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2014 से 2019 आते-आते हरियाणा में ऐसे बदल गई राजनीतिक पार्टियों की स्थिति

हरियाणा में विधानसभा चुनाव में एक महीने से भी कम वक्त बचा है. मतलब दिवाली से पहले हरियाणा में सरकार बन जाएगी. 2014 में भी अक्तूबर में ही सरकार बन गई थी. लेकिन 2014 से 2019 आते-आते कई चीजें अलग हो गई हैं. जिनमें पार्टियों की स्थिति भी एक है.

how political scenario changed
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Published : Sep 24, 2019, 7:46 PM IST

चंडीगढ़ः 2014 में जब विधानसभा चुनाव लड़ा जा रहा था. तब पार्टियों की स्थिति कुछ अलग थी और अब जब 2019 में चुनाव लड़ा जा रहा है तो पार्टियों की स्थिति कुछ और है. 2014 से 2019 आते-आते एक बड़ा अंतर पार्टियों की अंदरूनी और बाहर की स्थितियों में देखने को मिला है.

2014 की बीजेपी से 2019 की बीजेपी कैसे अलग ?
2014 के सितंबर-अक्तूबर में जब हरियाणा में चुनाव प्रचार चल रहा था. उस वक्त बीजेपी केंद्र में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने के बाद आत्मविश्वास से भरी हुई थी. लेकिन फिर बीजेपी के पास कोई स्थानीय चेहरा दिखाने के लिए नहीं था वो नरेंद्र मोदी के नाम पर चुनाव लड़ रही थी. लेकिन परिणामों ने न सिर्फ विपक्षी पार्टियों को बल्कि खुद बीजेपी को भी चौंकाया और उन्होंने पूर्ण बहुमत हासिल कर लिया. उसके बाद बीजेपी ने मनोहर लाल को मुख्यमंत्री बनाया जिन्हें शुरूआत में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा कई बार उनके खुद के मंत्रियों ने भी उन पर सवाल उठाए लेकिन 2019 आते-आते मनोहर लाल ने खुद को एक मजबूत नेता के तौर पर पेश किया है. अब बीजेपी के पास दिखाने के लिए चेहरा भी है और गिनाने के लिए काम भी.

2014 से 2019 आते-आते हरियाणा में ऐसे बदल गई राजनीतिक पार्टियों की स्थिति

2014 से 2019 तक इनेलो के लिए क्या बदला ?
2014 में शुरू से ही लग रहा था कि कांग्रेस विरोधी लहर है क्योंकि कांग्रेस 10 साल से सत्ता भोग रही थी. तो कई लोगों को लग रहा था कि जनता विकल्प के तौर पर इनेलो को चुनेगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ फिर भी इनेलो मुख्य विपक्षी पार्टी के रूप में उभरी और कांग्रेस से ज्यादा सीटें जीती. लेकिन 2019 आते-आते सबसे ज्यादा बदलाव इनेलो के लिए ही हुआ है उनका न सिर्फ परिवार बिखर गया बल्कि पार्टी भी दो फाड़ हो गई. इतना ही नहीं उनके ज्यादातर विधायक भी उनका साथ छोड़ गए और कुछ बीजेपी में शामिल हो गए तो कुछ इनेलो से अलग होकर बनी पार्टी जेजेपी में जा मिले. अब इनेलो अपनी साख बचाने की कोशिश में जुटी है.

ये भी पढ़ें- जिसकी रही केंद्र में सरकार उसी ने जीता हरियाणा लेकिन अबकी बार क्या होगा ?

2014 से 2019 तक कांग्रेस के लिए कुछ बदला क्या ?
एक तरीके से देखा जाए तो कांग्रेस के लिए 2014 से 2019 तक कुछ नहीं बदला क्योंकि जैसी गुटबाजी पार्टी में उस वक्त थी वैसी ही आज भी है. लेकिन पार्टी के लिए बाहर बहुत कुछ बदल गया है क्योंकि 2014 में कांग्रेस अपनी सत्ता बचाने के लिए लड़ रही थी. भूपेंद्र सिंह हुड्डा उस वक्त अभेद किले जैसे दिखते थे. लेकिन 2014 में उनकी बुरी तरह से हार हुई. क्योंकि देशभर में कांग्रेस का यही हाल था तो हरियाणा में भी ज्यादा हो-हल्ला नहीं हुआ. लेकिन 2019 में हुए लोकसभा चुनाव ने कांग्रेस को प्रदेश में और कमजोर कर दिया. क्योंकि इस बार वो 2014 में जीती गई एकमात्र रोहतक सीट भी हार गए. इसके अलावा भूपेंद्र सिंह हुड्डा खुद चुनाव लड़े और हार गए. अब एक बार फिर भूपेंद्र हुड्डा के सहारे कांग्रेस अपनी साख बचाने की कोशिश में लगी है.

चंडीगढ़ः 2014 में जब विधानसभा चुनाव लड़ा जा रहा था. तब पार्टियों की स्थिति कुछ अलग थी और अब जब 2019 में चुनाव लड़ा जा रहा है तो पार्टियों की स्थिति कुछ और है. 2014 से 2019 आते-आते एक बड़ा अंतर पार्टियों की अंदरूनी और बाहर की स्थितियों में देखने को मिला है.

2014 की बीजेपी से 2019 की बीजेपी कैसे अलग ?
2014 के सितंबर-अक्तूबर में जब हरियाणा में चुनाव प्रचार चल रहा था. उस वक्त बीजेपी केंद्र में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने के बाद आत्मविश्वास से भरी हुई थी. लेकिन फिर बीजेपी के पास कोई स्थानीय चेहरा दिखाने के लिए नहीं था वो नरेंद्र मोदी के नाम पर चुनाव लड़ रही थी. लेकिन परिणामों ने न सिर्फ विपक्षी पार्टियों को बल्कि खुद बीजेपी को भी चौंकाया और उन्होंने पूर्ण बहुमत हासिल कर लिया. उसके बाद बीजेपी ने मनोहर लाल को मुख्यमंत्री बनाया जिन्हें शुरूआत में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा कई बार उनके खुद के मंत्रियों ने भी उन पर सवाल उठाए लेकिन 2019 आते-आते मनोहर लाल ने खुद को एक मजबूत नेता के तौर पर पेश किया है. अब बीजेपी के पास दिखाने के लिए चेहरा भी है और गिनाने के लिए काम भी.

2014 से 2019 आते-आते हरियाणा में ऐसे बदल गई राजनीतिक पार्टियों की स्थिति

2014 से 2019 तक इनेलो के लिए क्या बदला ?
2014 में शुरू से ही लग रहा था कि कांग्रेस विरोधी लहर है क्योंकि कांग्रेस 10 साल से सत्ता भोग रही थी. तो कई लोगों को लग रहा था कि जनता विकल्प के तौर पर इनेलो को चुनेगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ फिर भी इनेलो मुख्य विपक्षी पार्टी के रूप में उभरी और कांग्रेस से ज्यादा सीटें जीती. लेकिन 2019 आते-आते सबसे ज्यादा बदलाव इनेलो के लिए ही हुआ है उनका न सिर्फ परिवार बिखर गया बल्कि पार्टी भी दो फाड़ हो गई. इतना ही नहीं उनके ज्यादातर विधायक भी उनका साथ छोड़ गए और कुछ बीजेपी में शामिल हो गए तो कुछ इनेलो से अलग होकर बनी पार्टी जेजेपी में जा मिले. अब इनेलो अपनी साख बचाने की कोशिश में जुटी है.

ये भी पढ़ें- जिसकी रही केंद्र में सरकार उसी ने जीता हरियाणा लेकिन अबकी बार क्या होगा ?

2014 से 2019 तक कांग्रेस के लिए कुछ बदला क्या ?
एक तरीके से देखा जाए तो कांग्रेस के लिए 2014 से 2019 तक कुछ नहीं बदला क्योंकि जैसी गुटबाजी पार्टी में उस वक्त थी वैसी ही आज भी है. लेकिन पार्टी के लिए बाहर बहुत कुछ बदल गया है क्योंकि 2014 में कांग्रेस अपनी सत्ता बचाने के लिए लड़ रही थी. भूपेंद्र सिंह हुड्डा उस वक्त अभेद किले जैसे दिखते थे. लेकिन 2014 में उनकी बुरी तरह से हार हुई. क्योंकि देशभर में कांग्रेस का यही हाल था तो हरियाणा में भी ज्यादा हो-हल्ला नहीं हुआ. लेकिन 2019 में हुए लोकसभा चुनाव ने कांग्रेस को प्रदेश में और कमजोर कर दिया. क्योंकि इस बार वो 2014 में जीती गई एकमात्र रोहतक सीट भी हार गए. इसके अलावा भूपेंद्र सिंह हुड्डा खुद चुनाव लड़े और हार गए. अब एक बार फिर भूपेंद्र हुड्डा के सहारे कांग्रेस अपनी साख बचाने की कोशिश में लगी है.

Intro:हरियाणा में विधानसभा चुनाव का ऐलान हो चुका है ।जिसके बाद सभी पार्टियां पूरे जोर-शोर के साथ चुनाव की तैयारी में जुट गई हैं। चुनाव में भाजपा, कांग्रेस, इनेलो और जेजेपी चुनाव की तैयारी में पूरा जोर लगाए हुए हैं। चुनाव को लेकर ईटीवी भारत की टीम ने पूर्व वरिष्ठ पत्रकार प्रोफेसर गुरमीत सिंह से खास बातचीत की।


Body:चुनाव को लेकर गुरमीत सिंह ने अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि 2014 चुनाव के बाद भाजपा ने पहली बार हरियाणा में सरकार बनाई थी और मनोहर लाल मुख्यमंत्री बने थे।
लेकिन कई ऐसे मौके आए जब मनोहर सरकार की छवि खराब हुई। उदाहरण के लिए जब हरियाणा में जाट आंदोलन हुआ तब सरकार की छवि को गहरा धक्का पहुंचा था। लेकिन हरियाणा सरकार ने बेहतरीन काम करते हुए अपनी छवि को सुधार लिया और इसीलिए भाजपा नेता इतने आत्मविश्वास में हैं कि वह हरियाणा में 75 से ज्यादा सीटें जीतने का दावा कर रहे हैं।
2014 चुनाव के दौरान भाजपा की जीत में मोदी फैक्टर ने भी काम जरूर किया। लेकिन उसके बाद सरकार ने भी अपनी छवि को मजबूत करने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी और उसी का परिणाम है कि आज भाजपा सबसे मजबूत स्थिति में है ।
हरियाणा की राजनीति में तीन लाल सबसे ज्यादा सक्रिय रहे भजनलाल, देवीलाल और बंसीलाल । लेकिन अब इन तीनों लाल के परिवारों पर मनोहर लाल भारी पड़ते दिखाई दे रहे हैं ।क्योंकि भजनलाल के बेटे कुलदीप बिश्नोई इस समय काफी संकट से गुजर रहे हैं । वहीं देवी लाल का परिवार अजय चौटाला और अभय चौटाला अलग हो चुके हैं । इसके अलावा बंसीलाल की पुत्रवधू किरण खेर भी संघर्ष करती दिखाई दे रही है।
दूसरी तरफ भाजपा पार्टी हर मौके को पूरी तरह से भुना रही है। इन चुनावों में भी मोदी फैक्टर काम करेगा। जिसमें से धारा 370 का हटाया जाना चुनावी मुद्दा बनेगा । हरियाणा सरकार ने अपने कार्यकाल के दौरान नौकरियों का दांव भी अच्छे तरीके से खेला है। और वही विज्ञापनों का सहारा भी अच्छी तरह से लिया जा रहा है । इस वजह से वह काफी लोगों को प्रभावित कर पाए हैं। लेकिन यह बात भी तो है के चुनाव की हवा किस तरफ बहती है इसके बारे में कहा नहीं जा सकता ।कई बार जनता बाजी को पलट भी देती है ।
कांग्रेस के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा कि कांग्रेस की आपसी फूट खत्म होने का नाम नहीं ले रही है और इस समय कांग्रेस के सामने चुनाव लड़ने के साथ-साथ आपसी फूट को खत्म करने की चुनौती भी है। लेकिन अब इतना समय नहीं बचा है कि कांग्रेस फिर से एकजुट हो पाए। निश्चित तौर पर कांग्रेस को चुनाव में इसका नुकसान भुगतना होगा। वर्तमान स्थिति पर अगर कहा जाए तो कांग्रेस मुख्य विपक्षी पार्टी बन सकती है ।वहीं भाजपा सरकार बनाती दिख रही है। भाजपा 75 सीटें जीत पाए या नहीं यह अलग सवाल है। लेकिन भाजपा बहुमत में सरकार तो बना ही सकती है । वर्तमान की स्थितियों को देखते हुए हम अंदाजा लगा सकते हैं । लेकिन हर चुनाव का गणित अलग होता है। चुनाव की हवा किस तरह बहती है यह तो परिणाम आने के बाद ही तय होता है।


one2one with प्रोफेसर गुरमीत सिंह, पूर्व वरिष्ठ पत्रकार


Conclusion:
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