आज की प्रेरणा
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कर्म की बारीकियों को समझना अत्यन्त कठिन है. अतः मनुष्य को चाहिए कि वह यह ठीक से जाने कि कर्म क्या है, विकर्म क्या है और अकर्म क्या है. सम्पूर्ण कर्म सब प्रकार से प्रकृति के गुणों द्वारा किये जाते हैं; परन्तु अहंकार से मोहित अन्तःकरण वाला अज्ञानी मनुष्य 'मैं कर्ता हूँ' -- ऐसा मान लेता है. कर्मयोग से सिद्ध हुए महापुरुष का इस संसार में कर्म करने और कर्म न करने का कोई प्रयोजन नहीं रहता है, तथा किसी भी प्राणी पर किञ्चिन्मात्र भी आश्रित नहीं रहता है. अनेकों विद्वान क्षत्रिय राजा, महापुरुष कर्मों द्वारा ही मोक्ष प्राप्ति के लिये प्रवृत्त हुए थे, इसलिए निष्काम भाव से कर्म करो. कर्मफल में आसक्त हुए बिना मनुष्य को अपना कर्तव्य समझ कर निरन्तर कर्म करते रहना चाहिए क्योंकि अनासक्त होकर कर्म करने से परब्रह्म (परम) की प्राप्ति होती है. महापुरुष अपने अनुसरणीय कार्यों से जो आदर्श प्रस्तुत करता है, सम्पूर्ण विश्व उसका अनुसरण करने का प्रयास करता है. विद्वान महापुरुषों को चाहिए कि वे लोक कल्याण की इच्छा से लोगों को उचित पथ पर ले जाने के लिए अनासक्त होकर कार्य करें. प्रकृतिजन्य गुणों से अत्यन्त मोहित हुए अज्ञानी मनुष्य गुणों और कर्मों में आसक्त रहते हैं. लेकिन पूर्ण ज्ञान प्राप्त पुरुष, उन मंदबुद्धि पुरुषों को आसक्त ही रहने दें. जो मनुष्य इस लोक में परम्परा से प्रचलित सृष्टि चक्र के अनुसार नहीं चलता, वह इन्द्रियों के द्वारा भोगों में रमण करने वाला, पापमय जीवन बिताने वाला संसार में व्यर्थ ही जीता है. ज्ञानी पुरुष, कर्मों में आसक्त अज्ञानियों की बुद्धि में भ्रम उत्पन्न न करे. बल्कि स्वयं भक्ति भाव से कर्म करते हुए उनसे भी वैसा ही कराए. भक्ति भावमय कर्म तथा सकाम कर्म के भेद को भलीभाँति जानते हुए जो परम सत्य को जानने वाला है, वह कभी भी अपने आपको इन्द्रियों में तथा इन्द्रिय तृप्ति में नहीं लगाता. यहां आपको हर रोज मोटिवेशनल सुविचार पढ़ने को मिलेंगे. जिनसे आपको प्रेरणा मिलेगी.