शारीरिक और मानसिक प्रेम का प्रतीक ये शादी का बंधन कई बार प्रभुसत्ता, वासना तथा दूषित मानसिक सोच और अस्वस्थताओं के चलते पथरीला हो जाता है. हमारे पुरुष प्रधान समाज में शादी के उपरांत शारीरिक संबंधों से जुड़ी इच्छाओं को पुरुषों के अधिकार क्षेत्र में समझा जाता, यौनिक हिंसा, उसके संभावित कारणों तथा उसके पीड़ित पर असर को लेकर ETV भारत सुखीभवा टीम ने वरिष्ठ मनोचिकित्सा डॉ. वीना कृष्णन से बात की.
विवाह उपरांत यौन हिंसा
डॉ. कृष्णन बताती है हमारे पुरुष प्रधान समाज में हमेशा से ही शारीरिक संबंध बनाने की इच्छा या अनिच्छा पुरुषों के अधिकार क्षेत्र में आती रही है. वहीं विवाह उपरांत महिलाओं के साथ स्वयं उनके पति द्वारा जबरन बनाए जाने वाले हिंसक शारीरिक संबंधों की घटनाएं भी कोई नई बात नहीं है. लेकिन पहले के समय में महिलायें इन सब घटनाओं को शादी का हिस्सा मान कर तथा अपना नसीब समझ कर सब कुछ सहती रहती थी.
डॉ. कृष्णन बताती है की विवाह उपरांत काउंसिलिंग के लिए आने वाली महिलाओं में एक अच्छा खासा प्रतिशत ऐसी महिलाओं का होता है, जो जबरन और हिंसक शारीरिक संबंधों की शिकार होती है. इनमें से एक बड़ा प्रतिशत ऐसी होता है, जिनकी शादी को एक लंबा अरसा बीत चुका है. ये महिलायें अत्यधिक अवसाद, निराशा तथा बैचेनी जैसी मानसिक अवस्थाओं से ग्रसित होती है. और कई बार स्थिति इतनी चिंतनीय होती है की उनमें स्वयं की जान लेने की प्रवत्ति भी उत्पन्न हो जाती है. विवाह उपरांत यौनिक हिंसा जिसे वैवाहिक बलात्कार तक कहा जाता है, पीड़ित के लिए उतना ही दर्दनाक तथा विनाशकारी होता है, जितना की किसी और पुरुष द्वारा किया गया बलात्कार. लेकिन चूंकि हिंसा शादी के उपरांत पति द्वारा ही की जा रही है, इसलिए उसे अपराध की श्रेणी में नहीं माना जाता है.
वैवाहिक बलात्कार के कारण
डॉ. कृष्णन बताती हैं की रिश्ते में श्रेष्ठता की लड़ाई ज्यादातर मैरिटल रेप की वजह बनती है. जब पति और पत्नी के बीच विवाद बढ़ता है, तो पति अपने अहम और कई बार उच्चता को साबित करने या फिर पत्नी को सजा देने के लिए उस पर शारीरिक रूप से हावी होने की कोशिश करता है. जिसके चलते वह जबरन हिंसक संभोग करता है.
कभी-कभी एक रिश्ते को कई तरह की शारीरिक और मानसिक बीमारियां भी प्रभावित करती है. शारीरिक अस्वस्थता, अवसाद या फिर बढ़ती उम्र के कारण कई बार महिलाओं में शारीरिक संबंधों को लेकर अरुचि उत्पन्न होने लगती है. आमतौर पर देखा जाता है कि महिलाओं के मुकाबले पुरुषों को सेक्स की जरूरत या कामना अधिक होती है. इसलिए जब आदमी को सेक्स से वंचित किया जाता है, तो वह उसे अपनी मर्दानगी के अपमान के रूप में देखता है.
मानसिक रूप से स्वस्थ नहीं होते हैं ऐसे पति
डॉ. कृष्णन कहती है की ज्यादातर मामलों में यौनिक हिंसा के आरोपियों में आत्म सम्मान की कमी देखी जाती है. यहां तक की ज्यादातर मामलों में उन्हें अपनी गलती का एहसास तक नहीं होता है. ऐसे लोगों की मानसिक अवस्था को स्वस्थ नहीं माना जा सकता है, क्योंकि अपने जीवन को लेकर वे काफी कुंठायें पाले रहते है. ऐसे में जब उनका साथी उन्हे शरीरिक संबंधों के लिए मना करता है, तो वह इस बात को अपनी असफलता तथा कुंठों से जोड़ने लगता है. इसके अलावा ऐसे पुरुष जिन्होंने बचपन से अपने घर में महिलाओं के साथ असमानता और दुर्व्यवहार का माहौल देखा हो, वे भी इसे सामान्य मानते हुए अपने साथी के साथ वैसा ही आक्रामक व्यवहार करने लगते है.
वैवाहिक बलात्कार का लम्बे समय में क्या असर पड़ता हैं?
डॉ. कृष्णन बताती है की यौनिक हिंसा या वैवाहिक बलात्कार की शिकार महिलाओं में कई प्रकार की मानसिक अस्वास्थताओं के लक्षण नजर आते है, जैसे नैदानिक या क्लीनिकल डिप्रेशन, डर, चिंता और बेचैनी, आत्मविश्वास की कमी तथा आत्म सम्मान की कमी.
हमारे समाज में जहां शादीशुदा रिश्तों में जबरदस्ती के सम्बन्धों को भी शादी का हिस्सा ही माना जाता है. वैवाहिक बलात्कार पर रोक लगाना संभव नहीं है, लेकिन यदि परिवार में किसी के साथ ऐसी घटना होती हो, तो पति और पत्नी दोनों को इलाज और काउंसलिंग की जरूरत पड़ती है. ऐसे मामलों में किसी मनोचिकित्सक या साइकोलॉजिस्ट से बात करना जरूरी और फायदेमंद होता है.