बेंगलुरु: भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएससी) के शोधकर्ताओं ने वाष्पीकरण के बाद जमाव पैटर्न का विश्लेषण करके दूध में मिलावट का पता लगाने का एक कम लागत वाली और प्रभावी विधि विकसित की है. यह पोस्टडॉक्टोरल शोधकर्ता विर्केश्वर कुमार और मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग में सहायक प्रोफेसर सुष्मिता दास द्वारा डिजाइन किया गया है. एसीएस (ACS) ओमेगा में प्रकाशित एक अध्ययन में, टीम ने दूध में यूरिया और पानी की उपस्थिति के परीक्षण के लिए इस विधि का इस्तेमाल किया जो दूध में सबसे आसानी से मिलावट किया जा सकता है.
टीम का सुझाव है कि इस तकनीक को अन्य मिलावट करने वालों के लिए भी किया जा सकता है.
भारत जैसे विकासशील देशों में दूध में मिलावट एक गंभीर चिंता का विषय है. यहां व्यापक स्तर पर दूध की गुणवत्ता भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण द्वारा निर्धारित मानकों पर खड़े नही उतरता है. दूध की मात्रा बढ़ाने के लिए इसमें अक्सर पानी मिलाया जाता है.
ऐसा पाया गया है कि इसमें यूरिया भी मिलाया जाता है जिससे इसके नीचे का हिस्सा सफेद और झागदार हो जाता है. इसके मिलावट से लिवर, हार्ट और किडनी के खराब होने का डर बना रहता है.
इस तकनीक के माध्यम से शोधकर्ताओं ने वाष्पीकरणीय जमाव पैटर्न को देखा. इसमें शोधकर्ताओं ने पाया कि दूध में अलग-अलग पदार्थों के मिलावट की स्थिति में अलग -अलग तरह के जमाव पैटर्न बने. पानी मिलाने पर एक अलग प्रकार का जमाव पैटर्न बना जबकि यूरिया मिलावट होने पर अलग तरह का पैटर्न बना. यह पैटर्न इस बात पर भी निर्भर करता है कि दूध में मिलावट किस मात्रा में किया गया है.
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वर्तमान में जैसा कि लैक्टोमीटर तकनीक और दूध के हिमांक बिंदु में परिवर्तन को देख कर दूध में पानी की मात्रा का पता लगाने के लिए किया जा सकता है. लेकिन इसकी कुछ सीमाएं हैं. उदाहरण के लिए, हिमांक बिंदु तकनीक दूध की कुल मात्रा का केवल 3.5 फीसदी तक ही पानी का पता लगा सकता है.
इसके अलावा, यूरिया के परीक्षण के लिए उच्च संवेदनशीलता वाले बायोसेंसर उपलब्ध हैं. वे महंगे हैं और उनकी एक्यूरेसी समय के साथ घटती जाती है.