फेफड़ों को प्रभावित करने वाली अवस्थाएं
डॉक्टर संदीप बताते हैं कि गंभीर प्रभाव वाले कोरोना संक्रमण से ठीक होने के उपरांत पीड़ित के श्वसन तंत्र से जुड़े अंगों के क्षतिग्रस्त होने की आशंका काफी ज्यादा रहती है। यहीं नही इसके चलते विभिन्न प्रकार के पल्मोनरी सीक्वेल यानी फेफड़ों के लंबी अवधि तक चलने वाले रोग पीड़ित की अवस्था को गंभीर बना सकते हैं। जैसे चिरकारी फुफुसीय रोग यानी फेफड़ों का गंभीर रोग तथा निमोनिया की तर्ज पर फेफड़ों में फाइब्रोसिस।
ऐसी अवस्था में सही समय और सही तरीके से पीड़ित के फेफड़ों के पुनर्वास के लिए कार्य किया जाना जरूरी हो जाता है। जिसके लिए फिजियोथेरेपी तकनीकों की मदद ली जा सकती है।
कोरोना से ठीक होने के उपरांत फेफड़ों के पुनर्वास के लिए निम्नलिखित तकनीकों का उपयोग किया जा सकता है।
- डायफ्रागमेटिक ब्रिदिंग या बेली ब्रिदिंग: इसके नियमित अभ्यास से ना सिर्फ हमारे पेट की मांसपेशियों की कसरत होती है बल्कि यह फेफड़ों को भी पूरी तरह से खोलने में मदद करते हैं।
- परस्यूड लिप ब्रिदिंग : सिकुड़े या पाउट के आकार में होठों से सांस लेने की तकनीक से भी फेफड़ों की क्षमता बढ़ती है। और फेफड़े ज्यादा मात्रा में ऑक्सीजन ग्रहण कर पाते हैं।
- ब्रॉनकल हाइजीन : इसके तहत ऐसे बहुत से तरीके आते हैं जो कि शरीर के वायु मार्ग को साफ करने का कार्य करते हैं जैसे पोस्चरल ड्रेनेज, वाइब्रेशन यानी कंपन, सेक्शनिंग यानी चूषण। आमतौर पर कोमोरबिटी समस्याओं जैसे ब्रोंकाइटिस, निमोनिया तथा शरीर में सेक्रेशन में बढ़ोतरी होने पर पीड़ित को यह अभ्यास किए जाने की सलाह तथा निर्देश दिए जाते हैं।
- प्रवण स्थिति : अंग्रेजी में प्रोन पोजिशनिंग यानी प्रवण स्थिति सांस लेने में आराम के लिए और ऑक्सीकरण में सुधार करने के मददगार मानी जाती है। इसमें मरीज को पेट के बल लिटाया जाता है। यह प्रक्रिया 30 मिनट से दो घंटे की होती है। इसे करने से फेफड़ों में रक्त संचार बेहतर होता है जिससे ऑक्सीजन फेफड़ों में आसानी से पहुंचती है और फेफड़े अच्छे से काम करने लगते हैं।
लंग एक्सपेन्शन यानी फेफड़ों को फुलाने की तकनीक
डॉ संदीप बताते हैं की श्वास निःसारण संबंधी व्यायाम जिसमें श्वसन तंत्र विशेषकर फेफड़ों पर दबाव पड़ता है , भी फेफड़ों की क्षतिग्रस्त मांसपेशियों के पुनर्वास तथा सांस लेने की क्षमता को बेहतर बनाने में मददगार साबित हो सकते हैं। ऐसे कुछ अभ्यास इस प्रकार हैं।
- इंसेंटिव स्पायरोमेट्री यानी प्रोत्साहन स्पायरोमेट्री
- मैनुअल मोबिलाइजेशन ऑफ रिब केज यानी छाती की हड्डियों की देखभाल के लिए कराए जाने वाले व्यायाम
- रेस्पिरेट्री मसल ट्रेनिंग यानी श्वसन तंत्र की मांसपेशियों के लिए व्यायाम
- एरोबिक व्यायाम
डॉ संदीप बताते हैं की कम या मध्यम तीव्रता वाले कोरोना से ठीक होने के बाद आमतौर पर पीड़ित सामान्य गति में ऐसे अभ्यास कर सकता है। लेकिन कुछ विशेष परिस्थितियों में बिना चिकिसीय सलाह या परामर्श के उसे ऊपर बताए गए या फिर किसी भी प्रकार के व्यायाम नही करने चाहिए। यह परिस्तिथ्या इस प्रकार हैं।
- यदि पीड़ित के ठीक होने के बाद भी शरीर में गंभीर पार्श्वप्रभाव नजर आ रहे हो
- वह प्रकार के रोग या संक्रमण की चपेट में आ गया हों
- इन व्यायामों या अभ्यासों के दौरान उसे सांस लेने में या फिर अन्य समस्याये महसूस हो रही हो।
कोरोना से ठीक होने के उपरांत भी यदि पीड़ित की स्थिति गंभीर रहे या उसे ज्यादा समस्याएं महसूस होने लगे तो उसे तुरंत चिकित्सक की सलाह लेनी चाहिए, जिससे आवश्यकता पड़ने पर उसे अस्पताल में एडमिट किया जा सके और आवश्यकता अनुसार उसे नॉन इंवेसिव तथा इंवेसिव इनवेसिव वेंटीलेशन पर रखा जा सके।
पढ़ें : अस्पताल से घर आने के उपरांत कैसे करें कोरोना मरीजों की देखभाल
व्यायाम के लिए ध्यान देने योग्य बातें
डॉ संदीप बताते हैं की कोरोना से ठीक होने के उपरांत हमारे श्वसन तंत्र पर किसी भी तरह का दबाव ना पड़े इसके लिए बहुत जरूरी है कि ठीक होने के तुरंत उपरांत फेफड़ों के पुनर्वास के लिए प्रयासों की शुरुआत नहीं करनी चाहिए। आमतौर पर कोरोना से ठीक होने के उपरांत कम से कम 3 महीने ऐसे व्यायाम नहीं करने चाहिए जिनसे शरीर पर जरूरत से ज्यादा दबाव पड़े या थकान महसूस हो। यहीं हल्के- फुल्के अभ्यास, हल्की स्ट्रेचिंग या प्राणायाम जैसे व्यायाम भी चिकित्सीय सलाह के उपरांत ही करने चाहिए।
कुछ विशेष परिस्थितियों में फेफड़ों के पुनर्वास के लिए बिल्कुल भी व्यायाम नही करने चाहिए। जैसे
- यदि किसी को बुखार हो
- आराम करते समय यदि किसी व्यक्ति को सांस लेने में समस्या हो रही हो या सांस कम आ रही हो
- छाती में किसी प्रकार का दर्द महसूस हो रहा हो या पांव में सूजन आ रही हो।