हैदराबाद: अगर आपका पीएफ (PF)एकाउंट है और सैलरी से पीएफ कटता है तो आपकी जेब भी कटने वाली है. दरअसल बजट 2021-22 में सरकार ने आपके पीएफ पर मिलने वाले ब्याज को टैक्स के दायरे में लाने का ऐलान किया था. अब इसे लेकर बकायदा नोटिफिकेशन और नियम कायदे भी जारी कर दिए गए हैं. क्या था वो ऐलान ? आपके पीएफ खाते पर उसका फर्क पड़ेगा या नहीं ? और पड़ेगा तो कितना पड़ेगा ? इस पूरा गुणा-गणित के साथ आपको कर्मचारी भविष्य निधि से जुड़ा पूरा ज्ञान ईटीवी भारत एक्सप्लेनर (etv bharat explainer) में मिलेगा, लेकिन पहले जानिये
क्या है कर्मचारी भविष्य निधि ? (Employee Provident Fund)
ये कर्मचारियों के लिए एक तरह की बचत योजना है, जिसका प्रबंधन EPFO यानि कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (Employee Provident Fund Organisation) करता है. ये एक तरह का खाता है लेकिन इसके लिए किसी बैंक में नहीं जाना पड़ता. किसी कंपनी में नौकरी लगने के साथ ही आपका पीएफ खाता खुल जाता है. जिसमें नियम के मुताबिक कंपनी कर्मचारी के मूल वेतन (Basic salary) से 12 फीसदी हिस्सा काटकर जमा किया जाता है और कंपनी भी 12 फीसदी हिस्सा उस खाते में डालती है. जिसपर वार्षिक ब्याज मिलता है.
कंपनी अपनी तरफ से जो 12 फीसदी अशंदान आपके पीएफ खाते में डालती है वो दो हिस्सों पीएफ और पेंशन फंड में बंटा होता है. आपके रिटायरमेंट के बाद इस पेंशन फंड से आपको पेंशन मिलती है, जिसकी राशि पीएफ के खाते में जमा राशि पर निर्भर करती है.
EPF में VPF का भी ऑपशन होता है
Voluntary Provident Fund (VPF) यानि स्वैच्छिक भविष्य निधि, ये विकल्प आपके पीएफ खाते में होता है. जिसमें आप EPF कटने के बाद अपनी कमाई का कुछ हिस्सा VPF में भी जमा कर सकते हैं. VPF पर EPF जितना ही ब्याज मिलता है. मौजूदा दौर में ज्यादातर लोग छोटी और सुरक्षित योजनाओं में निवेश करते हैं और नौकरीपेशा लोगों के लिए VPF एक बेहतर ऑपशन भी है क्योंकि इसमे जोखिम कम है और रिटर्न भी अच्छा है.
VPF में कर्मचारी अपनी सहूलियत के हिसाब से निवेश कर सकता है लेकिन अगर ज्यादा से ज्यादा पैसा इसमें डालना चाहते हैं तो आपकी बेसिक सैलरी से 12 फीसदी EPF में कटने के बाद, आप बची हुई 88 फीसदी बेसिक सैलरी और महंगाई भत्ते का 100 फीसदी VPF में जमा कर सकते हैं. इसके लिए आपको अपने एचआर या वित्त विभाग से संपर्क करना होगा.
VPF एक निवेश विकल्प है, जिससे आपको रिटायरमेंट के बाद आपको ब्याज सहित एकमुश्त रकम मिलती है. हालांकि उससे पहले भी आप कुछ परिस्थितियों में ये रकम निकाल सकते हैं. जैसे नौकरी छूटने से लेकर, अपनी या भाई-बहन, बच्चों की शादी, अपनी या बच्चों की उच्च शिक्षा, अपने या अपने माता-पिता, पति पत्नी, बच्चों के इलाज के लिए, घर खरीदने से लेकर जमीन खरीदने और घर बनवाने तक के लिए भी VPF से पैसे निकालने का प्रावधान है. अलग-अलग कैटेगरी में इसके लिए रकम और शर्तें तय की गई हैं.
क्या हुआ था बजट में ऐलान और कब से होगा लागू ?
2021-22 का केंद्रीय बजट पेश करते वक्त केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने ऐलान किया था कि पीएफ के ब्याज की एक तय रकम पर टैक्स लगेगा. निजी कंपनियों के कर्मचारियों के पीएफ खाते में एक साल में 2.5 लाख से ज्यादा की राशि पर मिलने वाले ब्याज पर टैक्स लगेगा, जबकि सरकारी कर्मचारियों को 5 लाख से ज्यादा की राशि पर मिलने वाले ब्याज पर टैक्स देना होगा. ये आदेश 2021-22 वित्त वर्ष यानि 1 अप्रैल से लागू हो चुका है जिसकी नोटिफिकेशन वित्त मंत्रालय ने अब जारी की है.
वैसे आयकर की धारा 80सी के तहत सिर्फ डेढ लाख रुपये सालाना तक का ही पीएफ जमा पर आयकर की छूट है, उससे अधिक की रकम टैक्सेबल इनकम में जुड़ती है.
कैसे लगेगा टैक्स ?
इसके लिए आपके मौजूदा पीएफ अकाउंट को दो अलग-अलग एकाउंट में बांटा जाएगा. अगर पीएफ में सालाना योगदान ढाई लाख से ज्यादा होगा तो ढाई लाख से ज्यादा की रकम दूसरे अकाउंट में जाएगी. और ढाई लाख से अधिक की उसी रकम पर मिलने वाले ब्याज पर आपका टैक्स कटेगा. यानि 2.5 लाख तक की रकम पर मिलने वाला ब्याज टैक्स के दायरे से बाहर होगा.
अगर आप सोच रहे हैं कि पीएफ अकाउंट से पैसे निकालकर इस टैक्स की मार से बच जाएंगे तो ऐसा नहीं है क्योंकि आप पीएफ खाते से बीते वित्त वर्ष तक जमा रकम से ही पैसे निकाल सकते हैं.
कितना लगेगा टैक्स ?
पहले तो ये देखिये कि आयकर की किस स्लैब में आप आते हैं, यानि आप कितना इनकम टैक्स देते हैं. मान लीजिये की आप 20 फीसदी वाले टैक्स स्लैब में आते हैं और आपने सालाना 3 लाख रुपये का योगदान पीएफ में दिया. यहां ढाई लाख की रकम पर कोई टैक्स नहीं लगेगा, जबकि बाकी बचे हुए 50 हजार पर मिलने वाले ब्याज पर आपको 20 फीसदी की दर से टैक्स देना होगा.
पीएफ जमा पर नहीं ब्याज पर लगेगा टैक्स
ऊपर वाले उदाहरण को आगे बढ़ाते हैं. मान लेते हैं कि पीएफ पर 8 फीसदी की दर से ब्याज मिलता है. इस हिसाब से 50 हजार की जो रकम टैक्स के दायरे में आ रही है उसपर 4 हजार रुपये का ब्याज मिलेगा. तो जब टैक्स देने की बारी आएगी तो इस 4,000 रुपये पर टैक्स लगेगा, जो 20 फीसदी यानि जिस टैक्स स्लैब में आप आते हैं उस हिसाब से 800 रुपये होगा. कुल मिलाकर ये टैक्स पीएफ जमा पर नहीं बल्कि ढाई लाख से अधिक जितनी भी रकम होगी उसपर मिलने वाले ब्याज पर लगेगा.
कंपनी के योगदान और VPF योगदान का क्या ?
इस नई व्यवस्था में पीएफ खाते में सिर्फ और सिर्फ कर्मचारी के योगदान वाले हिस्सा ही टैक्स के दायरे में होगा. मान लीजिये कि हर महीने 10 हजार रुपये आपका पीएफ कटता है (इतना ही कंपनी भी देती है) और 15 हजार रुपये आप वॉलंटरी प्रॉविडेंट फंड (VPF) में भी डालते हैं. तो टैक्स के दायरे में सिर्फ आपका योगदान आएगा जो 25 हजार रुपये मासिक और 3 लाख रुपये सालाना होता है. जिसमें से ढाई लाख पर टैक्स नहीं देना होगा.
सरकार की मंशा क्या है ?
सरकार पीएफ में जमा आपके पैसे को निवेश करती है और मुनाफा कमाती है और फिर उसका एक हिस्सा निश्चित दर से आपको ब्याज के रूप में लौटाती है लेकिन अब सरकार ने उस ब्याज पर भी टैक्स लगा दिया है. ऐसा करके सरकार ने इस एक तीर से दो शिकार किए हैं. पहला जिन कर्मचारियों की सैलरी अधिक है और वो पीएफ में निवेश करके टैक्स फ्री ब्याज कमाते हैं उनपर टैक्स का शिकंजा कस दिया है.
वहीं एक्सपर्ट मानते हैं कि सरकार के इस कदम के पीछे लोगों को बचत से ज्यादा खर्च करने के लिए प्रेरित करना है ताकि बाजार में पैसा आए. दरअसल ये नया ऐलान VPF के तहत पैसा बचाने वालों के लिए ही किया गया है. इस कदम के बाद ढाई लाख से ज्यादा योगदान करने वाले कर्मचारियों की तादाद कम हो सकती है. VPF में अधिक पैसा डालने वाले लोग इस रकम को दूसरी जगह निवेश या खर्च करेंगे जिससे अर्थव्यवस्था का पहिया घूमेगा.
कभी ब्याज के साथ मिला था बोनस अब लग रहा टैक्स
कर्मचारी भविष्य निधि संगठन की शुरुआत साल 1952 में हुई थी. EPFO एक्ट, 1952 के तहत देशभर के कर्मचारियों और मजदूरों को सामाजिक सुरक्षा देने की कोशिश की गई. यहीं से पीएफ पर ब्याज मिलने की शुरुआत हुई जो शुरुआत में महज 3 फीसदी था. जिसके बाद इसमें लगातर बदलाव होता रहा. साल 1977-78 में पहली बार 8 फीसदी पहुंचने के बाद अगले साल सरकार ने 8.25% कर दिया और 0.5% का बोनस देने का भी ऐलान किया. हालांकि ये बोनस सिर्फ 1976-77 और 1977-78 वित्तीय वर्ष के पीएफ पर उन लोगों को दिया गया जिन्होंने कभी भी अपना पैसा पीएफ से नहीं निकाला था.
पीएफ पर ब्याज की दर 1985-86 में पहली बार दहाई के आंकड़े पर पहुंची जब इसे 10.15% किया गया था. 1989-90 में ये 12% तक पहुंची और साल 2001 तक इसी दर पर ब्याज मिलता रहा. इसके बाद इस ब्याज दर पर सरकारें कैंची चलाती रहीं जो आज 8.5 फीसदी पर पहुंच चुकी है. जिसपर अब सरकार ने टैक्स भी लगा दिया है.
ये भी पढ़ें: कैसे होती है सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के जजों की नियुक्ति ?