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फीस वसूली और बढ़ोतरी के मामले में HC ने सरकार को लगाई फटकार - फीस वसूली बढ़ोतरी मामला हाई कोर्ट हरियाणा

पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने हरियाणा सरकार को फटकार लगाते हुए फीस वसूली व हर साल फीस बढ़ोतरी के मामले में अभिभावकों को बड़ी राहत दी है.

high court school fees haryana govt
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Published : Jul 30, 2020, 3:50 PM IST

भिवानी: हरियाणा के निजी स्कूलों में बच्चों के अभिभावकों से मनमानी, गैर कानूनी फीस वसूली व हर साल फीस बढ़ोतरी का बोझ लादने एवं फंड ट्रांसफर करने वाले निजी स्कूलों पर नकेल कसने के लिए पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने हरियाणा सरकार को फटकार लगाते हुए 28 दिनों के अंदर फीस एंड फंड रेगुलेटरी कमेटी में संशोधन के आदेश दिए हैं.

अभिभावकों को मिली बड़ी राहत

स्वास्थ्य शिक्षा सहयोग संगठन के प्रदेश अध्यक्ष बृजपाल सिंह परमार ने 28 जुलाई को हरियाणा शिक्षा नियमावली के नियम 158ए के तहत पूर्व में गठित की गई फीस एंड फंड रेगुलेटरी कमेटी के खिलाफ पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय में याचिका लगाई थी. उच्च न्यायालय ने उसी दिन इस मामले की सुनवाई करते हुए हरियाणा सरकार को कड़ी फटकार लगाई और शिक्षा नियमावली में 28 दिन के अंदर संशोधन करने के आदेश देते हुए प्रदेश भर के अभिभावकों को बड़ी राहत दी है.

स्वास्थ्य शिक्षा सहयोग संगठन के प्रदेश अध्यक्ष बृजपाल सिंह परमार ने बताया कि अधिवक्ता अभिनव अग्रवाल के माध्यम से 28 जुलाई को पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय में हरियाणा सरकार द्वारा गठित एफएफआरसी द्वारा बच्चों की फीस संबंधी मसलों पर कोई कार्रवाई नहीं किए जाने के संबंध में याचिका लगाई थी. इसी पर न्यायालय ने अभिभावकों को राहत देने वाला फैसला सुनाया है. परमार ने बताया कि 2009 में सीडब्ल्यूपी 20545 के अंतर्गत फीस कानून बनाने को लेकर याचिका डाली गई थी.

ये है पूरा मामला

इसी मामले में हाई कोर्ट ने निजी स्कूलों में फीस को लेकर मानक बनाए थे. न्यायालय ने ये भी टिप्पणी की थी कि एफएफआरसी केवल एक क्लर्क के तौर पर काम कर रही है व न्यायालय द्वारा तय किए गए मापदंडों में स्कूल का लाभ व हानि तय करना, सरप्लस फंड यानी बहुतायत फंड के अलावा ट्रांसफर आफ फंड इन तीन बिंदुओं को नहीं देख रही है. वर्ष 2012 में हरियाणा सरकार की तरफ से एलपीए 721 डाली गई. जिसमें भी न्यायालय ने अपना कड़ा रुख अपनाते हुए सीडब्ल्यूपी 20545/2009 के आदेशों की पालना के आदेश दिए थे.

ये भी पढ़ें- जो लोग हमें छोड़कर गए, वो हमें अपना परिवार नहीं मानते- ओपी चौटाला

इसी तरह 2017 में एक समान याचिका सीडब्ल्यूपी 20323 पर कहा गया था कि सरकार ने इसी केस में अतिरिक्त मुख्य सचिव शिक्षा विभाग हरियाणा सरकार की तरफ से न्यायालय में एक शपत्र पत्र देकर कहा गया था कि इस मामले में नियम 158ए के तहत संशोधन की कार्रवाई की जा रही है, लेकिन इसके बाद भी सरकार ने आज तक कोई सार्थक कदम नहीं उठाया है.

परमार ने अधिवक्ता अभिनव अग्रवाल के माध्यम से शिक्षा नियम 158ए के तहत फीस संबंधी मसलों की नियमावली में शिक्षा विभाग द्वारा उच्च न्यायालय के आदेशों की पालना न करने पर गंभीर सवाल उठाते हुए हाई कोर्ट में याचिका 28 जुलाई को डाली थी. उसी दिन न्यायालय ने इस याचिका पर सुनवाई करते हुए हरियाणा सरकार को कड़ी फटकार लगाते हुए पुन: आदेश दिए कि 28 दिन के अंदर सरकार शिक्षा नियम 158ए के तहत संशोधन कर फीस संबंधी मापदंड तय करना सुनिश्चित करें.

ये भी पढ़ें- लॉकडाउन के दौरान कुरुक्षेत्र में बढ़ी कुत्तों की संख्या, 50 फीसदी कम हुए 'डॉग बाइट' के केस

भिवानी: हरियाणा के निजी स्कूलों में बच्चों के अभिभावकों से मनमानी, गैर कानूनी फीस वसूली व हर साल फीस बढ़ोतरी का बोझ लादने एवं फंड ट्रांसफर करने वाले निजी स्कूलों पर नकेल कसने के लिए पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने हरियाणा सरकार को फटकार लगाते हुए 28 दिनों के अंदर फीस एंड फंड रेगुलेटरी कमेटी में संशोधन के आदेश दिए हैं.

अभिभावकों को मिली बड़ी राहत

स्वास्थ्य शिक्षा सहयोग संगठन के प्रदेश अध्यक्ष बृजपाल सिंह परमार ने 28 जुलाई को हरियाणा शिक्षा नियमावली के नियम 158ए के तहत पूर्व में गठित की गई फीस एंड फंड रेगुलेटरी कमेटी के खिलाफ पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय में याचिका लगाई थी. उच्च न्यायालय ने उसी दिन इस मामले की सुनवाई करते हुए हरियाणा सरकार को कड़ी फटकार लगाई और शिक्षा नियमावली में 28 दिन के अंदर संशोधन करने के आदेश देते हुए प्रदेश भर के अभिभावकों को बड़ी राहत दी है.

स्वास्थ्य शिक्षा सहयोग संगठन के प्रदेश अध्यक्ष बृजपाल सिंह परमार ने बताया कि अधिवक्ता अभिनव अग्रवाल के माध्यम से 28 जुलाई को पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय में हरियाणा सरकार द्वारा गठित एफएफआरसी द्वारा बच्चों की फीस संबंधी मसलों पर कोई कार्रवाई नहीं किए जाने के संबंध में याचिका लगाई थी. इसी पर न्यायालय ने अभिभावकों को राहत देने वाला फैसला सुनाया है. परमार ने बताया कि 2009 में सीडब्ल्यूपी 20545 के अंतर्गत फीस कानून बनाने को लेकर याचिका डाली गई थी.

ये है पूरा मामला

इसी मामले में हाई कोर्ट ने निजी स्कूलों में फीस को लेकर मानक बनाए थे. न्यायालय ने ये भी टिप्पणी की थी कि एफएफआरसी केवल एक क्लर्क के तौर पर काम कर रही है व न्यायालय द्वारा तय किए गए मापदंडों में स्कूल का लाभ व हानि तय करना, सरप्लस फंड यानी बहुतायत फंड के अलावा ट्रांसफर आफ फंड इन तीन बिंदुओं को नहीं देख रही है. वर्ष 2012 में हरियाणा सरकार की तरफ से एलपीए 721 डाली गई. जिसमें भी न्यायालय ने अपना कड़ा रुख अपनाते हुए सीडब्ल्यूपी 20545/2009 के आदेशों की पालना के आदेश दिए थे.

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इसी तरह 2017 में एक समान याचिका सीडब्ल्यूपी 20323 पर कहा गया था कि सरकार ने इसी केस में अतिरिक्त मुख्य सचिव शिक्षा विभाग हरियाणा सरकार की तरफ से न्यायालय में एक शपत्र पत्र देकर कहा गया था कि इस मामले में नियम 158ए के तहत संशोधन की कार्रवाई की जा रही है, लेकिन इसके बाद भी सरकार ने आज तक कोई सार्थक कदम नहीं उठाया है.

परमार ने अधिवक्ता अभिनव अग्रवाल के माध्यम से शिक्षा नियम 158ए के तहत फीस संबंधी मसलों की नियमावली में शिक्षा विभाग द्वारा उच्च न्यायालय के आदेशों की पालना न करने पर गंभीर सवाल उठाते हुए हाई कोर्ट में याचिका 28 जुलाई को डाली थी. उसी दिन न्यायालय ने इस याचिका पर सुनवाई करते हुए हरियाणा सरकार को कड़ी फटकार लगाते हुए पुन: आदेश दिए कि 28 दिन के अंदर सरकार शिक्षा नियम 158ए के तहत संशोधन कर फीस संबंधी मापदंड तय करना सुनिश्चित करें.

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