सुपरवाइज किया? उस समय सीबीआई की सारी जांच सुप्रीम कोर्ट की देखरेख में हुई या नहीं ?
- अभय चौटाला बताएं कि अगर ये कोई षड्यंत्र था तो सीबीआई के विशेष जज की रोहिणी कोर्ट में (16-1-2013) जब 10 साल की सजा का फैसला हुआ तो अगर केस ठीक नहीं था तो सुप्रीम कोर्ट तक ने सीबीआई जज के फैसले को बहाल क्यों रखा
- अभय चौटाला बताएं कि साल 1999 में जब 3206 जेबीटी टीचर्स की पोस्ट को एचएसएससी के दायरे से बाहर किया गया और जेबीटी की अपॉइंटमेंट एजुकेशन डिपार्टमेंट ने की. अभय चौटाला ये भी बताएं कि जिस लिस्ट से नियुक्तियां की गई उसे अदालत ने फर्जी लिस्ट माना कि नहीं? उस समय हरियाणा के शिक्षा मंत्री और मुख्यमंत्री कौन थे और क्या वजह थी इस परिवर्तन की?
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अभय चौटाला ने क्या कहा ?
अभय चौटाला ने कांग्रेस के इन सवालों के जवाब में जींद के एक कार्यक्रम में कहा कि अगर भूपेंद्र सिंह हुड्डा को लगता है कि चौटाला साहब को जेल भेजने में उनका कोई हाथ नहीं था तो वो खुले मंच पर आकर बहस कर लें, सब साफ हो जाएगा. पहली चार्जशीट में ओपी चौटाला का नाम नहीं था लेकिन जब दोबारा 2007 में चार्जशीट दी गई तो उनका नाम डाल दिया गया, तब किसकी सरकार था.
क्या था जेबीटी घोटाला ?
चार्जशीट के मुताबिक 3206 जूनियर बेसिक ट्रेंड टीचर्स की नियुक्ति (JBT Recruitment) में ओम प्रकाश चौटाला और अजय चौटाला (Om prakash and ajay chautala) ने फर्जी दस्तावेजों का इस्तेमाल किया था. नियुक्तियों की दूसरी लिस्ट 18 जिलों की चयन समिति के सदस्यों और अध्यक्षों को हरियाणा भवन और चंडीगढ़ के गेस्ट हाउस में बुलाकर तैयार कराई गई. इसमें जिन अयोग्य उम्मीदवारों से पैसा मिला था. उनके नाम योग्य उम्मीदवारों की सूची में डाल दिए गए.
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ऐसे हुआ मामले का खुलासा
जेबीटी भर्ती घोटाले को अंजाम देने के लिए साल 1985 बैच के आईएएस अधिकारी संजीव कुमार को शिक्षा विभाग का निदेशक बनाया गया था. मामले के मुताबिक परीक्षा के बाद योग्य उम्मीदवारों की जो सूची बनी उनमें संजीव कुमार के उम्मीदवार भी थे. जब नतीजे घोषित करने की बारी आई तो अजय चौटाला और शेर सिंह बडशामी ने संजीव कुमार को धमकाते हुए उनके उम्मीदवारों के नाम सूची से काटकर नई सूची बनवाई और नतीजे घोषित करने को कहा. यहीं से घोटाले का खुलासा होना शुरू हो गया.
कोर्ट ने 55 लोगों को ठहराया था दोषी
ओम प्रकाश चौटाला और उनके बेटे अजय चौटाला के अलावा प्राथमिक शिक्षा के पूर्व निदेशक संजीव कुमार, चौटाला के पूर्व ओएसडी विद्या धर और दिल्ली कोर्ट ने हरियाणा के पूर्व सीएम के राजनीतिक सलाहकार शेर सिंह बाड़शामी को दोषी ठहराया. कोर्ट ने माना कि ओपी चौटाला के इशारे पर ही आरोपियों ने पूरे घोटाले को अंजाम दिया. चौटाला ने संजीव कुमार को प्राथमिक शिक्षा निदेशक नियुक्त करते हुए उनसे नियुक्तियों की पहले से तैयार सूची को बदलकर दूसरी सूची तैयार करने को कहा था. कोर्ट ने कुल 55 लोगों को दोषी करार दिया था. जिनमें 16 महिलाएं शामिल थीं. कुल मिलाकर मामले में 62 आरोपी थे, 6 की मुकदमे की सुनवाई के दौरान मौत हुई और एक को अदालत ने बरी कर दिया.
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