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Baby Disease : नवजात बच्चों को जल्द होती हैं ये समस्याएं व रोग, ऐसे करें देखभाल - नवजात बच्चों की समस्याएं

डॉ. सृष्टि चतुर्वेदी (Dr. Srishti Chaturvedi) बताती हैं कि गर्भ में मिलने वाली सुरक्षा से बाहर निकलने के बाद नवजात के शरीर को बाहरी वातावरण के अनुसार ढलने में समय लगता है, इस अवधि में उसे कई प्रकार के संक्रमण, रोग या एलर्जी (many types of infections, diseases or allergies) होने का खतरा रहता है.

Baby Disease problems
नवजात बच्चों की समस्याएं
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Published : Jul 28, 2022, 5:07 PM IST

Updated : Jul 29, 2022, 1:59 PM IST

नवजात बच्चे मौसम और वातावरण को लेकर काफी संवेदनशील होते हैं, वहीं जन्म के बाद उनके शरीर का इम्यून सिस्टम (Newborn baby immunity) काफी कमजोर होता है. इसलिए उनके किसी रोग या समस्या के प्रभाव में आने की आशंका काफी ज़्यादा होती है. आइए जानते हैं कि नवजातों व बिल्कुल छोटे बच्चों में नजर आने वाली आम समस्याएं कौन सी हैं.

यूनिसेफ की एक रिपोर्ट (UNICEF report) के अनुसार दुनियाभर में एक साल में पैदा होने वाले कुल 2.5 करोड़ बच्चों का लगभग पांचवां हिस्सा भारत में जन्म लेता है. इनमें से हर एक मिनट में एक शिशु की मृत्यु हो जाती है. इनमें से 40% नवजात शिशुओं की मृत्यु (Newborns death during labor) प्रसव के दौरान या प्रसव के बाद 24 घंटे के अंदर होती है. इस रिपोर्ट के अनुसार प्रसव के दौरान समस्या के कारण लगभग 35%, संक्रमण के कारण लगभग 33%, प्रसव के दौरान दम घुटने के कारण 20% तथा जन्मजात विकृतियां के चलते लगभग 9% नवजात बच्चों की मृत्यु हो जाती हैं. सिर्फ प्रसव के दौरान या जन्म लेने के कुछ घंटों बाद तक ही नही बल्कि जन्म के कुछ महीनों बाद तक भी अलग-अलग कारणों से बच्चों में विभिन्न बीमारियों, संक्रमणों तथा एलर्जी का खतरा बना रहता है. जिसका मुख्य कारण उनके शरीर के सभी तंत्रों का कमजोर होना विशेषकर उनके इम्यून सिस्टम में कमजोरी होता है.

लखनऊ उत्तर प्रदेश की बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. सृष्टि चतुर्वेदी (Dr Srishti Chaturvedi pediatrician Lucknow) बताती हैं नवजात बच्चों का इम्यून सिस्टम काफी कमजोर होता है. वहीं मां के गर्भ में मिलने वाली सुरक्षा से बाहर निकलने के बाद नवजात के शरीर को बाहरी वातावरण के अनुसार ढलने में समय लगता है. वहीं जन्म के बाद उसके शरीर के सभी तंत्रों का विकास भी धीरे-धीरे समय के साथ होता है. ऐसे में इस अवधि में उसे कई प्रकार के संक्रमण, रोग या एलर्जी होने का खतरा रहता है.

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नवजात बच्चों की समस्याएं : वह बताती हैं कि जन्म के बाद बच्चों में कुछ रोग या परेशानियां नजर आना आम बात है. जिनसे बारें में या जिनके निवारण के बारें में चिकित्सक तथा घर के बड़े-बूढ़े आमतौर पर बच्चे के माता-पिता या उसकी देखभाल करने वाले व्यक्ति को सूचित कर देते हैं, जैसे पेट में दर्द, गैस बनना, दूध उलट देना या त्वचा पर रैश आदि. ये तथा इन जैसी कुछ और समस्याएं कई बार छोटे बच्चों में बड़ी परेशानी का सबब बन सकती हैं. हमारे विशेषज्ञ के अनुसार नवजात बच्चों से लेकर एक साल तक के बच्चों में नजर आने वाली कुछ समस्याएं या नवजात बच्चों के रोग इस प्रकार हैं.

पीलिया या जॉन्डिस : बड़ी संख्या में बच्चे निओनेटल जॉन्डिस (Neonatal jaundice) के साथ पैदा होते हैं. इसका मुख्य कारण जन्म के समय उनके लीवर का पूरी तरह से विकसित ना होना होता है. ऐसे में लीवर खून में मौजूद अतिरिक्त बिलीरुबिन को निकालने में सक्षम नहीं हो पाता है और बच्चों में पीलिया के लक्षण नजर आने लगते हैं. निओनेटल जॉन्डिस या पीलिया (Jaundice) आमतौर पर समय के साथ जन्म के 2 से 3 सप्ताह में ठीक हो जाता है. लेकिन अगर यह 3 सप्ताह से अधिक समय तक बना रहे तो बच्चे का इलाज तथा विशेष देखभाल बहुत जरूरी हो जाती है.

ये भी पढ़ें : पश्चिमी अफ्रीका में मिला घातक मारबर्ग वायरस, WHO ने की पुष्टि

पेट सम्बंधी समस्याएं : नवजात बच्चों में पेट में दर्द, पेट फूलना, गैस तथा कब्ज जैसी पेट संबंधी समस्याएं आम होती हैं, इन समस्याओं को एब्डोमिनल डिस्टेंशन (Abdominal distension) कहा जाता है. आमतौर पर इसके लिए माता द्वारा ग्रहण किये जाने वाले आहार को जिम्मेदार माना जा सकता है. दरअसल माँ के दूध पर निर्भर बच्चों के शरीर पर माता द्वारा ग्रहण किए जाने वाले आहार का प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखता है. इसलिए बच्चों को इस तरह की समस्याओं से बचाने के लिए माता को हल्का तथा पौष्टिक आहार खाने की सलाह दी जाती है. वैसे तो इस समस्या में घर के बड़े-बूढ़े के घरेलू नुस्खों काफी फायदेमंद होते हैं लेकिन यदि उनके इस्तेमाल के बाद भी इस समस्या के चलते बच्चे के पेट में ज्यादा दर्द हो रहा हो या उसका पेट ज्यादा फूला हुआ या कसा हुआ नजर आ रहा हो तो चिकित्सक से सलाह अवश्य लेनी चहिए.

ओरल थ्रश : ओरल थ्रश (Oral thrush) एक प्रकार का मुंह का संक्रमण होता है जिसे ओरल कैंडीडायसिस (Oral candidiasis) भी कहा जाता है. यह दुधमुंहे बच्चों के मुंह में होने वाला एक आम संक्रमण है. इसमें जीभ या गालों के अंदरूनी हिस्से में सफेद परत बन जाती है. इससे बचाव के लिए बच्चे के मुंह की नियमित सफाई जरूरी होती है लेकिन यदि मुंह में ओरल थ्रश के लक्षण नजर आ रहे हो तो एक बार चिकित्सक से परामर्श अवश्य ले लेना चाहिए.

उल्टी : नवजात बच्चों को दूध पीने के बाद डकार न दिलायी जाए तो वे आमतौर पर उल्टी कर देते हैं लेकिन यदि बच्चा हल्के हरे रंग की या लगातार उल्टी कर रहा हो तो यह किसी रोग या संक्रमण का लक्षण भी हो सकता है. उल्टी के रंग में बदलाव की समस्या होने पर तत्काल चिकित्सक से संपर्क करना चाहिए.

कान में संक्रमण : नवजात या छोटे बच्चों में कान में संक्रमण आम बात है. यह संक्रमण कई कारणों से हो सकता है जैसे किसी बैक्टीरिया के कारण, नहलाते समय बच्चे के कान में पानी जाने के कारण, तो कभी लंबे समय तक सर्दी जुकाम होने का कारण. इस प्रकार के संक्रमण में बच्चे के कान में दर्द या सुनने में समस्या हो सकती है.

डायपर रैश, एलर्जी तथा त्वचा संक्रमण : बच्चों की त्वचा बेहद नाजुक तथा संवेदनशील होती है. ऐसे में जब वह बाहरी वातावरण के संपर्क में आते हैं तो कई बार वातावरण में मौजूद धूल-मिट्टी तथा कई अन्य तत्वों के प्रभाव के चलते उसकी त्वचा पर संक्रमण (Allergies and skin infections) हो सकता है. इसके अलावा डायपर (Diaper rash) के ज्यादा इस्तेमाल से, साबुन या क्रीम के इस्तेमाल के कारण और यहाँ तक की किसी कपड़े के कारण भी त्वचा पर रैश या एलर्जी हो सकती है. इसके अलावा बच्चों में सिर की त्वचा पर एलर्जी होना या उस पर पपड़ी बनना भी एक आम त्वचा संबंधी समस्या है.

संक्रमण (बुखार, सर्दी, फ्लू) : आमतौर पर सभी छोटे बच्चे सर्दी-जुकाम जैसे संक्रमण को लेकर ज्यादा संवेदनशील होते हैं. छोटे बच्चों में इस प्रकार के संक्रमण को हल्के में नही लेना चाहिए क्योंकि यह कई बार बच्चों में बुखार, निमोनिया (fever, pneumonia, cold) और कई दूसरी गंभीर बीमारियों का कारण बन सकता है. कई बार ऐसी अवस्था में बच्चे की नाक में कफ जमने लगता है जिससे उसे सांस लेने में समस्या भी हो सकती है. वहीं कई बार इसके चलते उसकी त्वचा का रंग नीला भी पड़ सकता है. यदि बच्चे को इस प्रकार की समस्या हो रही है चिकित्सीय परामर्श बहुत जरूरी हो जाता है.

सचेत रहना जरूरी : डॉ सृष्टि (Dr. Srishti Chaturvedi) बताती हैं कि इतनी कम आयु में बच्चे बोल कर अपनी समस्या नही बता पाते हैं. ऐसे में बहुत जरूरी होता है कि माता-पिता उनकी गतिविधियों के प्रति ज्यादा सचेत व सावधान रहें. यदि बच्चे को दूध पीने, लेटने, मल-मूत्र त्याग करने या सोने में किसी प्रकार की असहजता या परेशानी हो रही हो, उसकी हरकतों या प्रतिक्रियाओं में शिथिलता आ रही हो या वह बहुत ज्यादा रो रहा हो तो तत्काल चिकित्सक से संपर्क करना चाहिए.

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नवजात बच्चे मौसम और वातावरण को लेकर काफी संवेदनशील होते हैं, वहीं जन्म के बाद उनके शरीर का इम्यून सिस्टम (Newborn baby immunity) काफी कमजोर होता है. इसलिए उनके किसी रोग या समस्या के प्रभाव में आने की आशंका काफी ज़्यादा होती है. आइए जानते हैं कि नवजातों व बिल्कुल छोटे बच्चों में नजर आने वाली आम समस्याएं कौन सी हैं.

यूनिसेफ की एक रिपोर्ट (UNICEF report) के अनुसार दुनियाभर में एक साल में पैदा होने वाले कुल 2.5 करोड़ बच्चों का लगभग पांचवां हिस्सा भारत में जन्म लेता है. इनमें से हर एक मिनट में एक शिशु की मृत्यु हो जाती है. इनमें से 40% नवजात शिशुओं की मृत्यु (Newborns death during labor) प्रसव के दौरान या प्रसव के बाद 24 घंटे के अंदर होती है. इस रिपोर्ट के अनुसार प्रसव के दौरान समस्या के कारण लगभग 35%, संक्रमण के कारण लगभग 33%, प्रसव के दौरान दम घुटने के कारण 20% तथा जन्मजात विकृतियां के चलते लगभग 9% नवजात बच्चों की मृत्यु हो जाती हैं. सिर्फ प्रसव के दौरान या जन्म लेने के कुछ घंटों बाद तक ही नही बल्कि जन्म के कुछ महीनों बाद तक भी अलग-अलग कारणों से बच्चों में विभिन्न बीमारियों, संक्रमणों तथा एलर्जी का खतरा बना रहता है. जिसका मुख्य कारण उनके शरीर के सभी तंत्रों का कमजोर होना विशेषकर उनके इम्यून सिस्टम में कमजोरी होता है.

लखनऊ उत्तर प्रदेश की बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. सृष्टि चतुर्वेदी (Dr Srishti Chaturvedi pediatrician Lucknow) बताती हैं नवजात बच्चों का इम्यून सिस्टम काफी कमजोर होता है. वहीं मां के गर्भ में मिलने वाली सुरक्षा से बाहर निकलने के बाद नवजात के शरीर को बाहरी वातावरण के अनुसार ढलने में समय लगता है. वहीं जन्म के बाद उसके शरीर के सभी तंत्रों का विकास भी धीरे-धीरे समय के साथ होता है. ऐसे में इस अवधि में उसे कई प्रकार के संक्रमण, रोग या एलर्जी होने का खतरा रहता है.

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नवजात बच्चों की समस्याएं : वह बताती हैं कि जन्म के बाद बच्चों में कुछ रोग या परेशानियां नजर आना आम बात है. जिनसे बारें में या जिनके निवारण के बारें में चिकित्सक तथा घर के बड़े-बूढ़े आमतौर पर बच्चे के माता-पिता या उसकी देखभाल करने वाले व्यक्ति को सूचित कर देते हैं, जैसे पेट में दर्द, गैस बनना, दूध उलट देना या त्वचा पर रैश आदि. ये तथा इन जैसी कुछ और समस्याएं कई बार छोटे बच्चों में बड़ी परेशानी का सबब बन सकती हैं. हमारे विशेषज्ञ के अनुसार नवजात बच्चों से लेकर एक साल तक के बच्चों में नजर आने वाली कुछ समस्याएं या नवजात बच्चों के रोग इस प्रकार हैं.

पीलिया या जॉन्डिस : बड़ी संख्या में बच्चे निओनेटल जॉन्डिस (Neonatal jaundice) के साथ पैदा होते हैं. इसका मुख्य कारण जन्म के समय उनके लीवर का पूरी तरह से विकसित ना होना होता है. ऐसे में लीवर खून में मौजूद अतिरिक्त बिलीरुबिन को निकालने में सक्षम नहीं हो पाता है और बच्चों में पीलिया के लक्षण नजर आने लगते हैं. निओनेटल जॉन्डिस या पीलिया (Jaundice) आमतौर पर समय के साथ जन्म के 2 से 3 सप्ताह में ठीक हो जाता है. लेकिन अगर यह 3 सप्ताह से अधिक समय तक बना रहे तो बच्चे का इलाज तथा विशेष देखभाल बहुत जरूरी हो जाती है.

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पेट सम्बंधी समस्याएं : नवजात बच्चों में पेट में दर्द, पेट फूलना, गैस तथा कब्ज जैसी पेट संबंधी समस्याएं आम होती हैं, इन समस्याओं को एब्डोमिनल डिस्टेंशन (Abdominal distension) कहा जाता है. आमतौर पर इसके लिए माता द्वारा ग्रहण किये जाने वाले आहार को जिम्मेदार माना जा सकता है. दरअसल माँ के दूध पर निर्भर बच्चों के शरीर पर माता द्वारा ग्रहण किए जाने वाले आहार का प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखता है. इसलिए बच्चों को इस तरह की समस्याओं से बचाने के लिए माता को हल्का तथा पौष्टिक आहार खाने की सलाह दी जाती है. वैसे तो इस समस्या में घर के बड़े-बूढ़े के घरेलू नुस्खों काफी फायदेमंद होते हैं लेकिन यदि उनके इस्तेमाल के बाद भी इस समस्या के चलते बच्चे के पेट में ज्यादा दर्द हो रहा हो या उसका पेट ज्यादा फूला हुआ या कसा हुआ नजर आ रहा हो तो चिकित्सक से सलाह अवश्य लेनी चहिए.

ओरल थ्रश : ओरल थ्रश (Oral thrush) एक प्रकार का मुंह का संक्रमण होता है जिसे ओरल कैंडीडायसिस (Oral candidiasis) भी कहा जाता है. यह दुधमुंहे बच्चों के मुंह में होने वाला एक आम संक्रमण है. इसमें जीभ या गालों के अंदरूनी हिस्से में सफेद परत बन जाती है. इससे बचाव के लिए बच्चे के मुंह की नियमित सफाई जरूरी होती है लेकिन यदि मुंह में ओरल थ्रश के लक्षण नजर आ रहे हो तो एक बार चिकित्सक से परामर्श अवश्य ले लेना चाहिए.

उल्टी : नवजात बच्चों को दूध पीने के बाद डकार न दिलायी जाए तो वे आमतौर पर उल्टी कर देते हैं लेकिन यदि बच्चा हल्के हरे रंग की या लगातार उल्टी कर रहा हो तो यह किसी रोग या संक्रमण का लक्षण भी हो सकता है. उल्टी के रंग में बदलाव की समस्या होने पर तत्काल चिकित्सक से संपर्क करना चाहिए.

कान में संक्रमण : नवजात या छोटे बच्चों में कान में संक्रमण आम बात है. यह संक्रमण कई कारणों से हो सकता है जैसे किसी बैक्टीरिया के कारण, नहलाते समय बच्चे के कान में पानी जाने के कारण, तो कभी लंबे समय तक सर्दी जुकाम होने का कारण. इस प्रकार के संक्रमण में बच्चे के कान में दर्द या सुनने में समस्या हो सकती है.

डायपर रैश, एलर्जी तथा त्वचा संक्रमण : बच्चों की त्वचा बेहद नाजुक तथा संवेदनशील होती है. ऐसे में जब वह बाहरी वातावरण के संपर्क में आते हैं तो कई बार वातावरण में मौजूद धूल-मिट्टी तथा कई अन्य तत्वों के प्रभाव के चलते उसकी त्वचा पर संक्रमण (Allergies and skin infections) हो सकता है. इसके अलावा डायपर (Diaper rash) के ज्यादा इस्तेमाल से, साबुन या क्रीम के इस्तेमाल के कारण और यहाँ तक की किसी कपड़े के कारण भी त्वचा पर रैश या एलर्जी हो सकती है. इसके अलावा बच्चों में सिर की त्वचा पर एलर्जी होना या उस पर पपड़ी बनना भी एक आम त्वचा संबंधी समस्या है.

संक्रमण (बुखार, सर्दी, फ्लू) : आमतौर पर सभी छोटे बच्चे सर्दी-जुकाम जैसे संक्रमण को लेकर ज्यादा संवेदनशील होते हैं. छोटे बच्चों में इस प्रकार के संक्रमण को हल्के में नही लेना चाहिए क्योंकि यह कई बार बच्चों में बुखार, निमोनिया (fever, pneumonia, cold) और कई दूसरी गंभीर बीमारियों का कारण बन सकता है. कई बार ऐसी अवस्था में बच्चे की नाक में कफ जमने लगता है जिससे उसे सांस लेने में समस्या भी हो सकती है. वहीं कई बार इसके चलते उसकी त्वचा का रंग नीला भी पड़ सकता है. यदि बच्चे को इस प्रकार की समस्या हो रही है चिकित्सीय परामर्श बहुत जरूरी हो जाता है.

सचेत रहना जरूरी : डॉ सृष्टि (Dr. Srishti Chaturvedi) बताती हैं कि इतनी कम आयु में बच्चे बोल कर अपनी समस्या नही बता पाते हैं. ऐसे में बहुत जरूरी होता है कि माता-पिता उनकी गतिविधियों के प्रति ज्यादा सचेत व सावधान रहें. यदि बच्चे को दूध पीने, लेटने, मल-मूत्र त्याग करने या सोने में किसी प्रकार की असहजता या परेशानी हो रही हो, उसकी हरकतों या प्रतिक्रियाओं में शिथिलता आ रही हो या वह बहुत ज्यादा रो रहा हो तो तत्काल चिकित्सक से संपर्क करना चाहिए.

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Last Updated : Jul 29, 2022, 1:59 PM IST
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