चंडीगढ़ः 2014 में जब विधानसभा चुनाव लड़ा जा रहा था. तब पार्टियों की स्थिति कुछ अलग थी और अब जब 2019 में चुनाव लड़ा जा रहा है तो पार्टियों की स्थिति कुछ और है. 2014 से 2019 आते-आते एक बड़ा अंतर पार्टियों की अंदरूनी और बाहर की स्थितियों में देखने को मिला है.
2014 की बीजेपी से 2019 की बीजेपी कैसे अलग ?
2014 के सितंबर-अक्तूबर में जब हरियाणा में चुनाव प्रचार चल रहा था. उस वक्त बीजेपी केंद्र में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने के बाद आत्मविश्वास से भरी हुई थी. लेकिन फिर बीजेपी के पास कोई स्थानीय चेहरा दिखाने के लिए नहीं था वो नरेंद्र मोदी के नाम पर चुनाव लड़ रही थी. लेकिन परिणामों ने न सिर्फ विपक्षी पार्टियों को बल्कि खुद बीजेपी को भी चौंकाया और उन्होंने पूर्ण बहुमत हासिल कर लिया. उसके बाद बीजेपी ने मनोहर लाल को मुख्यमंत्री बनाया जिन्हें शुरूआत में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा कई बार उनके खुद के मंत्रियों ने भी उन पर सवाल उठाए लेकिन 2019 आते-आते मनोहर लाल ने खुद को एक मजबूत नेता के तौर पर पेश किया है. अब बीजेपी के पास दिखाने के लिए चेहरा भी है और गिनाने के लिए काम भी.
2014 से 2019 तक इनेलो के लिए क्या बदला ?
2014 में शुरू से ही लग रहा था कि कांग्रेस विरोधी लहर है क्योंकि कांग्रेस 10 साल से सत्ता भोग रही थी. तो कई लोगों को लग रहा था कि जनता विकल्प के तौर पर इनेलो को चुनेगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ फिर भी इनेलो मुख्य विपक्षी पार्टी के रूप में उभरी और कांग्रेस से ज्यादा सीटें जीती. लेकिन 2019 आते-आते सबसे ज्यादा बदलाव इनेलो के लिए ही हुआ है उनका न सिर्फ परिवार बिखर गया बल्कि पार्टी भी दो फाड़ हो गई. इतना ही नहीं उनके ज्यादातर विधायक भी उनका साथ छोड़ गए और कुछ बीजेपी में शामिल हो गए तो कुछ इनेलो से अलग होकर बनी पार्टी जेजेपी में जा मिले. अब इनेलो अपनी साख बचाने की कोशिश में जुटी है.
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2014 से 2019 तक कांग्रेस के लिए कुछ बदला क्या ?
एक तरीके से देखा जाए तो कांग्रेस के लिए 2014 से 2019 तक कुछ नहीं बदला क्योंकि जैसी गुटबाजी पार्टी में उस वक्त थी वैसी ही आज भी है. लेकिन पार्टी के लिए बाहर बहुत कुछ बदल गया है क्योंकि 2014 में कांग्रेस अपनी सत्ता बचाने के लिए लड़ रही थी. भूपेंद्र सिंह हुड्डा उस वक्त अभेद किले जैसे दिखते थे. लेकिन 2014 में उनकी बुरी तरह से हार हुई. क्योंकि देशभर में कांग्रेस का यही हाल था तो हरियाणा में भी ज्यादा हो-हल्ला नहीं हुआ. लेकिन 2019 में हुए लोकसभा चुनाव ने कांग्रेस को प्रदेश में और कमजोर कर दिया. क्योंकि इस बार वो 2014 में जीती गई एकमात्र रोहतक सीट भी हार गए. इसके अलावा भूपेंद्र सिंह हुड्डा खुद चुनाव लड़े और हार गए. अब एक बार फिर भूपेंद्र हुड्डा के सहारे कांग्रेस अपनी साख बचाने की कोशिश में लगी है.