कभी-कभी किसी सदमे, दुखद घटना या दुर्घटना के शिकार व्यक्ति में उसके प्रभाव लंबे समय तक नजर आते रहते हैं. लंबे समय तक इस स्थिति से बाहर ना आ पाने के कारण ‘पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (Post Traumatic Stress Disorder) या PTSD मनोविकार होता है. नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ (National Institute of Mental Health) की वेबसाइट (www.nimh.nih.gov) पर उपलब्ध जानकारी के अनुसार पीटीएसडी यानि “पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसॉर्डर” एक ऐसा मानसिक विकार हैं जिसमें पीड़ित किसी हादसे या घटना से जुड़ी यादों से बाहर नही आ पाता है. जिसके चलते पीड़ित व्यक्ति का मानसिक स्वास्थ्य तो प्रभावित होता ही है साथ ही उसके शारीरिक व व्यवहारिक स्वास्थ्य पर भी इसका असर पड़ सकता है. वहीं जानकार मानते हैं कि यदि समय रहते हुए इस विकार से निवारण के लिए प्रयास ना किया जाय तो पीड़ित में अवसाद यहां तक की आत्मघाती प्रवृत्ति उत्पन्न होने की आशंका भी हो सकती है.
क्या कहते हैं विशेषज्ञ : देहरादून की वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ वीना कृष्णन (Veena Krishnan, Senior Psychiatrist, Dehradun) बताती हैं कि पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसॉर्डर एक ऐसा विकार है जिसके निवारण के लिए यदि समय रहते प्रयास ना किए जाए तो कई बार गंभीर परिणाम भी सामने आ सकते हैं, जैसे पीड़ित की मनः स्तिथि पूरी तरह से खराब हो सकती है यहां तक की उसमें सुसाइडल प्रवृत्ति (Suicidal tendency) यानी आत्महत्या (commit suicide) करने की इच्छा भी जागृत हो सकती है.
ETV भारत सुखीभव को पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर के बारें में ज्यादा जानकारी देते डॉ कृष्णन (Dr. Veena Krishnan) बताती हैं कि आमतौर पर यह मानसिक स्वास्थ्य विकार किसी दुर्घटना, प्रियजन की मृत्यु या अपंगता, सदमा, अपराध या घरेलू हिंसा का साक्षी बनने तथा और युद्ध या महामारी जैसे सामाजिक कारणों के चलते उत्पन्न हुए गंभीर मनोवैज्ञानिक मानसिक और भावनात्मक तनाव के कारण होता है.
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वह बताती हैं कि यह समस्या किसी भी लिंग या उम्र के व्यक्ति को हो सकती है लेकिन इस विकार से पीड़ित लोगों से जुड़े आंकड़ों की माने तो पुरुषों की तुलना में महिलाओं में इस विकार के विकसित होने की आशंका अधिक होती है. इसके अलावा वे लोग जो पहले से ही तनाव, अवसाद या कमजोर मन स्थिति का शिकार होते है, उनमें इस समस्या के होने की आशंका काफी ज्यादा होती है.
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शोधों के अनुसार : गौरतलब है कि पूर्व में पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसॉर्डर (Post Traumatic Stress Disorder) के कारणों तथा उससे जुड़े तथ्यों को लेकर शोध किए जाते रहें हैं. उनमें से कुछ के निष्कर्षों में कुछ शारीरिक अवस्थाओं को भी इस विकार के लिए जिम्मेदार माना गया है. वर्ष 2008 में हुए एक शोध के अनुसार हमारे मस्तिष्क का हिप्पोकैम्पस नामक वह हिस्सा जो यादों और भावनाओं के अनुभव में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, यदि आकार में छोटा हो, तो भी पीटीएसडी (PTSD) होने की आशंका बढ़ जाती है. वहीं कुछ शोधों में यह भी माना गया है कि PTSD से ग्रसित लोगों में तनाव पैदा करने वाले हार्मोन का स्तर असामान्य होता है.
लक्षण तथा इलाज : डॉ कृष्णन बताती है कि Post Traumatic Stress Disorder के लिए कई कारण जिम्मेदार हो सकते हैं. लेकिन यदि इसके लक्षण किसी व्यक्ति में ज्यादा प्रत्यक्ष रूप से नजर आने लगे तो उसका इलाज बहुत जरूरी हो जाता है. वह बताती हैं कि चूंकि हर पीड़ित में PTSD के कारण तथा प्रभाव अलग-अलग हो सकते है इसलिए हर मरीज के इलाज का तरीका भी अलग-अलग हो सकता है. सामान्य तौर पर इस विकार के इलाज के लिए मरीज की काउंसलिंग, हिप्नोसिस, टॉक थेरेपी, एकल या ग्रुप साइकोथेरेपी, एक्सपोज़र थेरेपी तथा कॉग्निटिव रिस्ट्रक्चरिंग थेरेपी सहित अन्य प्रकार की थेरेपियों और एंटीडिप्रेसेंट्स (patient counseling, hypnosis, talk therapy, single or group psychotherapy, exposure therapy and cognitive restructuring therapy, and antidepressants medicines) व अन्य प्रकार की दवाइयों की मदद ली जाती है. वह बताती हैं कि PTSD के मरीजों में कुछ लक्षण आम होते हैं जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं.
- व्यवहारिक समस्याएं होना जैसे चिड़चिड़ापन, एकाग्रता में कमी, हमेशा उदास रहना, रोते रहना या परेशान रहना
- सामाजिक जीवन से दूरी बना लेना Distance from social life
- नींद, भूख और प्यास में कमी होना Loss of sleep, appetite and thirst
- दुखद घटनाओं का बार-बार याद आना
- नींद में चौंक जाना या डर जाना
- हमेशा बुरी घटना होने का डर मन में रहना
- सोच में नकारात्मकता बढ़ जाना Increased negativity in thinking
जरूरी है देखभाल (Care is necessary) : डॉ कृष्णन (Dr Veena Krishnan Dehradun) बताती हैं कि इस विकार से पीड़ित लोगों का विशेष ध्यान रखना बहुत जरूरी होता है. उनमें साथ हमेशा संयम और धैर्य के साथ व्यवहार करना चाहिए. इसके अलावा उनसे लगातार संवाद बनाए रखना, उनके आसपास का माहौल खुशनुमा बनाए रखना तथा उनके साथ हमेशा सकारात्मक बातें करना बहुत जरूरी होता है. साथ ही बहुत जरूरी होता है कि उन्हे तनाव से दूर रखने के लिए हर संभव प्रयास करना.
इसके लिए व्यायाम, ध्यान और योग को जीवनशैली में शामिल करने से (Incorporating exercise, meditation and yoga into the lifestyle can be of great benefits) काफी फायदा मिल सकता है. इसके अलावा ऐसे कार्य करने से जिनसे खुशी मिलती हो तथा दिमाग व्यस्त रहता है जैसे नृत्य, बागवानी और तैराकी (dancing, gardening and swimming)आदि, को भी अपनाया जा सकता है. वह बताती हैं कि इस विकार से पीड़ित लोगों को शराब या ड्रग्स के सेवन से पूरी तरह से बचना चाहिए. ऐसा करना ना केवल पीड़ित की स्थिति को ज्यादा खराब करता है बल्कि कई अन्य मानसिक विकारो के पैदा होने की आशंका भी बढ़ा सकता है.
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