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ऋतुसंधि काल में भोजन पर बंधन जरूरी - हरी पत्तेदार सब्जियों

ऋतुओं का संधि काल कहा जाने वाला चातुर्मास लग गया है। यूं तो इसको बीमारियों का मौसम कहा जाता है । मौसम में उमस और नमी के कारण बैक्टीरिया ज्यादा सक्रिय हो जाते हैं और रोगों से लड़ने की हमारी शारीरिक क्षमता पर भी असर पड़ता है। इसलिए इसलिए बहुत से आहारो को लेकर इस मौसम में परहेज करने की सलाह दी जाती है। वैसे भी कोरोना की घटती और बढ़ती तीव्रता साथ ही मानसून के मौसम में संक्रमण के बढ़ने की आशंका के चलते बहुत जरूरी है कि खान-पान और दिनचर्या पर विशेष ध्यान दिया जाए।

आयुर्वेद,
ऋतुसंधि काल में भोजन
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Published : Jul 23, 2021, 4:46 PM IST

आयुर्वेद में माना जाता है कि शरीर में किसी भी प्रकार का रोग वात पित्त और कफ के असंतुलन के कारण होता है। जानकार मानते हैं की चातुर्मास में इन तीनों की तीव्रता बढ़ जाती है जिसके फलस्वरूप पाचन क्रिया कमजोर पड़ जाती है और गैस एसिडिटी जैसी समस्या जन्म लेती हैं । इससे बचने के लिए बहुत जरूरी है की वात पित्त और कफ में संतुलन बनाया जाए जिसके लिए आहार और शारीरिक व्यवहार में संयम और अनुशासन बहुत जरूरी है। इसी संबंध में ज्यादा जानकारी लेने के लिए ETV भारत सुखीभवा ने आयुर्वेदार्य डॉ पी वी रंगनायकूलु से बात की।

कैसा भोजन ग्रहण किया जाए

डॉ पी वी रंगनायकूलु बताते हैं की सिर्फ आयुर्वेद ही नही बल्कि सभी चिकित्सा विधाओं में हल्के और सुपाच्य भोजन को स्वास्थ्य के लिए बेहतरीन माना जाता है लेकिन बारिशों के इस मौसम में चिकित्सक विशेष रूप से कम तेल मिर्च मसालों वाला जल्दी पचने वाला भोजन लेने की सलाह देते हैं।

दरअसल बारिश के मौसम में नमी के कारण वातावरण में बैक्टीरिया पनपने लगते हैं। जिनके कारण खाने पीने की चीजों जल्दी खराब हो जाती है। इस मौसम में जानकार हरी पत्तेदार सब्जियों के सेवन से दूरी बनाने के लिए भी कहते हैं। दरअसल बारिशों के मौसम में पत्तेदार सब्जियों में बेहद सूक्ष्म कीड़े और कृमि उत्पन्न हो जाते हैं। कई बार यह कीटाणु या क्रमी इतने छोटे होते हैं कि सामान्य अवस्था में नजर ही नहीं आते हैं और यदि सब्जियों को अच्छे से धोकर इस्तेमाल में ना लाया जाए तो यह आहार के साथ शरीर में पहुंचकर व्यक्ति को बीमार बना देते हैं।

बारिश के दिनों में दूध की बजाए दूध से बने उत्पाद का सेवन करने की सलाह भी देती है क्योंकि इस मौसम में दूध में बैक्टीरिया शीघ्रता से पनपते हैं। वहीं जानकार रात के समय दही का सेवन करने से परहेज करने की बात कहते हैं। क्योंकि इससे जुखाम हो सकता है।

देर रात भोजन करने से बचें

पाचन क्रिया के लिए पित्त को जिम्मेदार माना जाता है। आयुर्वेद में माना जाता है की शरीर में पित्त की तीव्रता दिन में अधिक और रात्रि में ना के बराबर हो जाती है। ऐसे में पाचन संबंधी समस्याओं जैसे एसिडिटी गैस से बचने के लिए बहुत जरूरी है कि देर रात भोजन करने से बचा जाए। रात का भोजन करने के लिए संध्या समय को आदर्श माना जाता है।

पानी उबालकर पिये

इस मौसम में ऐसे लोग जो सीधे तौर पर नल से आने वाले पानी का इस्तेमाल करते हैं, बहुत जरूरी होता है कि वे पानी को उबालकर ही पीये। वैसे तो आजकल आर. ओ. का जमाना है लेकिन माना जाता है कि आर.ओ में साफ होकर निकलने वाले पानी में कीटाणुओं के साथ-साथ मिनरल भी काफी हद तक कम हो जाते हैं। ऐसे में यदि पानी को उबालकर किया जाए तो पानी साफ भी रहता है और उसके अन्य मिनरल तथा अन्य जरूरी पोषक तत्व समाप्त भी नहीं होते हैं।

पढ़ें: बीमारियों का मौसम कहलाता है मानसून

आयुर्वेद में माना जाता है कि शरीर में किसी भी प्रकार का रोग वात पित्त और कफ के असंतुलन के कारण होता है। जानकार मानते हैं की चातुर्मास में इन तीनों की तीव्रता बढ़ जाती है जिसके फलस्वरूप पाचन क्रिया कमजोर पड़ जाती है और गैस एसिडिटी जैसी समस्या जन्म लेती हैं । इससे बचने के लिए बहुत जरूरी है की वात पित्त और कफ में संतुलन बनाया जाए जिसके लिए आहार और शारीरिक व्यवहार में संयम और अनुशासन बहुत जरूरी है। इसी संबंध में ज्यादा जानकारी लेने के लिए ETV भारत सुखीभवा ने आयुर्वेदार्य डॉ पी वी रंगनायकूलु से बात की।

कैसा भोजन ग्रहण किया जाए

डॉ पी वी रंगनायकूलु बताते हैं की सिर्फ आयुर्वेद ही नही बल्कि सभी चिकित्सा विधाओं में हल्के और सुपाच्य भोजन को स्वास्थ्य के लिए बेहतरीन माना जाता है लेकिन बारिशों के इस मौसम में चिकित्सक विशेष रूप से कम तेल मिर्च मसालों वाला जल्दी पचने वाला भोजन लेने की सलाह देते हैं।

दरअसल बारिश के मौसम में नमी के कारण वातावरण में बैक्टीरिया पनपने लगते हैं। जिनके कारण खाने पीने की चीजों जल्दी खराब हो जाती है। इस मौसम में जानकार हरी पत्तेदार सब्जियों के सेवन से दूरी बनाने के लिए भी कहते हैं। दरअसल बारिशों के मौसम में पत्तेदार सब्जियों में बेहद सूक्ष्म कीड़े और कृमि उत्पन्न हो जाते हैं। कई बार यह कीटाणु या क्रमी इतने छोटे होते हैं कि सामान्य अवस्था में नजर ही नहीं आते हैं और यदि सब्जियों को अच्छे से धोकर इस्तेमाल में ना लाया जाए तो यह आहार के साथ शरीर में पहुंचकर व्यक्ति को बीमार बना देते हैं।

बारिश के दिनों में दूध की बजाए दूध से बने उत्पाद का सेवन करने की सलाह भी देती है क्योंकि इस मौसम में दूध में बैक्टीरिया शीघ्रता से पनपते हैं। वहीं जानकार रात के समय दही का सेवन करने से परहेज करने की बात कहते हैं। क्योंकि इससे जुखाम हो सकता है।

देर रात भोजन करने से बचें

पाचन क्रिया के लिए पित्त को जिम्मेदार माना जाता है। आयुर्वेद में माना जाता है की शरीर में पित्त की तीव्रता दिन में अधिक और रात्रि में ना के बराबर हो जाती है। ऐसे में पाचन संबंधी समस्याओं जैसे एसिडिटी गैस से बचने के लिए बहुत जरूरी है कि देर रात भोजन करने से बचा जाए। रात का भोजन करने के लिए संध्या समय को आदर्श माना जाता है।

पानी उबालकर पिये

इस मौसम में ऐसे लोग जो सीधे तौर पर नल से आने वाले पानी का इस्तेमाल करते हैं, बहुत जरूरी होता है कि वे पानी को उबालकर ही पीये। वैसे तो आजकल आर. ओ. का जमाना है लेकिन माना जाता है कि आर.ओ में साफ होकर निकलने वाले पानी में कीटाणुओं के साथ-साथ मिनरल भी काफी हद तक कम हो जाते हैं। ऐसे में यदि पानी को उबालकर किया जाए तो पानी साफ भी रहता है और उसके अन्य मिनरल तथा अन्य जरूरी पोषक तत्व समाप्त भी नहीं होते हैं।

पढ़ें: बीमारियों का मौसम कहलाता है मानसून

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