आज की प्रेरणा: जो भी भक्तिपूर्वक परमात्मा की सेवा करता है, वह उनका मित्र है
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बुद्धि, ज्ञान, संशय तथा मोह से मुक्ति, क्षमा भाव, सत्यता, इन्द्रियनिग्रह, मननिग्रह, सुख तथा दुख, जन्म, मृत्यु, भय, अभय, अहिंसा, समता, तुष्टि, तप, दान, यश तथा अपयश – जीवों के ये विविध गुण मेरे ही द्वारा उत्पन्न हैं. जो व्यक्ति भक्ति के अमर पथ का अनुसरण करते हैं और जो परमात्मा को ही अपना परम लक्ष्य बना कर श्रद्धा सहित पूर्णरूपेण संलग्न रहते हैं, वे भक्त परमात्मा को अत्यधिक प्रिय हैं. शुद्ध भक्तों के विचार परमात्मा में वास करते हैं, उनका जीवन परमात्मा की सेवा में समर्पित रहता है और वे एक दूसरे को ज्ञान प्रदान करते तथा परमात्मा के विषय में बातें करते हुए परम संतोष तथा आनन्द का अनुभव करते हैं. जो प्रेम पूर्वक परमात्मा की सेवा करने में निरंतर लगे रहते हैं, उन्हें परमात्मा ज्ञान प्रदान करते हैं, जिसके द्वारा वे परमात्मा तक पहुंच सकते हैं. जिस प्रकार सर्वत्र प्रवाहमान प्रबल वायु सदैव आकाश में स्थित रहती है, उसी प्रकार समस्त उत्पन्न प्राणियों को परमात्मा में स्थित जानो. देवताओं को पूजने वाले देवताओं के बीच जन्म लेंगे. पितरों को पूजने वाले पितरों के पास जाते हैं. भूत-प्रेतों को पूजने वाले, उन्हीं के बीच जन्म लेते हैं और जो परमात्मा की पूजा करते हैं वे परमात्मा के साथ निवास करते हैं. यदि कोई प्रेम तथा भक्ति के साथ परमात्मा को पत्र, पुष्प, फल या जल प्रदान करता है, तो परमात्मा उसे स्वीकार करते हैं. मनुष्य जो कुछ करता है, जो कुछ खाता है, जो दान देता है और जो भी तपस्या करता है, उसे परमात्मा को समर्पित करते हुए करना चाहिए. परमात्मा न तो किसी से द्वेष करते हैं और न ही किसी के साथ पक्षपात. वो सब के लिए समभाव हैं . किन्तु जो भी भक्तिपूर्वक परमात्मा की सेवा करता है, वह उनका मित्र है, उन्हीं में स्थित रहता है और परमात्मा भी उसके मित्र हैं. जो लोग परमात्मा की शरण ग्रहण करते हैं, वे भले ही निम्न जन्मा स्त्री, व्यापारी तथा श्रमिक क्यों न हों, वे परमधाम को प्राप्त करते हैं. जो लोग अनन्य भाव से परमात्मा का ध्यान करते हैं, उनकी आवश्यकताएँ परमात्मा पूरी करते हैं और जो कुछ उनके पास है, उसकी रक्षा भी करते हैं.