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Monsoon Blues : ज्यादा बारिश या बहुत समय तक धूप ना मिलने से हो सकती है ये समस्याएं - NIMH

इन दोनों ही अवस्थाओं में पीड़ित में (Seasonal Affective Disorder) अवसाद बढ़ने लगता है, उसके मूड में बहुत जल्दी-जल्दी परिवर्तन(SAD) होने लगते हैं और कई बार वे बिना किसी कारण के बहुत ज्यादा उदासी (मानसून ब्लूज Monsoon blues )महसूस करने लगते हैं. नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ (National Institute of Mental Health) के अनुसार जिम्मेदार आम कारणों में हाइपोथैलेमस में समस्या, सेरोटोनिन न्यूरॉन में कमी तथा हमारे शरीर की सर्किडियन रिदम में गड़बड़ी को जिम्मेदार माना गया है.

Monsoon Blues Seasonal Affective Disorder SAD
मानसून ब्लूज
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Published : Jul 31, 2022, 5:08 PM IST

Updated : Aug 12, 2022, 12:08 PM IST

कई बार मौसम में बदलाव विशेष तौर पर लंबे समय तक धूप के संपर्क में ना आने पर कई लोगों में उदासी या मन में नकारात्मक भाव उत्पन्न होने जैसी समस्याएं नजर आने लगती हैं. मॉनसून के मौसम में भी यह समस्या कई लोगों को काफी प्रभावित करती है. दरअसल यह प्रकार का अवसाद (Type of depression) होता है जो सीजनल अफेक्टिव डिसऑर्डर (Seasonal Affective Disorder) की श्रेणी में आता है. इसे आम भाषा में मानसून ब्लूज (Monsoon blues) भी कहा जाता है.

सीजनल अफेक्टिव डिसऑर्डर है मानसून ब्लूज: तीखी तेज धूप वाले गर्मी के मौसम के बाद बहुत से लोग बड़ी बेसब्री से मानसून यानी बारिश के मौसम का इंतजार करते हैं. रोमांस हो, रूमानियत हो या खाना पीना, सभी को आमतौर पर मानसून से जोड़कर देखा जाता है. यहां तक कि हमारी हिंदी फिल्मों में भी बारिश को रोमांस से जोड़ कर देखा जाता है लेकिन कई बार जब बारिश लगातार हो रही हो, मौसम खुल नही रहा हो तो बहुत से लोगों में उदासी, तनाव, दुख तथा ऐसी और भी कई तरह की मानसिक व व्यवहरात्मक समस्याएं बढ़ने लगती हैं. यह अवस्था मानसून ब्लूज (Monsoon blues) कहलाती है तथा इसका कारण आमतौर पर (Side effects of monsoon) मौसमी भावनात्मक विकार यानी सीजनल अफेक्टिव डिसऑर्डर (Seasonal Affective Disorder) माना जाता है.

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सर्दियों में भी हो सकता है: सीजनल अफेक्टिव डिसऑर्डर (SAD) यानी मौसम से प्रभावित होने वाला भावनात्मक विकार. जानकार मानते हैं कि (weather change disorder) मौसम हमारे व्यवहार को ही नही हमारी सेहत को भी काफी ज्यादा प्रभावित करता है. खासतौर पर सूरज की रोशनी या धूप हमारे शरीर के लिए बहुत जरूरी होती है. लेकिन जब बरसात या सर्दी के कारण यदि लंबे समय तक व्यक्ति धूप के सीधे संपर्क में ना आ पाए तो उसके शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य पर काफी असर पड़ सकता है. सीजनल अफेक्टिव डिसऑर्डर भी उन्ही प्रभावों में से एक है.

मनोचिकित्सों के अनुसार सर्दियों या बरसात के मौसम में जब लंबे समय तक धूप के दर्शन नही होते हैं तो कई लोग मानसून में मानसून ब्लूज तथा सर्दियों में विंटर ब्लूज का शिकार हो सकते हैं. इन दोनों ही अवस्थाओं में पीड़ित में अवसाद बढ़ने लगता है, उसके मूड में बहुत जल्दी-जल्दी परिवर्तन होने लगते हैं और कई बार वे बिना किसी कारण के बहुत ज्यादा उदासी महसूस करने लगते हैं. सिर्फ यही नहीं इस अवस्था के पीड़ितों में और भी कई तरह की मानसिक समस्याएं नजर आने लगती हैं जिसका असर उनके व्यवहार उनकी दैनिक गतिविधियों यहां तक कि उनके पारिवारिक व सामाजिक जीवन पर भी पड़ने लगता है.

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ये है कारण: नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ (National Institute of Mental Health) के अनुसार यह एक ऐसा मानसिक विकार है जिसका सामना आमतौर पर लोग मौसम के संधि काल के दौरान करते हैं. वैसे तो सीजनल अफेक्टिव डिसऑर्डर के स्पष्ट तथा सभी कारणों को जानने के लिए पिछले कई सालों से कई शोध किए जा रहें हैं, लेकिन अब तक इस विषय पर जिन शोधों के नतीजे सामने आयें हैं उनमें मुख्य रूप से इस विकार के लिए जिम्मेदार आम कारणों में हाइपोथैलेमस में समस्या, सेरोटोनिन न्यूरॉन में कमी तथा हमारे शरीर की सर्किडियन रिदम में गड़बड़ी को जिम्मेदार माना गया है. दरअसल इन तीनों ही अवस्थाओं के लिए धूप के संपर्क में ना आ पाने को जिम्मेदार माना जाता है.

दरअसल सूरज की रोशनी से शरीर को विटामिन डी मिलता है. जिसकी कमी से शरीर के कई कार्य प्रभावित हो सकते हैं. इसकी कमी से मस्तिष्क में सेरोटोनिन नामक न्यूरोट्रांसमीटर का कार्य भी प्रभावित होने लगता है. इस न्यूरोट्रांसमीटर को मूड स्टेबलाइजर भी कहा जाता है. दरअसल यह न्यूरोट्रांसमीटर सूर्य की रोशनी में ज्यादा सक्रिय होता है. ऐसे में जब बारिश या सर्दियों में लंबे समय तक लोगों को सूरज की रोशनी नहीं मिल पाती है तो मस्तिष्क में सेरोटोनिन का स्तर प्रभावित हो सकता है. वहीं शरीर की सर्किडियन रिदम यानी जैविक घड़ी को भी मौसम काफी प्रभावित करता है. विशेषकर धूप तथा रोशनी की कमी के चलते व्यक्ति के सोने-जागने या आहार जैसी कई आदतें प्रभावित हो सकती हैं. इस कारण से भी कई बार व्यक्ति इस विकार की चपेट में आ सकता है.

ये है लक्षण: NIMH के अनुसार सीजनल अफेक्टिव डिसऑर्डर अलग-अलग पैटर्न में लोगों को प्रभावित करता है. जैसे मानसून पैटर्न और विंटर पैटर्न. चूंकि इस विकार का मूल अवसाद ही है इसलिए आमतौर पर सभी पैटर्न में इसके लक्षण अवसाद के लक्षणों जैसे ही होते हैं. हालांकि अलग-अलग लोगों में इसके अलग-अलग लक्षण भी नजर आ सकते हैं. इस मनोविकार के कुछ आम लक्षण इस प्रकार हैं.

  • उदासी या अकेलापन महसूस करना
  • भूख या वजन का बढ़ना या कम होना
  • नींद ना आना या बहुत ज्यादा आना
  • कोई भी काम करने का मन ना होना
  • ऊर्जा हीन महसूस करना
  • ध्यान एकाग्र ना कर पाना
  • हमेशा रोने जैसा महसूस करना
  • निराशा, अपराधबोध या आत्म सम्मान में कमी महसूस करना
  • अनिश्चितता की भावना आना
  • शारीरिक संबंधों में अरुचि
  • सामाजिक जीवन से दूरी बनाना
  • बहुत ज्यादा चिंता, चिड़चिड़ापन या गुस्सा महसूस करना
  • कई बार आत्महत्या या मृत्यु जैसे विचार मन में आना

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कई बार मौसम में बदलाव विशेष तौर पर लंबे समय तक धूप के संपर्क में ना आने पर कई लोगों में उदासी या मन में नकारात्मक भाव उत्पन्न होने जैसी समस्याएं नजर आने लगती हैं. मॉनसून के मौसम में भी यह समस्या कई लोगों को काफी प्रभावित करती है. दरअसल यह प्रकार का अवसाद (Type of depression) होता है जो सीजनल अफेक्टिव डिसऑर्डर (Seasonal Affective Disorder) की श्रेणी में आता है. इसे आम भाषा में मानसून ब्लूज (Monsoon blues) भी कहा जाता है.

सीजनल अफेक्टिव डिसऑर्डर है मानसून ब्लूज: तीखी तेज धूप वाले गर्मी के मौसम के बाद बहुत से लोग बड़ी बेसब्री से मानसून यानी बारिश के मौसम का इंतजार करते हैं. रोमांस हो, रूमानियत हो या खाना पीना, सभी को आमतौर पर मानसून से जोड़कर देखा जाता है. यहां तक कि हमारी हिंदी फिल्मों में भी बारिश को रोमांस से जोड़ कर देखा जाता है लेकिन कई बार जब बारिश लगातार हो रही हो, मौसम खुल नही रहा हो तो बहुत से लोगों में उदासी, तनाव, दुख तथा ऐसी और भी कई तरह की मानसिक व व्यवहरात्मक समस्याएं बढ़ने लगती हैं. यह अवस्था मानसून ब्लूज (Monsoon blues) कहलाती है तथा इसका कारण आमतौर पर (Side effects of monsoon) मौसमी भावनात्मक विकार यानी सीजनल अफेक्टिव डिसऑर्डर (Seasonal Affective Disorder) माना जाता है.

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सर्दियों में भी हो सकता है: सीजनल अफेक्टिव डिसऑर्डर (SAD) यानी मौसम से प्रभावित होने वाला भावनात्मक विकार. जानकार मानते हैं कि (weather change disorder) मौसम हमारे व्यवहार को ही नही हमारी सेहत को भी काफी ज्यादा प्रभावित करता है. खासतौर पर सूरज की रोशनी या धूप हमारे शरीर के लिए बहुत जरूरी होती है. लेकिन जब बरसात या सर्दी के कारण यदि लंबे समय तक व्यक्ति धूप के सीधे संपर्क में ना आ पाए तो उसके शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य पर काफी असर पड़ सकता है. सीजनल अफेक्टिव डिसऑर्डर भी उन्ही प्रभावों में से एक है.

मनोचिकित्सों के अनुसार सर्दियों या बरसात के मौसम में जब लंबे समय तक धूप के दर्शन नही होते हैं तो कई लोग मानसून में मानसून ब्लूज तथा सर्दियों में विंटर ब्लूज का शिकार हो सकते हैं. इन दोनों ही अवस्थाओं में पीड़ित में अवसाद बढ़ने लगता है, उसके मूड में बहुत जल्दी-जल्दी परिवर्तन होने लगते हैं और कई बार वे बिना किसी कारण के बहुत ज्यादा उदासी महसूस करने लगते हैं. सिर्फ यही नहीं इस अवस्था के पीड़ितों में और भी कई तरह की मानसिक समस्याएं नजर आने लगती हैं जिसका असर उनके व्यवहार उनकी दैनिक गतिविधियों यहां तक कि उनके पारिवारिक व सामाजिक जीवन पर भी पड़ने लगता है.

Female Libido : इन कारणों से हो सकती है महिलाओं में यौन-कामेच्छा की कमी

ये है कारण: नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ (National Institute of Mental Health) के अनुसार यह एक ऐसा मानसिक विकार है जिसका सामना आमतौर पर लोग मौसम के संधि काल के दौरान करते हैं. वैसे तो सीजनल अफेक्टिव डिसऑर्डर के स्पष्ट तथा सभी कारणों को जानने के लिए पिछले कई सालों से कई शोध किए जा रहें हैं, लेकिन अब तक इस विषय पर जिन शोधों के नतीजे सामने आयें हैं उनमें मुख्य रूप से इस विकार के लिए जिम्मेदार आम कारणों में हाइपोथैलेमस में समस्या, सेरोटोनिन न्यूरॉन में कमी तथा हमारे शरीर की सर्किडियन रिदम में गड़बड़ी को जिम्मेदार माना गया है. दरअसल इन तीनों ही अवस्थाओं के लिए धूप के संपर्क में ना आ पाने को जिम्मेदार माना जाता है.

दरअसल सूरज की रोशनी से शरीर को विटामिन डी मिलता है. जिसकी कमी से शरीर के कई कार्य प्रभावित हो सकते हैं. इसकी कमी से मस्तिष्क में सेरोटोनिन नामक न्यूरोट्रांसमीटर का कार्य भी प्रभावित होने लगता है. इस न्यूरोट्रांसमीटर को मूड स्टेबलाइजर भी कहा जाता है. दरअसल यह न्यूरोट्रांसमीटर सूर्य की रोशनी में ज्यादा सक्रिय होता है. ऐसे में जब बारिश या सर्दियों में लंबे समय तक लोगों को सूरज की रोशनी नहीं मिल पाती है तो मस्तिष्क में सेरोटोनिन का स्तर प्रभावित हो सकता है. वहीं शरीर की सर्किडियन रिदम यानी जैविक घड़ी को भी मौसम काफी प्रभावित करता है. विशेषकर धूप तथा रोशनी की कमी के चलते व्यक्ति के सोने-जागने या आहार जैसी कई आदतें प्रभावित हो सकती हैं. इस कारण से भी कई बार व्यक्ति इस विकार की चपेट में आ सकता है.

ये है लक्षण: NIMH के अनुसार सीजनल अफेक्टिव डिसऑर्डर अलग-अलग पैटर्न में लोगों को प्रभावित करता है. जैसे मानसून पैटर्न और विंटर पैटर्न. चूंकि इस विकार का मूल अवसाद ही है इसलिए आमतौर पर सभी पैटर्न में इसके लक्षण अवसाद के लक्षणों जैसे ही होते हैं. हालांकि अलग-अलग लोगों में इसके अलग-अलग लक्षण भी नजर आ सकते हैं. इस मनोविकार के कुछ आम लक्षण इस प्रकार हैं.

  • उदासी या अकेलापन महसूस करना
  • भूख या वजन का बढ़ना या कम होना
  • नींद ना आना या बहुत ज्यादा आना
  • कोई भी काम करने का मन ना होना
  • ऊर्जा हीन महसूस करना
  • ध्यान एकाग्र ना कर पाना
  • हमेशा रोने जैसा महसूस करना
  • निराशा, अपराधबोध या आत्म सम्मान में कमी महसूस करना
  • अनिश्चितता की भावना आना
  • शारीरिक संबंधों में अरुचि
  • सामाजिक जीवन से दूरी बनाना
  • बहुत ज्यादा चिंता, चिड़चिड़ापन या गुस्सा महसूस करना
  • कई बार आत्महत्या या मृत्यु जैसे विचार मन में आना

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Last Updated : Aug 12, 2022, 12:08 PM IST
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