लॉन्ग कोविड सिंड्रोम में आमतौर पर बुखार उतरने के बाद भी मरीज में लगभग 3 महीने तक कोरोना संक्रमण के लक्षण और असर नजर आते रहते हैं। इस अवस्था के लिए आमतौर पर संक्रमण के चलते संबंधित अंगों का क्षतिग्रस्त होना माना जाता है।
लॉंग कोविड अवस्था में संक्रमण के दौरान बुखार उतरने के उपरांत या रिपोर्ट के नेगेटिव आने के बाद भी मरीज में कोरोना के लक्षण लंबे समय तक आते रहते हैं। ऐसे में चिकित्सक ऐसे मरीज जिनका कोरोना के दौरान इको टेस्ट नहीं हुआ होता है, उन्हे इस टेस्ट को कराने की सलाह देते हैं। ज्यादातर मामलों में चिकित्सक इलाज या जांच के लिए ऐसी अवस्था में ज्यादा लक्षण नजर आने का इंतजार नही करते हैं क्योंकि लॉंग कोविड सिंड्रोम, फेफडो, दिल तथा तंत्रिकाओ सहित अन्य किसी भी अंग में क्षति के कारण हो सकता है।
लॉंग कोविड सिंड्रोम हमारे शरीर के विभिन्न अंगों को निम्नलिखित तरीकों से प्रभावित कर सकता है।
- फेफड़े :
कोरोना संक्रमण का सबसे ज्यादा प्रभाव हमारे फेफड़ों पर देखने में आता है। संक्रमण के गंभीर असर के चलते फेफड़ों में फाइब्रोसिस और फेफड़ों के टिशू के क्षतिग्रस्त होने जैसी समस्याएं उत्पन्न हो सकती है, जो शरीर पर घातक असर दिखा सकती है। इन परिस्थितियों के चलते व्यक्ति के सांस लेने की क्षमता पर असर पड़ता है जिससे शरीर में ऑक्सीजन की आपूर्ति प्रभावित होती है। डॉ महेंद्र बताते हैं की कोरोना से ठीक होने के उपरांत भी व्यक्ति को लंबे समय तक सांस लेने में तकलीफ हो रही हो या उसके ऑक्सीजन का स्तर कम या ज्यादा हो रहा हो तो उसे तत्काल चिकित्सक की सलाह लेनी चाहिए। आमतौर पर फेफड़ों की स्तिथि पता लगाने के लिए चिकित्सक 6 मिनट के वाकिंग टेस्ट की मदद लेते हैं। इस टेस्ट के दौरान यदि व्यक्ति का ऑक्सीजन स्तर 95% या फिर 90% से भी कम हो जाता है तो यह अवस्था व्यक्ति के फेफड़ों में फाइब्रोसिस की समस्या की आशंका को पुख्ता करती है।
- मस्तिष्क:
कोरोना संक्रमण के चलते हमारे मस्तिष्क पर भी गंभीर पार्श्वप्रभाव नजर आ सकते है। डॉ महेंद्र बताते हैं की विभिन्न अंगों की क्षति हमारे मस्तिष्क को भी प्रभावित करती है। जिसके चलते संक्रमण के दौरान तथा उसके उपरांत भी पीड़ितों में भूलने की बीमारी तथा भ्रम जैसी समस्याएं देखने में आती है।
पोस्ट रिकवरी लक्षण जो देते हैं खतरे की चेतावनी
डॉ महेंद्र बताते हैं कि यदि रिकवरी की अवधि के दौरान या उसके बाद भी व्यक्ति को सांस लेने में समस्या महसूस हो, उसकी छाती में दर्द हो, चलने या किसी भी शारीरिक गतिविधि के उपरांत उसको चक्कर आने जैसी समस्या महसूस हो तो उसे तत्काल चिकित्सक से सलाह लेनी चाहिए।
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संक्रमण और रिकवरी दोनों को प्रभावित करता है मधुमेह
डॉ महेंद्र बताते हैं की कोरोना संक्रमण का असर मधुमेह रोगियों पर ज्यादा गंभीर रूप में नजर आता है । शरीर में रक्त शर्करा के स्तर में बढ़ोत्तरी न सिर्फ कई समस्याओं को बढ़ा सकती है बल्कि पीड़ित की रिकवरी को भी प्रभवित करती है। संक्रमण के दौरान मधुमेह रोगियों के इलाज में पाँच तथ्यों पर नजर रखना बहुत जरूरी है, जिससे लॉंग कोविड सिंड्रोम के अलावा शरीर पर संक्रमण के अन्य गंभीर प्रभावों को भी नियंत्रित किया जा सके।
- डॉ महेंद्र बताते हैं की संक्रमण के इलाज के दौरान ऐसे बहुत से मामले सामने आए हैं जहां मरीज को पहले से पता नहीं था कि वह मधुमेह से पीड़ित है। वे बताते हैं की कई बार ऐसी स्थिति होती है जब व्यक्ति में मधुमेह बहुत आंशिक स्तर पर होता है जिसके चलते उसमें मधुमेह के न तो लक्षण नजर नहीं आते हैं और न ही शरीर पर उसका ज्यादा असर। ऐसी अवस्था में इलाज से पहले मधुमेह की जांच अवश्य करवानी चाहिए। जिससे व्यक्ति को जरूरी और सही इलाज दिया जा सके ।
- कोरोना संक्रमण के दौरान सामान्य लोगों में भी कई बार स्ट्रेस हार्मोन के बढ़ने के कारण मधुमेह होने की घटनाएं सामने आई हैं। इसलिए इलाज के दौरान इस तथ्य को ध्यान में रखना भी बहुत जरूरी है।
- यदि व्यक्ति पहले ही सही मधुमेह का रोगी है संक्रमण के दौरान उसके रक्त में शर्करा का स्तर बढ़ जाता है जो कि संक्रमण के शरीर पर प्रभाव को और भी ज्यादा गंभीर कर सकता है।
- कोरोना संक्रमण के शरीर पर गंभीर प्रभाव के कारण कई बार मरीज को इलाज स्वरूप स्टेरॉयड दिए जाते हैं, इसके चलते भी व्यक्ति के रक्त में शर्करा का स्तर बढ़ सकता है।
- यदि व्यक्ति को स्टेरॉयड की हाई डोज दिए गए हों तो उसकी नियमित जांच बहुत जरूरी है क्योंकि स्टेरॉयड के चलते तो उसमें म्यूकार्माइकोसिस यानी ब्लैक फंगस इंफेक्शन होने की आशंका भी काफी ज्यादा बढ़ जाती है।
डॉ महेंद्र बताते हैं कि लॉंग कोविड सिंड्रोम के इलाज के यदि रोगी के रक्त में शर्करा की मात्रा जरूरत से ज्यादा बढ़ जाती है , ऐसे में इंसुलिन की मदद ली जा सकती है। क्योंकि ज्यादातर मामलों में रक्त शर्करा से स्तर को इंसुलिन के माध्यम से ही नियंत्रित किया जा सकता है। लेकिन बहुत जरूरी है की इस अवस्था में रोगी की स्तिथि तथा इंसुलिन की मात्रा दोनों को ध्यान में रखा जाय।