मॉनसून की शुरुआत देश के कई हिस्सों में हो चुकी है. बारिश के मौसम से भले ही तेज गर्मी और धूप से राहत मिल जाती है, लेकिन इस मौसम में वातावरण में नमी व ह्यूमिडिटी भी बढ़ जाती है. इस मौसम को वैसे भी बीमारियों का मौसम कहा जाता है जिसमें तरह तरह के रोग तथा संक्रमण अलग-अलग कारणों से पनपते हैं. इस मौसम में अन्य बीमारियों के साथ ही त्वचा संबंधी समस्याएं भी काफी परेशान करती हैं जैसे स्किन इंफेक्शन, एलर्जी तथा फंगस आदि.
इस मौसम की आम समस्याएं
उत्तराखंड की डर्मेटोलॉजिस्ट डॉ. आशा सकलानी बताती हैं कि बरसात के मौसम में त्वचा से संबंधित कई तरह की समस्याओं के होने की आशंका बढ़ जाती है. जैसे दाद, एक्जिमा, खुजली, चकत्ते, एथलीट फुट आदि. दरअसल बारिश के मौसम में वातावरणीय नमी, पसीना, गंदा पानी तथा बारिश में भीग जाने के बाद कुछ देर तक भीगे कपड़ों और जूतों में रहने सहित कई कारणों से त्वचा में फंगल या बैक्टीरियल संक्रमण तथा अन्य त्वचा संबंधी समस्याओं के होने का खतरा बढ़ जाता है.
सावधानियां जरूरी
डॉ. आशा बताती हैं कि बारिश के मौसम में इन समस्याओं से बचने के लिए सिर्फ अपने शरीर ही नहीं बल्कि अपने आसपास की साफ सफाई का विशेष ध्यान रखने की भी जरूरत होती है. इसके अलावा भी कुछ सावधानियां हैं जिन्हें अपनाकर त्वचा संबंधी समस्याओं के होने के खतरे को कम किया जा सकता है. जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं-
- नियमित अंतराल पर हाथ धोएं .
- हमेशा साफ एवं सूखे कपड़े और जूते पहनें.
- जहां तक संभव हो शरीर व बालों के लंबे समय तक भीगे रहने से बचें.
- किसी ऐसे व्यक्ति का समान इस्तेमाल करने से बचे जिसे खुजली या किसी अन्य प्रकार की त्वचा संबंधी समस्या या संक्रमण हों.
- बारिश के मौसम में बाहर से घर आने के बाद स्नान अवश्य करें, क्योंकि इससे शरीर पर एकत्रित पसीना, गंदगी तथा बैक्टीरिया काफी हद तक साफ हो जाते हैं.
- ऐसे कपड़ों को प्राथमिकता दें जो शरीर पर ज्यादा कसे हुए या चिपके हुए ना हों, साथ ही भीगने पर जल्दी सूख भी जाएं.
- बारिश के मौसम में ह्यूमिडिटी बढ़ने से कई बार त्वचा शुष्क और चिपचिपी हो जाती है. ऐसे में उस पर गंदगी तथा त्वचा की मृत कोशिकाएं एकत्रित होने लगती हैं. जो रोग का कारण बन सकती हैं. ऐसी अवस्था में त्वचा को एक्सफोलिएट करना फायदेमंद होता है. इससे त्वचा पर जमा गंदगी साफ हो जाती है. वहीं इसके बाद त्वचा पर मॉइश्चराइजर का इस्तेमाल करने से उसमें नमी बनी रहती है. लेकिन ध्यान रहे कि यदि त्वचा पर किसी प्रकार का संक्रमण या रोग हो तो उस स्थान को एक्सफोलिएट नहीं करना चाहिए. वरना रोग के फैलने का खतरा हो सकता है.
- मॉनसून में ह्यूमिडिटी के कारण ज्यादा पसीना आता है जिससे कई बार शरीर में पानी की कमी होने लगती है. जिसका असर त्वचा पर किसी समस्या के रूप में भी नजर आ सकता है. इसलिए दिन में कम से कम 6 से 8 ग्लास पानी जरूर पीना चाहिए.
- जिन लोगों को पहले से किसी प्रकार की मौसमी एलर्जी हो या जिनकी त्वचा संवेदनशील हो उन्हे इस मौसम में ज्यादा ध्यान रखना चाहिए.
कई बार बारिश में लंबे समय तक भीगे जूते या मोजे पहनने से उंगलियों के बीच फंगल संक्रमण, त्वचा के फटने या पैरों में एथलीट फुट जैसी समस्या होने की आशंका भी बढ़ जाती है. इसलिए हमेशा ऐसी अवस्था में जूते तथा मोजे उतारने के बाद पांव साफ पानी से जरूर धोने और पोछने चाहिए. साथ ही उन पर कोई क्रीम भी लगानी चाहिए जिससे पांव में नमी बनी रहे.
चिकित्सक से परामर्श जरूरी
डॉ आशा बताती हैं कि इस मौसम में आमतौर पर लोग खुजली, दाने या किसी प्रकार का हल्का-फुल्का संक्रमण नजर आने पर खुद ही अपना इलाज शुरू कर देते हैं या फिर कोई भी दवाई या क्रीम उन पर लगा लेते हैं, जो सही नहीं है. त्वचा संक्रमण फंगल या बैक्टीरियल सहित कई प्रकार के होते हैं तथा उनके होने के कारण भी अलग-अलग हो सकते हैं. ऐसे में जरूरी नहीं है कि एक क्रीम या दवा जो एक समस्या में फायदा करें वह दूसरी समस्याओं को ठीक करने में भी सक्षम हो. और यदि इन समस्याओं का इलाज सही तरह से ना हो तो कई बार उनका प्रभाव ज्यादा परेशानी भरा भी हो सकता है.
यदि त्वचा संबंधी समस्याएं ज्यादा प्रत्यक्ष रूप में नजर आ रही हों तो चिकित्सक या जानकार से परामर्श के उपरांत उन पर एंटी फंगल क्रीम या पाउडर का इस्तेमाल किया जा सकता है. लेकिन यदि उसके बाद भी यदि समस्या ज्यादा बढ़ने लगे तो चिकित्सक से इलाज कराना बहुत जरूरी हो जाता है.