शुरुआत से ही दिव्यांगता को हमारे समाज में एक कलंक की तरह देखा जाता था. एक ऐसा अभिशाप जहां दिव्यांग को कोई भी कार्य करने के लायक नहीं माना जाता था और समाज में हीनभावना व बेचारगी की भावना से देखा जाता था. लेकिन बदलते समय के साथ दिव्यांगता ने शारीरिक अक्षमता तथा विकलांग शब्द ने दिव्यांग तक का सफर तय किया है.
विभिन्न सरकारी तथा गैर सरकारी संगठनों द्वारा चलाई जा रही विभिन्न योजनाओं और प्रयासों का नतीजा है की आज बड़ी संख्या में शारीरिक रूप से अक्षम लोग विभिन्न क्षेत्रों में अपने पांव पर खड़े है. इसी सफर को सराहने और शारीरिक व मानसिक रूप से अक्षम लोगों को समाज में सम्मानित स्थान और आत्मनिर्भर भविष्य देने के उद्देश्य से हर साल दुनिया भर में 'विश्व दिव्यांग दिवस' का आयोजन किया जाता है. इस वर्ष का थीम है, 'विकलांगता-समावेशी, सुलभ और टिकाऊ पोस्ट कोविड-19 दुनिया की ओर बेहतर निर्माण'.
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I take this issue of disability inclusion extremely seriously.
— António Guterres (@antonioguterres) November 30, 2020 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data="
Securing equal rights for persons with disabilities is enshrined in the values of the @UN Charter and a core promise of the #GlobalGoals: to leave no one behind. https://t.co/aSq9MteCTj pic.twitter.com/4nHyDRn9TC
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— António Guterres (@antonioguterres) November 30, 2020
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विश्व दिव्यांग दिवस का इतिहास और उद्देश्य
दिव्यांगता से अभिशाप का ठप्पा हटाने के उद्देश्य से वर्ष 1976 में संयुक्त राष्ट्र आम सभा ने पहला कदम उठाया था. जिसके बाद वर्ष 1981 को 'दिव्यांगजनों के अंतरराष्ट्रीय वर्ष' के रुप में मनाए जाने की घोषणा करके. इस अवसर पर अंतरराष्ट्रीय, राष्ट्रीय और क्षेत्रीय स्तर पर दिव्यांगजनों के लिये पुनरुद्धार, रोकथाम, प्रचार और बराबरी के मौकों पर जोर देने के लिये योजनाएं बनायी गयी थी. जिसके उपरांत संयुक्त राष्ट्र आम सभा ने वर्ष 1983 से 1992 को 'दिव्यांग व्यक्तियों के संयुक्त राष्ट्र दशक' के रुप में मनाए जाने की घोषणा की थी. वर्ष 1992 से पूरी दुनिया में 3 दिसंबर को विश्व दिव्यांग दिवस के रूप में मनाया जाता है.
विश्व दिव्यांगता दिवस को मनाने का मुख्य उद्देश्य दिव्यांगजनों के अक्षमता के मुद्दे की ओर लोगों की जागरुकता और समझ को बढ़ाना है. इसके अलावा विश्व दिव्यांग दिवस को मनाए जाने के अन्य उद्देश्य इस प्रकार हैं;
⦁ दिव्यंगों से जुड़े मुद्दों और समस्याओं को लेकर लोगों को जागरूक करना.
⦁ उनके आत्म-सम्मान, लोक-कल्याण और सुरक्षा के लिए योजना निर्माण करना.
⦁ इस बात का निरीक्षण करना की सरकारी व गैर सरकारी संस्थाओं द्वारा योजनाओं का संचालन तथा पालन सही तरीके से हो रहा है.
⦁ समाज में दिव्यांगों की भूमिका को बढ़ावा देना और गरीबी घटाना, बराबरी का मौका प्रदान कराना, उचित पुनर्सुधार के साथ उन्हें सहायता देना.
⦁ उनके स्वास्थ्य, सेहत, शिक्षा और सामाजिक प्रतिष्ठा पर ध्यान केन्द्रित करना.
भारत में दिव्यांगों से जुड़े कानून
समाज में दिव्यांगों की बेहतर स्तिथि को सुनिश्चित करने के लिए पूरी दुनिया में विभिन्न प्रकार के कानून बनाए तथा लागू किए गए है. भारत भी इसका कोई अपवाद नहीं है. भारत सरकार ने भी इस संबंध में कई कानून बनाए हैं, जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं;
⦁ दिव्यांग व्यक्ति (समान अवसर, अधिकार सुरक्षा और पूर्ण भागीदारी) अधिनियम, 1995 जिसका उद्देश्य शारीरिक रूप से अपंग व्यक्तियों को शिक्षा व रोजगार के अवसर प्रदान करने के लिए अवरोधमुक्त वातावरण का निर्माण करना तथा उन्हें सामजिक सुरक्षा इत्यादि प्रदान करना है.
⦁ स्वलीनता, प्रमस्तिस्क पक्षाघात, मानसिक मंदबुद्धि एवं बहुदिव्यांगता के लिए राष्ट्रीय कल्याण अधिनियम, 1999 जिसमें दिव्यांगों को कानूनी सुरक्षा प्रदान करना तथा उनके स्वतंत्र जीवन के लिए सहज रूप से सम्भवत वातावरण निर्माण का प्रावधान है.
⦁ भारतीय पुनर्वास अधिनियम, 1992 जिसमें दिव्यांगों के पुनर्वास के लिए प्रावधान दिए गये है.