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Monkeypox: लापरवाही में खतरनाक हो सकता है मंकीपॉक्स, चंडीगढ़ पीजीआई के प्रोफेसर बता रहे हैं बचाव के तरीके - chandigarh latest news

कोरोना महामारी के बाद दुनिया में एक और वायरस फैलना शुरू हो गया है जिसे मंकीपॉक्स (monkeypox) नाम दिया गया है. माना जा रहा है कि यह वायरस बंदरों से इंसानों में फैला है. आखिर यह वायरस कितना खतरनाक है. क्या यह भी कोरोना की तरह महामारी का रूप ले सकता है. इन सब सवालों को लेकर ईटीवी भारत ने बातचीत की चंडीगढ़ पीजीआई कम्युनिटी मेडिसिन के प्रोफेसर सोनू गोयल से.

Chandigarh PGI Community Medicine
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Published : Jun 1, 2022, 5:44 PM IST

Updated : Jun 1, 2022, 10:46 PM IST

चंडीगढ़: मंकीपॉक्स वायरस अभी तक 23 देशों में फैल चुका है. इसके 257 मामले सामने आ चुके हैं. जिनकी संख्या धीरे-धीरे बढ़ रही है. हालांकि अभी तक यह वायरस दक्षिण एशियाई देशों तक नहीं पहुंचा है लेकिन दक्षिण अमेरिका, कैनेडा, अमेरिका और यूरोप के कई देशों में पहुंच चुका है. यह वायरस कोरोना की तरह एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक पहुंच रहा है. हलांकि यह कोरोना की तरह शक्तिशाली वायरस नहीं है. इसीलिए इस वायरस से अभी तक कम केस सामने आए हैं.

मंकीपॉक्स के लक्षण- प्रोफेसर सोनू गोयल कहते हैं कि अफ्रीकी देश कांगो में पहले से मौजूद है. यहां मंकीपॉक्स के करीब 1300 मरीज मिल चुके हैं. लेकि अब यह वायरस कांगो से निकलकर दूसरे देशों में भी फैलना शुरू हो गया है. उन्होंने कहा कि मंकीपॉक्स के लक्षण (symptoms of monkeypox) कोरोना के जैसे हैं. जैसे इसमें भी व्यक्ति को बुखार हो जाता है. मरीज को खांसी होती है. सिर में दर्द महसूस होता है. लेकिन इसका मुख्य लक्षण यह है कि इसके मरीज के शरीर में फफोले पड़ जाते हैं जिनमें पानी भर जाता है. यह मुंह से शुरू होते हैं और फिर पूरे शरीर में फैल जाते हैं.

मंकीपॉक्स के मरीज को इलाज मिलने से कुछ दिनों में वो ठीक भी हो जाता है. इस वायरस से होने वाली मृत्यु दर ज्यादा नहीं है. अभी तक जितने भी केस सामने आए हैं उनमें किसी भी मरीज की मृत्यु नहीं हुई है. सोनी गोयल कहते हैं कि मृत्यु दर भले ही कम से लेकिन लेकिन इससे बचाव बेहद जरूरी है. इस बीमारी को हल्के में लेना जल्दबाजी होगी. अगर इस बीमारी को गंभीरता से नहीं लिया गया तो इसमें मृत्यु दर बढ़ सकती है.

मंकीपॉक्स का इलाज क्या है- इस वायरस की वैक्सीन के बारे में बात करते हुए सोनू गोयल कहते हैं कि बहुत साल पहले स्मॉल पॉक्स (small pox) नाम से एक वायरस था. जिससे बचाव के लिए छोटे बच्चों को बचपन में टीके लगाए जाते थे. लेकिन 1978 में यह वायरस खत्म हो गया. जिन लोगों का जन्म 1978 से पहले हुआ था. उन बच्चों को यह टीके लगे हैं और ऐसा माना जा रहा है कि वह लोग उन टीकों की वजह से मंकीपॉक्स के वायरस से भी बचे रहेंगे. लेकिन जिन लोगों का जन्म 1978 के बाद हुआ है वह इस वायरस की चपेट में आ सकते हैं. फिलहाल रिसर्च जारी है. अगर स्मॉल पॉक्स के टीके इस बीमारी से बचाव के लिए सफल हुए तो उनका इस्तेमाल किया जाएगा. अन्यथा इसके लिए भी नहीं वैक्सीन बनानी पड़ सकती है.

चंडीगढ़: मंकीपॉक्स वायरस अभी तक 23 देशों में फैल चुका है. इसके 257 मामले सामने आ चुके हैं. जिनकी संख्या धीरे-धीरे बढ़ रही है. हालांकि अभी तक यह वायरस दक्षिण एशियाई देशों तक नहीं पहुंचा है लेकिन दक्षिण अमेरिका, कैनेडा, अमेरिका और यूरोप के कई देशों में पहुंच चुका है. यह वायरस कोरोना की तरह एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक पहुंच रहा है. हलांकि यह कोरोना की तरह शक्तिशाली वायरस नहीं है. इसीलिए इस वायरस से अभी तक कम केस सामने आए हैं.

मंकीपॉक्स के लक्षण- प्रोफेसर सोनू गोयल कहते हैं कि अफ्रीकी देश कांगो में पहले से मौजूद है. यहां मंकीपॉक्स के करीब 1300 मरीज मिल चुके हैं. लेकि अब यह वायरस कांगो से निकलकर दूसरे देशों में भी फैलना शुरू हो गया है. उन्होंने कहा कि मंकीपॉक्स के लक्षण (symptoms of monkeypox) कोरोना के जैसे हैं. जैसे इसमें भी व्यक्ति को बुखार हो जाता है. मरीज को खांसी होती है. सिर में दर्द महसूस होता है. लेकिन इसका मुख्य लक्षण यह है कि इसके मरीज के शरीर में फफोले पड़ जाते हैं जिनमें पानी भर जाता है. यह मुंह से शुरू होते हैं और फिर पूरे शरीर में फैल जाते हैं.

मंकीपॉक्स के मरीज को इलाज मिलने से कुछ दिनों में वो ठीक भी हो जाता है. इस वायरस से होने वाली मृत्यु दर ज्यादा नहीं है. अभी तक जितने भी केस सामने आए हैं उनमें किसी भी मरीज की मृत्यु नहीं हुई है. सोनी गोयल कहते हैं कि मृत्यु दर भले ही कम से लेकिन लेकिन इससे बचाव बेहद जरूरी है. इस बीमारी को हल्के में लेना जल्दबाजी होगी. अगर इस बीमारी को गंभीरता से नहीं लिया गया तो इसमें मृत्यु दर बढ़ सकती है.

मंकीपॉक्स का इलाज क्या है- इस वायरस की वैक्सीन के बारे में बात करते हुए सोनू गोयल कहते हैं कि बहुत साल पहले स्मॉल पॉक्स (small pox) नाम से एक वायरस था. जिससे बचाव के लिए छोटे बच्चों को बचपन में टीके लगाए जाते थे. लेकिन 1978 में यह वायरस खत्म हो गया. जिन लोगों का जन्म 1978 से पहले हुआ था. उन बच्चों को यह टीके लगे हैं और ऐसा माना जा रहा है कि वह लोग उन टीकों की वजह से मंकीपॉक्स के वायरस से भी बचे रहेंगे. लेकिन जिन लोगों का जन्म 1978 के बाद हुआ है वह इस वायरस की चपेट में आ सकते हैं. फिलहाल रिसर्च जारी है. अगर स्मॉल पॉक्स के टीके इस बीमारी से बचाव के लिए सफल हुए तो उनका इस्तेमाल किया जाएगा. अन्यथा इसके लिए भी नहीं वैक्सीन बनानी पड़ सकती है.

Last Updated : Jun 1, 2022, 10:46 PM IST
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