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World Breastfeeding Week : जानिए स्तनपान के दौरान क्या-क्या सावधानियां हैं जरूरी - विश्व स्तनपान सप्ताह

इन दिनों विश्व स्तानपान सप्ताह चल रहा है. स्तनपान पर बच्चों भर के स्वास्थ्य का भविष्य निर्भर करता है. लगभग सभी मां अपने बच्चों को स्तनपान कराती है. स्तनपान के दौरान कौन-कौन सी सावधानी रखना चाहिए यह जानना जरूरी है. पढ़ें पूरी खबर..

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विश्व स्तनपान सप्ताह
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Published : Jul 30, 2023, 3:56 PM IST

हैदराबाद : बच्चे को जन्म देना एक जटिल प्रक्रिया है तथा इसे महिला के लिए भी एक नया जन्म माना जाता है. बच्चे का जन्म उसकी मां के लिए खुशी का मौका होता है, लेकिन बच्चे के जन्म से लेकर शुरुआती सालों में उसका पालन पोषण सरल नहीं होता है. ऐसे में माता को बहुत सी सावधानियों का ध्यान रखना पड़ता है. खासतौर पर पहली बार मां बनने वाली महिलाओं के लिए समस्याएं कई बार ज्यादा बढ़ जाती है. इन समस्याओं में स्तनपान से जुड़ी समस्याएं भी शामिल हो सकती हैं.

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विश्व स्तनपान सप्ताह

पांच महीने व ढाई साल की आयु वाले दो बच्चों की माता रेणुका भारती को अपनी पहली डिलीवरी के बाद स्तनपान से जुड़ी कुछ ऐसी समस्याओं का सामना करना पड़ा था जिनके कारण ना सिर्फ उन्हे बल्कि उनके बेटे को भी कुछ स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ गया था. वह बताती हैं कि उस समय उन्हे ना सिर्फ निप्पल में बल्कि स्तनों में भी काफी दर्द रहता था. बाद में उन्हे पता चल कि उनके स्तन में दूध की गांठे पड़ गई थी जिनमें संक्रमण हो गया था. इसका असर ना सिर्फ उनके स्वास्थ्य पर बल्कि उनके बेटे के स्वास्थ्य पर भी काफी नजर आया था. वह बताती हैं कि अपने पहले अनुभव से सबक लेकर उन्होंने अपने दूसरे बच्चे के जन्म के बाद स्तनपान से जुड़ी तमाम सावधानियों का ध्यान रखा.

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बच्चे को स्तनपान कराती महिला

वहीं दो साल के उत्कर्ष की माता श्रद्धा पारिख बताती हैं कि शुरुआत में उत्कर्ष को स्तनपान कराने में उन्हे बहुत सी परेशानियां होती थी. जैसे दूध पिलाने के बाद उनके निप्पल में कई बार काफी दर्द होता था. वहीं कुछ समय बाद उन्हे निप्पल में दरारों की समस्या होने लगी. दरअसल स्तनपान करने वाली महिलाओं को थकान या ज्यादा नींद आने जैसी समस्याएं होती ही हैं. ऐसे में श्रद्धा उत्कर्ष को दूध पालने के समय अपनी तथा उसकी पोजीशन का ज्यादा ख्याल नहीं रखती थी. ऐसे में जब समस्या ज्यादा बढ़ने लगी ती उन्होंने अपनी मां से बात की. उन्होंने ना सिर्फ श्रद्धा को दूध पिलाने की सही पोजीशन के बारे में सिखाया बल्कि उन्हें यह भी बताया की स्तनों में दूध को इकट्ठा ना होने दे. यदि बच्चा पूरा दूध नहीं पी पा रहा है तो बाकी दूध को स्तनों को दबाकर या पंप की मदद से बाहर निकाल दें. श्रद्धा बताती हैं कि इसके बाद उनकी स्तनपान से जुड़ी परेशानियां काफी हद तक कम हो गई.

ज्यादा परेशान करने वाली समस्याएं
सिर्फ रेणुका या श्रद्धा ही नहीं बल्कि बहुत सी नई माताओं को स्तनपान के बारें में सही जानकारी ना होने का कारण कई परेशानियों का सामना करना पड़ जाता है. यह बहुत ही आम बात है. विभा मेटरनिटी क्लिनिक की स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ संगीता वर्मा बताती हैं कि बच्चे के जन्म के बाद माता को सही तरह से स्तनपान कराने के लिए प्रशिक्षण देना बहुत जरूरी है. आमतौर पर बच्चे के जन्म के बाद अस्पतालों में मौजूद चिकित्सक तथा नर्स माता को स्तनपान कैसे कराना है उसके बारे में सरसरी जानकारी तो देते हैं लेकिन ऐसा करना क्यों जरूरी है तथा ऐसा ना करने पर क्या नुकसान हो सकते हैं इस बारें में आमतौर उन्हे ज्यादा जानकारी नहीं दी जाती है. ऐसे में कई बार कुछ गलतियां कुछ समस्याओं का कारण बन जाता है.

वह बताती हैं कि स्तनपान कराने वाली महिलाओं में कुछ परेशानियां आमतौर पर नजर आती हैं. जैसे निप्पल में दर्द, उनमें क्रेक आना, उनका चपटा या उल्टा हो जाना , उनमें छाले होना, सूजन, स्तनों में दर्द होना, स्तन भारी हो जाना, दूध की गांठ बन जाना, स्तनों में दूध का कम या ज्यादा बनना, दूध का रिसाव तथा मास्टिटिस (स्तन संक्रमण) आदि. वहीं कई बार मास्टिटिस या कुछ अन्य कारणों से स्तनों में दूध में संक्रमण जैसी समस्याएं भी हो सकती है, जिनमें बुखार या फ्लू जैसे लक्षणों के साथ स्तनों में दर्द, सूजन या गर्माहट जैसी समस्याएं भी हो सकती हैं.

बेंगलुरु की केयर क्लिनिक की बाल रोग विशेषज्ञ डॉ सुधा एम रॉय बताती हैं कि कई बार माता में स्तनपान से जुड़ी समस्याएं बच्चे के सही मात्रा में दूध पीने को भी प्रभावित करती हैं. यदि महिला को इस तरह की समस्याएं बच्चे के छह माह के होने से पहले हो रही हों और वह इन या अन्य कारणों से बच्चे को जरूरी मात्रा में स्तनपान ना करवा पा रही हो तो बच्चे के स्वास्थ्य पर भी असर पड़ सकता है. वहीं स्तनों में किसी प्रकार के संक्रमण के चलते भी बच्चे के स्वास्थ्य पर असर पड़ सकता है.

कैसे बचें समस्याओं से
डॉ संगीता वर्मा बताती हैं कि बहुत जरूरी हैं कि बच्चे के जन्म से पहले तथा प्रसव के बाद जल्द से जल्द महिला को दूध पिलाने के लिए सही पोजीशन तथा अन्य जरूरी सावधानियों के बारे में जानकारी दी जाय. जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं.

बच्चे को हमेशा आरामदायक पोजीशन में बैठकर दूध पिलाना चाहिए. ध्यान रहे की जब बच्चा दूध पी रहा हो उसकी नाक दबे नहीं, इसके लिए शुरुआत में निप्पल को दो उंगलियों के बीच रखकर बच्चे को स्तनपान कराया जा सकता है.

आमतौर पर महिलाओं को प्रसव के उपरांत स्तनपान कराने के दौरान सीधे बैठने और झुक कर दूध पिलाने में परेशानी होती है. ऐसे में नर्सिंग पिलो या ब्रेस्टफीडिंग पिलो काफी मददगार हो सकते हैं. वहीं बच्चे को दूध पिलाते समय उसे सामान्य तकिये के सहारे या उसके ऊपर भी लिटा कर भी दूध पिलाया जा सकता है. इससे ना सिर्फ मां के लिए स्तनपान करना आसान हो जाता है बल्कि माता को बैठने में आराम और हाथों में होने वाले दर्द से राहत भी मिल सकती है.

  • दूध पिलाने से पहले तथा बाद में निप्पल को साफ करें.
  • निप्पल को हमेशा साफ व सूखा रखें.
  • निप्पल पर किसी कठोर साबुन और क्रीम का उपयोग ना करें.
  • क्रेक निप्पल पर लानौलिन युक्त क्रीम या जैतून का तेल लगाएं या स्तनों के दूध को निपल पर लगाकर सूखने दें, इसमें विटामिन ई सहित अन्य पोषक तत्व तो होते ही हैं, साथ ही एंटी इंफ्लेमेटरी गुण भी होते हैं.
  • स्तनों में हल्के दर्द में स्तनों की ठंडी या गर्म सिकाई तथा मालिश से राहत मिल सकती हैं. लेकिन अगर दर्द बढ़ने लगे तथा दर्द के साथ बुखार महसूस हो रहा हो या स्तन में गांठ महसूस हो रही हो, तो चिकित्सक से परामर्श लें.
  • जच्चा या नई माता को अपने नियमित आहार में जरूरी पोषण से युक्त आहार को शामिल करना चाहिए. इससे दूध का उत्पादन सही रहता है.

कामकाजी माताओं के लिए टिप्स
डॉ सुधा बताती हैं कि कामकाजी महिलाओं के लिए बच्चों को जरूरी मात्रा में स्तनपान कराना कई बार ज्यादा मुश्किल होता है. वैसे तो वर्तमान समय में ज्यादातर सरकारी तथा निजी कार्यालयों में मातृत्व अवकाश मिलता है लेकिन उसकी अवधि अलग अलग हो सकती है. ऐसे में बच्चों के पोषण पर असर ना पड़े इसके लिए ब्रेस्ट पम्प या स्तनों से दबाकर दूध निकालकर सीमित अवधि तक स्टोर भी जा सकता है. इस दूध को फ्रिज या किसी साफ स्थान पर रखा जा सकता है, लेकिन ध्यान रहे कि इस दूध को सीधे गैस या माइक्रोवेव में गर्म ना नहीं करना चाहिए. इससे दूध के पौष्टिक तत्व नष्ट हो जाते हैं. वहीं इस दूध को स्टोर करने के लिए बाजार में ब्रेस्ट मिल्क स्टोरेज बैग भी मिलते हैं. माताएं अपना दूध इन बैग में एकत्रित कर सकती है और जरूरत पड़ने पर या कई बार सार्वजनिक स्थलों पर भी स्तनपान कराने की बजाय बच्चे को इस बैग से सरलता से दूध पीला सकती है.

इसके अलावा स्तनपान कराने वाली कई महिलाओं में स्तनों से लगातार दूध रिसने की समस्या भी होती है. जो कई बार दफ्तर या बाहर परेशानी या शर्म का कारण भी बन जाती है . ऐसे में ब्रेस्ट पैड काफी मददगार होते हैं. इन पैड को स्तनों के ऊपर तथा ब्रा के कप में रखना होता है. ये दूध को सोखते रहते हैं और आपके कपड़ों को गीला नहीं होने तथा और ना ही उन पर दाग लगने देते हैं.

डॉ सुधा बताती हैं कि यदि ब्रेस्ट पम्प या ब्रेस्ट पैड्स का इस्तेमाल किया जा रहा है तो बहुत जरूरी है कि उनकी साफ सफाई का भी विशेष ध्यान रखा जाए . जिससे संक्रमण या किसी अन्य समस्या का जोखिम ना हो. वह बताती हैं ब्रेस्ट पंप को इस्तेमाल से पहले तथा बाद में अच्छी तरह से गरम पानी से साफ करना चाहिए. वहीं ब्रेस्ट पैड के उपयोग में भी सुरक्षा बरतना जरूरी है जैसे यदि सूती पैड का इस्तेमाल किया जा रहा है तो पैड के गीला होने पर उसे बदल देना चाहिए , क्योंकि गीले पैड से त्वचा पर संक्रमण हो सकता है.

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हैदराबाद : बच्चे को जन्म देना एक जटिल प्रक्रिया है तथा इसे महिला के लिए भी एक नया जन्म माना जाता है. बच्चे का जन्म उसकी मां के लिए खुशी का मौका होता है, लेकिन बच्चे के जन्म से लेकर शुरुआती सालों में उसका पालन पोषण सरल नहीं होता है. ऐसे में माता को बहुत सी सावधानियों का ध्यान रखना पड़ता है. खासतौर पर पहली बार मां बनने वाली महिलाओं के लिए समस्याएं कई बार ज्यादा बढ़ जाती है. इन समस्याओं में स्तनपान से जुड़ी समस्याएं भी शामिल हो सकती हैं.

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विश्व स्तनपान सप्ताह

पांच महीने व ढाई साल की आयु वाले दो बच्चों की माता रेणुका भारती को अपनी पहली डिलीवरी के बाद स्तनपान से जुड़ी कुछ ऐसी समस्याओं का सामना करना पड़ा था जिनके कारण ना सिर्फ उन्हे बल्कि उनके बेटे को भी कुछ स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ गया था. वह बताती हैं कि उस समय उन्हे ना सिर्फ निप्पल में बल्कि स्तनों में भी काफी दर्द रहता था. बाद में उन्हे पता चल कि उनके स्तन में दूध की गांठे पड़ गई थी जिनमें संक्रमण हो गया था. इसका असर ना सिर्फ उनके स्वास्थ्य पर बल्कि उनके बेटे के स्वास्थ्य पर भी काफी नजर आया था. वह बताती हैं कि अपने पहले अनुभव से सबक लेकर उन्होंने अपने दूसरे बच्चे के जन्म के बाद स्तनपान से जुड़ी तमाम सावधानियों का ध्यान रखा.

world breastfeeding week
बच्चे को स्तनपान कराती महिला

वहीं दो साल के उत्कर्ष की माता श्रद्धा पारिख बताती हैं कि शुरुआत में उत्कर्ष को स्तनपान कराने में उन्हे बहुत सी परेशानियां होती थी. जैसे दूध पिलाने के बाद उनके निप्पल में कई बार काफी दर्द होता था. वहीं कुछ समय बाद उन्हे निप्पल में दरारों की समस्या होने लगी. दरअसल स्तनपान करने वाली महिलाओं को थकान या ज्यादा नींद आने जैसी समस्याएं होती ही हैं. ऐसे में श्रद्धा उत्कर्ष को दूध पालने के समय अपनी तथा उसकी पोजीशन का ज्यादा ख्याल नहीं रखती थी. ऐसे में जब समस्या ज्यादा बढ़ने लगी ती उन्होंने अपनी मां से बात की. उन्होंने ना सिर्फ श्रद्धा को दूध पिलाने की सही पोजीशन के बारे में सिखाया बल्कि उन्हें यह भी बताया की स्तनों में दूध को इकट्ठा ना होने दे. यदि बच्चा पूरा दूध नहीं पी पा रहा है तो बाकी दूध को स्तनों को दबाकर या पंप की मदद से बाहर निकाल दें. श्रद्धा बताती हैं कि इसके बाद उनकी स्तनपान से जुड़ी परेशानियां काफी हद तक कम हो गई.

ज्यादा परेशान करने वाली समस्याएं
सिर्फ रेणुका या श्रद्धा ही नहीं बल्कि बहुत सी नई माताओं को स्तनपान के बारें में सही जानकारी ना होने का कारण कई परेशानियों का सामना करना पड़ जाता है. यह बहुत ही आम बात है. विभा मेटरनिटी क्लिनिक की स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ संगीता वर्मा बताती हैं कि बच्चे के जन्म के बाद माता को सही तरह से स्तनपान कराने के लिए प्रशिक्षण देना बहुत जरूरी है. आमतौर पर बच्चे के जन्म के बाद अस्पतालों में मौजूद चिकित्सक तथा नर्स माता को स्तनपान कैसे कराना है उसके बारे में सरसरी जानकारी तो देते हैं लेकिन ऐसा करना क्यों जरूरी है तथा ऐसा ना करने पर क्या नुकसान हो सकते हैं इस बारें में आमतौर उन्हे ज्यादा जानकारी नहीं दी जाती है. ऐसे में कई बार कुछ गलतियां कुछ समस्याओं का कारण बन जाता है.

वह बताती हैं कि स्तनपान कराने वाली महिलाओं में कुछ परेशानियां आमतौर पर नजर आती हैं. जैसे निप्पल में दर्द, उनमें क्रेक आना, उनका चपटा या उल्टा हो जाना , उनमें छाले होना, सूजन, स्तनों में दर्द होना, स्तन भारी हो जाना, दूध की गांठ बन जाना, स्तनों में दूध का कम या ज्यादा बनना, दूध का रिसाव तथा मास्टिटिस (स्तन संक्रमण) आदि. वहीं कई बार मास्टिटिस या कुछ अन्य कारणों से स्तनों में दूध में संक्रमण जैसी समस्याएं भी हो सकती है, जिनमें बुखार या फ्लू जैसे लक्षणों के साथ स्तनों में दर्द, सूजन या गर्माहट जैसी समस्याएं भी हो सकती हैं.

बेंगलुरु की केयर क्लिनिक की बाल रोग विशेषज्ञ डॉ सुधा एम रॉय बताती हैं कि कई बार माता में स्तनपान से जुड़ी समस्याएं बच्चे के सही मात्रा में दूध पीने को भी प्रभावित करती हैं. यदि महिला को इस तरह की समस्याएं बच्चे के छह माह के होने से पहले हो रही हों और वह इन या अन्य कारणों से बच्चे को जरूरी मात्रा में स्तनपान ना करवा पा रही हो तो बच्चे के स्वास्थ्य पर भी असर पड़ सकता है. वहीं स्तनों में किसी प्रकार के संक्रमण के चलते भी बच्चे के स्वास्थ्य पर असर पड़ सकता है.

कैसे बचें समस्याओं से
डॉ संगीता वर्मा बताती हैं कि बहुत जरूरी हैं कि बच्चे के जन्म से पहले तथा प्रसव के बाद जल्द से जल्द महिला को दूध पिलाने के लिए सही पोजीशन तथा अन्य जरूरी सावधानियों के बारे में जानकारी दी जाय. जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं.

बच्चे को हमेशा आरामदायक पोजीशन में बैठकर दूध पिलाना चाहिए. ध्यान रहे की जब बच्चा दूध पी रहा हो उसकी नाक दबे नहीं, इसके लिए शुरुआत में निप्पल को दो उंगलियों के बीच रखकर बच्चे को स्तनपान कराया जा सकता है.

आमतौर पर महिलाओं को प्रसव के उपरांत स्तनपान कराने के दौरान सीधे बैठने और झुक कर दूध पिलाने में परेशानी होती है. ऐसे में नर्सिंग पिलो या ब्रेस्टफीडिंग पिलो काफी मददगार हो सकते हैं. वहीं बच्चे को दूध पिलाते समय उसे सामान्य तकिये के सहारे या उसके ऊपर भी लिटा कर भी दूध पिलाया जा सकता है. इससे ना सिर्फ मां के लिए स्तनपान करना आसान हो जाता है बल्कि माता को बैठने में आराम और हाथों में होने वाले दर्द से राहत भी मिल सकती है.

  • दूध पिलाने से पहले तथा बाद में निप्पल को साफ करें.
  • निप्पल को हमेशा साफ व सूखा रखें.
  • निप्पल पर किसी कठोर साबुन और क्रीम का उपयोग ना करें.
  • क्रेक निप्पल पर लानौलिन युक्त क्रीम या जैतून का तेल लगाएं या स्तनों के दूध को निपल पर लगाकर सूखने दें, इसमें विटामिन ई सहित अन्य पोषक तत्व तो होते ही हैं, साथ ही एंटी इंफ्लेमेटरी गुण भी होते हैं.
  • स्तनों में हल्के दर्द में स्तनों की ठंडी या गर्म सिकाई तथा मालिश से राहत मिल सकती हैं. लेकिन अगर दर्द बढ़ने लगे तथा दर्द के साथ बुखार महसूस हो रहा हो या स्तन में गांठ महसूस हो रही हो, तो चिकित्सक से परामर्श लें.
  • जच्चा या नई माता को अपने नियमित आहार में जरूरी पोषण से युक्त आहार को शामिल करना चाहिए. इससे दूध का उत्पादन सही रहता है.

कामकाजी माताओं के लिए टिप्स
डॉ सुधा बताती हैं कि कामकाजी महिलाओं के लिए बच्चों को जरूरी मात्रा में स्तनपान कराना कई बार ज्यादा मुश्किल होता है. वैसे तो वर्तमान समय में ज्यादातर सरकारी तथा निजी कार्यालयों में मातृत्व अवकाश मिलता है लेकिन उसकी अवधि अलग अलग हो सकती है. ऐसे में बच्चों के पोषण पर असर ना पड़े इसके लिए ब्रेस्ट पम्प या स्तनों से दबाकर दूध निकालकर सीमित अवधि तक स्टोर भी जा सकता है. इस दूध को फ्रिज या किसी साफ स्थान पर रखा जा सकता है, लेकिन ध्यान रहे कि इस दूध को सीधे गैस या माइक्रोवेव में गर्म ना नहीं करना चाहिए. इससे दूध के पौष्टिक तत्व नष्ट हो जाते हैं. वहीं इस दूध को स्टोर करने के लिए बाजार में ब्रेस्ट मिल्क स्टोरेज बैग भी मिलते हैं. माताएं अपना दूध इन बैग में एकत्रित कर सकती है और जरूरत पड़ने पर या कई बार सार्वजनिक स्थलों पर भी स्तनपान कराने की बजाय बच्चे को इस बैग से सरलता से दूध पीला सकती है.

इसके अलावा स्तनपान कराने वाली कई महिलाओं में स्तनों से लगातार दूध रिसने की समस्या भी होती है. जो कई बार दफ्तर या बाहर परेशानी या शर्म का कारण भी बन जाती है . ऐसे में ब्रेस्ट पैड काफी मददगार होते हैं. इन पैड को स्तनों के ऊपर तथा ब्रा के कप में रखना होता है. ये दूध को सोखते रहते हैं और आपके कपड़ों को गीला नहीं होने तथा और ना ही उन पर दाग लगने देते हैं.

डॉ सुधा बताती हैं कि यदि ब्रेस्ट पम्प या ब्रेस्ट पैड्स का इस्तेमाल किया जा रहा है तो बहुत जरूरी है कि उनकी साफ सफाई का भी विशेष ध्यान रखा जाए . जिससे संक्रमण या किसी अन्य समस्या का जोखिम ना हो. वह बताती हैं ब्रेस्ट पंप को इस्तेमाल से पहले तथा बाद में अच्छी तरह से गरम पानी से साफ करना चाहिए. वहीं ब्रेस्ट पैड के उपयोग में भी सुरक्षा बरतना जरूरी है जैसे यदि सूती पैड का इस्तेमाल किया जा रहा है तो पैड के गीला होने पर उसे बदल देना चाहिए , क्योंकि गीले पैड से त्वचा पर संक्रमण हो सकता है.

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