चंडीगढ़: आदमपुर विधानसभा उपचुनाव (Adampur assembly seat by election) की घोषणा होने के बाद प्रदेश में राजनीतिक सरगर्मियां तेज हो गई हैं. प्रदेश में दूसरी बार बीजेपी की सरकार बनने के बाद ये तीसरा उपचुनाव हो रहा है. आदमपुर विधानसभा सीट पर कुलदीप बिश्नोई ने 2019 के चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर जीत दर्ज की थी. राज्यसभा चुनाव में कांग्रेस का खुलेआम विरोध करने और बीजेपी समर्थित निर्दलीय उम्मीदवार कार्तिकेय शर्मा का साथ देने के बाद उन्हें कांग्रेस के सभी पदों से हटा दिया गया था. कुलदीप बिश्नोई ने कांग्रेस छोड़कर बीजेपी का दामन थाम लिया. इसके बाद भूपेंद्र हुड्डा की चुनौती स्वीकार करते हुए विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया. उनके इस्तीफे के बाद आदमपुर में उपचुनाव हो रहा है.
बीजेपी सरकार बनने के बाद तीसरा उपचुनाव- इससे पहले प्रदेश में सोनीपत की बड़ौदा विधानसभा सीट पर उपचुनाव हो चुका है. जिसमें बीजेपी के प्रत्याशी की हार हो गई थी. उसके बाद विधानसभा से किसानों के मुद्दे पर इस्तीफा देने वाले इंडियन नेशनल लोकदल के विधायक अभय चौटाला की सीट ऐलनाबाद पर भी उपचुनाव हुआ. जिसमें कड़ी टक्कर के बाद अभय चौटाला किसी तरह अपनी सीट बचाने में कामयाब हुये थे. कुलदीप बिश्नोई कांग्रेस पार्टी से जीतने के बाद बीजेपी में शामिल हुए थे. इसके बाद पूर्व सीएम भूपेंद्र हुड्डा ने चुनौती देते हुए कहा था कि कुलदीप बिश्नोई को इस्तीफा देकर फिर से चुनाव में उतरना चाहिए.
कुलदीप के लिए आसान नहीं इस बार आदमपुर- आदमपुर विधानसभा सीट भजनलाल परिवार की परंपरागत सीट रही है. इस सीट पर इस परिवार का 1968 से कब्जा है. लेकिन इस बार इस किले को भेदने के लिए विपक्षी दलों ने भी पूरी ताकत झोंक दी है. कांग्रेस, इंडियन नेशनल लोकदल समेत आम आदमी पार्टी भी पूरे दमखम से मौदान में है. हालांकि अभी किसी भी दल ने अपने प्रत्याशी के नाम का ऐलान नहीं किया है. लेकिन सभी बिश्नोई परिवार को कड़ी टक्कर देने के लिए तैयार हैं.
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सोनाली फोगाट की मौत के बाद बदले समीकरण- दिवंगत बीजेपी नेत्री सोनाली फोगाट की मौत के बाद इस सीट पर राजनीतिक समीकरण बिल्कुल बदले हुए नजर आ रहे हैं. जिसकी वजह से कुलदीप बिश्नोई के परिवार को इस सीट पर जीतना आसान नहीं होगा. दरअसल सोनाली फोगाट की मौत के बाद लगातार सभी विपक्षी दलों के निशाने पर कुलदीप बिश्नोई हैं. अगर उनके बेटे भव्य बिश्नोई चुनाव मैदान में उतरते हैं तो उनके लिए जीत की राह इतनी आसान नहीं होगी. भले ही इस सीट पर भजनलाल के परिवार का वर्चस्व रहा हो लेकिन इस बार जो हालात दिखाई देते हैं, उसमें कड़ी टक्कर विपक्षी दलों से मिलना तय है.
जातीय समीकरण साधने में जुटे सभी दल- आदमपुर विधानसभा सीट पर बिश्नोई मतदाताओं का हमेशा से प्रभाव रहा है. ऐसे में कुलदीप बिश्नोई अपनी जीत को लेकर आश्वस्त भले हों लेकिन इस बार चुनाव इतना आसान नहीं होगा. माना जा रहा है कि कुलदीप बिश्नोई इस बार खुद चुनाव नहीं लड़कर अपने बेटे भव्य बिश्नोई को मैदान में उतारेंगे. इससे पहले 2019 के लोकसभा चुनाव में हिसार सीट से भव्य बिश्नोई कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ चुके हैं. लेकिन इस चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा था. यह देखना दिलचस्प होगा कि कांग्रेस और इनेलो पार्टी किसी जाट या नॉन जाट को टिकट देती हैं, वहीं आम आदमी पार्टी भी काफी लंबे समय से इस सीट पर नजरें गड़ाए हुए है. ऐसे में वह भी इस सीट पर जीत दर्ज कर प्रदेश में अपना खाता जरूर खोलना चाहेगी. यानि विपक्षी दलों के टिकट का वितरण ही बिश्नोई परिवार की इस सीट पर राजनीतिक भविष्य को तय करेगा.
राजनीतिक विश्लेषक क्या कहते हैं- राजनीतिक मामलों के जानकार प्रोफेसर गुरमीत सिंह कहते हैं कि इससे पहले हुए दोनों उपचुनाव में राजनीतिक परिस्थितियां बिल्कुल अलग थी. जहां पर सीधे कांग्रेस और बीजेपी के उम्मीदवार के बीच कड़ी टक्कर थी. वे यह भी कहते हैं कि भले ही दोनों उपचुनाव में बीजेपी हारी हो लेकिन उन दोनों में बीजेपी ने एक तरफ जहां कांग्रेस के गढ़ में, दूसरे इंडियन नेशनल लोकदल के गढ़ में उसे कड़ी टक्कर दी थी. आदमपुर विधानसभा का उपचुनाव कई मायनों में अलग है. एक तो यह सीट भजनलाल के परिवार की परंपरागत सीट रही है, और वहीं इस सीट पर पूर्व में बीजेपी नेत्री सोनाली फोगाट कुलदीप बिश्नोई के सामने चुनाव लड़ चुकी है.
सोनाली फोगाट की मौत के बाद जिस तरीके के राजनीतिक हालात आदमपुर विधानसभा सीट पर बने हुए हैं, उसमें कुलदीप बिश्नोई के परिवार को अपनी इस सीट को बचाने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाना होगा. भले ही वे अब बीजेपी के उम्मीदवार के तौर पर खुद या अपने बेटे को चुनाव मैदान में उतारेंगे, लेकिन यह चुनाव बीजेपी से ज्यादा उनके खुदके राजनीतिक भविष्य को भी तय करेगा. वे कहते हैं कि अगर विपक्ष ने सारे सियासी समीकरणों को ध्यान में रखते हुए आदमपुर में उम्मीदवार उतारे तो विश्नोई परिवार के लिए आदमपुर की राह आसान नहीं होगी.
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