माहवारी, रजोधर्म, मेंस्ट्रुअल साइकिल या एमसी और पीरियड्स के नाम भी प्रचलित मासिक धर्म महिलाओं के शारीरिक विकास का मुख्य हिस्सा माना जाता है। महिलाओं के शरीर में हार्मोन में होने वाले बदलाव की वजह से गर्भाशय तथा प्रजनन अंगों के होने वाले रक्त युक्त स्त्राव को मासिक धर्म कहते हैं।
मासिक चक्र के दौरान महिलाओं के शरीर में होने वाले परिवर्तनों और इसके महत्व के बारे में सरसरी तौर पर लोगों को जानकारी तो होती है, लेकिन मासिक धर्म क्यों होता है तथा इसके कारण शरीर में क्या बदलाव आते हैं, इस बारें में ज्यादातर लोग नही जानते हैं। आमतौर पर लोग यहाँ तक की महिलायें भी इस विषय पर धार्मिक और सामाजिक मान्यताओं के चलते बात करने में कतराती है।
क्या है मासिक चक्र और क्या है उसकी प्रक्रिया
किशोरावस्था में पहुँचने पर किशोरियों के अंडाशय द्वारा एस्ट्रोजन एवं प्रोजेस्ट्रोन नामक हार्मोन का निर्माण होने लगता है। इन हार्मोन की वजह से हर महीने में एक बार गर्भाशय की परत मोटी होने लगती है। कुछ अन्य हार्मोन अंडाशय को एक अनिषेचित डिम्ब उत्पन्न एवं उत्सर्जित करने का संकेत देते हैं।
सामान्यतः अगर लड़की माहवारी के आसपास यौन संबंध नहीं बनाती हैं तो गर्भाशय की वह परत जो मोटी होकर गर्भावस्था के लिए तैयार हो रही थी, टूटकर रक्तस्राव के रूप में बाहर निकल जाती है। माहवारी के दौरान स्रावित होने वाले रक्त में इस प्रक्रिया के दौरान नष्ट हो चुके टिशू भी शामिल होते हैं। इसे मासिक धर्म कहते हैं।
मासिक चक्र के दौरान शरीर में ऐसे हार्मोन का निर्माण होता है जो शरीर को स्वस्थ रखते हैं। हर महीने ये हार्मोन शरीर को गर्भधारण के लिए तैयार करते हैं। मासिक चक्र के दिन की गिनती मासिक धर्म शुरू होने के पहले दिन से अगले पीरियड्स शुरू होने के पहले दिन तक की जाती है। सामान्य तौर पर मासिक चक्र 28 से 35 दिन का होता है। ।
आमतौर पर यह लड़कियों में 12 या 13 साल की उम्र में शुरू हो जाता है। लेकिन कई बार विभिन्न कारणों से कुछ लड़कियों में यह देर से भी शुरू हो सकता है। कुछ लड़कियों या महिलाओं में माहवारी 3 से 5 दिनों तक चलती है, तो कुछ में 2 से 7 दिनों तक। मासिक चक्र रजोनिवृत्ति होने तक चलता है। आमतौर पर महिलाओं में चालीसवें वर्ष के आसपास रजोनिवृत्ति होती है। रजोनिवृत्ति के उपरांत महिलाओं में प्रजनन चक्र रुक जाता ।
मासिक चक्र की प्रक्रिया
मासिक चक्र की पूरी प्रक्रिया को चार भागों में बांटा गया है-
- मासिक धर्म
जब कोई लड़की किशोरावस्था यानी 11 से 15 वर्ष की आयु में पहुंचती है, तब तक उसके शरीर में अंडाशय विकसित हो जाता और उसमें अंडे बनना शुरू हो जाता है। अंडाशय से हर महीने एक परिपक्व अंडा गर्भाशय में आता है। रक्त और म्यूकस से बनी ये परत तब टूटने लगती है जब वह अंडा फर्टिलाइज नहीं होता और तब हम कहते हैं कि पीरियड शुरू हो गए हैं।
- फ़ॉलिक्यूलर फ़ेज़ या कूपिक चरण
पीरियड के पहले दिन से ओव्यूलेशन तक चलने वाली इस प्रक्रिया में महिला के अंडाशय से 5-20 फोलिकल निकलते हैं जिनमें अपरिपक्व अंडे होते हैं। इन्हीं से परिपक्व होकर एक अंडा आगे जाकर स्पर्म से मिलता है और गर्भावस्था की स्थिति बनती है।
- ओवुलेशन फ़ेज़ डिंबक्षरण चरण
आमतौर पर महिलाओं के इस चरम में गर्भवती होने की संभावनाएं ज्यादा होती है। मासिक धर्म चक्र के 15 वें दिन ओवरी से एक परिपक्व अंडा फैलोपियन ट्यूब तक यात्रा करता है। यह अंडा 24 घंटे तक वह सक्रिय रहता है। इस दौरान यदि यह अंडा स्पर्म से मिलता है तो महिला गर्भधारण करती है।
- लुटियल प्रावस्था
फोलिकल से अंडा निकालने के उपरांत यह कॉर्पस लयूटेउम में बदल जाता है, जिससे प्रोजेस्टेरोन और एस्ट्रोजन नामक हॉर्मोन का स्तर बढ़ने लगता है। इन्हीं दो हार्मोन की मदद से शरीर में गर्भाशय की परत मोटी रहती है जिससे प्रजनन के लिए तैयार अंडे को समाविष्ट करने में मदद मिलती है। गर्भधारण करने की अवस्था में शरीर में ह्यूमन क्रोनिक गोनाडोट्रॉपिन (एचसीजी) हार्मोन बनने लगते है जो गर्भाशय की परत मोटी रखने का कार्य करते हैं। वहीं बच्चे के जन्म के उपरांत जब शरीर में प्रोजेस्टेरोन का स्तर कम होने लगता है और गर्भाशय की परत पहले की तरह सामान्य होने लगती है और मासिक धर्म फिर शुरू हो जाते है।
मासिक धर्म में अनियमितता के मुख्य कारण
- गर्भावस्था
- गर्भाशय में रसौली या फाईब्राइड
- पीसीओडी होने पर
- गर्भ निरोधक दवाइयाँ लेने पर
माहवारी से जुड़ी आम समस्याएं
माहवारी के लक्षण तथा उसके प्रभाव महिलों पर अलग-अलग नजर आते हैं। माहवारी के दौरान महिलाओं में नजर आने वाली कुछ आम समस्याएं इस प्रकार है।
- पीरियड से पहले होने वाले हार्मोनल बदलावों की वजह से महिलाओं में पेट में दर्द, बलोटिंग, चिड़चिड़ापन, सिर दर्द, थकान और पीठ में दर्द जैसी समस्या आम है। जिसे प्रीमेंसट्रूअल सिंड्रोम कहते हैं।
- पेट के निचले हिस्से में होने वाला दर्द या ऐंठन कई लड़कियों को होता है। जो डिसमेनोरिया कहलाता है।
- कुछ महिलाओं को मासिक धर्म के दौरान सामान्य से ज्यादा रक्तस्राव होता है।
- मासिक धर्म का ना होने को एमेनोरिया कहा जाता है। गर्भावस्था, बच्चे को दूध पिलाने की स्तिथि या राजोनिव्रती जैसी स्तिथि के अलावा यदि पीरियड नही आता है तो यह सामान्य नही है। ऐसी स्तिथि में तत्काल चिकित्सक से संपर्क करना चाहिए।