कोविड-19 के चलते दुनिया भर में एक युद्ध जैसी स्थिति उत्पन्न हो गई है. इसमें चिकित्सक की भूमिका सरहद पर लड़ रहे फौजी की भांति हो गई है. जहां शारीरिक स्वास्थ्य को लेकर कार्य कर रहे चिकित्सा कर्मी लोगों को संक्रमण से दूर रखने तथा संक्रमित लोगों को ठीक करने के लिए एक अलग जंग लड़ रहे हैं. वहीं मनोचिकित्सकों के लिए भी स्थितियां बहुत ही चुनौतीपूर्ण रही है. कोरोना के डर और उसके चलते पैदा हुई लोगों में अनिश्चितता की भावना के कारण उनकी मानसिक स्थिति पर काफी नकारात्मक असर पड़ा है. लेकिन इस संकट काल के कारण जरूरत होने के बावजूद विपरीत परिस्थितियों और लॉकडाउन के चलते मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं पर काफी असर पड़ा है. विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की ओर से जारी एक रिपोर्ट के अनुसार कोविड-19 महामारी ने दुनियाभर के 93 फीसदी देशों में मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं को गंभीर रूप से प्रभावित किया है.
मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं पर डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट
डब्ल्यूएचओ की ओर से जून से अगस्त के बीच 130 देशों में एक सर्वे कराया गया था, जिसकी रिपोर्ट के अनुसार करीब एक तिहाई (35 फीसदी) देशों के मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं में व्यवधान की सूचना मिली है. रिपोर्ट के अनुसार इस दौर में मानसिक और न्यूरोलॉजिकल विकारों से जूझ रहे रोगियों को दवाएं तक मिलने में दिक्कत हुई. इसके साथ ही सर्वे में शामिल कम से कम 60 फीसदी देशों में कमजोर या संवेदनशील लोगों के लिए मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं में बाधा देखी गई.
परामर्श और मनोचिकित्सीय सेवाओं पर असर
कोविड-19 के चलते हमारे देश में भी बड़े स्तर पर परामर्श और मनोचिकित्सा सेवाएं प्रभावित हुई. मनोचिकित्सक डॉक्टर वीणा कृष्णन डब्ल्यूएचओ की इस रिपोर्ट को बिल्कुल सही बताते हुए कहती हैं कि कोरोना काल में लोगों के मानसिक स्वास्थ्य पर बहुत असर पड़ा है, लेकिन समय, काल और परिस्थिति के चलते चिकित्सकों के लिए उनके हर मरीज की मदद कर पाना संभव नहीं हो सका.
लॉकडाउन और बंदी के चलते मरीज चिकित्सकों के पास परामर्श के लिए नहीं जा सके. हालांकि इस दौरान कई चिकित्सकों ने टेलीफोन के माध्यम से तथा ऑनलाइन सेशन के माध्यम से मरीजों की मदद करने का प्रयास किया, परंतु मानसिक अस्वस्थता एक ऐसी विधा है, जहां बगैर प्रत्यक्ष रूप से मरीज का निरीक्षण किए बिना उसकी मदद करना कठिन होता है. ऐसे में फोन द्वारा काउंसलिंग तथा ऑनलाइन लाइव सेशन के बहुत ज्यादा सफल परिणाम सामने नहीं आ सके.
चिकित्सकों के रोजगार पर असर
डॉक्टर कृष्णन बताती है कि जहां कोविड-19 मानसिक परेशानियों तथा मानसिक रोगों से जूझ रहे मरीजों पर भारी रहा, वहीं चिकित्सकों के लिए भी यह परिस्थितियां काफी चुनौतीपूर्ण रही हैं. विशेष तौर पर निजी प्रैक्टिस कर रहे चिकित्सकों के लिए यह समय काफी संघर्षपूर्ण और भारी रहा है, क्योंकि मरीजों की प्रत्यक्ष उपस्थिति में कमी के चलते उनके रोजगार पर काफी असर पड़ा. वहीं कई ऐसे भी मामले आए, जहां छोटे क्लीनिक चलाने वाले चिकित्सकों ने अनिश्चित भविष्य की आशंका के चलते अपनी जान स्वयं ले ली. यह परिस्थिति सिर्फ मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े चिकित्सकों के लिए ही नहीं बल्कि चिकित्सा क्षेत्र की विभिन्न विधाओं से जुड़े लोगों तथा स्वास्थ्य कर्मियों के लिए भी भारी रही है.
चिकित्सकों पर बढ़ा मानसिक दबाव
कोविड-19 के चलते सामान्य जन से ज्यादा मानसिक दबाव चिकित्सकों ने झेला है. डॉक्टर कृष्णन बताती हैं संक्रमित लोगों के संपर्क में रहने के चलते कोरोनावायरस का खतरा सबसे अधिक चिकित्सकों पर ही रहा है. वहीं इस बीमारी के कारण कई साथी डॉक्टरों के जान गवाने के चलते भी चिकित्सक भारी मानसिक दबाव का सामना करते रहे हैं. लगातार चल रही ड्यूटी के चलते लंबे समय तक परिजनों से ना मिल पाना, कार्य का अत्याधिक दबाव, ड्यूटी पर कोरोनावायरस के चलते विशेष सूट तथा मास्क पहनकर कार्य करना आदि बहुत से कारण है, जिन्होंने चिकित्सकों के मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित किया है. यही नहीं इन परिस्थितियों से उत्पन्न हुए अवसाद के चलते भी कई चिकित्सकों तथा स्वास्थ्य कर्मियों ने अपनी जान दे दी.