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विधानसभा चुनाव 2019: क्या विपक्ष रोक पायेगा बीजेपी का 'मिशन-75 प्लस' का रथ? ये हैं सबसे बड़ी चुनौतियां - जेजेपी हरियाणा

हरियाणा में 2014 से 2019 आते-आते परिस्थितियां काफी बदल गई हैं. खासतौर पर विपक्ष के लिए ये पांच साल काफी उठापटक वाले रहे हैं.

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Published : Sep 27, 2019, 10:03 AM IST

Updated : Sep 27, 2019, 11:52 AM IST

चंडीगढ़ः हरियाणा में 21 अक्तूबर को वोट डाले जाएंगे और 24 अक्तूबर को साफ हो जाएगा कि इस बार कौन सरकार बनाएगा. लेकिन क्या विपक्ष मौजूदा सरकार वाली बीजेपी को टक्कर देने में सक्षम है. आखिर हरियाणा का विपक्ष कितना ताकतवर है? ये बड़ा सवाल है.

कांग्रेस की ताकत
हरियाणा में कांग्रेस की ताकत हैं भूपेंद्र सिंह हुड्डा. जो बीजेपी के सामने खड़े दिखने वाले एक मात्र नेता दिखते हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि 2019 लोकसभा चुनाव के जब नतीजे आए तो कांग्रेस के 10 में से 2 ही उम्मीदवार अपनी जमानत बचाने में कामयाब हो पाए. उनमें से एक थे भूपेंद्र सिंह हुड्डा और दूसरे उनके बेटे दीपेंद्र हुड्डा. इनके अलावा कांग्रेस का एक भी उम्मीदवार अपनी जमानत बचाने में नाकाम रहा. दीपेंद्र हुड्डा तो काफी करीबी मुकाबले में अरविंद शर्मा से हारे थे.

जानिए अब हरियाणा में कितना ताकतवर है विपक्ष ?

जब बागी-बागी से हो गए थे हुड्डा
भूपेंद्र हुड्डा ने अपनी ताकत दिखाने के लिए बीते 18 अगस्त को एक रैली की थी. उस वक्त कहा जा रहा था कि हुड्डा नई पार्टी का ऐलान करेंगे लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया बल्कि पार्टी को जिताने के लिए घोषणा पत्र जारी कर दिया. इतना ही नहीं जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाने को लेकर भी पार्टी लीक से अलग हटकर अपनी बात कही.

कांग्रेस को माननी पड़ी हुड्डा की बात
भूपेंद्र सिंह हुड्डा नाराज तो काफी वक्त से थे लेकिन चुनाव से पहले वो अपनी पूरी ताकत झोंक देना चाहते थे इसीलिए उन्होंने अपनी पार्टी पर दबाव बनाने की रणनीति अपनाई जो काम भी आई और कांग्रस ने अशोक तंवर को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटा दिया. उनकी जगह कुमारी सैलजा को प्रदेश कांग्रेस की कमान दे दी गई. इसके अलावा किरण चौधरी को हटाकर भूपेंद्र हुड्डा को सीएलपी लीडर बना दिया गया और हुड्डा को चुनाव में भी अहम भूमिका दी गई.

इनेलो की ताकत
इनेलो के लिए बीते पांच साल सबसे ज्यादा उठापटक वाले रहे हैं, उनका न सिर्फ परिवार बिखरा बल्कि पार्टी भी दो फाड़ हो गई और अभय चौटाला को नेता विपक्ष की कुर्सी भी गंवानी पड़ी. इतना ही नहीं उनके ज्यादातर विधायक बीजेपी में शामिल हो गए और जो बचे वो जेजेपी में जा मिले.

इनेलो की हालत का अंदाजा आप इससे लगाइए कि लोकसभा चुनाव 2019 में उनका एक भी उम्मीदवार अपनी जमानत नहीं बचा सका था. अब उनके लिए ओपी चौटाला ही एक मात्र सहारा हैं, जिनकी पैरोल भी दो हफ्ते बढ़ गई है. ओपी चौटाला के सहारे ही इनेलो अपनी नैया पार लगाने की कोशिश में लगी है.

बाकी दलों में कितना दम ?
इन तीन पार्टियों के अलावा प्रदेश में मुख्य तौर पर जन नायक जनता पार्टी(जेजेपी), बहुजन समाज पार्टी(बीएसपी), लोकतंत्र सुरक्षा पार्टी(एलएसपी) और अकाली दल हैं. इनमें से अकाली दल की बात बीजेपी के साथ गठबंधन के लिए चल रही है.

जेजेपी इनेलो से टूटकर बनी है और अपने पहले विधानसभा चुनाव में वजूद बनाने की कोशिश करेगी. बहुजन समाज पार्टी काफी वक्त से हरियाणा में चुनाव लड़ रही है. 2014 में उनका एक विधायक जीता था, जो बाद में बीजेपी में शामिल हो गया. इसके लोकतंत्र सुरक्षा पार्टी बीजेपी के सांसद राजकुमार सैनी ने बनाई है. उनका भी पहला ही विधानसभा चुनाव है और पूरी तरह से गैर जाट वोटर पर निर्भर हैं.

चंडीगढ़ः हरियाणा में 21 अक्तूबर को वोट डाले जाएंगे और 24 अक्तूबर को साफ हो जाएगा कि इस बार कौन सरकार बनाएगा. लेकिन क्या विपक्ष मौजूदा सरकार वाली बीजेपी को टक्कर देने में सक्षम है. आखिर हरियाणा का विपक्ष कितना ताकतवर है? ये बड़ा सवाल है.

कांग्रेस की ताकत
हरियाणा में कांग्रेस की ताकत हैं भूपेंद्र सिंह हुड्डा. जो बीजेपी के सामने खड़े दिखने वाले एक मात्र नेता दिखते हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि 2019 लोकसभा चुनाव के जब नतीजे आए तो कांग्रेस के 10 में से 2 ही उम्मीदवार अपनी जमानत बचाने में कामयाब हो पाए. उनमें से एक थे भूपेंद्र सिंह हुड्डा और दूसरे उनके बेटे दीपेंद्र हुड्डा. इनके अलावा कांग्रेस का एक भी उम्मीदवार अपनी जमानत बचाने में नाकाम रहा. दीपेंद्र हुड्डा तो काफी करीबी मुकाबले में अरविंद शर्मा से हारे थे.

जानिए अब हरियाणा में कितना ताकतवर है विपक्ष ?

जब बागी-बागी से हो गए थे हुड्डा
भूपेंद्र हुड्डा ने अपनी ताकत दिखाने के लिए बीते 18 अगस्त को एक रैली की थी. उस वक्त कहा जा रहा था कि हुड्डा नई पार्टी का ऐलान करेंगे लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया बल्कि पार्टी को जिताने के लिए घोषणा पत्र जारी कर दिया. इतना ही नहीं जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाने को लेकर भी पार्टी लीक से अलग हटकर अपनी बात कही.

कांग्रेस को माननी पड़ी हुड्डा की बात
भूपेंद्र सिंह हुड्डा नाराज तो काफी वक्त से थे लेकिन चुनाव से पहले वो अपनी पूरी ताकत झोंक देना चाहते थे इसीलिए उन्होंने अपनी पार्टी पर दबाव बनाने की रणनीति अपनाई जो काम भी आई और कांग्रस ने अशोक तंवर को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटा दिया. उनकी जगह कुमारी सैलजा को प्रदेश कांग्रेस की कमान दे दी गई. इसके अलावा किरण चौधरी को हटाकर भूपेंद्र हुड्डा को सीएलपी लीडर बना दिया गया और हुड्डा को चुनाव में भी अहम भूमिका दी गई.

इनेलो की ताकत
इनेलो के लिए बीते पांच साल सबसे ज्यादा उठापटक वाले रहे हैं, उनका न सिर्फ परिवार बिखरा बल्कि पार्टी भी दो फाड़ हो गई और अभय चौटाला को नेता विपक्ष की कुर्सी भी गंवानी पड़ी. इतना ही नहीं उनके ज्यादातर विधायक बीजेपी में शामिल हो गए और जो बचे वो जेजेपी में जा मिले.

इनेलो की हालत का अंदाजा आप इससे लगाइए कि लोकसभा चुनाव 2019 में उनका एक भी उम्मीदवार अपनी जमानत नहीं बचा सका था. अब उनके लिए ओपी चौटाला ही एक मात्र सहारा हैं, जिनकी पैरोल भी दो हफ्ते बढ़ गई है. ओपी चौटाला के सहारे ही इनेलो अपनी नैया पार लगाने की कोशिश में लगी है.

बाकी दलों में कितना दम ?
इन तीन पार्टियों के अलावा प्रदेश में मुख्य तौर पर जन नायक जनता पार्टी(जेजेपी), बहुजन समाज पार्टी(बीएसपी), लोकतंत्र सुरक्षा पार्टी(एलएसपी) और अकाली दल हैं. इनमें से अकाली दल की बात बीजेपी के साथ गठबंधन के लिए चल रही है.

जेजेपी इनेलो से टूटकर बनी है और अपने पहले विधानसभा चुनाव में वजूद बनाने की कोशिश करेगी. बहुजन समाज पार्टी काफी वक्त से हरियाणा में चुनाव लड़ रही है. 2014 में उनका एक विधायक जीता था, जो बाद में बीजेपी में शामिल हो गया. इसके लोकतंत्र सुरक्षा पार्टी बीजेपी के सांसद राजकुमार सैनी ने बनाई है. उनका भी पहला ही विधानसभा चुनाव है और पूरी तरह से गैर जाट वोटर पर निर्भर हैं.

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haryana opposition situation in assembly election 2019


Conclusion:
Last Updated : Sep 27, 2019, 11:52 AM IST
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