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पहली बार गर्भावस्था के दौरान गर्भाशय में हुए छेद का सफल इलाज - अमेरिकन जर्नल ऑफ ऑब्स्टेट्रिक्स एंड गायनेकोलॉजी

बेंगलुरु में डॉक्टरों ने गर्भावस्था के दौरान एक महिला के गर्भाशय में हुए छेद का सफलता पूर्वक इलाज किया. पढ़ें पूरी खबर.. Hole In Uterus, Hole In Uterus During Pregnancy, American Journal of Obstetrics and Gynecology.

Hole In Uterus
गर्भाशय में हुए छेद का सफल इलाज
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By IANS

Published : Dec 3, 2023, 6:57 PM IST

बेंगलुरु : एक चिकित्सीय उपलब्धि हासिल करते हुए डॉक्टरों ने पहली बार एक मामले में गर्भावस्था के दौरान एक महिला के गर्भाशय में हुए छेद का सफलता पूर्वक इलाज किया. आंध्र प्रदेश के एक दूरदराज के शहर की रहने वाली 22 वर्षीय महिला को गर्भावस्था के छठे महीने के दौरान गंभीर पेट दर्द और सदमे के लक्षणों के साथ बेंगलुरु के 'रेनबो चिल्ड्रेन्स हॉस्पिटल' मराठाहल्ली में भर्ती कराया गया था. उसकी नाड़ी तेज (Pulse Rate) थी और रक्तचाप (Blood Pressure) बहुत कम था.

उसके स्कैन से चौंकाने वाले नतीजे सामने आए. मां के पेट में काफी खून इकट्ठा हो गया था और गर्भाशय में भी थोड़ा खून बह रहा था. हालांकि, बच्चे के दिल की धड़कन ठीक थी और उस पर कोई असर नहीं पड़ा. इसके अलावा गर्भाशय में छेद और डिम्बग्रंथि मरोड़ (आंतरिक रक्तस्राव और उसकी गर्भाशय की दीवार को क्षति) का पता चला.

बच्चे और मां को बचाने के लिए, रेनबो में मेघना रेड्डी के नेतृत्व में डॉक्टरों की टीम लैप्रोस्कोपी के लिए गई, जो पेट के अंदर के अंगों की जांच करने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली एक सर्जिकल प्रक्रिया है. टीम ने मरीज के ऊपरी गर्भाशय में एक तेज छिद्र पाया, जो एक अनोखी चुनौती थी. हालांकि, डॉक्टर इस स्थिति के पीछे का कारण नहीं बता सके. यह महिला की पहली गर्भावस्था थी और उसकी पहले कोई सर्जरी नहीं हुई थी.

वरिष्ठ सलाहकार, प्रसूति, स्त्री रोग और लेप्रोस्कोपिक सर्जरी, बर्थराइट रेड्डी ने एक न्यूज एजेंसी को बताया, 'यह अब तक का पहला मामला है. हमें इसका कोई कारण नहीं मिला है क्योंकि यह किसी तेज चाकू से किए गए घाव जैसा लग रहा था और मरीज के गर्भाशय में पहले कोई सर्जरी नहीं हुई थी.

आमतौर पर गर्भाशय छिद्र के मामलों में गर्भधारण समाप्त कर दिया जाता है. हालांकि, मेडिकल टीम ने छिद्र को ठीक करने और गर्भावस्था को आगे बढ़ने देने के लिए लैप्रोस्कोपी और फेटोस्कोपिक के साथ-साथ लेप्रोस्कोपिक टांके लगाने का निर्णय चुना.

रेड्डी ने कहा, 'हम बच्चे या मां को खोना नहीं चाहते थे, इसलिए हमने बहु-विषयक दृष्टिकोण अपनाने का फैसला किया. सीमित पेट की जगह को नेविगेट करने की चुनौती से जुड़ी लेप्रोस्कोपिक प्रक्रिया की जटिलताओं ने मेडिकल टीम की विशेषज्ञता और संसाधनशीलता को दिखाया.

डॉक्टर ने बताया, 'सावधानीपूर्वक उपायों और समय पर कार्रवाई के माध्यम से उन्होंने रक्तस्राव को सफलतापूर्वक नियंत्रित किया और मरीज की स्थिति को स्थिर कर उसके और उसके बच्चे के लिए आशा की किरण जगाई. महिला को 37वें सप्ताह में प्रसव पीड़ा शुरू हुई और उसने सामान्य प्रसव के जरिए बच्चे को जन्म दिया. फिलहाल मां और बच्चा दोनों ठीक हैं.' रेड्डी ने कहा कि यह मामला अमेरिकन जर्नल ऑफ ऑब्स्टेट्रिक्स एंड गायनेकोलॉजी सहित विभिन्न पत्रिकाओं में रिपोर्ट किया गया है.

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उसके स्कैन से चौंकाने वाले नतीजे सामने आए. मां के पेट में काफी खून इकट्ठा हो गया था और गर्भाशय में भी थोड़ा खून बह रहा था. हालांकि, बच्चे के दिल की धड़कन ठीक थी और उस पर कोई असर नहीं पड़ा. इसके अलावा गर्भाशय में छेद और डिम्बग्रंथि मरोड़ (आंतरिक रक्तस्राव और उसकी गर्भाशय की दीवार को क्षति) का पता चला.

बच्चे और मां को बचाने के लिए, रेनबो में मेघना रेड्डी के नेतृत्व में डॉक्टरों की टीम लैप्रोस्कोपी के लिए गई, जो पेट के अंदर के अंगों की जांच करने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली एक सर्जिकल प्रक्रिया है. टीम ने मरीज के ऊपरी गर्भाशय में एक तेज छिद्र पाया, जो एक अनोखी चुनौती थी. हालांकि, डॉक्टर इस स्थिति के पीछे का कारण नहीं बता सके. यह महिला की पहली गर्भावस्था थी और उसकी पहले कोई सर्जरी नहीं हुई थी.

वरिष्ठ सलाहकार, प्रसूति, स्त्री रोग और लेप्रोस्कोपिक सर्जरी, बर्थराइट रेड्डी ने एक न्यूज एजेंसी को बताया, 'यह अब तक का पहला मामला है. हमें इसका कोई कारण नहीं मिला है क्योंकि यह किसी तेज चाकू से किए गए घाव जैसा लग रहा था और मरीज के गर्भाशय में पहले कोई सर्जरी नहीं हुई थी.

आमतौर पर गर्भाशय छिद्र के मामलों में गर्भधारण समाप्त कर दिया जाता है. हालांकि, मेडिकल टीम ने छिद्र को ठीक करने और गर्भावस्था को आगे बढ़ने देने के लिए लैप्रोस्कोपी और फेटोस्कोपिक के साथ-साथ लेप्रोस्कोपिक टांके लगाने का निर्णय चुना.

रेड्डी ने कहा, 'हम बच्चे या मां को खोना नहीं चाहते थे, इसलिए हमने बहु-विषयक दृष्टिकोण अपनाने का फैसला किया. सीमित पेट की जगह को नेविगेट करने की चुनौती से जुड़ी लेप्रोस्कोपिक प्रक्रिया की जटिलताओं ने मेडिकल टीम की विशेषज्ञता और संसाधनशीलता को दिखाया.

डॉक्टर ने बताया, 'सावधानीपूर्वक उपायों और समय पर कार्रवाई के माध्यम से उन्होंने रक्तस्राव को सफलतापूर्वक नियंत्रित किया और मरीज की स्थिति को स्थिर कर उसके और उसके बच्चे के लिए आशा की किरण जगाई. महिला को 37वें सप्ताह में प्रसव पीड़ा शुरू हुई और उसने सामान्य प्रसव के जरिए बच्चे को जन्म दिया. फिलहाल मां और बच्चा दोनों ठीक हैं.' रेड्डी ने कहा कि यह मामला अमेरिकन जर्नल ऑफ ऑब्स्टेट्रिक्स एंड गायनेकोलॉजी सहित विभिन्न पत्रिकाओं में रिपोर्ट किया गया है.

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