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हकलाने में मददगार हो सकती है स्पीच थेरेपी - speech problems

स्टैमरिंग यानी हकलाना एक समस्या है जो बच्चों और बड़ों में अलग-अलग कारणों से हो सकती है. ज्यादातर मामलों में इलाज तथा स्पीच थेरेपी की मदद से इसका इलाज किया जा सकता है. दुनिया भर में लोगों में हकलाने की समस्या तथा उसके इलाज को लेकर जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से 22 अक्टूबर को “ इंटरनेशनल स्टैमरिंग अवेयरनेस डे/अंतरराष्ट्रीय हकलाहट जागरूकता दिवस”  मनाया जाता है.

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स्पीच थेरेपी
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Published : Oct 22, 2021, 6:00 AM IST

हमारे समाज में किसी व्यक्ति की अपंगता या शारीरिक तथा मानसिक कमी का मजाक बनाना आम बात है. किसी का लंगड़ा कर चलना, आँखों में समस्या, त्वचा संबंधी समस्या उसे लोगों में हंसने का पात्र बना देते हैं. ऐसी ही एक समस्या है हकलाना. यदि कोई व्यक्ति अटक-अटक कर बात कर रहा हो या उसे बोलने में समस्या आ रही हो, तो दूसरे लोग बगैर यह समझे कि यह कोई बीमारी या समस्या हो सकती है,उसका मजाक उड़ाने लगते हैं. जो पीड़ित में हीनता का भाव उत्पन्न करने लगता है.

लोगों को इसी तथ्य से रूबरू कराने कि हकलाना एक ऐसी समस्या है,जो किसी शारीरिक, मानसिक या भावनात्मक समस्या के कारण हो सकती है तथा इससे जुड़ी अन्य जरूरी बातों को लेकर लोगों में जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से 22 अक्टूबर को दुनिया भर में “अंतरराष्ट्रीय हकलाहट जागरूकता दिवस” मनाया जाता है.

बच्चों तथा बड़ों में स्टैमरिंग यानी हकलाने की समस्या अलग-अलग कारणों से हो सकती है. ऐसे में स्पीच थेरेपी इस समस्या को दूर करने में मददगार हो सकती है. लेकिन यहां यह जानना भी जरूरी है कि स्पीच थेरेपी हकलाने का शत-प्रतिशत इलाज नहीं होती है. मस्तिष्क में गंभीर समस्या या अनुवांशिकता के कुछ मामलों में हकलाने की समस्या में स्पीच थेरेपी ज्यादा मदद नहीं कर पाती है.

क्या है हकलाना

दरअसल हकलाना एक आम बोलने से संबंधित समस्या है. जो किसी शारीरिक या मानसिक बीमारी, भावनात्मक उथल-पुथल या सदमें, दुर्घटना, स्ट्रोक तथा अन्य कारणों के चलते मस्तिष्क के प्रभावित होने पर हो सकती है. कुछ लोगों में यह समस्या अनुवांशिक तौर पर भी नजर आती है. आम तौर पर यदि परिवार में इस समस्या का इतिहास हो तो 3 में से 2 लोगों में हकलाने की समस्या नजर आ सकती है.

बेंगलुरु के स्पीच थैरेपिस्ट सचिन भारद्वाज बताते हैं कि आमतौर पर स्टैमरिंग के दो मुख्य प्रकार माने जाते हैं. पहला, डेवलपमेंटल स्टैमरिंग (Developmental Stammering), जिसमें छोटे बच्चों में देर से बोलने की समस्या नजर आती है, और जब वह बोलने भी लगते हैं तो कई बार वह साफ बोलने की बजाय ज्यादातर अटक अटक कर बोलते हैं.

वही दूसरा प्रकार है लेट ऑनसेट स्टैमरिंग (Late Onset Stammering), जिसमें ऐसे लोग जो पहले सही तरह से बात करते हों लेकिन बाद में किसी बीमारी या दुर्घटना के कारण मस्तिष्क को पहुंचने वाले नुकसान के कारण सहज तरीके से और साफ बोलने में असमर्थ हो जाते हैं. इसके अलावा कई बार लोगों में साइकोजेनिक कारणों यानी किसी सदमे या मानसिक त्रास के चलते भी बोलने में समस्या होने लगती है.

सचिन भारद्वाज बताते हैं कि बच्चों में देर से बोलने की समस्या या हकलाने की समस्या पता चलते ही उनकी स्पीच यानी बोलने की क्षमता पर काम किया जाना बहुत जरूरी होता है. सही समय पर सही थेरेपी मिलने से ज्यादातर मामलों में इस समस्या को दूर किया जा सकता है. लेकिन इसमें समय लग सकता है इसलिए बहुत जरूरी है की पूरी थेरेपी के दौरान माता-पिता धैर्य बनाकर रखें तथा चिकित्सक द्वारा बताए गए निर्देशों का पूरी तरह से पालन करें.

वे बताते हैं कि कई बार माता-पिता या परिजनों का व्यवहार उन बच्चों के आत्मविश्वास में कमी ले आता है जिन्हें बोलने में पहले से ही समस्या होती है. जिससे उनके ठीक होने की रफ्तार पर भी असर पड़ता है.

कैसे मददगार होती है स्पीच थेरेपी

सचिन भारद्वाज बताते हैं कि बच्चों में इस समस्या के लक्षण नजर आने के बाद सबसे पहले उनकी पीडियाट्रिक जांच जरूरी होती है. जिससे बच्चे में हकलाने के कारणों का पता चल सके. कारणों की जानकारी लेने के उपरांत ही बाद स्पीच थेरेपिस्ट द्वारा बच्चों की समस्या को दूर करने के लिए उनकी जरूरत के अनुसार थेरेपी का चयन किया जाता है, जिसमें कई बार इलेक्ट्रॉनिक प्रतिक्रिया उपकरणों का भी उपयोग किया जाता है.

स्पीच थेरेपी में, प्रभावित व्यक्ति में बोलने की क्षमता को सही तरीके से विकसित करने के लिए मुंह, जबड़े और जीभ की मांसपेशियों से जुड़े विभिन्न व्यायाम, अक्षरों व ध्वनियों के उच्चारण, धीरे-धीरे शब्दों को बोलने का अभ्यास तथा श्वास संबंधी व्यायाम सहित कई अन्य प्रक्रियाओं की सहायता ली जाती है.

इसके अतिरिक्त कई बार “डीलेड ऑडिटोरी फीडबैक डिवाइस” (विलंबित श्रवण प्रतिक्रिया उपकरण) की भी सहायता ली जाती है जिसमें माइक्रोफोन, हेडफोन तथा अन्य इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की मदद से बच्चे या बड़े में सुनने और बोलने की क्षमता विकसित करने का प्रयास किया जाता है.

वही व्यस्कों में हकलाने के लिए मुख्यतः न्यूरोजेनिक तथा साइकोजेनिक समस्याओं को जिम्मेदार माना जाता है. जिसके चलते उनकी समस्याओं के कारणों को जानने के बाद ही उनके सामान्य चिकित्सीय इलाज के साथ उनकी स्पीच थेरेपी निर्धारित की जाती है.

ऐसे लोग जो किसी साइकोजेनिक समस्या यानी किसी अघात या सदमे के कारण हकलाने की समस्या का शिकार हुए हों , के लिए स्पीच थेरेपी से पहले किसी मनोचिकित्सक द्वारा जांच कराया जाना भी जरूरी होता है.

इन बातों पर ध्यान जरूरी

सचिन भारद्वाज बताते हैं कि स्पीच थेरेपी हकलाने का शत-प्रतिशत इलाज नहीं है लेकिन अधिकांश मामलों में यह काफी फायदेमंद होती है. वे बताते है कि थेरेपी के साथ ही बहुत जरूरी है कि पीड़ित के परिजन विशेषकर बच्चों के मामले में उसके माता पिता या भाई बहन सकारात्मक तथा प्रोत्साहन देने वाला रवैया अपनाएं.

इसके लिए कुछ बातों को ध्यान में रखना काफी फायदेमंद हो सकता है जो इस प्रकार है.

  • बच्चे की ओर हीन भावना भरा रवैया ना रखें बल्कि उसे बोलने के लिए प्रोत्साहित करें.
  • उसके बोलते समय धैर्य रखें और उसकी पूरी बात को ध्यान से सुने. बात करते समय उसे बीच में टोके नहीं.
  • उसे ज्यादा से ज्यादा बात करने के लिए प्रोत्साहित करें, यदि बोलते समय वह बीच में अटकता है या स्पष्ट नहीं बोल पाता है तो उसे डांटे नहीं.
  • उसे अपनी बातों को छोटे-छोटे वाक्यों में कहने के लिए प्रोत्साहित करें, इससे वह सरलता से अपने वाक्यों को पूरा कर पाएगा.

पढ़ें: अभिव्यक्ति में असमर्थ होते हैं ऑटिस्टिक लोग

हमारे समाज में किसी व्यक्ति की अपंगता या शारीरिक तथा मानसिक कमी का मजाक बनाना आम बात है. किसी का लंगड़ा कर चलना, आँखों में समस्या, त्वचा संबंधी समस्या उसे लोगों में हंसने का पात्र बना देते हैं. ऐसी ही एक समस्या है हकलाना. यदि कोई व्यक्ति अटक-अटक कर बात कर रहा हो या उसे बोलने में समस्या आ रही हो, तो दूसरे लोग बगैर यह समझे कि यह कोई बीमारी या समस्या हो सकती है,उसका मजाक उड़ाने लगते हैं. जो पीड़ित में हीनता का भाव उत्पन्न करने लगता है.

लोगों को इसी तथ्य से रूबरू कराने कि हकलाना एक ऐसी समस्या है,जो किसी शारीरिक, मानसिक या भावनात्मक समस्या के कारण हो सकती है तथा इससे जुड़ी अन्य जरूरी बातों को लेकर लोगों में जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से 22 अक्टूबर को दुनिया भर में “अंतरराष्ट्रीय हकलाहट जागरूकता दिवस” मनाया जाता है.

बच्चों तथा बड़ों में स्टैमरिंग यानी हकलाने की समस्या अलग-अलग कारणों से हो सकती है. ऐसे में स्पीच थेरेपी इस समस्या को दूर करने में मददगार हो सकती है. लेकिन यहां यह जानना भी जरूरी है कि स्पीच थेरेपी हकलाने का शत-प्रतिशत इलाज नहीं होती है. मस्तिष्क में गंभीर समस्या या अनुवांशिकता के कुछ मामलों में हकलाने की समस्या में स्पीच थेरेपी ज्यादा मदद नहीं कर पाती है.

क्या है हकलाना

दरअसल हकलाना एक आम बोलने से संबंधित समस्या है. जो किसी शारीरिक या मानसिक बीमारी, भावनात्मक उथल-पुथल या सदमें, दुर्घटना, स्ट्रोक तथा अन्य कारणों के चलते मस्तिष्क के प्रभावित होने पर हो सकती है. कुछ लोगों में यह समस्या अनुवांशिक तौर पर भी नजर आती है. आम तौर पर यदि परिवार में इस समस्या का इतिहास हो तो 3 में से 2 लोगों में हकलाने की समस्या नजर आ सकती है.

बेंगलुरु के स्पीच थैरेपिस्ट सचिन भारद्वाज बताते हैं कि आमतौर पर स्टैमरिंग के दो मुख्य प्रकार माने जाते हैं. पहला, डेवलपमेंटल स्टैमरिंग (Developmental Stammering), जिसमें छोटे बच्चों में देर से बोलने की समस्या नजर आती है, और जब वह बोलने भी लगते हैं तो कई बार वह साफ बोलने की बजाय ज्यादातर अटक अटक कर बोलते हैं.

वही दूसरा प्रकार है लेट ऑनसेट स्टैमरिंग (Late Onset Stammering), जिसमें ऐसे लोग जो पहले सही तरह से बात करते हों लेकिन बाद में किसी बीमारी या दुर्घटना के कारण मस्तिष्क को पहुंचने वाले नुकसान के कारण सहज तरीके से और साफ बोलने में असमर्थ हो जाते हैं. इसके अलावा कई बार लोगों में साइकोजेनिक कारणों यानी किसी सदमे या मानसिक त्रास के चलते भी बोलने में समस्या होने लगती है.

सचिन भारद्वाज बताते हैं कि बच्चों में देर से बोलने की समस्या या हकलाने की समस्या पता चलते ही उनकी स्पीच यानी बोलने की क्षमता पर काम किया जाना बहुत जरूरी होता है. सही समय पर सही थेरेपी मिलने से ज्यादातर मामलों में इस समस्या को दूर किया जा सकता है. लेकिन इसमें समय लग सकता है इसलिए बहुत जरूरी है की पूरी थेरेपी के दौरान माता-पिता धैर्य बनाकर रखें तथा चिकित्सक द्वारा बताए गए निर्देशों का पूरी तरह से पालन करें.

वे बताते हैं कि कई बार माता-पिता या परिजनों का व्यवहार उन बच्चों के आत्मविश्वास में कमी ले आता है जिन्हें बोलने में पहले से ही समस्या होती है. जिससे उनके ठीक होने की रफ्तार पर भी असर पड़ता है.

कैसे मददगार होती है स्पीच थेरेपी

सचिन भारद्वाज बताते हैं कि बच्चों में इस समस्या के लक्षण नजर आने के बाद सबसे पहले उनकी पीडियाट्रिक जांच जरूरी होती है. जिससे बच्चे में हकलाने के कारणों का पता चल सके. कारणों की जानकारी लेने के उपरांत ही बाद स्पीच थेरेपिस्ट द्वारा बच्चों की समस्या को दूर करने के लिए उनकी जरूरत के अनुसार थेरेपी का चयन किया जाता है, जिसमें कई बार इलेक्ट्रॉनिक प्रतिक्रिया उपकरणों का भी उपयोग किया जाता है.

स्पीच थेरेपी में, प्रभावित व्यक्ति में बोलने की क्षमता को सही तरीके से विकसित करने के लिए मुंह, जबड़े और जीभ की मांसपेशियों से जुड़े विभिन्न व्यायाम, अक्षरों व ध्वनियों के उच्चारण, धीरे-धीरे शब्दों को बोलने का अभ्यास तथा श्वास संबंधी व्यायाम सहित कई अन्य प्रक्रियाओं की सहायता ली जाती है.

इसके अतिरिक्त कई बार “डीलेड ऑडिटोरी फीडबैक डिवाइस” (विलंबित श्रवण प्रतिक्रिया उपकरण) की भी सहायता ली जाती है जिसमें माइक्रोफोन, हेडफोन तथा अन्य इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की मदद से बच्चे या बड़े में सुनने और बोलने की क्षमता विकसित करने का प्रयास किया जाता है.

वही व्यस्कों में हकलाने के लिए मुख्यतः न्यूरोजेनिक तथा साइकोजेनिक समस्याओं को जिम्मेदार माना जाता है. जिसके चलते उनकी समस्याओं के कारणों को जानने के बाद ही उनके सामान्य चिकित्सीय इलाज के साथ उनकी स्पीच थेरेपी निर्धारित की जाती है.

ऐसे लोग जो किसी साइकोजेनिक समस्या यानी किसी अघात या सदमे के कारण हकलाने की समस्या का शिकार हुए हों , के लिए स्पीच थेरेपी से पहले किसी मनोचिकित्सक द्वारा जांच कराया जाना भी जरूरी होता है.

इन बातों पर ध्यान जरूरी

सचिन भारद्वाज बताते हैं कि स्पीच थेरेपी हकलाने का शत-प्रतिशत इलाज नहीं है लेकिन अधिकांश मामलों में यह काफी फायदेमंद होती है. वे बताते है कि थेरेपी के साथ ही बहुत जरूरी है कि पीड़ित के परिजन विशेषकर बच्चों के मामले में उसके माता पिता या भाई बहन सकारात्मक तथा प्रोत्साहन देने वाला रवैया अपनाएं.

इसके लिए कुछ बातों को ध्यान में रखना काफी फायदेमंद हो सकता है जो इस प्रकार है.

  • बच्चे की ओर हीन भावना भरा रवैया ना रखें बल्कि उसे बोलने के लिए प्रोत्साहित करें.
  • उसके बोलते समय धैर्य रखें और उसकी पूरी बात को ध्यान से सुने. बात करते समय उसे बीच में टोके नहीं.
  • उसे ज्यादा से ज्यादा बात करने के लिए प्रोत्साहित करें, यदि बोलते समय वह बीच में अटकता है या स्पष्ट नहीं बोल पाता है तो उसे डांटे नहीं.
  • उसे अपनी बातों को छोटे-छोटे वाक्यों में कहने के लिए प्रोत्साहित करें, इससे वह सरलता से अपने वाक्यों को पूरा कर पाएगा.

पढ़ें: अभिव्यक्ति में असमर्थ होते हैं ऑटिस्टिक लोग

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