1978 में बनी 'डॉन ऑफ़ द डेड', 2016 में बनी 'ट्रेन टू बुसान' जैसी हॉरर, थ्रीलर जॉम्बी फिल्मों का एक अलग ही फैन बेस है. कई लोग जॉम्बी और हॉरर फिल्मों का आनंद लेते हैं. लेकिन उन्हें यह एहसास नहीं होता कि यह उनके मानसिक स्वास्थ्य पर क्या असर डालते है.
एक शोध के अनुसार जॉम्बी, हॉरर, और थ्रीलर फिल्मों ने इन फिल्मों के फैन्स को महामारी के लिए तैयार किया.
लंबे समय से पटकथा लेखकों और लेखकों द्वारा बुने गए एपोकैलिकप्टिक परिदृश्य के किस्से जिसमें कुछ बचे हुए लोगों की एक अलग दुनिया उभर कर आती हैं, लोकप्रिय रहे है. अमेरिका में पेन्सिलवेनिया स्टेट यूनिवर्सिटी (पेन स्टेट) के शोधकर्ताओं के अनुसार, हॉरर फिल्मों को नजरअंदाज करने वाले लोगों की तुलना में जॉम्बी फिल्मों ने इसका आनंद लेने वाले लोगों को कोविड -19 महामारी का सामना करने के लिए बेहतर रूप से तैयार किया क्योंकि इन फिल्मों की कहानी ने उन्हें मानसिक रूप से प्रभावित किया.
तरह-तरह के लोगों पर अध्ययन करने के बाद शोधकप्काओं ने लोगों के व्यक्तिमत्व को अलग-अलग श्रेणियों के आधार पर बांटा. इनमें से जो लोग महामारी के पहले जॉम्बी, एलियन आक्रमण और एपोकैलिकप्टिक महामारी इन विषयों पर आधारित फिल्में देखते थे, उन्होंने महामारी की विषम परिस्थितियों का सामना किया. वहीं वर्तमान स्थिति से आसानी से निपटते नजर आए है.
इस प्रकार की फिल्में स्पष्ट रूप से वास्तविक घटनाओं के लिए मानसिक रूप से तैयार करने का काम करती हैं, जॉनसन ने पत्रिका पर्सनैलिटी और इंडिविजुअल डिफरेंस में छपी एक पत्र के माध्यम से कहा है कि 'कहानियां केवल मनोरंजन नहीं हैं, बल्कि जीवन के लिए तैयारी हैं'.
इस निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए, शोधकर्ताओं ने एक सर्वेक्षण तैयार किया जिसका उन्होंने परीक्षण किया. उन्होंने एक वेबसाइट के माध्यम से 310 व्यक्तियों का सर्वेक्षण किया. प्रतिभागियों ने संकेत दिया कि वे फिल्मों और टेलीविजन में हॉरर, जॉम्बी, मनोवैज्ञानिक थ्रिलर, अलौकिक, सर्वनाश / पोस्ट-एपोकैलिकप्टिक, विज्ञान कथा, एलियन-आक्रमण, अपराध, कॉमेडी और रोमांस शैलियों के फैन है.
अगला, प्रतिभागियों से उन फिल्मों के अतीत और वर्तमान अनुभव के बारे में पूछा गया, जो स्पष्ट रूप से महामारी के बारे में थीं. जिसमें उन्होंने पाया कि जिन लोगों ने महामारी से पहले इस प्रकार की फिल्में देखी थीं, उन्हें महामारी के दौरान काफी मदद मिली.
जॉनसन का कहना है कि मुझे यकीन नहीं है कि ऐसी फिल्में देखना हमारी वर्तमान स्थिति के लिए मददगार होगा या नहीं. हालांकि, उनका यह भी मानना है कि महामारी और अन्य जीवन की चुनौतीपूर्ण घटनाओं को देखते हुए भविष्य में भी ऐसी चुनौतियों को नकारा नहीं जा सकता हैं.