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भारत में बीसीजी टीके की वजह से कोरोना का कम असर : अमेरिकी वैज्ञानिक

न्यूयॉर्क इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एनवाईआईटी) का एक अध्ययन अभी प्रकाशित होने वाला है जिसमें इटली और अमेरिका का उदाहरण देते हुए राष्ट्रीय नीतियों के तहत कई देशों में लगाए जाने वाले बीसीजी के टीके और कोविड-19 के प्रभाव का आपस में संबंध बतााया गया है. पढ़ें पूरी खबर...

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Published : Apr 1, 2020, 11:02 PM IST

Updated : Apr 3, 2020, 1:00 AM IST

नई दिल्ली : अमेरिकी वैज्ञानिकों ने कहा है कि क्षय रोग (टीबी) से बचाव के लिए भारत में जन्म के तुरंत बाद लाखों बच्चों को दिया जाने वाला बीसीजी का टीका कोरोना वायरस के खिलाफ लड़ाई में परिवर्तनकारी साबित हो सकता है.

न्यूयॉर्क इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एनवाईआईटी) का एक अध्ययन अभी प्रकाशित होने वाला है जिसमें इटली और अमेरिका का उदाहरण देते हुए राष्ट्रीय नीतियों के तहत कई देशों में लगाए जाने वाले बीसीजी के टीके और कोविड-19 के प्रभाव का आपस में संबंध बतााया गया है.

एनवाईआईटी में जैव चिकित्सा विज्ञान के सहायक प्रोफेसर गोंजालू ओेटाजू के नेतृत्व में जाने-माने अनुसंधानकर्ताओं ने कहा, 'हमने पाया कि जिन देशों में बीसीजी टीकाकरण की नीतियां नहीं हैं, वहां कोरोना वायरस से लोग बुरी तरह प्रभावित हुए हैं जैसे कि इटली, नीदरलैंड और अमेरिका. वहीं, उन देशों में लोगों पर कोरोना वायरस का ज्यादा असर नहीं पड़ा है जहां लंबे समय से बीसीजी टीकाकरण की नीतियां चली आ रही हैं.'

अमेरिका में कोरोना वायरस के लगभग 1,90,000 मामले सामने आए हैं और वहां चार हजार से अधिक लोगों की जान गई है. इटली में 1,05,000 मामले सामने आए हैं और 12 हजार से अधिक लोगों की जान गई है. वहीं, नीदरलैंड में 12 हजार से अधिक मामले सामने आए हैं और एक हजार से अधिक लोगों की मौत हुई है.

अध्ययन के अनुसार संक्रमण और मौतों की कम संख्या बीसीजी टीकाकरण को कोविड-19 के खिलाफ लड़ाई में एक 'गेम-चेंजर' बना सकती है.

बीसीजी टीका भारत के सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम का हिस्सा है और यह लाखों बच्चों को उनके जन्म के समय या इसके तुरंत बाद लगाया जाता है.

विश्व में सर्वाधिक टीबी रोगियों वाला देश होने के साथ भारत ने 1948 में बीसीजी टीकाकरण की शुरुआत की थी.

भारतीय विशेषज्ञों ने कहा कि वे आशावान हैं, लेकिन इस बारे में कुछ भी कहना बहुत जल्दबाजी होगा.

लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी, पंजाब के एप्लाइड मेडिकल साइंसेज संकाय की डीन मोनिका गुलाटी ने कहा, 'हर छोटी चीज हमें उम्मीद की किरण दिखाती है. लेकिन अभी कुछ कहना जल्दबाजी होगा. लेकिन यह सही बात है कि बीसीजी टीका सार्स संक्रमण के खिलाफ भी काफी प्रभावी रहा.'

उन्होंने कहा, 'यह न सिर्फ इलाज में, बल्कि तीव्रता को कम करने भी प्रभावी था.' गुलाटी ने रेखांकित किया कि सास्र वायरस भी एक तरह का 'कोरोना वायरस' ही है.

उन्होंने कहा, 'क्योंकि मौजूदा महामारी बीसीजी का टीका लगाने वाले देशों में कम गंभीर है और यह टीका दूसरे कोरोना वायरस के खिलाफ भी प्रभावी था, इसलिए यह एक उम्मीद की किरण है.'

कोलंबिया एशिया अस्पताल, गाजियाबाद के इंटरनल मेडिसिन विभाग के दीपक वर्मा ने कहा कि कोविड-19 के किसी टीके की अनुपस्थिति में यह एक उत्साहजनक घटनाक्रम है. यह समझने में कुछ समय लगेगा कि टीबी का टीका कोरोना वायरस के खिलाफ किस तरह काम करता है.

हैदराबाद स्थित सीएसआईआर सेंटर फॉर सेलुलर एंड मॉलीकुलर बॉयोलॉजी के निदेशक राकेश मिश्रा ने कहा कि एनवाईआईटी का अध्ययन रोचक है, लेकिन अधिक वैज्ञानिक ब्योरे की प्रतीक्षा है.

नई दिल्ली : अमेरिकी वैज्ञानिकों ने कहा है कि क्षय रोग (टीबी) से बचाव के लिए भारत में जन्म के तुरंत बाद लाखों बच्चों को दिया जाने वाला बीसीजी का टीका कोरोना वायरस के खिलाफ लड़ाई में परिवर्तनकारी साबित हो सकता है.

न्यूयॉर्क इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एनवाईआईटी) का एक अध्ययन अभी प्रकाशित होने वाला है जिसमें इटली और अमेरिका का उदाहरण देते हुए राष्ट्रीय नीतियों के तहत कई देशों में लगाए जाने वाले बीसीजी के टीके और कोविड-19 के प्रभाव का आपस में संबंध बतााया गया है.

एनवाईआईटी में जैव चिकित्सा विज्ञान के सहायक प्रोफेसर गोंजालू ओेटाजू के नेतृत्व में जाने-माने अनुसंधानकर्ताओं ने कहा, 'हमने पाया कि जिन देशों में बीसीजी टीकाकरण की नीतियां नहीं हैं, वहां कोरोना वायरस से लोग बुरी तरह प्रभावित हुए हैं जैसे कि इटली, नीदरलैंड और अमेरिका. वहीं, उन देशों में लोगों पर कोरोना वायरस का ज्यादा असर नहीं पड़ा है जहां लंबे समय से बीसीजी टीकाकरण की नीतियां चली आ रही हैं.'

अमेरिका में कोरोना वायरस के लगभग 1,90,000 मामले सामने आए हैं और वहां चार हजार से अधिक लोगों की जान गई है. इटली में 1,05,000 मामले सामने आए हैं और 12 हजार से अधिक लोगों की जान गई है. वहीं, नीदरलैंड में 12 हजार से अधिक मामले सामने आए हैं और एक हजार से अधिक लोगों की मौत हुई है.

अध्ययन के अनुसार संक्रमण और मौतों की कम संख्या बीसीजी टीकाकरण को कोविड-19 के खिलाफ लड़ाई में एक 'गेम-चेंजर' बना सकती है.

बीसीजी टीका भारत के सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम का हिस्सा है और यह लाखों बच्चों को उनके जन्म के समय या इसके तुरंत बाद लगाया जाता है.

विश्व में सर्वाधिक टीबी रोगियों वाला देश होने के साथ भारत ने 1948 में बीसीजी टीकाकरण की शुरुआत की थी.

भारतीय विशेषज्ञों ने कहा कि वे आशावान हैं, लेकिन इस बारे में कुछ भी कहना बहुत जल्दबाजी होगा.

लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी, पंजाब के एप्लाइड मेडिकल साइंसेज संकाय की डीन मोनिका गुलाटी ने कहा, 'हर छोटी चीज हमें उम्मीद की किरण दिखाती है. लेकिन अभी कुछ कहना जल्दबाजी होगा. लेकिन यह सही बात है कि बीसीजी टीका सार्स संक्रमण के खिलाफ भी काफी प्रभावी रहा.'

उन्होंने कहा, 'यह न सिर्फ इलाज में, बल्कि तीव्रता को कम करने भी प्रभावी था.' गुलाटी ने रेखांकित किया कि सास्र वायरस भी एक तरह का 'कोरोना वायरस' ही है.

उन्होंने कहा, 'क्योंकि मौजूदा महामारी बीसीजी का टीका लगाने वाले देशों में कम गंभीर है और यह टीका दूसरे कोरोना वायरस के खिलाफ भी प्रभावी था, इसलिए यह एक उम्मीद की किरण है.'

कोलंबिया एशिया अस्पताल, गाजियाबाद के इंटरनल मेडिसिन विभाग के दीपक वर्मा ने कहा कि कोविड-19 के किसी टीके की अनुपस्थिति में यह एक उत्साहजनक घटनाक्रम है. यह समझने में कुछ समय लगेगा कि टीबी का टीका कोरोना वायरस के खिलाफ किस तरह काम करता है.

हैदराबाद स्थित सीएसआईआर सेंटर फॉर सेलुलर एंड मॉलीकुलर बॉयोलॉजी के निदेशक राकेश मिश्रा ने कहा कि एनवाईआईटी का अध्ययन रोचक है, लेकिन अधिक वैज्ञानिक ब्योरे की प्रतीक्षा है.

Last Updated : Apr 3, 2020, 1:00 AM IST

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