लेखकों, शोध छात्रों तथा ऐसे लोग जिन्हें लिखने का कार्य अधिक करना पड़ता है, उनमें राइटर्स क्रैम्प (writers cramp) नजर आना आम है. आमतौर पर शुरुआती दौर में पता चलने पर जरा सी सावधानी तथा इलाज से इस समस्या से निजात पाई जा सकती है, लेकिन समस्या यदि ज्यादा बढ़ जाए तो सर्जरी करवाना जरूरी हो सकता है.
राइटर्स क्रैम्प में फिजियोथेरेपी काफी फायदेमंद
राइटर्स क्रैम्प मांसपेशियों से जुड़ी एक ऐसी समस्या है जिसके लिए न्यूरोलॉजीकल तथा ऑर्थोपेडिक दोनों ही कारण जिम्मेदार हो सकते हैं. दरअसल ऐसे लोग जिन्हें लिखने का कार्य ज्यादा करना पड़ता है, उनमें कई बार उंगलियों तथा हाथों की मांसपेशियों में अलग-अलग कारणों से समस्याएं उत्पन्न होने लगती हैं. जिसके चलते कई बार उन्हें उंगलियों में दर्द और ऐंठन का भी सामना करना पड़ता है. राइटर्स क्रैम्प भी ऐसी ही एक समस्या है.
जानकार मानते हैं कि ज्यादातर लोग इस समस्या के शुरुआती दौर में दर्द या अकड़न को ज्यादा गंभीरता से नहीं लेते हैं. लेकिन इसके बढ़ते प्रभाव को ना समझते हुए यदि इस समस्या की अनदेखी की जाए तो कई बार मांसपेशियों के क्षतिग्रस्त होने तथा उनमें अन्य गंभीर समस्याएं होने की आशंका बढ़ जाती है, जिसके चलते कई बार सर्जरी भी करवानी पड़ सकती है.
क्या है राइटर्स क्रैम्प
राइटर्स क्रैम्प के बारे में ज्यादा जानकारी देते हुए पुणे की फिजियोथेरेपिस्ट डॉ. रति श्रेष्ठ बताती हैं कि राइटर्स क्रैम्प एक प्रकार का फोकल डिस्टोनिया है, जिससे उंगलियों से लेकर हाथों तक की मांसपेशियां प्रभावित होती हैं. इसे इडियोपेथिक मूवमेंट डिसऑर्डर के नाम से भी जाना जाता है. वह बताती हैं कि राइटर्स क्रैम्प में ना सिर्फ उंगलियों की कार्य क्षमता कम हो जाती है बल्कि उनमें सुन्नता आने लगती है तथा कार्य करने में दर्द महसूस होने लगता है. इस विकार की शुरुआत में सबसे पहले पीड़ित को उंगलियों तथा कलाई में एक प्रकार की अवसन्नता महसूस होने लगती है और धीरे-धीरे पीड़ित के हाथ कांपने लगते हैं. समस्या का प्रभाव बढ़ने पर हाथों में कंपन के साथ दर्दभरी ऐंठन भी होने लगती है. इसके साथ ही कई बार उनकी उंगलियों और हाथों की मांसपेशियों में कड़ापन आने लगता है जिससे कभी-कभी उंगलियों के जाम हो जाने जैसी समस्याएं भी सामने आने लगती हैं. स्थिति ज्यादा गंभीर होने पर पीड़ित की उंगलियों में अस्थाई पक्षाघात जैसी अवस्था भी महसूस हो सकती है. इस अवस्था को स्क्रीवेनर पालसी भी कहा जाता है.
लक्षणों की अनदेखी ना करें
डॉ रति बताती हैं कि इस समस्या की गंभीर अवस्था से बचने के लिए जरूरी है कि समस्या के लक्षण नजर आते ही चिकित्सक से संपर्क किया जाए. यदि शुरुआत से ही राइटर्स क्रैम्प डिसऑर्डर की तरफ ध्यान दिया जाए तो अधिकांश मामलों में फिजियोथेरेपी की मदद से इस विकार को नियंत्रित किया जा सकता है. इस समस्या में फिजियोथेरेपी की विभिन्न पद्धतियों तथा व्यायामों द्वारा पीड़ित की उंगलियों और कड़ी हो चुकी हाथों की मांसपेशियों को लचीला बनने का प्रयास किया जाता है. इसके साथ ही मांसपेशियों को ज्यादा मजबूत बनाने के लिए प्रयास करना भी उपचार का एक उद्देश्य होता है.
राइटर्स क्रैम्प में मददगार फिजियोथेरेपी
गौरतलब है कि राइटर्स क्रैम्प में पीड़ित को पैराफिन वैक्स बाथ, टीईएनएस, हाइड्रोथेरेपी, कोल्ड पैक प्लेसमेंट थेरेपी, व्यवहार परक थेरेपी जैसे न्यूरोलॉजीकल कार्य-उन्मुख अभ्यास तथा धीरज प्रशिक्षण जैसी थेरेपी दी जाती हैं. साथ ही उन्हें वजन आधारित व्यायाम भी कराएं जाते हैं, जिससे उनकी मांसपेशियां मजबूत हों और ना सिर्फ उनके क्षतिग्रस्त होने की आशंका कम हो, साथ ही वे दर्द या ऐंठन को झेलने में ज्यादा सक्षम हों. डॉ रति बताती हैं कि राइटर्स क्रैम्प से पीड़ितों की अवस्था गंभीर होने पर यदि सर्जरी करवानी भी पड़े तो उसके बाद मांसपेशियों के पुनर्वास में भी फिजियोथेरेपी काफी मददगार साबित होती है.
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