ETV Bharat / sukhibhava

विश्व कुष्ठ रोग उन्मूलन दिवस: समय पर जांच जरूरी

author img

By

Published : Jan 30, 2021, 7:00 AM IST

हर साल पूरे विश्व में जनवरी के आखिरी रविवार को 'विश्व कुष्ठ रोग उन्मूलन दिवस' मनाया जाता है. इस वर्ष पूरे विश्व में 31 जनवरी को यह विशेष दिवस मनाया जा रहा है. लेकिन भारत में प्रत्येक वर्ष 30 जनवरी को महात्मा गांधी की पुण्यतिथि के अवसर पर 'विश्व कुष्ठ उन्मूलन दिवस' मनाया जाता है.

World Leprosy Day
विश्व कुष्ठ रोग उन्मूलन दिवस

वर्ष 1953 में कुष्ठ रोग को लेकर लोगों में जन जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से फ्रांसीसी मानवीय राउल फोलेरो ने पहली बार 'विश्व कुष्ठ रोग उन्मूलन दिवस' की शुरुआत की थी. कुष्ठ रोग को दूर करने तथा उसके रोगियों की बेहतर अवस्था के लिए राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने विशेष प्रयास किए थे, इसीलिए उनकी पुण्यतिथि पर उन्हें श्रद्धांजलि देने के उद्देश्य से हमारे देश में 30 जनवरी को 'कुष्ठ रोग उन्मूलन दिवस' मनाया जाता है.

'हैनसेन रोग' नाम से भी प्रचलित इस रोग के बारे में वर्ष 2019 में डब्ल्यूएचओ ने एक वक्तव्य जारी किया था की प्रति वर्ष दुनिया भर में लेपरेसी के लगभग दो लाख मामले सामने आते है, जिनमें से आधे से अधिक भारत में आते है. वहीं 2018 में डब्ल्यूएचओ की ओर से ही आंकड़े जारी कर बताया गया की उक्त वर्ष में दुनिया के 159 देशों में कुष्ठ रोग के 2,08,619 मामले संज्ञान में आए थे.

क्या है कुष्ठ रोग?

कुष्ठ रोग एक संक्रमण है, जिसका असर रोगी के तंत्रिका तंत्र, श्वसन तंत्र, त्वचा तथा आंखों पर पड़ता है. यह रोग मायकोबैक्टीरियम लैप्री नामक जीवाणु के कारण होता है. यू तो कुष्ठ रोग बहुत ज्यादा संक्रामक नहीं है, लेकिन मरीज के साथ लगातार संपर्क में रहने तथा लापरवाही बरतने से यह संक्रमण फैलने की आशंका होती है. दरअसल इस रोग में रोगी के खांसने या छींकने पर उसके श्वसन तंत्र से निकलने वाले पानी की बूंदों में लेप्रे बैक्टीरिया होते हैं. ये बैक्टीरिया हवा के साथ मिलकर दूसरे व्यक्ति के शरीर में पहुंच जाते हैं. कुष्ठ का पहला स्टेज ट्यूबरक्लोइड कहलाता है. जिसमें लेप्रे बैक्टीरिया शरीर के हाथ, पैर, मुंह जैसे अंगों और उनकी गौण तंत्रिकाओं को प्रभावित करने लगता है. इस अवस्था में त्वचा में रक्त तथा ऑक्सीजन की कमी होने लगती है और प्रभावित अंग सुन्न होने लगते हैं. शुरुआती स्तर पर कुष्ठ रोग के लक्षणों की अनदेखी से रोगी अपंगता का भी शिकार हो सकता हैं.

कुष्ठ रोग के लक्षण तथा शरीर पर प्रभाव

कुष्ठ रोग हमारी त्वचा के साथ, हमारी परिधीय तंत्रिकाओं तथा श्लेष्मा झिल्ली को प्रभावित करता है. रोग नियंत्रण तथा बचाव केंद्र (सीडीसी) के अनुसार कुष्ठ रोग के लक्षण तथा उसके हमारे शरीर पर प्रभाव इस प्रकार है.

1. त्वचा पर हल्के रंग के पैच

यह रोग होने पर त्वचा पर हल्के रंग के संवेदना रहित यानी सुन्न पैच पड़ने लगते हैं. ध्यान ना देने पर यह पैच आकार में बढ़ने तथा शरीर के अन्य अंगों की त्वचा पर भी फैलने लगते है. ज्यादातर मामलों में पैच वाली त्वचा खुश्क तथा सख्त होने लगती है. पैच वाले स्थानों पर रोगी को चोट के दर्द का भी एहसास नहीं होता है.

2. आंखों पर प्रभाव

कुष्ठ रोग के जीवाणु यदि आंख के अंदर चले जाते हैं, तो आंख का अंदरूनी हिस्सा काफी ज्यादा प्रभावित होता है, आंखों में लालिमा आ जाती है तथा दर्द होने लगता है. इस अवस्था में कई बार आंखों में अल्सर भी हो सकता है, जिससे कॉर्निया सफेद हो जाता है. और यहां तक की व्यक्ति को दिखाई देना भी बंद हो जाता है. इस स्थिति को आईराईटिस भी कहा जाता है. कई बार लेप्री जीवाणु आंख की पुतलियों की नसों को अपनी चपेट में ले लेता है, जिससे रोगी को पलके झपकने में समस्या होने लगती है.

3. तंत्रिका संबंधी

कुष्ठ रोग में हमारी तंत्रिकाओं को काफी नुकसान पहुंचता है. त्वचा पर संवेदनाहीन पैच बनने के अलावा मांसपेशियों में दर्द या पक्षाघात, घुटने या कोहनी के पास वाली तंत्रिकाओं के आकार में बदलाव आने लगता है.

इनके अतिरिक्त लगातार नाक बहना तथा नाक से खून निकालना भी कुष्ठ रोग के लक्षणों में शामिल है. इस रोग की जटिलता बढ़ने पर रोगी में बांझपन, नपुंसकता, किडनी खराब होना, सिर के अलावा भौंहों तथा पलकों के बालों के झड़ने जैसी समस्या के अलावा हमारी तंत्रिकाओं को स्थाई क्षति भी हो सकती है.

उपचार

हमारे देश में कुष्ठ रोग को लेकर काफी बड़े स्तर पर अभियान चलाया जाता है. नेशनल हेल्थ पोर्टल (एनपीएच) के तत्वावधान में सरकारी दवाखानों में कुष्ठ रोग का निशुल्क इलाज किया जाता है. विश्व स्तर पर बात करें तो दुनिया के लगभग सभी देशों में कुष्ठ रोग का इलाज मुफ्त ही किया जाता है.

कुष्ठ रोग के लिए मल्टी ड्रग थेरेपी (एमडीएच) यानि एक से अधिक दवाइयों के मेल के जरिए कुष्ठ रोग का इलाज किया जाता है. जो कई बार छः महीने से लेकर दो साल तक भी चल सकता है. इस रोग से पूरी तरह से छुटकारा तभी संभव है, जब चिकित्सक के निर्देशानुसार मल्टी ड्रग थेरेपी में दवाइयों का कोर्स पूरा किया जाए.

वर्ष 1953 में कुष्ठ रोग को लेकर लोगों में जन जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से फ्रांसीसी मानवीय राउल फोलेरो ने पहली बार 'विश्व कुष्ठ रोग उन्मूलन दिवस' की शुरुआत की थी. कुष्ठ रोग को दूर करने तथा उसके रोगियों की बेहतर अवस्था के लिए राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने विशेष प्रयास किए थे, इसीलिए उनकी पुण्यतिथि पर उन्हें श्रद्धांजलि देने के उद्देश्य से हमारे देश में 30 जनवरी को 'कुष्ठ रोग उन्मूलन दिवस' मनाया जाता है.

'हैनसेन रोग' नाम से भी प्रचलित इस रोग के बारे में वर्ष 2019 में डब्ल्यूएचओ ने एक वक्तव्य जारी किया था की प्रति वर्ष दुनिया भर में लेपरेसी के लगभग दो लाख मामले सामने आते है, जिनमें से आधे से अधिक भारत में आते है. वहीं 2018 में डब्ल्यूएचओ की ओर से ही आंकड़े जारी कर बताया गया की उक्त वर्ष में दुनिया के 159 देशों में कुष्ठ रोग के 2,08,619 मामले संज्ञान में आए थे.

क्या है कुष्ठ रोग?

कुष्ठ रोग एक संक्रमण है, जिसका असर रोगी के तंत्रिका तंत्र, श्वसन तंत्र, त्वचा तथा आंखों पर पड़ता है. यह रोग मायकोबैक्टीरियम लैप्री नामक जीवाणु के कारण होता है. यू तो कुष्ठ रोग बहुत ज्यादा संक्रामक नहीं है, लेकिन मरीज के साथ लगातार संपर्क में रहने तथा लापरवाही बरतने से यह संक्रमण फैलने की आशंका होती है. दरअसल इस रोग में रोगी के खांसने या छींकने पर उसके श्वसन तंत्र से निकलने वाले पानी की बूंदों में लेप्रे बैक्टीरिया होते हैं. ये बैक्टीरिया हवा के साथ मिलकर दूसरे व्यक्ति के शरीर में पहुंच जाते हैं. कुष्ठ का पहला स्टेज ट्यूबरक्लोइड कहलाता है. जिसमें लेप्रे बैक्टीरिया शरीर के हाथ, पैर, मुंह जैसे अंगों और उनकी गौण तंत्रिकाओं को प्रभावित करने लगता है. इस अवस्था में त्वचा में रक्त तथा ऑक्सीजन की कमी होने लगती है और प्रभावित अंग सुन्न होने लगते हैं. शुरुआती स्तर पर कुष्ठ रोग के लक्षणों की अनदेखी से रोगी अपंगता का भी शिकार हो सकता हैं.

कुष्ठ रोग के लक्षण तथा शरीर पर प्रभाव

कुष्ठ रोग हमारी त्वचा के साथ, हमारी परिधीय तंत्रिकाओं तथा श्लेष्मा झिल्ली को प्रभावित करता है. रोग नियंत्रण तथा बचाव केंद्र (सीडीसी) के अनुसार कुष्ठ रोग के लक्षण तथा उसके हमारे शरीर पर प्रभाव इस प्रकार है.

1. त्वचा पर हल्के रंग के पैच

यह रोग होने पर त्वचा पर हल्के रंग के संवेदना रहित यानी सुन्न पैच पड़ने लगते हैं. ध्यान ना देने पर यह पैच आकार में बढ़ने तथा शरीर के अन्य अंगों की त्वचा पर भी फैलने लगते है. ज्यादातर मामलों में पैच वाली त्वचा खुश्क तथा सख्त होने लगती है. पैच वाले स्थानों पर रोगी को चोट के दर्द का भी एहसास नहीं होता है.

2. आंखों पर प्रभाव

कुष्ठ रोग के जीवाणु यदि आंख के अंदर चले जाते हैं, तो आंख का अंदरूनी हिस्सा काफी ज्यादा प्रभावित होता है, आंखों में लालिमा आ जाती है तथा दर्द होने लगता है. इस अवस्था में कई बार आंखों में अल्सर भी हो सकता है, जिससे कॉर्निया सफेद हो जाता है. और यहां तक की व्यक्ति को दिखाई देना भी बंद हो जाता है. इस स्थिति को आईराईटिस भी कहा जाता है. कई बार लेप्री जीवाणु आंख की पुतलियों की नसों को अपनी चपेट में ले लेता है, जिससे रोगी को पलके झपकने में समस्या होने लगती है.

3. तंत्रिका संबंधी

कुष्ठ रोग में हमारी तंत्रिकाओं को काफी नुकसान पहुंचता है. त्वचा पर संवेदनाहीन पैच बनने के अलावा मांसपेशियों में दर्द या पक्षाघात, घुटने या कोहनी के पास वाली तंत्रिकाओं के आकार में बदलाव आने लगता है.

इनके अतिरिक्त लगातार नाक बहना तथा नाक से खून निकालना भी कुष्ठ रोग के लक्षणों में शामिल है. इस रोग की जटिलता बढ़ने पर रोगी में बांझपन, नपुंसकता, किडनी खराब होना, सिर के अलावा भौंहों तथा पलकों के बालों के झड़ने जैसी समस्या के अलावा हमारी तंत्रिकाओं को स्थाई क्षति भी हो सकती है.

उपचार

हमारे देश में कुष्ठ रोग को लेकर काफी बड़े स्तर पर अभियान चलाया जाता है. नेशनल हेल्थ पोर्टल (एनपीएच) के तत्वावधान में सरकारी दवाखानों में कुष्ठ रोग का निशुल्क इलाज किया जाता है. विश्व स्तर पर बात करें तो दुनिया के लगभग सभी देशों में कुष्ठ रोग का इलाज मुफ्त ही किया जाता है.

कुष्ठ रोग के लिए मल्टी ड्रग थेरेपी (एमडीएच) यानि एक से अधिक दवाइयों के मेल के जरिए कुष्ठ रोग का इलाज किया जाता है. जो कई बार छः महीने से लेकर दो साल तक भी चल सकता है. इस रोग से पूरी तरह से छुटकारा तभी संभव है, जब चिकित्सक के निर्देशानुसार मल्टी ड्रग थेरेपी में दवाइयों का कोर्स पूरा किया जाए.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.