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भारत-नेपाल विवाद से सीमावर्ती किसानों पर गहराया संकट

भारत और नेपाल के बीच पनपे सीमा विवाद का असर सीमा पर स्थित अलग-अलग हिस्सों में देखने को मिल रहा है. यहांं के किसानों के सामने ढेरों समस्याएं उत्पन्न हो गई हैं. पढ़ें स्पेशल रिपोर्ट..

farmers affected  by disputes with Nepal
प्रतीकात्मक तस्वीर
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Published : Jun 28, 2020, 4:39 PM IST

Updated : Jun 29, 2020, 11:55 AM IST

हैदराबाद : भारत और नेपाल के बीच उपजे सीमा विवाद का असर सीमा पर बसे दोनों देशों के किसानों पर साफ देखा जा रहा है. दोनों देशों के लोग दशकों तक रोटी और बेटी का संबंध साझा करते रहे हैं. इसके साथ ही आजीविका कमाने के लिए सीमा के दूसरी ओर काम करने भी जाते रहे हैं.

गत 12 जून को बिहार के सीतामढ़ी जिले में एक सीमा बिंदु के पास नेपाली पुलिस द्वारा एक भारतीय की हत्या कर दी गई थी. उस हमले में तीन अन्य घायल हो गए थे. 13 जून को नेपाल की संसद ने उत्तराखंड के क्षेत्रों कालापानी, लिंपियाधुरा और लिपुलेख को अपने क्षेत्र का हिस्सा बताते हुए एक नया नक्शा पास किया था. इन सीमा विवादों ने कई जिलों में सीमा के दोनों ओर स्थानीय लोगों, विशेषकर किसानों के लिए परेशानी का सबब बन गया है.

सीमा विवाद के चलते अलग-अलग तरीकों से प्रभावित विभिन्न जिलों के किसानों का राज्यवार ब्यौरा-

उत्तराखंड और पश्चिम बंगाल के किसान
पहले से ही कोविड महामारी ने आर्थिक स्थिति पर प्रभाव डाला था और अब नेपाल के साथ विवादास्पद क्षेत्रीय मानचित्र को लेकर तनाव है. अनानास पैदा करने वाले लगभग एक लाख किसान ज्यादातर पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग और उत्तरी दिनाजपुर जिलों में रहते हैं. वे बड़े पैमाने पर नुकसान उठा रहे हैं.

उत्तरी बंगाल में अनानास की खेती लगभग 25,000 हेक्टेयर में फैली हुई है. अकेले जून से अगस्त की अवधि में नेपाल को फल का निर्यात 4 करोड़ रुपये का है. काठमांडू के साथ बदलते समीकरण के मद्देनजर दार्जिलिंग में पणतंकी ट्रांजिट प्वॉइंट से ट्रकों द्वारा फल, सब्जियां, नमक और अन्य सामानों की आपूर्ति की पहले की तरह नेपाली बाजारों में रौनक नहीं हैं. बंगाल के किसान हालांकि लॉकडाउन के चलते शुरू में ही निराश थे.

पढ़ें- शाह की ललकार- 'संसद में आइए, 1962 से आज तक दो-दो हाथ हो जाए'

कोरोना महामारी और नेपाल के साथ हाल के विवादों से पहले हर दिन लगभग 40,000 अनानास सीमा पार भेजे जाते थे. आज के हालात में निर्यात बंद होने के काकण फल खेतों में सड़ रहे हैं या स्थानीय बाजार में छह-सात रुपये प्रति पीस बेचे जा रहे हैं. वही अनानास पहले 40-50 रुपये प्रति पीस मिलता था. अनानास की खेती शुरू से ही लाभदायक थी. बंगाल के अनानास की मांग सिर्फ नेपाल ही नहीं दिल्ली, लुधियाना, जालंधर, गुरुग्राम, गाजियाबाद और उत्तर प्रदेश और बिहार के अन्य हिस्सों में भी है.

पढ़ें: चीन के प्रोत्साहन से भारत को आंखें दिखा रहा नेपाल!

अनानास उत्पादकों के अलावा दार्जिलिंग जिले के पणतंकी, नक्सलबाड़ी और खारीबारी क्षेत्रों में सब्जियां उगाने वाले लगभग 20,000 किसान नेपाल में बाजार तलाशने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. लॉकडाउन ने पहले से ही वाहनों की आवाजाही और परिवहन लागत को प्रभावित किया है. नेपाल के साथ चल रहे तनाव ने सीमा पार व्यापार पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है.

उत्तर प्रदेश के किसानों के सामने मुसीबत
भारत और नेपाल के बीच बढ़ते तनाव के कारण महाराजगंज जिले में किसानों का एक समूह चिंतित हो गया है क्योंकि उसे नेपाल के रूपेंदी जिले में करौता क्षेत्र में स्थित अपनी कृषि भूमि पर खेती से गायब होने का डर है. ऐसे बहुत से किसान हैं, जो नेपाल की सीमा पर लगभग 20 किलोमीटर रूपेंदी और अन्य क्षेत्रों में कृषि भूखंडों के मालिक हैं. वैकल्पिक रूप से सीमा के दूसरी तरफ के किसान, जो नेपाल के नागरिक हैं, महाराजगंज और आसपास के क्षेत्रों में भी जमीन के मालिक हैं.

कोरोना महामारी के कारण हुए गत 25 मार्च से लागू लॉकडाउन ने 700 किलोमीटर लंबी अंतरराष्ट्रीय सीमा को सील कर दिया, तब से सीमा के दोनों ओर के लोगों की कोई आवाजाही नहीं हुई है और अब दोनों ओर तैनात सुरक्षाकर्मी लोगों की आवाजाही की अनुमति नहीं दे रहे हैं. सीमा पार आसपास के गांवों- जैसे खैरघाट, बटाई दिहा, एकडंगवा, खुरवा खुर्द, बगही, बरगदवा, जमुनियाहा और छपिया गांवों में स्थिति अलग नहीं है. ऐसे किसान, जिनके पास नेपाल में भूमि है. व्यवसाय करने के लिए सीमा पार करने के लिए बहुत उत्सुक हैं, जो सामान्य समय में उनके लिए एक सामान्य मामला रहा है.

भूटान पर पानी बंद करने का आरोप
चीन, पाकिस्तान और नेपाल के बाद अब भूटान ने भी भारत को परेशान करना शुरू कर दिया है. थिम्पू ने असम के पास भारत के साथ अपनी सीमा के साथ सिंचाई के लिए चैनल से पानी छोड़ना बंद कर दिया है, जिससे क्षेत्र के 25 गांवों में हजारों किसान प्रभावित हुए हैं.

पढ़ें : ओली को प्रचंड की चुनौती, कहा- नेपाल को पाकिस्तान नहीं बनने देंगे

गुवाहाटी में किसानों ने धान उगाने के लिए एक मानव निर्मित सिंचाई चैनल 'डोंग' से बहने वाले पानी को रोकने के खिलाफ प्रदर्शन किया. चैनल का उपयोग 1953 से भूटान और भारत के किसानों द्वारा किया जा रहा है. भूटानी सरकार द्वारा पानी की रोक लगाने से 25 गांवों के लोग प्रभावित हो रहे हैं.

बिहार के किसानों के सामने परेशानी
बिहार के सात जिलों में 6,164 गांवों के साथ नेपाल और बिहार एक 800 किलोमीटर लंबी सीमा साझा करते हैं. बिहार में रहने वाले लोगों के पास नेपाल में भूमि, दुकानें और अन्य संपत्तियां हैं, लेकिन बिहार के सीतामढ़ी जिले में भारत-नेपाल सीमा पर नेपाल पुलिस द्वारा गोलीबारी की घटना के बाद स्थिति काफी बदल गई. इससे पहले सीतामढ़ी के जानकी नगर और अन्य गांवों में क्षेत्रीय विवाद का कोई मतलब नहीं था. अकेले इस गांव में 500 से अधिक परिवारों के नेपाल में विवाह संबंध हैं. ऐसे परिवारों के लोगों ने गोलीबारी के बाद से एक-दूसरे देश का दौरा करना बंद कर दिया है.

किसान को प्रभावित करने वाला सीमा विवाद नया नहीं है. उदाहरण के लिए भारत-पाकिस्तान सीमा विवाद को देखें, जहां तरन तारन, अमृतसर, गुरदासपुर, पठानकोट, फिरोजपुर और फाजिल्का के 220 गांवों के किसानों के पास 553 किलोमीटर लंबी पंजाब की सीमा पर जमीन है. विभाजन के दौरान उन्हें 21,000 एकड़ भूमि खोनी पड़ी.

हैदराबाद : भारत और नेपाल के बीच उपजे सीमा विवाद का असर सीमा पर बसे दोनों देशों के किसानों पर साफ देखा जा रहा है. दोनों देशों के लोग दशकों तक रोटी और बेटी का संबंध साझा करते रहे हैं. इसके साथ ही आजीविका कमाने के लिए सीमा के दूसरी ओर काम करने भी जाते रहे हैं.

गत 12 जून को बिहार के सीतामढ़ी जिले में एक सीमा बिंदु के पास नेपाली पुलिस द्वारा एक भारतीय की हत्या कर दी गई थी. उस हमले में तीन अन्य घायल हो गए थे. 13 जून को नेपाल की संसद ने उत्तराखंड के क्षेत्रों कालापानी, लिंपियाधुरा और लिपुलेख को अपने क्षेत्र का हिस्सा बताते हुए एक नया नक्शा पास किया था. इन सीमा विवादों ने कई जिलों में सीमा के दोनों ओर स्थानीय लोगों, विशेषकर किसानों के लिए परेशानी का सबब बन गया है.

सीमा विवाद के चलते अलग-अलग तरीकों से प्रभावित विभिन्न जिलों के किसानों का राज्यवार ब्यौरा-

उत्तराखंड और पश्चिम बंगाल के किसान
पहले से ही कोविड महामारी ने आर्थिक स्थिति पर प्रभाव डाला था और अब नेपाल के साथ विवादास्पद क्षेत्रीय मानचित्र को लेकर तनाव है. अनानास पैदा करने वाले लगभग एक लाख किसान ज्यादातर पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग और उत्तरी दिनाजपुर जिलों में रहते हैं. वे बड़े पैमाने पर नुकसान उठा रहे हैं.

उत्तरी बंगाल में अनानास की खेती लगभग 25,000 हेक्टेयर में फैली हुई है. अकेले जून से अगस्त की अवधि में नेपाल को फल का निर्यात 4 करोड़ रुपये का है. काठमांडू के साथ बदलते समीकरण के मद्देनजर दार्जिलिंग में पणतंकी ट्रांजिट प्वॉइंट से ट्रकों द्वारा फल, सब्जियां, नमक और अन्य सामानों की आपूर्ति की पहले की तरह नेपाली बाजारों में रौनक नहीं हैं. बंगाल के किसान हालांकि लॉकडाउन के चलते शुरू में ही निराश थे.

पढ़ें- शाह की ललकार- 'संसद में आइए, 1962 से आज तक दो-दो हाथ हो जाए'

कोरोना महामारी और नेपाल के साथ हाल के विवादों से पहले हर दिन लगभग 40,000 अनानास सीमा पार भेजे जाते थे. आज के हालात में निर्यात बंद होने के काकण फल खेतों में सड़ रहे हैं या स्थानीय बाजार में छह-सात रुपये प्रति पीस बेचे जा रहे हैं. वही अनानास पहले 40-50 रुपये प्रति पीस मिलता था. अनानास की खेती शुरू से ही लाभदायक थी. बंगाल के अनानास की मांग सिर्फ नेपाल ही नहीं दिल्ली, लुधियाना, जालंधर, गुरुग्राम, गाजियाबाद और उत्तर प्रदेश और बिहार के अन्य हिस्सों में भी है.

पढ़ें: चीन के प्रोत्साहन से भारत को आंखें दिखा रहा नेपाल!

अनानास उत्पादकों के अलावा दार्जिलिंग जिले के पणतंकी, नक्सलबाड़ी और खारीबारी क्षेत्रों में सब्जियां उगाने वाले लगभग 20,000 किसान नेपाल में बाजार तलाशने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. लॉकडाउन ने पहले से ही वाहनों की आवाजाही और परिवहन लागत को प्रभावित किया है. नेपाल के साथ चल रहे तनाव ने सीमा पार व्यापार पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है.

उत्तर प्रदेश के किसानों के सामने मुसीबत
भारत और नेपाल के बीच बढ़ते तनाव के कारण महाराजगंज जिले में किसानों का एक समूह चिंतित हो गया है क्योंकि उसे नेपाल के रूपेंदी जिले में करौता क्षेत्र में स्थित अपनी कृषि भूमि पर खेती से गायब होने का डर है. ऐसे बहुत से किसान हैं, जो नेपाल की सीमा पर लगभग 20 किलोमीटर रूपेंदी और अन्य क्षेत्रों में कृषि भूखंडों के मालिक हैं. वैकल्पिक रूप से सीमा के दूसरी तरफ के किसान, जो नेपाल के नागरिक हैं, महाराजगंज और आसपास के क्षेत्रों में भी जमीन के मालिक हैं.

कोरोना महामारी के कारण हुए गत 25 मार्च से लागू लॉकडाउन ने 700 किलोमीटर लंबी अंतरराष्ट्रीय सीमा को सील कर दिया, तब से सीमा के दोनों ओर के लोगों की कोई आवाजाही नहीं हुई है और अब दोनों ओर तैनात सुरक्षाकर्मी लोगों की आवाजाही की अनुमति नहीं दे रहे हैं. सीमा पार आसपास के गांवों- जैसे खैरघाट, बटाई दिहा, एकडंगवा, खुरवा खुर्द, बगही, बरगदवा, जमुनियाहा और छपिया गांवों में स्थिति अलग नहीं है. ऐसे किसान, जिनके पास नेपाल में भूमि है. व्यवसाय करने के लिए सीमा पार करने के लिए बहुत उत्सुक हैं, जो सामान्य समय में उनके लिए एक सामान्य मामला रहा है.

भूटान पर पानी बंद करने का आरोप
चीन, पाकिस्तान और नेपाल के बाद अब भूटान ने भी भारत को परेशान करना शुरू कर दिया है. थिम्पू ने असम के पास भारत के साथ अपनी सीमा के साथ सिंचाई के लिए चैनल से पानी छोड़ना बंद कर दिया है, जिससे क्षेत्र के 25 गांवों में हजारों किसान प्रभावित हुए हैं.

पढ़ें : ओली को प्रचंड की चुनौती, कहा- नेपाल को पाकिस्तान नहीं बनने देंगे

गुवाहाटी में किसानों ने धान उगाने के लिए एक मानव निर्मित सिंचाई चैनल 'डोंग' से बहने वाले पानी को रोकने के खिलाफ प्रदर्शन किया. चैनल का उपयोग 1953 से भूटान और भारत के किसानों द्वारा किया जा रहा है. भूटानी सरकार द्वारा पानी की रोक लगाने से 25 गांवों के लोग प्रभावित हो रहे हैं.

बिहार के किसानों के सामने परेशानी
बिहार के सात जिलों में 6,164 गांवों के साथ नेपाल और बिहार एक 800 किलोमीटर लंबी सीमा साझा करते हैं. बिहार में रहने वाले लोगों के पास नेपाल में भूमि, दुकानें और अन्य संपत्तियां हैं, लेकिन बिहार के सीतामढ़ी जिले में भारत-नेपाल सीमा पर नेपाल पुलिस द्वारा गोलीबारी की घटना के बाद स्थिति काफी बदल गई. इससे पहले सीतामढ़ी के जानकी नगर और अन्य गांवों में क्षेत्रीय विवाद का कोई मतलब नहीं था. अकेले इस गांव में 500 से अधिक परिवारों के नेपाल में विवाह संबंध हैं. ऐसे परिवारों के लोगों ने गोलीबारी के बाद से एक-दूसरे देश का दौरा करना बंद कर दिया है.

किसान को प्रभावित करने वाला सीमा विवाद नया नहीं है. उदाहरण के लिए भारत-पाकिस्तान सीमा विवाद को देखें, जहां तरन तारन, अमृतसर, गुरदासपुर, पठानकोट, फिरोजपुर और फाजिल्का के 220 गांवों के किसानों के पास 553 किलोमीटर लंबी पंजाब की सीमा पर जमीन है. विभाजन के दौरान उन्हें 21,000 एकड़ भूमि खोनी पड़ी.

Last Updated : Jun 29, 2020, 11:55 AM IST
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