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कारगिल विजय दिवस: हरियाणा के वीर योद्धाओं के पराक्रम की ये गाथाएं कभी न भूलें

26 जुलाई 1999 के दिन भारतीय सेना ने कारगिल युद्ध के दौरान चलाए गए ‘ऑपरेशन विजय’ को सफलतापूर्वक अंजाम देकर सबसे आखिरी चोटी टाइगर हिल को पाकिस्तानी घुसपैठियों के चंगुल से मुक्त कराया था. इसी विजय की याद में ‘26 जुलाई’ को हर साल विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है.

kargil vijay diwas
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Published : Jul 26, 2019, 6:05 AM IST

चंडीगढ: इस युद्ध में हमारे लगभग 527 वीर योद्धा शहीद हुए थे जबकि 1300 से ज्यादा घायल हो गए थे. कई शहीद तो ऐसे थे जो अपने जीवन के 20 बसंत भी नहीं देख पाए थे. इनमें से हरियाणा के भी 74 वीर जवान थे जो हंसते-हंसते मां भारती के लिए जान न्यौछावर कर गए. यह दिन उन शहीदों को याद कर अपने श्रद्धा-सुमन अर्पण करने का है, जो हंसते-हंसते मातृभूमि की रक्षा करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए. यह दिन समर्पित है उन्हें, जिन्होंने अपना आज हमारे कल के लिए बलिदान कर दिया.

कारगिल विजय दिवस के 20 साल

इन वीरों ने इस युद्ध में असीम शौर्य का परिचय देते हुए न सिर्फ दुश्मन के दांत खट्टे कर दिए. बल्कि ये इन वीरों के साहस का ही परिणाम था कि विकट परिस्थितियों में पाकिस्तान को मात देकर फिर कारगिल की चोटी पर तिरंगा लहराया. यहां हम आपको हरियाणा के उन वीरों की कहानी बता रहे हैं जिन्हें जानकर आपकी आंखें नम हो जाएंगी और सीना गर्व से और चौड़ा हो जाएगा-

सबसे युवा शहीद अंबाला के मनजीत
अंबाला के गांव कांसापुर में जन्में मनजीत सिंह कारगिल में शहीद होने वाले सबसे कम उम्र के जवान थे. शहीद मनजीत के पिता गुरचरण सिंह बताते हैं कि पढ़ाई के समय से ही मनजीत की इच्छा सेना में भर्ती होकर देश सेवा करने की थी. सेना में भर्ती होने के करीब डेढ़ वर्ष बाद ही पाकिस्तान ने हमला बोल दिया और मनजीत सिंह की ड्यूटी कारगिल में लगा दी गई. 7 जून 1999 को टाइगर हिल में दुश्मनों के दांत खट्टे करते हुए मनजीत शहीद हो गए. कारगिल युद्ध में शहीद हुए जवानों में मनजीत सभी शहीदों में से सबसे कम उम्र के थे और हरियाणा के सबसे पहले नौजवान थे. मनजीत 17 वर्ष की आयु में भर्ती हुए थे और साढ़े 18 वर्ष की आयु में शहीद हो गए थे.

11 को अकेले मारा था नारनौंद के पवित्र सिंह ने
इन्हीं वीर शहीदों में से एक थे नारनौंद के गांव मिलकपुर के पवित्र सिंह जिन्होंने हंसते-हंसते देश के लिए अपनी जान कुर्बान कर दी. फौज में भर्ती होने का जुनून इस कदर किसी में हो सकता है हैरानी होती है. चूंकि पिता फौजी थे सो साहस और हिम्मत रगो में थी जब भी पापा बंदूक ले आते तो पवित्र कहता वो भी बड़ा होकर देश की सरहद पर खड़ा होकर दुश्मनों के छक्के छुड़ाएगा और आखिरकार बड़ा होकर उन्होंने किया भी वही. बेटे को याद करके मां आज भी आंसू बहाती हैं लेकिन ये आंसू खुशी के हैं. कारगिल युद्ध के दौरान दुश्मन दल के 11 लोगों की जान लेकर ही उन्होंने अंतिम सांस ली और वीरगति को प्राप्त हुए.

45 दिन बाद मिला था शव
सिरसा के तरकांवाली के कृष्ण कुमार सबसे दुर्गम चोटी टाइगर हिल्स पर दुश्मनों से लोहा लेते हुए कारगिल युद्ध के दौरान 30 मई 1999 को शहीद हो गए थे, लेकिन अपनी बहादुरी के बल पर उन्होंने 8 पाक सैनिकों को मौत की नींद सुला दिया था. भीषण गोलीबारी और भारी बर्फबारी व सर्दी के कारण सेना कृष्ण कुमार का पार्थिव शरीर शहीद होने के 45 दिन बाद बरामद कर पाई थी.

17 हजार फीट की ऊंचाई पर हुए शहीद
महेंद्रगढ़ के गांव गुवानी के सुबेदार लाल सिंह ने कारगिल युद्ध में शहादत दी थी. वे 15 मई 1999 को आदेश मिलते ही साथियों के साथ 18000 हजार फुट ऊंची चोटी को घुसपैठियों से मुक्त कराने के लिए कूच कर गए. रात में लक्ष्य की ओर बढ़ते हुए 28 मई तक उन्होंने 17000 फुट की ऊंचाई तय कर ली थी. वह आगे बढ़ ही रहे थे कि अचानक दुश्मन की ओर से आई गोलियों की बौछार ने उनके शरीर को छलनी कर दिया और वे 28 मई 1999 को शहीद हो गए.

भिवानी का था सबसे अधिक योगदान
कारगिल की लड़ाई में हरियाणा की तरफ से भिवानी जिले का सबसे ज्यादा योगदान रहा था. राजस्थान के झुंझनू जिले के वीरों की शहादत के बाद हरियाणा के भिवानी जिले के जवानों ने कारगिल युद्ध में शहादत दिए जाने के मामले में दूसरा स्थान प्राप्त किया, जबकि भिवानी हरियाणा का पहला ऐसा जिला था जिसने कारगिल में सर्वाधिक सैनिकों के प्राणों की आहूति दी. भिवानी और दादरी एक जिला था और यहां से 10 जवान शहीद हुए थे.

इन शहीदों ने भारतीय सेना की शौर्य व बलिदान की उस सर्वोच्च परम्परा का निर्वाहन किया, जिसकी सौगन्ध हर सिपाही तिरंगे के सामने लेता है. इन रणबांकुरों ने भी अपने घरवालों से वापस लौटकर आने का वादा किया था, जो उन्होंने निभाया भी, मगर उनके आने का अन्दाज निराला था. वे लौटे, मगर लकड़ी के ताबूत में. उसी तिरंगे में लिपटे हुए, जिसकी रक्षा की सौगन्ध उन्होंने उठाई थी. जिस राष्ट्रध्वज के आगे कभी उनका माथा सम्मान से झुका होता था, वही तिरंगा मातृभूमि के इन बलिदानी जांबाजों से लिपटकर उनकी गौरव गाथा का बखान कर रहा था. ईटीवी भारत इस युद्ध में शहीद हुए वीर सैनिकों को सलाम करता है. जय हिंद.

चंडीगढ: इस युद्ध में हमारे लगभग 527 वीर योद्धा शहीद हुए थे जबकि 1300 से ज्यादा घायल हो गए थे. कई शहीद तो ऐसे थे जो अपने जीवन के 20 बसंत भी नहीं देख पाए थे. इनमें से हरियाणा के भी 74 वीर जवान थे जो हंसते-हंसते मां भारती के लिए जान न्यौछावर कर गए. यह दिन उन शहीदों को याद कर अपने श्रद्धा-सुमन अर्पण करने का है, जो हंसते-हंसते मातृभूमि की रक्षा करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए. यह दिन समर्पित है उन्हें, जिन्होंने अपना आज हमारे कल के लिए बलिदान कर दिया.

कारगिल विजय दिवस के 20 साल

इन वीरों ने इस युद्ध में असीम शौर्य का परिचय देते हुए न सिर्फ दुश्मन के दांत खट्टे कर दिए. बल्कि ये इन वीरों के साहस का ही परिणाम था कि विकट परिस्थितियों में पाकिस्तान को मात देकर फिर कारगिल की चोटी पर तिरंगा लहराया. यहां हम आपको हरियाणा के उन वीरों की कहानी बता रहे हैं जिन्हें जानकर आपकी आंखें नम हो जाएंगी और सीना गर्व से और चौड़ा हो जाएगा-

सबसे युवा शहीद अंबाला के मनजीत
अंबाला के गांव कांसापुर में जन्में मनजीत सिंह कारगिल में शहीद होने वाले सबसे कम उम्र के जवान थे. शहीद मनजीत के पिता गुरचरण सिंह बताते हैं कि पढ़ाई के समय से ही मनजीत की इच्छा सेना में भर्ती होकर देश सेवा करने की थी. सेना में भर्ती होने के करीब डेढ़ वर्ष बाद ही पाकिस्तान ने हमला बोल दिया और मनजीत सिंह की ड्यूटी कारगिल में लगा दी गई. 7 जून 1999 को टाइगर हिल में दुश्मनों के दांत खट्टे करते हुए मनजीत शहीद हो गए. कारगिल युद्ध में शहीद हुए जवानों में मनजीत सभी शहीदों में से सबसे कम उम्र के थे और हरियाणा के सबसे पहले नौजवान थे. मनजीत 17 वर्ष की आयु में भर्ती हुए थे और साढ़े 18 वर्ष की आयु में शहीद हो गए थे.

11 को अकेले मारा था नारनौंद के पवित्र सिंह ने
इन्हीं वीर शहीदों में से एक थे नारनौंद के गांव मिलकपुर के पवित्र सिंह जिन्होंने हंसते-हंसते देश के लिए अपनी जान कुर्बान कर दी. फौज में भर्ती होने का जुनून इस कदर किसी में हो सकता है हैरानी होती है. चूंकि पिता फौजी थे सो साहस और हिम्मत रगो में थी जब भी पापा बंदूक ले आते तो पवित्र कहता वो भी बड़ा होकर देश की सरहद पर खड़ा होकर दुश्मनों के छक्के छुड़ाएगा और आखिरकार बड़ा होकर उन्होंने किया भी वही. बेटे को याद करके मां आज भी आंसू बहाती हैं लेकिन ये आंसू खुशी के हैं. कारगिल युद्ध के दौरान दुश्मन दल के 11 लोगों की जान लेकर ही उन्होंने अंतिम सांस ली और वीरगति को प्राप्त हुए.

45 दिन बाद मिला था शव
सिरसा के तरकांवाली के कृष्ण कुमार सबसे दुर्गम चोटी टाइगर हिल्स पर दुश्मनों से लोहा लेते हुए कारगिल युद्ध के दौरान 30 मई 1999 को शहीद हो गए थे, लेकिन अपनी बहादुरी के बल पर उन्होंने 8 पाक सैनिकों को मौत की नींद सुला दिया था. भीषण गोलीबारी और भारी बर्फबारी व सर्दी के कारण सेना कृष्ण कुमार का पार्थिव शरीर शहीद होने के 45 दिन बाद बरामद कर पाई थी.

17 हजार फीट की ऊंचाई पर हुए शहीद
महेंद्रगढ़ के गांव गुवानी के सुबेदार लाल सिंह ने कारगिल युद्ध में शहादत दी थी. वे 15 मई 1999 को आदेश मिलते ही साथियों के साथ 18000 हजार फुट ऊंची चोटी को घुसपैठियों से मुक्त कराने के लिए कूच कर गए. रात में लक्ष्य की ओर बढ़ते हुए 28 मई तक उन्होंने 17000 फुट की ऊंचाई तय कर ली थी. वह आगे बढ़ ही रहे थे कि अचानक दुश्मन की ओर से आई गोलियों की बौछार ने उनके शरीर को छलनी कर दिया और वे 28 मई 1999 को शहीद हो गए.

भिवानी का था सबसे अधिक योगदान
कारगिल की लड़ाई में हरियाणा की तरफ से भिवानी जिले का सबसे ज्यादा योगदान रहा था. राजस्थान के झुंझनू जिले के वीरों की शहादत के बाद हरियाणा के भिवानी जिले के जवानों ने कारगिल युद्ध में शहादत दिए जाने के मामले में दूसरा स्थान प्राप्त किया, जबकि भिवानी हरियाणा का पहला ऐसा जिला था जिसने कारगिल में सर्वाधिक सैनिकों के प्राणों की आहूति दी. भिवानी और दादरी एक जिला था और यहां से 10 जवान शहीद हुए थे.

इन शहीदों ने भारतीय सेना की शौर्य व बलिदान की उस सर्वोच्च परम्परा का निर्वाहन किया, जिसकी सौगन्ध हर सिपाही तिरंगे के सामने लेता है. इन रणबांकुरों ने भी अपने घरवालों से वापस लौटकर आने का वादा किया था, जो उन्होंने निभाया भी, मगर उनके आने का अन्दाज निराला था. वे लौटे, मगर लकड़ी के ताबूत में. उसी तिरंगे में लिपटे हुए, जिसकी रक्षा की सौगन्ध उन्होंने उठाई थी. जिस राष्ट्रध्वज के आगे कभी उनका माथा सम्मान से झुका होता था, वही तिरंगा मातृभूमि के इन बलिदानी जांबाजों से लिपटकर उनकी गौरव गाथा का बखान कर रहा था. ईटीवी भारत इस युद्ध में शहीद हुए वीर सैनिकों को सलाम करता है. जय हिंद.

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कारगिल विजय दिवस: हरियाणा के वीर योद्धाओं के पराक्रम की ये गाथाएं कभी न भूलें  



26 जुलाई 1999 के दिन भारतीय सेना ने कारगिल युद्ध के दौरान चलाए गए ‘ऑपरेशन विजय’ को सफलतापूर्वक अंजाम देकर सबसे आखिरी चोटी टाइगर हिल को पाकिस्तानी घुसपैठियों के चंगुल से मुक्त कराया था. इसी विजय की याद में ‘26 जुलाई’ को हर साल विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है.



चंडीगढ: इस युद्ध में हमारे लगभग 527 वीर योद्धा शहीद हो गए जबकि 1300 से ज्यादा घायल हुए. कई शहीद तो ऐसे थे जो अपने जीवन के  20 बसंत भी नहीं देख पाए थे. इनमें से हरियाणा के भी 74 वीर जवान थे जो हंसते-हंसते मां भारती के लिए जान न्यौछावर कर गए. 

यह दिन उन शहीदों को याद कर अपने श्रद्धा-सुमन अर्पण करने का है, जो हंसते-हंसते मातृभूमि की रक्षा करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए. यह दिन समर्पित है उन्हें, जिन्होंने अपना आज हमारे कल के लिए बलिदान कर दिया.

इन वीरों ने इस युद्ध में असीम शौर्य का परिचय देते हुए न सिर्फ दुश्मन के दांत खट्टे कर दिए. बल्कि ये इन वीरों के साहस का ही परिणाम था कि विकट परिस्थितियों में पाकिस्तान को मात देकर फिर कारगिल की चोटी पर तिरंगा लहराया. यहां हम आपको हरियाणा के उन वीरों की कहानी बता रहे हैं जिन्हें जानकर आपकी आंखें नम हो जाएंगी और सीना गर्व से और चौड़ा हो जाएगा-



सबसे युवा शहीद अंबाला के मनजीत

अंबाला के गांव कांसापुर में जन्में मनजीत सिंह कारगिल में शहीद होने वाले सबसे कम उम्र के जवान थे. 

शहीद मनतीज के पिता गुरचरण सिंह बताते हैं कि पढ़ाई के समय से ही मनजीत की इच्छा सेना में भर्ती होकर देश सेवा करने की थी. सेना में भर्ती होने के करीब डेढ़ वर्ष बाद ही पाकिस्तान ने हमला बोल दिया और मनजीत सिंह की ड्यूटी कारगिल में लगा दी गई. 7 जून 1999 को टाईगर हिल में दुश्मनों के दांत खट्टे करते हुए मनजीत शहीद हो गए. कारगिल युद्ध में शहीद हुए जवानों में मनजीत सभी शहीदों में से सबसे कम उम्र के थे और हरियाणा के सबसे पहले नौजवान थे. मनजीत 17 वर्ष की आयु में भर्ती हुए थे और साढ़े 18 वर्ष की आयु में शहीद हो गए थे.





11 को अकेले मारा नारनौंद के पवित्र सिंह ने

इन्हीं वीर शहीदों में से एक थे नारनौंद के गांव मिलकपुर के पवित्र सिंह जिन्होंने हंसते हंसते देश के लिए अपनी जान कुर्बान कर दी. फौज में भर्ती होने का जूनून इस कदर किसी में हो सकता है हैरानी होती है. चूंकि पिता फौजी थे सो साहस और हिम्मत रगो में थी जब भी पापा बंदूक ले आते तो पवित्र कहता वो भी बड़ा होकर देश की सरहद पर खड़ा होकर दुश्मनों के छक्के छुड़ाएगा और आखिरकार बड़ा होकर उन्होंने किया भी वही. बेटे को याद करके मां आज भी आंसू बहाती हैं लेकिन ये आंसू खुशी के हैं. रगिल युद्ध के दौरान दुश्मन दल के 11 लोगों की जान लेकर ही उन्होंने अंतिम सांस ली और वीरगति को प्राप्त हुए. 





45 दिन बाद मिला था शव 

सिरसा के तरकांवाली के कृष्ण कुमार सबसे दुर्गम चोटी टाइगर हिल्स पर दुश्मनों से लोहा लेते हुए कारगिल युद्ध के दौरान 30 मई 1999 को शहीद हो गए थे, लेकिन अपनी बहादुरी के बल पर उन्होंने 8 पाक सैनिकों को मौत की नींद सुला दिया था. भीषण गोलीबारी और भारी बर्फबारी व सर्दी के कारण सेना कृष्ण कुमार का पार्थिव शरीर मौत के 45 दिन बाद बरामद कर पाई थी.





17 हजार फीट की ऊंचाई पर हुए शहीद 

महेंद्रगढ़ के गांव गुवानी के सुबेदार लाल सिंह ने कारगिल युद्ध में शहादत दी थी.  वे 15 मई 1999 को आदेश मिलते ही साथियों के साथ 18000 हजार फुट ऊंची चोटी को घुसपैठियों से मुक्त कराने के लिए कूच कर गए. रात में लक्ष्य की ओर बढ़ते हुए 28 मई तक उन्होंने 17000 फुट की ऊंचाई तय कर ली थी. वह आगे बढ़ ही रहे थे कि अचानक दुश्मन की ओर से आई गोलियों की बौछार ने उनके शरीर को छलनी कर दिया और वे 28 मई, 1999 को शहीद हो गए.





भिवानी का था सबसे अधिक योगदान 

कारगिल की लड़ाई में हरियाणा की तरफ से भिवानी जिले का सबसे ज्यादा योगदान रहा था. राजस्थान के झुंझनू जिले के वीरों की शहादत के बाद हरियाणा के भिवानी जिले के जवानों ने कारगिल युद्ध में शहादत दिए जाने के मामले में दूसरा स्थान प्राप्त किया, जबकि भिवानी हरियाणा का पहला ऐसा जिला था जिसने कारगिल में सर्वाधिक सैनिकों के प्राणों की आहूति दी. भिवानी और दादरी एक जिला था और यहां से 10 जवान शहीद हुए थे. 



इन शहीदों ने भारतीय सेना की शौर्य व बलिदान की उस सर्वोच्च परम्परा का निर्वाहन किया, जिसकी सौगन्ध हर सिपाही तिरंगे के सामने लेता है.  इन रणबांकुरों ने भी अपने घरवालों से वापस लौटकर आने का वादा किया था, जो उन्होंने निभाया भी, मगर उनके आने का अन्दाज निराला था. वे लौटे, मगर लकड़ी के ताबूत में. उसी तिरंगे में लिपटे हुए, जिसकी रक्षा की सौगन्ध उन्होंने उठाई थी. जिस राष्ट्रध्वज के आगे कभी उनका माथा सम्मान से झुका होता था, वही तिरंगा मातृभूमि के इन बलिदानी जांबाजों से लिपटकर उनकी गौरव गाथा का बखान कर रहा था. ईटीवी भारत इस युद्ध में शहीद हुए वीर सैनिकों को सलाम करता है. जय हिंद 

 


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