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कभी आमने-सामने चुनाव नहीं लड़ते देवीलाल परिवार के सदस्य, लेकिन क्यों ?

इस विधानसभा चुनाव में देवीलाल परिवार के 5 सदस्य 3 पार्टियों से चुनावी मैदान में हैं लेकिन अलग-अलग सीटों पर, 1990 से लेकर आज तक देवीलाल परिवार के किसी सदस्य ने आमने-सामन विधानसभा या लोकसभा का चुनाव नहीं लड़ा.

devilal family in haryana
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Published : Oct 8, 2019, 5:14 PM IST

चंडीगढ़ः देवीलाल परिवार हरियाणा में सबसे बड़ा राजनीतिक परिवार माना जाता है. लंबे अरसे से प्रदेश में देवीलाल परिवार चुनावी मैदानों में सबसे ज्यादा पारिवारिक योद्धा उतारता रहा है. ये परिवार दो बार राजनीतिक तौर पर दो फाड़ भी हुआ है लेकिन खास बात ये है कि देवीलाल परिवार के किसी भी सदस्य ने कभी आमने-सामने विधानसभा या लोकसभा चुनाव नहीं लड़ा है.

देवीलाल परिवार के 5 सदस्य 3 पार्टियों से चुनाव मैदान में
देवीलाल परिवार के 5 सदस्य इस विधानसभा चुनाव में किस्मत आजमा रहे हैं. लेकिन सब अलग-अलग सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं. अभय चौटाला इनेलो की टिकट पर ऐलनाबाद से चुनावी मैदान में हैं. रणजीत चौटाला भी इस बार इनेलो की टिकट पर रानियां से ही ताल ठोक रहे हैं. दुष्यंत चौटाला जेजेपी की टिकट पर उचाना से चुनावी मैदान में उतरे हैं. दुष्यंत की माता नैना चौटाला इस बार बाढड़ा विधानसभा से चुनाव लड़ रही हैं. जबकि 2014 में वो डबवाली से विधायक बनी थीं. उन्हें डबवाली सीट इसलिए छोड़नी पड़ी क्योंकि बीजेपी ने इस सीट पर देवीलाल के पोते आदित्य देवीला को उतार दिया. इसलिए नैना चौटाला डबवाली छोड़कर बाढड़ा चली गईं.

कभी आमने-सामने चुनाव नहीं लड़ते देवीलाल परिवार के सदस्य, लेकिन क्यों ?

1989 में पहली बार दो फाड़ हुआ देवीलाल परिवार
1989 में जब केंद्र में जनता पार्टी की सरकार बनी तो तत्काली हरियाणा के मुख्यमंत्री चौधरी देवीलाल दिल्ली चले गए और उप प्रधानमंत्री बन गए. अब हरियाणा में उनके दो बेटों के बीच कुर्सी के लिए जंग छिड़ गई. रणजीत चौटाला और ओपी चौटाला दोनों ही मुख्यमंत्री बनना चाहते थे लेकिन ओपी चौटाला ने बाजी मार ली और वो मुख्यमंत्री बन गए. उन्ही के कैबिनेट में रणजीत चौटाला को मंत्री बनना पड़ा लेकिन कुछ समय बाद ही रणजीत चौटाला ने बगावत कर दी. उन्होंने पार्टी छोड़कर कांग्रेस ज्वाइन कर ली. उसके बाद से वो और ओपी चौटाला लगातार चुनाव मैदान में रहे लेकिन कभी आमने-सामने नहीं हुए. कुछ सालों बाद ओपी चौटाला के बेटों ने भी चुनावी मैदान में किस्मत आजमाई लेकिन तब भी देवीलाल परिवार का कोई सदस्य आमने-सामने चुनावी मैदान में नहीं उतरा.

devilal family in haryana
अभय चौटाला और रणजीत चौटाला इनेलो के टिकट पर लड़ रहे चुनाव

2018 में परिवार फिर दो फाड़ हुआ लेकिन चुनावी मैदान में आमने-सामन नहीं आए
2018 में एक बार फिर इतिहास ने खुद को दोहराया और देवीलाल परिवार दो फाड़ हो गया. ओपी चौटाला के बड़े बेटे अजय चौटाला ने अपने बेटों के साथ मिलकर अलग पार्टी बना ली. इसके बाद पहला चुनाव जींद उपचुनाव आया जिसमें अजय चौटाला के छोटे बेटे दिग्विजय चौटाला ने किस्मत आजमाई. उस वक्त काफी चर्चाएं चलीं कि अभय चौटाला के बेटे भी दिग्विजय के सामने चुनाव में उतरेंगे लेकिन ऐसा नहीं हुआ.

devilal family in haryana
दुष्यंत चौटाला और उनकी माता नैना चौटाला जेजेपी के टिकट पर लड़ रहे चुनाव

लोकसभा चुनाव में भी आमने-सामने नहीं लड़े परिवार के सदस्य
जींद उपचुनाव के बाद 2019 लोकसभा चुनाव में देवीलाल परिवार के दो सदस्यों ने किस्मत आजमाई लेकिन अलग-अलग सीटों से. अजय चौटाला के बेटे दुष्यंत चौटाले ने हिसार से लोकसभा चुनाव लड़ा और अभय चौटाला के बेटे अर्जुन चौटाला ने कुरुक्षेत्र लोकसभा से.

ये भी पढ़ेंः पूरे हक के लिए जूझ रही आधी आबादी, हरियाणा में किसी पार्टी ने नहीं दिए महिलाओं को 33% टिकट

ये संस्कार हैं या हार का डर ?
सवाल ये है कि आखिर एक दूसरे के सामने चुनाव लड़ने से देवीलाल परिवार के सदस्य क्यों कतराते हैं. क्या वो संस्कारों में बंधे हैं या फिर हार का डर उन्हें अलग-अलग सीटों से चुनाव लड़वाता है. दरअसल देवीलाल परिवार के सभी सदस्य देवीलाल की राजनीतिक विरासत की पौध से उपजे हैं. वो उसी के सहारे राजनीति करते हैं. और इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि आज भी देवीलाल का हरियाणा में अपना प्रभाव है. तो अगर देवीलाल परिवार के दो सदस्य एक ही सीट से चुनाव लड़ते हैं तो देवीलाल की विरासत के सहारे मिलने वाला वोट बंट जाएगा और हार के आसार भी बढ़ जाएंगे. इसलिए देवीलाल परिवार के लोग हार से बेहतर रास्ता बदलना समझते हैं जैसा इस चुनाव में नैना चौटाला ने किया है.

चंडीगढ़ः देवीलाल परिवार हरियाणा में सबसे बड़ा राजनीतिक परिवार माना जाता है. लंबे अरसे से प्रदेश में देवीलाल परिवार चुनावी मैदानों में सबसे ज्यादा पारिवारिक योद्धा उतारता रहा है. ये परिवार दो बार राजनीतिक तौर पर दो फाड़ भी हुआ है लेकिन खास बात ये है कि देवीलाल परिवार के किसी भी सदस्य ने कभी आमने-सामने विधानसभा या लोकसभा चुनाव नहीं लड़ा है.

देवीलाल परिवार के 5 सदस्य 3 पार्टियों से चुनाव मैदान में
देवीलाल परिवार के 5 सदस्य इस विधानसभा चुनाव में किस्मत आजमा रहे हैं. लेकिन सब अलग-अलग सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं. अभय चौटाला इनेलो की टिकट पर ऐलनाबाद से चुनावी मैदान में हैं. रणजीत चौटाला भी इस बार इनेलो की टिकट पर रानियां से ही ताल ठोक रहे हैं. दुष्यंत चौटाला जेजेपी की टिकट पर उचाना से चुनावी मैदान में उतरे हैं. दुष्यंत की माता नैना चौटाला इस बार बाढड़ा विधानसभा से चुनाव लड़ रही हैं. जबकि 2014 में वो डबवाली से विधायक बनी थीं. उन्हें डबवाली सीट इसलिए छोड़नी पड़ी क्योंकि बीजेपी ने इस सीट पर देवीलाल के पोते आदित्य देवीला को उतार दिया. इसलिए नैना चौटाला डबवाली छोड़कर बाढड़ा चली गईं.

कभी आमने-सामने चुनाव नहीं लड़ते देवीलाल परिवार के सदस्य, लेकिन क्यों ?

1989 में पहली बार दो फाड़ हुआ देवीलाल परिवार
1989 में जब केंद्र में जनता पार्टी की सरकार बनी तो तत्काली हरियाणा के मुख्यमंत्री चौधरी देवीलाल दिल्ली चले गए और उप प्रधानमंत्री बन गए. अब हरियाणा में उनके दो बेटों के बीच कुर्सी के लिए जंग छिड़ गई. रणजीत चौटाला और ओपी चौटाला दोनों ही मुख्यमंत्री बनना चाहते थे लेकिन ओपी चौटाला ने बाजी मार ली और वो मुख्यमंत्री बन गए. उन्ही के कैबिनेट में रणजीत चौटाला को मंत्री बनना पड़ा लेकिन कुछ समय बाद ही रणजीत चौटाला ने बगावत कर दी. उन्होंने पार्टी छोड़कर कांग्रेस ज्वाइन कर ली. उसके बाद से वो और ओपी चौटाला लगातार चुनाव मैदान में रहे लेकिन कभी आमने-सामने नहीं हुए. कुछ सालों बाद ओपी चौटाला के बेटों ने भी चुनावी मैदान में किस्मत आजमाई लेकिन तब भी देवीलाल परिवार का कोई सदस्य आमने-सामने चुनावी मैदान में नहीं उतरा.

devilal family in haryana
अभय चौटाला और रणजीत चौटाला इनेलो के टिकट पर लड़ रहे चुनाव

2018 में परिवार फिर दो फाड़ हुआ लेकिन चुनावी मैदान में आमने-सामन नहीं आए
2018 में एक बार फिर इतिहास ने खुद को दोहराया और देवीलाल परिवार दो फाड़ हो गया. ओपी चौटाला के बड़े बेटे अजय चौटाला ने अपने बेटों के साथ मिलकर अलग पार्टी बना ली. इसके बाद पहला चुनाव जींद उपचुनाव आया जिसमें अजय चौटाला के छोटे बेटे दिग्विजय चौटाला ने किस्मत आजमाई. उस वक्त काफी चर्चाएं चलीं कि अभय चौटाला के बेटे भी दिग्विजय के सामने चुनाव में उतरेंगे लेकिन ऐसा नहीं हुआ.

devilal family in haryana
दुष्यंत चौटाला और उनकी माता नैना चौटाला जेजेपी के टिकट पर लड़ रहे चुनाव

लोकसभा चुनाव में भी आमने-सामने नहीं लड़े परिवार के सदस्य
जींद उपचुनाव के बाद 2019 लोकसभा चुनाव में देवीलाल परिवार के दो सदस्यों ने किस्मत आजमाई लेकिन अलग-अलग सीटों से. अजय चौटाला के बेटे दुष्यंत चौटाले ने हिसार से लोकसभा चुनाव लड़ा और अभय चौटाला के बेटे अर्जुन चौटाला ने कुरुक्षेत्र लोकसभा से.

ये भी पढ़ेंः पूरे हक के लिए जूझ रही आधी आबादी, हरियाणा में किसी पार्टी ने नहीं दिए महिलाओं को 33% टिकट

ये संस्कार हैं या हार का डर ?
सवाल ये है कि आखिर एक दूसरे के सामने चुनाव लड़ने से देवीलाल परिवार के सदस्य क्यों कतराते हैं. क्या वो संस्कारों में बंधे हैं या फिर हार का डर उन्हें अलग-अलग सीटों से चुनाव लड़वाता है. दरअसल देवीलाल परिवार के सभी सदस्य देवीलाल की राजनीतिक विरासत की पौध से उपजे हैं. वो उसी के सहारे राजनीति करते हैं. और इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि आज भी देवीलाल का हरियाणा में अपना प्रभाव है. तो अगर देवीलाल परिवार के दो सदस्य एक ही सीट से चुनाव लड़ते हैं तो देवीलाल की विरासत के सहारे मिलने वाला वोट बंट जाएगा और हार के आसार भी बढ़ जाएंगे. इसलिए देवीलाल परिवार के लोग हार से बेहतर रास्ता बदलना समझते हैं जैसा इस चुनाव में नैना चौटाला ने किया है.

Intro:चंडीगढ़,  हरियाणा की राजनीति में महारत हासिल कर चुके पूर्व उप प्रधानमंत्री स्व. देवीलाल के परिवार के सदस्य भले ही सार्वजनिक तौर पर एक-दूसरे के खिलाफ खूब ताने बने बुनते हो , लेकिन चुनावों में एक दूसरे के खिलाफ ताल ठोकने से हमेशा बचते हैं.  देवीलाल के पोते और पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला के बेटे और विधानसभा में विपक्ष के नेता रहे अभय सिंह चौटाला एक बार फिर इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) के टिकट पर सिरसा जिले की ऐलनाबाद सीट से किस्मत आजमा रहे हैं. पिछले चुनाव में उन्होंने यहां से भाजपा के उम्मीदवार पवन बेनीवाल को ग्यारह हजार से ज्यादा वोटों से हराया था. इस बार चौटाला के खिलाफ भाजपा ने यहां से फिर बेनीवाल को ही मौका दिया है.  कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ते रहे देवीलाल के छोटे बेटे और पूर्व मंत्री रणजीत सिंह को इस बार पार्टी ने टिकट देने से इनकार कर दिया. इससे नाराज रणजीत सिंह ने सिरसा जिले के रानियां क्षेत्र से बतौर आज़ाद उम्मीदवार मैदान में उतरने का फैसला किया है. टिकट कटने के बाद रणजीत सिंह ने इनेलो सुप्रीमो ओमप्रकाश चौटाला से मुलाकात की थी और ऐसा लग रहा था कि वे इनेलो में शामिल हो जाएंगे, लेकिन बाद में रणजीत सिंह ने कहा कि वे अपने बड़े भाई ओमप्रकाश चौटाला से आशीर्वाद लेने गए थे.  केंद्र में 1989 में जनता दल के सत्ता में आने के बाद विश्वनाथ प्रताप सिंह सरकार में जब देवीलाल उप प्रधानमंत्री बन गए, तब उनकी जगह मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिए चौटाला और रणजीत सिंह के बीच बड़ी रस्साकसी चली थी. आखिर में मुख्यमंत्री पद की शपथ चौटाला ने ली और रणजीत सिंह कैबिनेट मंत्री के तौर पर मंत्रिमंडल में शामिल किये गए. थोड़े अर्से बाद उन्होंने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया और अपने समर्थकों के साथ लोकदल छोड़ कांग्रेस में शामिल हो गए.   चौटाला के दोनों बेटों अजय सिंह और अभय सिंह के बीच शुरु हुए संघर्ष के परिणामस्वरूप इनेलो दोफाड़ हो गई. इनेलो की कमान अभय चौटाला के हाथ आई और अजय सिंह के बेटे पूर्व सांसद दुष्यं चौटाला ने जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) का गठन कर लिया. दुष्यंत अब जहां जींद जिले के उचनाकलां क्षेत्र से मैदान में उतरे हैं, वहीं उनकी मां नैना सिंह चौटाला भिवानी जिले की बाढड़ा सीट से चुनाव लड़ रही हैं. पिछले चुनाव में वे सिरसा जिले की डबवाली सीट से जीत कर विधानसभा में पहुंची थी.  देवीलाल के पोते और स्व. जगदीश के बेटे आदित्य चौटाला को भाजपा ने सिरसा जिले की डबवाली सीट से टिकट दिया है. मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने उन्हें बोर्ड की चेयरमैन भी बनाया हुआ था. डबवाली की मौजूदा विधायक  नैना ने इस बार भले ही अपनी सीट बदल ली हो, लेकिन यहां से किस्मत आजमाने का मौका फिर भी देवीलाल परिवार के सदस्य आदित्य देवीलाल को ही मिला है. लेकिन सच यही है कि देवीलाल परिवार का कोई भी सदस्य एक-दूसरे के सामने ताल ठोकने से बचता रहा है. Body:चंडीगढ़,  हरियाणा की राजनीति में महारत हासिल कर चुके पूर्व उप प्रधानमंत्री स्व. देवीलाल के परिवार के सदस्य भले ही सार्वजनिक तौर पर एक-दूसरे के खिलाफ खूब ताने बने बुनते हो , लेकिन चुनावों में एक दूसरे के खिलाफ ताल ठोकने से हमेशा बचते हैं.  देवीलाल के पोते और पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला के बेटे और विधानसभा में विपक्ष के नेता रहे अभय सिंह चौटाला एक बार फिर इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) के टिकट पर सिरसा जिले की ऐलनाबाद सीट से किस्मत आजमा रहे हैं. पिछले चुनाव में उन्होंने यहां से भाजपा के उम्मीदवार पवन बेनीवाल को ग्यारह हजार से ज्यादा वोटों से हराया था. इस बार चौटाला के खिलाफ भाजपा ने यहां से फिर बेनीवाल को ही मौका दिया है.  कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ते रहे देवीलाल के छोटे बेटे और पूर्व मंत्री रणजीत सिंह को इस बार पार्टी ने टिकट देने से इनकार कर दिया. इससे नाराज रणजीत सिंह ने सिरसा जिले के रानियां क्षेत्र से बतौर आज़ाद उम्मीदवार मैदान में उतरने का फैसला किया है. टिकट कटने के बाद रणजीत सिंह ने इनेलो सुप्रीमो ओमप्रकाश चौटाला से मुलाकात की थी और ऐसा लग रहा था कि वे इनेलो में शामिल हो जाएंगे, लेकिन बाद में रणजीत सिंह ने कहा कि वे अपने बड़े भाई ओमप्रकाश चौटाला से आशीर्वाद लेने गए थे.  केंद्र में 1989 में जनता दल के सत्ता में आने के बाद विश्वनाथ प्रताप सिंह सरकार में जब देवीलाल उप प्रधानमंत्री बन गए, तब उनकी जगह मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिए चौटाला और रणजीत सिंह के बीच बड़ी रस्साकसी चली थी. आखिर में मुख्यमंत्री पद की शपथ चौटाला ने ली और रणजीत सिंह कैबिनेट मंत्री के तौर पर मंत्रिमंडल में शामिल किये गए. थोड़े अर्से बाद उन्होंने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया और अपने समर्थकों के साथ लोकदल छोड़ कांग्रेस में शामिल हो गए.   चौटाला के दोनों बेटों अजय सिंह और अभय सिंह के बीच शुरु हुए संघर्ष के परिणामस्वरूप इनेलो दोफाड़ हो गई. इनेलो की कमान अभय चौटाला के हाथ आई और अजय सिंह के बेटे पूर्व सांसद दुष्यं चौटाला ने जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) का गठन कर लिया. दुष्यंत अब जहां जींद जिले के उचनाकलां क्षेत्र से मैदान में उतरे हैं, वहीं उनकी मां नैना सिंह चौटाला भिवानी जिले की बाढड़ा सीट से चुनाव लड़ रही हैं. पिछले चुनाव में वे सिरसा जिले की डबवाली सीट से जीत कर विधानसभा में पहुंची थी.  देवीलाल के पोते और स्व. जगदीश के बेटे आदित्य चौटाला को भाजपा ने सिरसा जिले की डबवाली सीट से टिकट दिया है. मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने उन्हें बोर्ड की चेयरमैन भी बनाया हुआ था. डबवाली की मौजूदा विधायक  नैना ने इस बार भले ही अपनी सीट बदल ली हो, लेकिन यहां से किस्मत आजमाने का मौका फिर भी देवीलाल परिवार के सदस्य आदित्य देवीलाल को ही मिला है. लेकिन सच यही है कि देवीलाल परिवार का कोई भी सदस्य एक-दूसरे के सामने ताल ठोकने से बचता रहा है. Conclusion:
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