ETV Bharat / bharat

सपना बना देश के लिए ओलंपिक मेडल जीतना, मजबूरी में काट रही पार्किंग की पर्ची

नेशनल लेवल की बॉक्सर रितु (Boxer Ritu) इन दिनों आर्थिक तंगी (Boxer Ritu financial crisis) की वजह से अब पार्किंग स्लॉट में काम करने को मजबूर हैं. रितु के ओलंपिक में पदक जीतने का सपना शायद सपना बनकर रह गया है.

नेशनल लेवल की बॉक्सर रितु
नेशनल लेवल की बॉक्सर रितु
author img

By

Published : Aug 6, 2021, 8:06 PM IST

Updated : Aug 7, 2021, 1:19 PM IST

चंडीगढ़ : भारत विकसित देशों की दौड़ में शामिल होने के लिए तेजी से दौड़ रहा है. क्षेत्रफल और बड़ी आबादी वाला देश हर मामलों में दूसरे देशों को टक्कर दे रहा है, लेकिन जब बात ओलंपिक खेलों (India in Olympic Games) की होती है तो बाकी देशों से तुलना करना शर्मसार करने वाली बात हो सकती है. टोक्यो ओलंपिक 2020 (Tokyo Olympics 2020) में 206 देशों ने हिस्सा लिया है. जिसमें से भारत के 127 खिलाड़ी हैं.

मेडल सूची की बात करें तो भारत खबर लिखे जाने तक 5 मेडल के साथ 65वें स्थान पर है. बड़ा सवाल ये कि ऐसा क्यों? 127 खिलाड़ियों में महज पांच पदक. इसका जवाब शायद किसी के पास नहीं होगा. लेकिन राष्ट्रीय स्तर की मुक्केबाज रितु (National level boxer Ritu) की कहानी काफी कुछ बयां कर सकती है. कहने को तो रितु नेशनल लेवल की बॉक्सर हैं, लेकिन आर्थिक तंगी (Boxer Ritu financial crisis) की वजह से अब पार्किंग स्लॉट में काम करने को मजबूर हैं. बॉक्सर रितु अपने परिवार के साथ धनास के छोटे से फ्लैट में रहती हैं.

ऐसे कैसे मिलेंगे ओलंपिक में पदक?

रितु के पिता बीमार हैं, जिन पर महीने की दवाई का खर्च करीब 10 हजार के करीब आता है. घर में कमाने वाले अकेले पिता थे, जब वो बीमार पड़ गए तो खर्च चलाने के लिए रितु ने पढ़ाई और ओलंपिक के मेडल के सपने को बीच में ही छोड़ दिया. आज नेशनल लेवल की बॉक्सर जिसे अब ओलंपिक में होना चाहिए था वो आज चंडीगढ़ सेक्टर 22 की पार्किंग स्लॉट (Parking Slot Sector 22 Chandigarh) में पर्चियां काट रही हैं.

ये भी पढ़ें- सेमीफाइनल मुकाबले में हारे बजरंग पूनिया, ब्रॉन्ज के लिए कल होगा मुकाबला

रितु ने 12वीं तक की पढ़ाई की है. घर के हालात और आर्थिक तंगी की वजह से उन्हें बीच में ही पढ़ाई छोड़नी पड़ी. सिर्फ रितु ही नहीं बल्कि पैसों की कमी के चलते उनके बड़े भाई रंजीत ने पढ़ाई छोड़ दी. नीतू के बड़े भाई ने 'ईटीवी भारत' हरियाणा से बातचीत में बताया कि अगर उन्हें कोई सपोर्ट करता तो उनकी बहन और वो आगे भी पढ़ाई जारी रखते. ना जाने रितु अब तक कितने मेडल जीत लेती.

raw
raw

रितु ने 'ईटीवी भारत' से बातचीत के दौरान कहा कि 'मैं बचपन से ही खेलों के साथ जुड़ी हूं. दसवीं क्लास तक अलग-अलग खेल खेलती थी, लेकिन उसके बाद मैं पूरी तरह से बॉक्सिंग में आ गई. 2 साल के भीतर ही मैंने पहला राष्ट्रीय पदक अपने नाम कर लिया. मेरी बॉक्सिंग अच्छी चल रही थी. मेरा सपना था कि मैं बॉक्सिंग की बड़ी खिलाड़ी बनूं और देश के लिए ओलंपिक में मेडल लाऊं.

ये भी पढ़ें- मेजर ध्यानचंद के नाम से जाना जाएगा 'खेल रत्न' अवॉर्ड, जानें कितने हरियाणवी खिलाड़ियों को मिल चुका ये सम्मान

रितु के पिता रिक्शा चलाकर परिवार का भरण पोषण कर रहे थे, उनकी आंखों में कोई बीमारी होने से रिक्शा चलाने का काम बंद करना पड़ा. जिसके बाद रितु और उसके भाई को पढ़ाई बीच में ही छोड़नी पड़ी. हालात ये हैं कि दो वक्त की रोटी का जुगाड़ करने के लिए दोनों बहन भाई छोटी-मोटी नौकरी करने को मजबूर हैं. परिस्थिति चाहे जो भी हो. अगर इस खिलाड़ी को आर्थिक मदद मिलती तो आज देश रितु से भी ओलंपिक में मेडल की आस लगाए होता. मगर अफसोस. देश के इस सपने को दो जून की रोटी भी नसीब नहीं हो रही.

चंडीगढ़ : भारत विकसित देशों की दौड़ में शामिल होने के लिए तेजी से दौड़ रहा है. क्षेत्रफल और बड़ी आबादी वाला देश हर मामलों में दूसरे देशों को टक्कर दे रहा है, लेकिन जब बात ओलंपिक खेलों (India in Olympic Games) की होती है तो बाकी देशों से तुलना करना शर्मसार करने वाली बात हो सकती है. टोक्यो ओलंपिक 2020 (Tokyo Olympics 2020) में 206 देशों ने हिस्सा लिया है. जिसमें से भारत के 127 खिलाड़ी हैं.

मेडल सूची की बात करें तो भारत खबर लिखे जाने तक 5 मेडल के साथ 65वें स्थान पर है. बड़ा सवाल ये कि ऐसा क्यों? 127 खिलाड़ियों में महज पांच पदक. इसका जवाब शायद किसी के पास नहीं होगा. लेकिन राष्ट्रीय स्तर की मुक्केबाज रितु (National level boxer Ritu) की कहानी काफी कुछ बयां कर सकती है. कहने को तो रितु नेशनल लेवल की बॉक्सर हैं, लेकिन आर्थिक तंगी (Boxer Ritu financial crisis) की वजह से अब पार्किंग स्लॉट में काम करने को मजबूर हैं. बॉक्सर रितु अपने परिवार के साथ धनास के छोटे से फ्लैट में रहती हैं.

ऐसे कैसे मिलेंगे ओलंपिक में पदक?

रितु के पिता बीमार हैं, जिन पर महीने की दवाई का खर्च करीब 10 हजार के करीब आता है. घर में कमाने वाले अकेले पिता थे, जब वो बीमार पड़ गए तो खर्च चलाने के लिए रितु ने पढ़ाई और ओलंपिक के मेडल के सपने को बीच में ही छोड़ दिया. आज नेशनल लेवल की बॉक्सर जिसे अब ओलंपिक में होना चाहिए था वो आज चंडीगढ़ सेक्टर 22 की पार्किंग स्लॉट (Parking Slot Sector 22 Chandigarh) में पर्चियां काट रही हैं.

ये भी पढ़ें- सेमीफाइनल मुकाबले में हारे बजरंग पूनिया, ब्रॉन्ज के लिए कल होगा मुकाबला

रितु ने 12वीं तक की पढ़ाई की है. घर के हालात और आर्थिक तंगी की वजह से उन्हें बीच में ही पढ़ाई छोड़नी पड़ी. सिर्फ रितु ही नहीं बल्कि पैसों की कमी के चलते उनके बड़े भाई रंजीत ने पढ़ाई छोड़ दी. नीतू के बड़े भाई ने 'ईटीवी भारत' हरियाणा से बातचीत में बताया कि अगर उन्हें कोई सपोर्ट करता तो उनकी बहन और वो आगे भी पढ़ाई जारी रखते. ना जाने रितु अब तक कितने मेडल जीत लेती.

raw
raw

रितु ने 'ईटीवी भारत' से बातचीत के दौरान कहा कि 'मैं बचपन से ही खेलों के साथ जुड़ी हूं. दसवीं क्लास तक अलग-अलग खेल खेलती थी, लेकिन उसके बाद मैं पूरी तरह से बॉक्सिंग में आ गई. 2 साल के भीतर ही मैंने पहला राष्ट्रीय पदक अपने नाम कर लिया. मेरी बॉक्सिंग अच्छी चल रही थी. मेरा सपना था कि मैं बॉक्सिंग की बड़ी खिलाड़ी बनूं और देश के लिए ओलंपिक में मेडल लाऊं.

ये भी पढ़ें- मेजर ध्यानचंद के नाम से जाना जाएगा 'खेल रत्न' अवॉर्ड, जानें कितने हरियाणवी खिलाड़ियों को मिल चुका ये सम्मान

रितु के पिता रिक्शा चलाकर परिवार का भरण पोषण कर रहे थे, उनकी आंखों में कोई बीमारी होने से रिक्शा चलाने का काम बंद करना पड़ा. जिसके बाद रितु और उसके भाई को पढ़ाई बीच में ही छोड़नी पड़ी. हालात ये हैं कि दो वक्त की रोटी का जुगाड़ करने के लिए दोनों बहन भाई छोटी-मोटी नौकरी करने को मजबूर हैं. परिस्थिति चाहे जो भी हो. अगर इस खिलाड़ी को आर्थिक मदद मिलती तो आज देश रितु से भी ओलंपिक में मेडल की आस लगाए होता. मगर अफसोस. देश के इस सपने को दो जून की रोटी भी नसीब नहीं हो रही.

Last Updated : Aug 7, 2021, 1:19 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.