किसी व्यक्ति को दिव्यांग बना सकने में सक्षम 'स्ट्रोक' सिर्फ पीड़ित के मस्तिष्क को ही नहीं, बल्कि उसके शरीर के कई अंगों को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकता है. इस बीमारी के चलते हर साल दुनिया भर में बड़ी संख्या में लोग अपनी जान गंवाते हैं. स्ट्रोक की गंभीर प्रकृति और इस समस्या की लगातार बढ़ती दर को लेकर वैश्विक स्तर पर जागरूकता बढ़ाने के उद्देश्य से 29 अक्टूबर को 'विश्व स्ट्रोक दिवस' मनाया जाता है. सिर्फ जागरूकता बढ़ाने के लिए ही नही, बल्कि यह एक मौका है जो लोगों को एक मंच देता है जहां वे वैश्विक, क्षेत्रीय और राष्ट्रीय स्तर पर स्ट्रोक की रोकथाम तथा उसके उपचार को आमजन की पहुंचाने से जुड़ी महत्वपूर्ण बातों पर चर्चा कर सकें.
ह्रदय रोग नही है स्ट्रोक
अधिकतर लोग समझते हैं कि स्ट्रोक दिल की बीमारी है. लेकिन असल में यह दिमाग से जुड़ी बीमारी है जो ह्रदय को बहुत ज्यादा प्रभावित करती है और जिससे उच्च रक्त चाप, मधुमेह, डिसलिपिडेमिया, अनियमित दिल की धड़कन, हृदय विकार (कोरोनरी धमनी रोग, हृदय वाल्व दोष) तथा सिकल सेल रोग का जोखिम बढ़ जाता है.
दरअसल, स्ट्रोक एक ऐसी बीमारी है जो मस्तिष्क तक और उसके भीतर जाने वाली धमनियों को प्रभावित करती है. आमतौर पर स्ट्रोक तब होता है जब मस्तिष्क में ऑक्सीजन और पोषक तत्वों को ले जाने वाली रक्त वाहिका या तो खून में थक्कों के कारण अवरुद्ध हो जाती है या फिर फट या टूट जाती है. जब ऐसा होता है, तो मस्तिष्क के प्रभावित हिस्से को रक्त और ऑक्सीजन पर्याप्त मात्रा में नहीं मिल पाता हैं .
कैंसर की तरह ही स्ट्रोक यानी आघात भी हर साल बड़ी संख्या में लोगों की मृत्यु का कारण बनता है. दुनिया भर के आंकड़ों की माने तो पुरुषों के मुकाबले महिलायें स्ट्रोक की ज्यादा शिकार होती हैं. वर्तमान समय में हर पांचवी महिला स्ट्रोक का सामना करती है. जिसके मुख्य कारणों में मौखिक गर्भनिरोधक दवाइयों का सेवन, गर्भावस्था या उसके दौरान प्रीक्लेम्पसिया मुख्य हैं.
सूत्र बताते हैं की गर्भवती महिलाओं में स्ट्रोक का जोखिम प्रति एक लाख में इक्कीस होता है. तीसरी तिमाही और प्रसव के दौरान स्ट्रोक का सबसे अधिक जोखिम होता है. इसके अतिरिक्त गर्भावस्था के दौरान प्रीक्लेम्पसिया रोग बाद में स्ट्रोक के जोखिम को दोगुना कर देता है. आंकड़ों की माने तो संयुक्त राज्य अमेरिका में 55 से 75 वर्ष की आयु के बीच महिलाओं के लिए स्ट्रोक का आजीवन जोखिम 5 में से 1 है. वहीं सीडीसी (रोग नियंत्रण और रोकथाम केंद्र) के अनुसार, स्तन कैंसर की तुलना में स्ट्रोक से दोगुनी संख्या में महिलाओं की मृत्यु होती है. हर साल वैश्विक स्तर पर स्ट्रोक पीड़ितों में 48% महिलाएं होती हैं.
इतिहास और थीम
इस साल हम 15वां विश्व स्ट्रोक दिवस मना रहे हैं. सर्वप्रथम 1990 के दशक में, यूरोपियन स्ट्रोक इनिशिएटिव ने स्ट्रोक के लिए एक वैश्विक जागरूकता दिवस मनाए जाने का विचार किया था, लेकिन वित्तीय कारणों के चलते यह आयोजन केवल यूरोप तक ही सीमित रह गया था. इसके उपरांत वर्ष 2004 में वैंकूवर में विश्व स्ट्रोक कांग्रेस द्वारा विश्व स्ट्रोक दिवस की स्थापना की गई थी. वर्ष 2006 में, कनाडा के न्यूरोसाइंटिस्ट, डॉ. व्लादिमीर हैचिंस्की ने इस विशेष दिवस को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मनाए जाने की घोषणा की थी. इसी वर्ष इंटरनेशनल स्ट्रोक सोसाइटी का वर्ल्ड स्ट्रोक फेडरेशन (World Stroke Federation) में विलय हुआ था जिसके उपरांत इसी संगठन द्वारा पहला आधिकारिक विश्व स्ट्रोक दिवस 29 अक्टूबर, 2006 को आयोजित किया गया था.
इस वर्ष विश्व स्ट्रोक संगठन के तत्वाधान में यह दिवस "मिनट जीवन बचा सकता है" थीम के साथ मनाया जा रहा है.
भारत में स्ट्रोक के आंकड़े
- भारत में स्ट्रोक के मामले लगातार बढ़ रहें है. देश में स्ट्रोक अब मौत का चौथा और दिव्यांगता का पांचवां प्रमुख कारण है.
- पिछले कुछ शोधों पर आधारित नेशनल सेंटर ऑफ बायोटेक्नोलॉजी की सूचना के अनुसार भारत में स्ट्रोक की घटनाएं प्रति वर्ष 105 से 152 व्यक्ति प्रति 100,000 लोगों के बीच होती हैं.
कैसे करें बचाव
स्ट्रोक से बचाव के लिए निम्न बातें फायदेमंद हो सकती हैं.
- उच्च रक्तचाप को नियंत्रित करना.
- अपने आहार में कोलेस्ट्रॉल और संतृप्त वसा की मात्रा कम करना.
- धूम्रपान व शराब का सेवन छोड़ना.
- मधुमेह का प्रबंधन.
- स्वस्थ वजन तथा बीएमआई बनाए रखना.
- फलों और सब्जियों से भरपूर आहार लेना.
- नियमित रूप से व्यायाम करना.
- ऑब्सट्रक्टिव स्लीप एपनिया (ओएसए) का इलाज करना.
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