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कोई महीनों से नहीं गया घर, किसी ने टाल दी शादी, देखिए किन परिस्थितियों में काम कर रहे हैं स्वास्थ्य कर्मी

कोरोना योद्धा यानि स्वास्थ्य कर्मी देश के लोगों के लिए कोरोना के खिलाफ जंग लड़ रहे हैं, वे सबसे आगे आकर पहली पंक्ति में इस लड़ाई को लड़ रहे हैं ताकि हम सुरक्षित रह सकें. डॉक्टर, नर्स, मेडिकल स्टाफ को कोरोना वारियर्स की जो संज्ञा दी गई है वो गलत नहीं है क्योंकि ये लोग अपना घर परिवार छोड़कर मरीजों की सेवा में लगे हुए हैं और अपनी जान की परवाह किए बिना अपना फर्ज निभा रहे हैं. ऐसे ही कुछ कोरोना योद्धाओं से ईटीवी भारत ने बात की है.

corona warriors medical staff
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Published : Jul 21, 2020, 9:22 PM IST

चंडीगढ़: डॉक्टर और मेडिकल स्टाफ कई महीनों से अपने घर-परिवार से दूर होटलों में रहकर कोरोना पॉजिटिव मरीजों का इलाज कर रहे हैं. इनमें से कई कर्मी मानसिक परेशानी झेल रहे हैं, लेकिन फिर भी हिम्मत के साथ सभी का टारगेट एक ही है. मिलकर कोरोना वायरस को हराना है. इनका यही जज्बा इन्हें सबसे अलग करता है. इनमें कई ऐसे हैं जो महीनों से अपने घर नहीं गए हैं, वहीं किसी ने कई दिनों से अपने मां-बाप का चेहरा भी नहीं देखा तो कोई अपने छोटे-छोटे बच्चे रिश्तेदारों के यहां छोड़कर अपना कर्तव्य निभा रहा है.

काम करते वक्त रहता है मानसिक दबाव

राजस्थान के रहने वाले 29 वर्षीय नर्सिंग स्टाफ दीपक कुमार बताते हैं कि वह दो महीने से घर नहीं गए हैं. उनकी तैनाती फरीदाबाद के कोविड-19 के आइसोलेशन वार्ड में है. कोविड-19 के चलते मानसिक प्रेशर बहुत ज्यादा है. उन्होंने कहा के उनके भाई भी मेडिकल स्टाफ में नौकरी करते हैं और पिता गांव में कोविड-19 के लिए ड्यूटी कर रहे हैं. वह खुद कोरोना संक्रमित मरीजों का इलाज कर रहे हैं. ऐसे में वह घर जाकर अपने परिवार को खतरे में नहीं डाल सकते और वह इस प्रेशर को झेलते हुए अपना फर्ज निभा रहे हैं.

चंडीगढ़ में स्वास्थ्य कर्मी ने टाल दी शादी

कोरोना काल में लोगों का इलाज करने के लिए चंडीगढ़ के सेक्टर-16 के सरकारी अस्पताल में काम कर रही नर्स रुचिका चौधरी ने तो अपनी ही शादी ही टाल दी है. रुचिका ने कहा कि वह हिमाचल के कांगड़ा जिले की रहने वाली हैं और पिछले कई सालों से चंडीगढ़ सेक्टर-16 अस्पताल में बतौर स्टाफ नर्स काम कर रही हैं. पिछले कई महीनों से शादी की तैयारियां चल रही थी, लेकिन मार्च के आखिरी हफ्ते में देश में कोरोना तेजी से बढ़ने लगा और अस्पतालों में स्वास्थ्य कर्मियों की जरूरत भी ज्यादा बढ़ने लगी. तब उनके साथ के लोग अस्पतालों में 12 से 16 घंटे की ड्यूटी कर रहे थे. ऐसे में उन्हें भी महसूस हुआ कि उन्हें अस्पताल में जाकर मरीजों की देखभाल में लग जाना चाहिए और इसलिए उन्होंने अपनी शादी टालने का फैसला किया.

कोई महीनों से नहीं गया घर, किसी ने टाल दी शादी, देखिए किन परिस्थितियों में काम कर रहे हैं स्वास्थ्य कर्मी.

रिश्तेदारों के घर बच्चों को छोड़कर निभा रहे कर्तव्य

वहीं कई डॉक्टर दंपति अलग-अलग रहकर और अपने बच्चों को रिश्तेदारों के यहां छोड़कर ड्यूटी दे रहे हैं. राजस्थान के रहने वाले आशीष फरीदाबाद में कोविड-19 के आइसोलेशन वार्ड में दो महीने से होटल में रहकर ड्यूटी कर रहे हैं. आशीष की पत्नी भी जयपुर के अस्पताल में अपनी सेवाएं दे रही हैं. आशीष की 11 महीने की बच्ची है जो उन्होंने नानी के पास छोड़ी हुई है. पति और पत्नी में से कोई भी बच्ची के पास नहीं जाता है. उन्होंने कहा कि बच्ची का चेहरा केवल वीडियो कॉल के माध्यम से ही देख पाते हैं. बच्चे का चेहरा देखने के बाद उनका भी घर जाने का मन करता है, लेकिन वह इन इमोशंस से लड़कर अपनी ड्यूटी पर तैनात हैं.

स्वास्थ्य कर्मियों को रहता है इस बात का डर

कुछ डॉक्टर रोज घर से आकर अस्पताल में ड्यूटी दे रहे हैं, ऐसे में जब वो घर जाते हैं तो उनके परिजनों के लिए कोरोना का खतरा बढ़ जाता है, वहीं इन डॉक्टर्स के छोट-छोटे बच्चें भी हैं जो इनके पास आने से खुद को रोक नहीं पाते हैं क्योंकि उनके शायद अभी नहीं पता है कि उनके मां बाप किस खतरे की बीच सो रोज घर लौटते हैं. चंडीगढ़ के अस्पताल में कार्यरत डॉक्टर गीतिका सिंह ने बताया कि वे और उनके पति दोनों ही डॉक्टर हैं. उनके पति पीजीआई में कोरोना पीड़ितों का इलाज कर रहे हैं और पिछले काफी दिनों से वह घर नहीं आए हैं.

ये भी पढ़ें- स्पेशल रिपोर्ट: नहीं हुआ अनलॉक का फायदा, बहादुरगढ़ में केवल 20% फैक्ट्रियां ही खुलीं

गीतिका खुद भी डॉक्टर हैं इसलिए उन्हें भी मरीजों के इलाज के लिए अस्पताल जाना पड़ता है. ऐसे में उन्हें अपने सात साल के बेटे को घर में बंद करके जाना पड़ता है. अपने बेटे को इस तरह अकेला घर में बंद करके जाते हुए उन्हें बहुत दुख होता है, लेकिन समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी को निभाना भी जरूरी है. वहीं जब वो अस्पताल से घर लौटले हैं डर भी लगता है क्योंकि वो कोरोना संक्रमित मरीजों के बीच से घर आते हैं. ऐसे में अपने बच्चे को लेकर चिंता रहती है.

हरियाणा में कोविड अस्पतालों का लेखा-जोखा

बता दें कि, हरियाणा में इस वक्त 377 कोविड केयर सेंटर हैं, तो वहीं राज्य के विभिन्न सरकारी और निजी अस्पतालों में 181 कोविड डेडिकेटेड हेल्थ सेंटर बनाएं गए हैं. इसके अलावा राज्य में 43 कोविड डेडिकेटेड अस्पताल भी हैं. इन सभी जगह हजारों की संख्या में स्वास्थ्य कर्मी काम करे रहे हैं. ये स्वास्थ्य कर्मी आज बेहद तनावपूर्ण परिस्थितियों में काम कर रहे हैं. जहां कई लोग कोरोना पॉजिटिव होने पर अपने लोगों से ही मुंह मोड़ रहे हैं ऐसे में ये लोग कोरोना के खतरे के बीच रहकर संक्रमित मरीजों का इलाज कर रहे हैं.

लाजिमी है कि डर इनको भी लगता होगा, लेकिन इन कोरोना योद्धा ने खुद से पहले देश को रखा है अपने कर्तव्य को रखा है. वहीं जिस तरह से हरियाणा में कोरोना के मरीजों की संख्या बढ़ रही है ऐसे में स्वास्थ्य कर्मियों ने राज्य में और कोविड डेडिकेटेड अस्पताल खोलने और लोगों को भर्ती करने की भी मांग की है ताकि अभी काम कर रहे स्वास्थ्य कर्मियों पर से भी वर्कलोड थोड़ा कम हो सके.

ये भी पढ़ें- नेट और न ही नेटवर्क...कैसे हो देश के सबसे पिछड़े जिले नूंह में ऑनलाइन पढ़ाई

चंडीगढ़: डॉक्टर और मेडिकल स्टाफ कई महीनों से अपने घर-परिवार से दूर होटलों में रहकर कोरोना पॉजिटिव मरीजों का इलाज कर रहे हैं. इनमें से कई कर्मी मानसिक परेशानी झेल रहे हैं, लेकिन फिर भी हिम्मत के साथ सभी का टारगेट एक ही है. मिलकर कोरोना वायरस को हराना है. इनका यही जज्बा इन्हें सबसे अलग करता है. इनमें कई ऐसे हैं जो महीनों से अपने घर नहीं गए हैं, वहीं किसी ने कई दिनों से अपने मां-बाप का चेहरा भी नहीं देखा तो कोई अपने छोटे-छोटे बच्चे रिश्तेदारों के यहां छोड़कर अपना कर्तव्य निभा रहा है.

काम करते वक्त रहता है मानसिक दबाव

राजस्थान के रहने वाले 29 वर्षीय नर्सिंग स्टाफ दीपक कुमार बताते हैं कि वह दो महीने से घर नहीं गए हैं. उनकी तैनाती फरीदाबाद के कोविड-19 के आइसोलेशन वार्ड में है. कोविड-19 के चलते मानसिक प्रेशर बहुत ज्यादा है. उन्होंने कहा के उनके भाई भी मेडिकल स्टाफ में नौकरी करते हैं और पिता गांव में कोविड-19 के लिए ड्यूटी कर रहे हैं. वह खुद कोरोना संक्रमित मरीजों का इलाज कर रहे हैं. ऐसे में वह घर जाकर अपने परिवार को खतरे में नहीं डाल सकते और वह इस प्रेशर को झेलते हुए अपना फर्ज निभा रहे हैं.

चंडीगढ़ में स्वास्थ्य कर्मी ने टाल दी शादी

कोरोना काल में लोगों का इलाज करने के लिए चंडीगढ़ के सेक्टर-16 के सरकारी अस्पताल में काम कर रही नर्स रुचिका चौधरी ने तो अपनी ही शादी ही टाल दी है. रुचिका ने कहा कि वह हिमाचल के कांगड़ा जिले की रहने वाली हैं और पिछले कई सालों से चंडीगढ़ सेक्टर-16 अस्पताल में बतौर स्टाफ नर्स काम कर रही हैं. पिछले कई महीनों से शादी की तैयारियां चल रही थी, लेकिन मार्च के आखिरी हफ्ते में देश में कोरोना तेजी से बढ़ने लगा और अस्पतालों में स्वास्थ्य कर्मियों की जरूरत भी ज्यादा बढ़ने लगी. तब उनके साथ के लोग अस्पतालों में 12 से 16 घंटे की ड्यूटी कर रहे थे. ऐसे में उन्हें भी महसूस हुआ कि उन्हें अस्पताल में जाकर मरीजों की देखभाल में लग जाना चाहिए और इसलिए उन्होंने अपनी शादी टालने का फैसला किया.

कोई महीनों से नहीं गया घर, किसी ने टाल दी शादी, देखिए किन परिस्थितियों में काम कर रहे हैं स्वास्थ्य कर्मी.

रिश्तेदारों के घर बच्चों को छोड़कर निभा रहे कर्तव्य

वहीं कई डॉक्टर दंपति अलग-अलग रहकर और अपने बच्चों को रिश्तेदारों के यहां छोड़कर ड्यूटी दे रहे हैं. राजस्थान के रहने वाले आशीष फरीदाबाद में कोविड-19 के आइसोलेशन वार्ड में दो महीने से होटल में रहकर ड्यूटी कर रहे हैं. आशीष की पत्नी भी जयपुर के अस्पताल में अपनी सेवाएं दे रही हैं. आशीष की 11 महीने की बच्ची है जो उन्होंने नानी के पास छोड़ी हुई है. पति और पत्नी में से कोई भी बच्ची के पास नहीं जाता है. उन्होंने कहा कि बच्ची का चेहरा केवल वीडियो कॉल के माध्यम से ही देख पाते हैं. बच्चे का चेहरा देखने के बाद उनका भी घर जाने का मन करता है, लेकिन वह इन इमोशंस से लड़कर अपनी ड्यूटी पर तैनात हैं.

स्वास्थ्य कर्मियों को रहता है इस बात का डर

कुछ डॉक्टर रोज घर से आकर अस्पताल में ड्यूटी दे रहे हैं, ऐसे में जब वो घर जाते हैं तो उनके परिजनों के लिए कोरोना का खतरा बढ़ जाता है, वहीं इन डॉक्टर्स के छोट-छोटे बच्चें भी हैं जो इनके पास आने से खुद को रोक नहीं पाते हैं क्योंकि उनके शायद अभी नहीं पता है कि उनके मां बाप किस खतरे की बीच सो रोज घर लौटते हैं. चंडीगढ़ के अस्पताल में कार्यरत डॉक्टर गीतिका सिंह ने बताया कि वे और उनके पति दोनों ही डॉक्टर हैं. उनके पति पीजीआई में कोरोना पीड़ितों का इलाज कर रहे हैं और पिछले काफी दिनों से वह घर नहीं आए हैं.

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गीतिका खुद भी डॉक्टर हैं इसलिए उन्हें भी मरीजों के इलाज के लिए अस्पताल जाना पड़ता है. ऐसे में उन्हें अपने सात साल के बेटे को घर में बंद करके जाना पड़ता है. अपने बेटे को इस तरह अकेला घर में बंद करके जाते हुए उन्हें बहुत दुख होता है, लेकिन समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी को निभाना भी जरूरी है. वहीं जब वो अस्पताल से घर लौटले हैं डर भी लगता है क्योंकि वो कोरोना संक्रमित मरीजों के बीच से घर आते हैं. ऐसे में अपने बच्चे को लेकर चिंता रहती है.

हरियाणा में कोविड अस्पतालों का लेखा-जोखा

बता दें कि, हरियाणा में इस वक्त 377 कोविड केयर सेंटर हैं, तो वहीं राज्य के विभिन्न सरकारी और निजी अस्पतालों में 181 कोविड डेडिकेटेड हेल्थ सेंटर बनाएं गए हैं. इसके अलावा राज्य में 43 कोविड डेडिकेटेड अस्पताल भी हैं. इन सभी जगह हजारों की संख्या में स्वास्थ्य कर्मी काम करे रहे हैं. ये स्वास्थ्य कर्मी आज बेहद तनावपूर्ण परिस्थितियों में काम कर रहे हैं. जहां कई लोग कोरोना पॉजिटिव होने पर अपने लोगों से ही मुंह मोड़ रहे हैं ऐसे में ये लोग कोरोना के खतरे के बीच रहकर संक्रमित मरीजों का इलाज कर रहे हैं.

लाजिमी है कि डर इनको भी लगता होगा, लेकिन इन कोरोना योद्धा ने खुद से पहले देश को रखा है अपने कर्तव्य को रखा है. वहीं जिस तरह से हरियाणा में कोरोना के मरीजों की संख्या बढ़ रही है ऐसे में स्वास्थ्य कर्मियों ने राज्य में और कोविड डेडिकेटेड अस्पताल खोलने और लोगों को भर्ती करने की भी मांग की है ताकि अभी काम कर रहे स्वास्थ्य कर्मियों पर से भी वर्कलोड थोड़ा कम हो सके.

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