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LIFESTYLE : चिंताजनक है बच्चों में बढ़ता तनाव-अवसाद, गंभीर बीमारियों की तरफ धकेल रहे हैं ये लक्षण

लगभग हर बीमारी के पीछे या उसके धीमी सुधार में तनाव की भूमिका होती है. चिकित्सा विज्ञान में जीवनशैली जनित बीमारियों की एक बड़ी फेहरिस्त है, क्योंकि यह माना जा रहा है कि बहुत सी बीमारियां दोषपूर्ण जीवनशैली के चलते बढ़ रही हैं, जिन्हें Medically लाइफस्टाइल डिजीज (Lifestyle diseases) कहते हैं. विशेषकर कोरोना काल के बाद बच्चों में भी तनाव के लक्षण परिलक्षित हो रहे हैं. Stress depression in children . Faulty lifestyle affects mental health of teenagers .

Stress depression in children Faulty lifestyle affects mental health of teenagers
बच्चों में बढ़ता तनाव-अवसाद
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Published : Sep 14, 2022, 7:39 PM IST

वर्तमान दौर को मनोविज्ञान की भाषा में तनाव का दौर कहा जा रहा है. अब तो चिकित्सा विज्ञान के नए शोध यह संकेत दे रहे हैं कि स्वास्थ्य संबंधी अधिकांश समस्याएं तनाव जनित है. बीमारियों के मूल में मनोदैहिक कारणों (Psychosomatic causes) को अधिक महत्वपूर्ण माना जा रहा है. कहीं न कहीं से लगभग हर बीमारी के पीछे या उसकी धीमी सुधार में तनाव की भूमिका होती है. आजकल तो चिकित्सा विज्ञान में जीवनशैली जनित बीमारियों की एक बड़ी फेहरिस्त है, क्योंकि यह माना जा रहा है कि बहुत सी बीमारियां दोषपूर्ण जीवनशैली के चलते बढ़ रही हैं, जिन्हें चिकित्सीय भाषा में लाइफस्टाइल डिजीज (Lifestyle diseases) कहते हैं. Stress depression in children . Faulty lifestyle affects mental health of teenagers .

शास्त्रीय मनोविज्ञान की धारणा में परिवर्तन : यह दोषपूर्ण जीवनशैली (Faulty lifestyle affects living and thinking) रहन-सहन और सोचने के ढंग से प्रभावित होती है. मधुमेह, ह्रदय रोग, वायु विकार, अल्सर समेत कई बीमारियों के पीछे इस का प्रभाव है. तनाव को कम करने में शारीरिक उद्यम प्रभावी होता है इसीलिए आजकल उपचार में शारीरिक श्रम को भी महत्व दिया जा रहा है किंतु शास्त्रीय मनोविज्ञान में एक धारणा रही है कि तनाव आमतौर पर बच्चों को प्रभावित नहीं करता क्योंकि उनकी जीवनशैली उन्मुक्त चंचल और चिंता रहित होती है. मगर हाल-फिलहाल की परिस्थितियां इंगित करती हैं की अब यह अवधारणा बदलने की आवश्यकता है‌. विशेषकर कोरोना काल के बाद बच्चों में परिलक्षित हो रहे तनाव के लक्षण के कारण. वैसे तो समाज की मन: स्थिति में आने वाले बदलाव सूचना विस्फोट एवं वाणिज्य और उपभोक्तावाद के इस दौर में थोड़ा पहले से ही दिख रहे थे लेकिन कोरोना कॉल और उसके बाद आए बदलाव के चलते एक व्यापक परिवर्तन दिखने लगा है.

Dr Pramod Pathak, Former Professor IIT-ISSM
डॉ प्रमोद पाठक, मनोसलाहकार, स्ट्रेस कोच व प्रबंधन विशेषज्ञ, पूर्व प्राध्यापक, आईआईटी-आईएसएसएम

बच्चों में तनाव के लक्षण : एक मनोसलाहकार और तनाव प्रबंध विशेषज्ञ (Psychotherapist and stress management specialist) के रूप में अक्सर मेरे (Dr Pramod Pathak, Former Professor IIT-ISSM) पास चर्चा एवं सलाह के लिए लोग आया करते थे. किंतु अब जो नई बात सामने दिख रही है वह इसका संकेत दे रही है कि बच्चों में तनाव के लक्षण आ रहे हैं और उसके चलते उनकी मानसिक स्थिति पर प्रभाव पड़ रहा है. अभी पिछले ही दिनों एक अभिभावक ने मुझसे दूरभाष पर संपर्क किया कि वह मुझसे मिलना चाहते हैं. मैंने उनसे इसका कारण पूछा तो उन्होंने कहा कि उनकी 11 साल की बच्ची अवसाद से पीड़ित है और उसे इसके लिए दवा खानी पड़ रही है . थोड़ा असामान्य सी बात थी क्योंकि इस तरह के मामले मेरे पास यदा-कदा ही आए होंगे. वह भी छोटी-मोटी समस्याओं को लेकर. अवसाद जैसी कोई गंभीर समस्या लेकर इस उम्र के बच्चे के किसी अभिभावक ने संपर्क नहीं किया था. मैंने उनको अगले दिन आने को कहा.

बच्चों पर अनावश्यक दबाव : जब बच्ची मेरे पास आई तो वह सामान्य सी ही दिख रही थी. मैंने अभिभावक से पूछा कि भाई आपको मनोचिकित्सक के पास जाने की क्या आवश्यकता पड़ी. तो उन्होंने बहुत से लक्षण और गतिविधियां बताएं जो साधारणतया अवसाद से जुड़े होते हैं. फिर मैंने उस बच्ची से अलग से बात की, उसने जो कुछ कहा वह महत्वपूर्ण है. उसने कहा कि पहले जहां वह रहती थी वहां पास पड़ोस के बच्चे भी थे जिनके साथ वह घुलमिल जाती थी और शाम को या अवकाश के क्षण में खेला करती थी. हाल ही में वे लोग एक अपार्टमेंट में शिफ्ट हुए और वहां इस तरह की सुविधा नहीं मिलती. बच्चे तो होंगे लेकिन अपने अपने घरों में बंद. फिर मैंने पूछा कि खाली समय में तुम क्या करती हो. तो उसने कहा की मोबाइल पर खेलती हूं. मैंने पूछा कि तुम्हारी मां अपने खाली समय तुम्हारे साथ नहीं बिताती. तो उसने कहा कि अपने खाली समय में मां भी मोबाइल पर लगी रहती हैं. यह कहानी किसी एक बच्चे की नहीं है. यह एक पूरी पीढ़ी की कहानी है और और एकाकीपन आज के बच्चों की एक बड़ी समस्या बन रही है जिसके चलते तनाव से वह भी पीड़ित हो रहे हैं. इस तरह के कई मामले हाल फिलहाल के दिनों में मेरे पास आए. इसके अलावा सूचना के इस दौर में माता-पिता भी बच्चों पर अनावश्यक दबाव डालते हैं पास पड़ोस के बच्चों का उदाहरण देकर कि यह करना है वह करना है. यह दबाव तनाव पैदा करता है.

असल में सूचना की अधिकता ने आकांक्षाएं तो बढ़ा दीं, इच्छाएं असीमित कर दीं. लेकिन उसके लिए क्या मार्ग चुना जाए या कितना संभव है इस पर कहीं कोई चर्चा नहीं है. लिहाजा भ्रम, अनिश्चितता और दुश्चिंता का मिलाजुला असर बच्चों के अपरिपक्व दिमाग पर बुरा असर डाल रहा है. इसके अलावा माता-पिता अपनी महत्वाकांक्षा को भी नियंत्रित नहीं कर पा रहे हैं और बच्चों पर अनावश्यक अपने विचार थोप रहे हैं. दरअसल तनाव एक मन:स्थिति है, एक दोषपूर्ण सोचने का ढंग जो इंसानी भावनाओं को प्रभावित कर उसके दिमाग में रासायनिक असंतुलन पैदा करता है (Stress affects the human emotions and creates chemical imbalance) और इसलिए उसके मानसिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य पर कुप्रभाव डालता है. आज कल यह समस्या बढ़ रही है.

'तनाव' हमारे स्वास्थ्य के लिए खतरा, मगर 'मित्र मंडली' का मिले साथ तो बन सकती है बात

वर्तमान दौर को मनोविज्ञान की भाषा में तनाव का दौर कहा जा रहा है. अब तो चिकित्सा विज्ञान के नए शोध यह संकेत दे रहे हैं कि स्वास्थ्य संबंधी अधिकांश समस्याएं तनाव जनित है. बीमारियों के मूल में मनोदैहिक कारणों (Psychosomatic causes) को अधिक महत्वपूर्ण माना जा रहा है. कहीं न कहीं से लगभग हर बीमारी के पीछे या उसकी धीमी सुधार में तनाव की भूमिका होती है. आजकल तो चिकित्सा विज्ञान में जीवनशैली जनित बीमारियों की एक बड़ी फेहरिस्त है, क्योंकि यह माना जा रहा है कि बहुत सी बीमारियां दोषपूर्ण जीवनशैली के चलते बढ़ रही हैं, जिन्हें चिकित्सीय भाषा में लाइफस्टाइल डिजीज (Lifestyle diseases) कहते हैं. Stress depression in children . Faulty lifestyle affects mental health of teenagers .

शास्त्रीय मनोविज्ञान की धारणा में परिवर्तन : यह दोषपूर्ण जीवनशैली (Faulty lifestyle affects living and thinking) रहन-सहन और सोचने के ढंग से प्रभावित होती है. मधुमेह, ह्रदय रोग, वायु विकार, अल्सर समेत कई बीमारियों के पीछे इस का प्रभाव है. तनाव को कम करने में शारीरिक उद्यम प्रभावी होता है इसीलिए आजकल उपचार में शारीरिक श्रम को भी महत्व दिया जा रहा है किंतु शास्त्रीय मनोविज्ञान में एक धारणा रही है कि तनाव आमतौर पर बच्चों को प्रभावित नहीं करता क्योंकि उनकी जीवनशैली उन्मुक्त चंचल और चिंता रहित होती है. मगर हाल-फिलहाल की परिस्थितियां इंगित करती हैं की अब यह अवधारणा बदलने की आवश्यकता है‌. विशेषकर कोरोना काल के बाद बच्चों में परिलक्षित हो रहे तनाव के लक्षण के कारण. वैसे तो समाज की मन: स्थिति में आने वाले बदलाव सूचना विस्फोट एवं वाणिज्य और उपभोक्तावाद के इस दौर में थोड़ा पहले से ही दिख रहे थे लेकिन कोरोना कॉल और उसके बाद आए बदलाव के चलते एक व्यापक परिवर्तन दिखने लगा है.

Dr Pramod Pathak, Former Professor IIT-ISSM
डॉ प्रमोद पाठक, मनोसलाहकार, स्ट्रेस कोच व प्रबंधन विशेषज्ञ, पूर्व प्राध्यापक, आईआईटी-आईएसएसएम

बच्चों में तनाव के लक्षण : एक मनोसलाहकार और तनाव प्रबंध विशेषज्ञ (Psychotherapist and stress management specialist) के रूप में अक्सर मेरे (Dr Pramod Pathak, Former Professor IIT-ISSM) पास चर्चा एवं सलाह के लिए लोग आया करते थे. किंतु अब जो नई बात सामने दिख रही है वह इसका संकेत दे रही है कि बच्चों में तनाव के लक्षण आ रहे हैं और उसके चलते उनकी मानसिक स्थिति पर प्रभाव पड़ रहा है. अभी पिछले ही दिनों एक अभिभावक ने मुझसे दूरभाष पर संपर्क किया कि वह मुझसे मिलना चाहते हैं. मैंने उनसे इसका कारण पूछा तो उन्होंने कहा कि उनकी 11 साल की बच्ची अवसाद से पीड़ित है और उसे इसके लिए दवा खानी पड़ रही है . थोड़ा असामान्य सी बात थी क्योंकि इस तरह के मामले मेरे पास यदा-कदा ही आए होंगे. वह भी छोटी-मोटी समस्याओं को लेकर. अवसाद जैसी कोई गंभीर समस्या लेकर इस उम्र के बच्चे के किसी अभिभावक ने संपर्क नहीं किया था. मैंने उनको अगले दिन आने को कहा.

बच्चों पर अनावश्यक दबाव : जब बच्ची मेरे पास आई तो वह सामान्य सी ही दिख रही थी. मैंने अभिभावक से पूछा कि भाई आपको मनोचिकित्सक के पास जाने की क्या आवश्यकता पड़ी. तो उन्होंने बहुत से लक्षण और गतिविधियां बताएं जो साधारणतया अवसाद से जुड़े होते हैं. फिर मैंने उस बच्ची से अलग से बात की, उसने जो कुछ कहा वह महत्वपूर्ण है. उसने कहा कि पहले जहां वह रहती थी वहां पास पड़ोस के बच्चे भी थे जिनके साथ वह घुलमिल जाती थी और शाम को या अवकाश के क्षण में खेला करती थी. हाल ही में वे लोग एक अपार्टमेंट में शिफ्ट हुए और वहां इस तरह की सुविधा नहीं मिलती. बच्चे तो होंगे लेकिन अपने अपने घरों में बंद. फिर मैंने पूछा कि खाली समय में तुम क्या करती हो. तो उसने कहा की मोबाइल पर खेलती हूं. मैंने पूछा कि तुम्हारी मां अपने खाली समय तुम्हारे साथ नहीं बिताती. तो उसने कहा कि अपने खाली समय में मां भी मोबाइल पर लगी रहती हैं. यह कहानी किसी एक बच्चे की नहीं है. यह एक पूरी पीढ़ी की कहानी है और और एकाकीपन आज के बच्चों की एक बड़ी समस्या बन रही है जिसके चलते तनाव से वह भी पीड़ित हो रहे हैं. इस तरह के कई मामले हाल फिलहाल के दिनों में मेरे पास आए. इसके अलावा सूचना के इस दौर में माता-पिता भी बच्चों पर अनावश्यक दबाव डालते हैं पास पड़ोस के बच्चों का उदाहरण देकर कि यह करना है वह करना है. यह दबाव तनाव पैदा करता है.

असल में सूचना की अधिकता ने आकांक्षाएं तो बढ़ा दीं, इच्छाएं असीमित कर दीं. लेकिन उसके लिए क्या मार्ग चुना जाए या कितना संभव है इस पर कहीं कोई चर्चा नहीं है. लिहाजा भ्रम, अनिश्चितता और दुश्चिंता का मिलाजुला असर बच्चों के अपरिपक्व दिमाग पर बुरा असर डाल रहा है. इसके अलावा माता-पिता अपनी महत्वाकांक्षा को भी नियंत्रित नहीं कर पा रहे हैं और बच्चों पर अनावश्यक अपने विचार थोप रहे हैं. दरअसल तनाव एक मन:स्थिति है, एक दोषपूर्ण सोचने का ढंग जो इंसानी भावनाओं को प्रभावित कर उसके दिमाग में रासायनिक असंतुलन पैदा करता है (Stress affects the human emotions and creates chemical imbalance) और इसलिए उसके मानसिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य पर कुप्रभाव डालता है. आज कल यह समस्या बढ़ रही है.

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