संयुक्त राष्ट्र की एक पहल के तहत कोविड-19 वैक्सीन को लेकर गलत सूचना के मुद्दे से निपटने और मिथकों को तोड़ने के लिए 100 से अधिक वैज्ञानिकों ने हाथ मिलाया है. यह वैज्ञानिक मिथकों का भंडाफोड़ करके सोशल मीडिया के माध्यम से वैक्सीन की सुरक्षा और प्रभावशीलता पर जानकारी साझा करेंगे.
संयुक्त राष्ट्र (यूएन) ने टीम हेलो के साथ लंदन विश्वविद्यालय में द वैक्सीन कॉन्फिडेंस प्रोजेक्ट के साथ मिलकर एक पहल की है, जिसका उद्देश्य कोविड-19 वैक्सीन को लेकर फैली गलत एवं भ्रामक सूचना से निपटना है.
कोरोनावायरस वैक्सीन की दौड़ में शामिल विभिन्न संस्थानों से जुड़े वैज्ञानिकों की ओर से इस पहल का विश्व स्तर पर समर्थन किया गया है, जिसमें दुनिया के शीर्ष संस्थानों जैसे इंपीरियल कॉलेज लंदन, हार्वर्ड मेडिकल स्कूल, साओ पाउलो विश्वविद्यालय, बार्सिलोना विश्वविद्यालय और कई अन्य शामिल हैं.
भारत में भी 22 से अधिक प्रसिद्ध चिकित्सा संस्थानों के वैज्ञानिक इस टीम में शामिल हैं. इन संस्थानों में इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज और सुम हॉस्पिटल; पीजीआईएमईआर, निजाम इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज, आईआईटी इंदौर, क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज, एसआरएम रिसर्च इंस्टीट्यूट और दीप चिल्ड्रेन हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर शामिल हैं.
क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज, वेल्लोर में माइक्रोबायोलॉजी के प्रोफेसर गगनदीप कंग ने एक बयान में कहा, 'मेरे संस्थान में, हम अध्ययन कर रहे हैं कि कोविड-19 पुन: निर्माण (रि-इंफेक्शन) कैसे संचालित होता है. मैं जनता के लिए कोविड-19 के टीके (वैक्सीन) को खोजने की कहानी को बताने के लिए उत्साहित हूं.'
उन्होंने कहा, 'लोग सुर्खियों के पीछे के विज्ञान और कहानियों के बारे में जानना चाहते हैं और मुझे गंभीर बिंदुओं को सोशल मीडिया के माध्यम से रचनात्मक तरीकों से प्रस्तुत करने में खुशी हो रही है.'
टीम हेलो इंडिया, वैज्ञानिकों को जनता के सवालों के जवाब देने और इंटरनेट के कुछ हिस्सों में फैलने वाली वैक्सीन संबंधी गलत सूचनाओं और अफवाहों का सीधे जवाब देने की भी अनुमति देगा.
भारत के अलावा टीम हेलो का लक्ष्य अमेरिका, ब्रिटेन, दक्षिण अफ्रीका, कतर, संयुक्त अरब अमीरात (यूएई), फ्रांस, स्पेन, पेरू, कनाडा और ब्राजील में वैज्ञानिकों द्वारा किए गए काम को सामने लाना है और कोविड-19 पर काम कर रहे वैज्ञानिकों के बीच संचार के लिए एक मंच स्थापित करना है.