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पीसीओएस पीड़ितों में बांझपन की समस्या दूर करने में मददगार है प्रजनन तकनीके

हार्मोन असंतुलन के कारण महिलाओं में होने वाली समस्याओं में से पीसीओएस सबसे आम समस्याओं में से एक है। आंकड़ों की माने तो महिलाओं में बांझपन के मुख्य कारणों में से पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम को माना जाता है। हालांकि अधिकांश मामलों में चिकित्सीय मदद से महिलायें गर्भधारण करने में सफल हो जाती है।इस बारे में ज्यादा जानकारी लेने के लिए ETV भारत सुखीभवा की टीम ने रीप्रोडक्टिव मेडिसिन तथा सर्जरी की विशेषज्ञ तथा कि आई.एम.एस फर्टिलिटी सेंटर विशेषज्ञ तथा मदर टू बी फर्टिलिटी विभाग की निदेशक डॉ एस वैजयंथी से बात की।

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पीसीओएस
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Published : Jun 26, 2021, 1:39 PM IST

पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम यानी पीसीओएस महिलाओं में सेक्स हार्मोन में असंतुलन होने के कारण होने वाली समस्या है , जिसे कई बार पी.सी.ओ.डी यानी पॉलीसिस्टिक ओवेरियन डिजीज के नाम से भी जाना जाता है। पीसीओएस को आमतौर पर बांझपन के कारणों में से एक माना जाता है क्योंकि यह प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से महिलाओं के स्वास्थ्य विशेषकर प्रजनन स्वास्थ्य को प्रभावित करता है। इस समस्या को लेकर लोगों में काफी भ्रम भी व्याप्त हैं ।

गर्भाधान में क्यों समस्या बनता है पीसीओएस

डॉ वैजयंथी बताती हैं की सामान्य मासिक चक्र में हर माह महिलाओं के गर्भाशय में एक अंडा रिलीज होता है, जिससे उसके गर्भधारण करने की संभावना लगभग 20% होती है। लेकिन जो महिलाएं पीसीओएस समस्या से ग्रसित हैं उनका मासिक चक्र सामान्य से कम या ज्यादा हो सकता है उदाहरण के लिए उनमें सामान्य अवस्था में एक चक्र से दूसरे चक्र के बीच की अवधि 35 दिन से लेकर 2 से 3 महीने के बीच में हो सकती है, यदि वह मासिक चक्र को नियमित करने के लिए कोई दवाई ना ले रही हों। जिसके चलते महिलाओं में अंडा रिलीज होने की क्षमता तथा अंडे के विकास की प्रक्रिया पर असर पड़ता है। इन परिस्थितियों में महिलाओं के शरीर में होने वाले हार्मोन असंतुलन और मासिक धर्म में अनियमितता के कारण महिलाओं को गर्भधारण करने में समस्या आती है।

पीसीओएस पीड़ित महिलाओं के लिए कौन से प्रजनन तकनीक बेहतर

डॉ वैजयंथी बताती हैं की पीसीओएस से पीड़ित महिलाओं में आमतौर पर ओबेसिटी यानी मोटापे जैसी समस्याएं देखने में आती है। जो न सिर्फ प्रजनन में समस्याएं बल्कि और भी कई शारीरिक व मानसिक समस्याओं का कारण बन सकती है। इसके बहुत जरूरी है कि किसी भी उपचार को शुरू करने से पहले महिलाएं अपने जीवन शैली में बदलाव करें तथा अपने मोटापे को नियंत्रित करने का प्रयास करें।

इस समस्या से ग्रसित महिलाओं के लिए उपयोगी प्रजनन तकनीक

ओवुलेशन इंडक्शन : इस प्रक्रिया में अंडे के रिलीज होने तथा उसके विकास के लिए दवाइयां दी जाती हैं । महिलाओं में अंडे के विकास तथा उनके रिलीज के लिए आमतौर पर महिलाओं को क्लोमीफीन सिट्रेट तथा लेट्रोजोले दवाइयां दी जाती हैं। इन दवाइयों को महिलाओं की माहवारी के दूसरे दिन से लेने की सलाह दी जाती है । यह 5 दिन का कोर्स होता है। इस प्रक्रिया के उपरांत महिला के शरीर में अंडों के विकास तथा उसकी रिलीज का सामान्य स्कैंस की मदद से निरीक्षण किया जाता है जिसमें यह भी ध्यान रखा जाता है कि इन दवाइयों का असर महिलाओं पर हो रहा है और महिलाओं के शरीर में सही गति से अंडों का विकास और रिलीज हो रहा है। पीसीओएस से पीड़ित महिलाओं में से लगभग 50 से 60% महिलाएं कुछ प्रयासों के उपरांत इसी विधि में गर्भधारण करने में सफल हो जाती हैं।

आई.यू.आई तथा आई.वी.एफ

जब गर्भधारण करने में ओवुलेशन इंडक्शन तकनीक मदद नहीं कर पाती है तो ऐसे में आईयूआई करने के लिए चिकित्सक सलाह देते हैं। डॉ वैजयंथी बताती हैं की इस प्रक्रिया में दवाइयों की मदद से महिलाओं की ओवरी में उत्तेजना पैदा की जाती है । इस फर्टिलिटी ट्रीटमेंट में स्‍पर्म को महिला के गर्भाशय में सीधा डाला जाता है। नॉर्मल कंसीव करने की प्रक्रिया में स्‍पर्म गर्भाशय ग्रीवा के जरिए योनि में पहुंचता है और फिर फैलोपियन ट्यूबों की मदद से गर्भाशय तक आता है। लेकिन यदि प्राकृतिक तरह से यह प्रक्रिया नहीं हो पाती है तो इस स्थिति में एक छोटे प्लास्टिक कैथेटर की मदद से स्‍पर्म को सीधा अंडे के नजदीक गर्भाशय में डाला जाता है। इस प्रक्रिया से महिला के मां बनने की संभावना बढ़ जाती है।

यदि ऊपर बताई गई दोनों प्रक्रियाएं सफल नही हो पाती है, ऐसे में आई.वी.एफ प्रक्रिया की मदद ली जाती है। इस प्रक्रिया में स्त्री के अंडे और पुरुष शुक्राणु को शरीर के बाहर फर्टीलाइज़ किया जाता है। यह प्रजनन प्रक्रिया लैब के अंदर एक कांच के विशेष पात्र में की जाती है। जिसके उपरांत भ्रूण को महिला के गर्भाशय में प्रत्यारोपित किया जाता है।

इलाज से पहले जीवन शैली में परिवर्तन जरूरी

डॉ वैजयंथी बताती हैं की पीसीओएस से पीड़ित महिलाओं के लिए बहुत जरूरी है कि किसी भी प्रकार का इलाज शुरू करने से पहले वह अपनी जीवनशैली पर ध्यान दें। अनुशासित दिनचर्या , खाने-पीने में अनुशासन, नियमित व्यायाम और सकारात्मक सोच उनके शारीरिक स्वास्थ्य को बेहतर करने में मदद करता है। क्योंकि आमतौर पर पीसीओएस से पीड़ित महिलाओं में ओबेसिटी यानी मोटापे जैसी समस्याएं देखने में आती है, जिसके चलते कई बार उनका मासिक चक्र भी प्रभावित होता है। ऐसे में अनुशासित जीवन शैली ना सिर्फ ओबेसिटी जैसी समस्याओं में राहत दिला सकती है, वजन कम करने में भी मदद कर सकती है साथ ही उनके मासिक चक्र के नियमित होने की संभावना भी बढ़ा देती हैं। लेकिन बहुत जरूरी है कि इसके लिए नियमित प्रयास किए जाएं उदारहण के लिए यदि एक समय में किसी महिला का 5 से 10% किलों कम होता है लेकिन वह उस वजन को बरकरार नहीं रख पाती है तो उसकी समस्याओं का समाधान होने में मुश्किलें आ सकती हैं।

इस संबंध में ज्यादा जानकारी के लिए svyjayanthi99@gmail.com. पर संपर्क किया जा सकता है

Read: बांझपन और सामाजिक दृष्टिकोण

पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम यानी पीसीओएस महिलाओं में सेक्स हार्मोन में असंतुलन होने के कारण होने वाली समस्या है , जिसे कई बार पी.सी.ओ.डी यानी पॉलीसिस्टिक ओवेरियन डिजीज के नाम से भी जाना जाता है। पीसीओएस को आमतौर पर बांझपन के कारणों में से एक माना जाता है क्योंकि यह प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से महिलाओं के स्वास्थ्य विशेषकर प्रजनन स्वास्थ्य को प्रभावित करता है। इस समस्या को लेकर लोगों में काफी भ्रम भी व्याप्त हैं ।

गर्भाधान में क्यों समस्या बनता है पीसीओएस

डॉ वैजयंथी बताती हैं की सामान्य मासिक चक्र में हर माह महिलाओं के गर्भाशय में एक अंडा रिलीज होता है, जिससे उसके गर्भधारण करने की संभावना लगभग 20% होती है। लेकिन जो महिलाएं पीसीओएस समस्या से ग्रसित हैं उनका मासिक चक्र सामान्य से कम या ज्यादा हो सकता है उदाहरण के लिए उनमें सामान्य अवस्था में एक चक्र से दूसरे चक्र के बीच की अवधि 35 दिन से लेकर 2 से 3 महीने के बीच में हो सकती है, यदि वह मासिक चक्र को नियमित करने के लिए कोई दवाई ना ले रही हों। जिसके चलते महिलाओं में अंडा रिलीज होने की क्षमता तथा अंडे के विकास की प्रक्रिया पर असर पड़ता है। इन परिस्थितियों में महिलाओं के शरीर में होने वाले हार्मोन असंतुलन और मासिक धर्म में अनियमितता के कारण महिलाओं को गर्भधारण करने में समस्या आती है।

पीसीओएस पीड़ित महिलाओं के लिए कौन से प्रजनन तकनीक बेहतर

डॉ वैजयंथी बताती हैं की पीसीओएस से पीड़ित महिलाओं में आमतौर पर ओबेसिटी यानी मोटापे जैसी समस्याएं देखने में आती है। जो न सिर्फ प्रजनन में समस्याएं बल्कि और भी कई शारीरिक व मानसिक समस्याओं का कारण बन सकती है। इसके बहुत जरूरी है कि किसी भी उपचार को शुरू करने से पहले महिलाएं अपने जीवन शैली में बदलाव करें तथा अपने मोटापे को नियंत्रित करने का प्रयास करें।

इस समस्या से ग्रसित महिलाओं के लिए उपयोगी प्रजनन तकनीक

ओवुलेशन इंडक्शन : इस प्रक्रिया में अंडे के रिलीज होने तथा उसके विकास के लिए दवाइयां दी जाती हैं । महिलाओं में अंडे के विकास तथा उनके रिलीज के लिए आमतौर पर महिलाओं को क्लोमीफीन सिट्रेट तथा लेट्रोजोले दवाइयां दी जाती हैं। इन दवाइयों को महिलाओं की माहवारी के दूसरे दिन से लेने की सलाह दी जाती है । यह 5 दिन का कोर्स होता है। इस प्रक्रिया के उपरांत महिला के शरीर में अंडों के विकास तथा उसकी रिलीज का सामान्य स्कैंस की मदद से निरीक्षण किया जाता है जिसमें यह भी ध्यान रखा जाता है कि इन दवाइयों का असर महिलाओं पर हो रहा है और महिलाओं के शरीर में सही गति से अंडों का विकास और रिलीज हो रहा है। पीसीओएस से पीड़ित महिलाओं में से लगभग 50 से 60% महिलाएं कुछ प्रयासों के उपरांत इसी विधि में गर्भधारण करने में सफल हो जाती हैं।

आई.यू.आई तथा आई.वी.एफ

जब गर्भधारण करने में ओवुलेशन इंडक्शन तकनीक मदद नहीं कर पाती है तो ऐसे में आईयूआई करने के लिए चिकित्सक सलाह देते हैं। डॉ वैजयंथी बताती हैं की इस प्रक्रिया में दवाइयों की मदद से महिलाओं की ओवरी में उत्तेजना पैदा की जाती है । इस फर्टिलिटी ट्रीटमेंट में स्‍पर्म को महिला के गर्भाशय में सीधा डाला जाता है। नॉर्मल कंसीव करने की प्रक्रिया में स्‍पर्म गर्भाशय ग्रीवा के जरिए योनि में पहुंचता है और फिर फैलोपियन ट्यूबों की मदद से गर्भाशय तक आता है। लेकिन यदि प्राकृतिक तरह से यह प्रक्रिया नहीं हो पाती है तो इस स्थिति में एक छोटे प्लास्टिक कैथेटर की मदद से स्‍पर्म को सीधा अंडे के नजदीक गर्भाशय में डाला जाता है। इस प्रक्रिया से महिला के मां बनने की संभावना बढ़ जाती है।

यदि ऊपर बताई गई दोनों प्रक्रियाएं सफल नही हो पाती है, ऐसे में आई.वी.एफ प्रक्रिया की मदद ली जाती है। इस प्रक्रिया में स्त्री के अंडे और पुरुष शुक्राणु को शरीर के बाहर फर्टीलाइज़ किया जाता है। यह प्रजनन प्रक्रिया लैब के अंदर एक कांच के विशेष पात्र में की जाती है। जिसके उपरांत भ्रूण को महिला के गर्भाशय में प्रत्यारोपित किया जाता है।

इलाज से पहले जीवन शैली में परिवर्तन जरूरी

डॉ वैजयंथी बताती हैं की पीसीओएस से पीड़ित महिलाओं के लिए बहुत जरूरी है कि किसी भी प्रकार का इलाज शुरू करने से पहले वह अपनी जीवनशैली पर ध्यान दें। अनुशासित दिनचर्या , खाने-पीने में अनुशासन, नियमित व्यायाम और सकारात्मक सोच उनके शारीरिक स्वास्थ्य को बेहतर करने में मदद करता है। क्योंकि आमतौर पर पीसीओएस से पीड़ित महिलाओं में ओबेसिटी यानी मोटापे जैसी समस्याएं देखने में आती है, जिसके चलते कई बार उनका मासिक चक्र भी प्रभावित होता है। ऐसे में अनुशासित जीवन शैली ना सिर्फ ओबेसिटी जैसी समस्याओं में राहत दिला सकती है, वजन कम करने में भी मदद कर सकती है साथ ही उनके मासिक चक्र के नियमित होने की संभावना भी बढ़ा देती हैं। लेकिन बहुत जरूरी है कि इसके लिए नियमित प्रयास किए जाएं उदारहण के लिए यदि एक समय में किसी महिला का 5 से 10% किलों कम होता है लेकिन वह उस वजन को बरकरार नहीं रख पाती है तो उसकी समस्याओं का समाधान होने में मुश्किलें आ सकती हैं।

इस संबंध में ज्यादा जानकारी के लिए svyjayanthi99@gmail.com. पर संपर्क किया जा सकता है

Read: बांझपन और सामाजिक दृष्टिकोण

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