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खाटू श्याम के लिए श्रद्धालुओं का जत्था रवाना, भीम के पौत्र की होती है पूजा

लोहारू से लगते राजस्थान राज्य के सीकर जिले में देश के लाखों करोड़ों लोगों की आस्था के प्रतीक बाबा खाटू श्याम के धाम पर लोगों का जाना प्रारम्भ हो गया है.

Khatu Shyam devotees loharu
Khatu Shyam devotees loharu
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Published : Mar 1, 2020, 6:56 PM IST

भिवानी: लोहारू के रास्ते से खाटूधाम को जाने वाले हजारों श्याम भक्तों के पैदल जत्थों के कारण यहां का माहौल भी श्याममय होने लगा है. लोहारू हलके से भी सैंकड़ों की संख्या में श्याम भक्त खाटू धाम के लिए पैदल रवाना हुए हैं तथा यह क्रम जारी है. ये भक्त करीब 175 किलोमीटर की दूरी पैदल तय करके खाटू धाम पहुंचेंगे.

वैसे तो खाटू धाम पर हर माह की सुदी एकादशी को छोटे-छोटे मेले लगते रहते हैं मगर वर्ष में दो बार फाल्गुन और कार्तिक माह में लगने वाले मेले राजस्थान में ही नहीं देश के अन्य राज्यों में भी विशाल माने जाते हैं. यहां पर लगने वाले इन भव्य मेलों में देश के कोने कोने से लाखों श्रद्घालु शिरकत करते हैं.

खाटू श्याम के लिए श्रद्धालुओं का जत्था रवाना, भीम के पौत्र की होती है पूजा.

भगवान श्री श्याम के बारे में बुजुर्गों ने कहा कि श्री श्याम का असली नाम बर्बरीक था जो कि महाभारत में पांडव पुत्र भीम के पौत्र थे. उनका नाम श्री श्याम क्यों पड़ा? इसके बारे में किवदंती प्रचलित है कि जब हरियाणा के कुरूक्षेत्र स्थान पर कौरवों और पांडवों के बीच महाभारत का युद्घ चल रहा था तो बर्बरीक तीन बाण और धनुष लेकर रणभूमि में पहुंचा तब श्री कृष्ण ने पूछा कि आप कौन हैं तथा तीन बाण लेकर रणभूमि में क्या करने आए हैं.

इस पर बर्बरीक ने उत्तर देते हुए कहा कि मैं भीम पुत्र घटोत्कच का बेटा बर्बरीक हूं तथा अपने तीन बाणों से सारे संसार को पराजित कर सकता हूं और केवल एक बाण से ही मैं दोनों सेनाओं का संहार कर सकता हूं यदि आपको विश्वास ना हो तो आप परीक्षा लेकर देख सकते हैं. परीक्षा लेने पर कृष्ण को उसकी वीरता पर विश्वास हो गया.

ये भी पढ़ें- गोहाना की जलेबी के नेता तक हुए मुरीद, शादी से लेकर शपथ ग्रहण समारोह तक है डिमांड

इसके पश्चात कृष्ण ने उससे पूछा कि वे किसकी तरफ से युद्घ में हिस्सा लेंगे जवाब स्वरूप बर्बरीक ने कहा कि वे उसकी तरफ से लड़ेंगे जिसका पलड़ा कमजोर होगा. यह सुनकर कृष्ण को गहरा आघात लगा तथा उन्हें यह युद्घ कभी ना समाप्त होने वाला युद्घ लगा. तब श्री कृष्ण ने कूटनीति का सहारा लेते हुए कहा कि तुम्हारी वीरता तो साबित हो गई मगर तुम्हारे अंदर दान वीरता का कोई गुण दिखाई नहीं दिया.

तब बर्बरीक ने कहा कि आप मुझसे कुछ मांगकर देखिए तब आपको मेरी दान शीलता का पता चलेगा. तब श्री कृष्ण ने कहा कि युद्घ के लिए मुझे एक सच्चे बहादुर का शीश चाहिए, अगर तुम यह कार्य कर सको तो तुम्हारे दानीपन का पता चल जाएगा. इतना सुनकर बर्बरीक ने शीश दान करना स्वीकार कर लिया तथा महाभारत का युद्घ देखने की इच्छा प्रकट की. तब कृष्ण ने उनके शीश को ऊंचे पर्वत पर रखवा दिया तथा बर्बरीक के शीश ने सारा युद्घ देखा.

बर्बरीक की बहादुरी तथा दान शीलता से खुश होकर कृष्ण ने उन्हें आशीर्वाद दिया कि तुम कलयुग में मेरे नाम से पूजे जाओगे. इतना कहकर कृष्ण ने शीश को नदी में बहा दिया जो वहां से बहकर खाटु पहुंचा. तभी से वहां पर श्याम बाबा के भव्य मेले लगते हैं. आज भी लोग उसे शीश के दानी के रूप में जानते हैं.

ये भी पढ़ें- गुरुग्राम में कैंसर अवेयरनेस वॉक को वीरेंद्र सहवाग ने दिखाई हरी झंडी

भिवानी: लोहारू के रास्ते से खाटूधाम को जाने वाले हजारों श्याम भक्तों के पैदल जत्थों के कारण यहां का माहौल भी श्याममय होने लगा है. लोहारू हलके से भी सैंकड़ों की संख्या में श्याम भक्त खाटू धाम के लिए पैदल रवाना हुए हैं तथा यह क्रम जारी है. ये भक्त करीब 175 किलोमीटर की दूरी पैदल तय करके खाटू धाम पहुंचेंगे.

वैसे तो खाटू धाम पर हर माह की सुदी एकादशी को छोटे-छोटे मेले लगते रहते हैं मगर वर्ष में दो बार फाल्गुन और कार्तिक माह में लगने वाले मेले राजस्थान में ही नहीं देश के अन्य राज्यों में भी विशाल माने जाते हैं. यहां पर लगने वाले इन भव्य मेलों में देश के कोने कोने से लाखों श्रद्घालु शिरकत करते हैं.

खाटू श्याम के लिए श्रद्धालुओं का जत्था रवाना, भीम के पौत्र की होती है पूजा.

भगवान श्री श्याम के बारे में बुजुर्गों ने कहा कि श्री श्याम का असली नाम बर्बरीक था जो कि महाभारत में पांडव पुत्र भीम के पौत्र थे. उनका नाम श्री श्याम क्यों पड़ा? इसके बारे में किवदंती प्रचलित है कि जब हरियाणा के कुरूक्षेत्र स्थान पर कौरवों और पांडवों के बीच महाभारत का युद्घ चल रहा था तो बर्बरीक तीन बाण और धनुष लेकर रणभूमि में पहुंचा तब श्री कृष्ण ने पूछा कि आप कौन हैं तथा तीन बाण लेकर रणभूमि में क्या करने आए हैं.

इस पर बर्बरीक ने उत्तर देते हुए कहा कि मैं भीम पुत्र घटोत्कच का बेटा बर्बरीक हूं तथा अपने तीन बाणों से सारे संसार को पराजित कर सकता हूं और केवल एक बाण से ही मैं दोनों सेनाओं का संहार कर सकता हूं यदि आपको विश्वास ना हो तो आप परीक्षा लेकर देख सकते हैं. परीक्षा लेने पर कृष्ण को उसकी वीरता पर विश्वास हो गया.

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इसके पश्चात कृष्ण ने उससे पूछा कि वे किसकी तरफ से युद्घ में हिस्सा लेंगे जवाब स्वरूप बर्बरीक ने कहा कि वे उसकी तरफ से लड़ेंगे जिसका पलड़ा कमजोर होगा. यह सुनकर कृष्ण को गहरा आघात लगा तथा उन्हें यह युद्घ कभी ना समाप्त होने वाला युद्घ लगा. तब श्री कृष्ण ने कूटनीति का सहारा लेते हुए कहा कि तुम्हारी वीरता तो साबित हो गई मगर तुम्हारे अंदर दान वीरता का कोई गुण दिखाई नहीं दिया.

तब बर्बरीक ने कहा कि आप मुझसे कुछ मांगकर देखिए तब आपको मेरी दान शीलता का पता चलेगा. तब श्री कृष्ण ने कहा कि युद्घ के लिए मुझे एक सच्चे बहादुर का शीश चाहिए, अगर तुम यह कार्य कर सको तो तुम्हारे दानीपन का पता चल जाएगा. इतना सुनकर बर्बरीक ने शीश दान करना स्वीकार कर लिया तथा महाभारत का युद्घ देखने की इच्छा प्रकट की. तब कृष्ण ने उनके शीश को ऊंचे पर्वत पर रखवा दिया तथा बर्बरीक के शीश ने सारा युद्घ देखा.

बर्बरीक की बहादुरी तथा दान शीलता से खुश होकर कृष्ण ने उन्हें आशीर्वाद दिया कि तुम कलयुग में मेरे नाम से पूजे जाओगे. इतना कहकर कृष्ण ने शीश को नदी में बहा दिया जो वहां से बहकर खाटु पहुंचा. तभी से वहां पर श्याम बाबा के भव्य मेले लगते हैं. आज भी लोग उसे शीश के दानी के रूप में जानते हैं.

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