यौन शोषण एक ऐसा अपराध है जो पीड़ित को जीवन भर का त्रास दे सकता है. बचपन में इस प्रकार की हिंसा का शिकार हुए लोग विशेषकर महिलाएं ज्यादातर मामलों में आजीवन इस सदमे से बाहर नहीं आ पाती हैं. इससे ना सिर्फ उनका मानसिक स्वास्थ्य बल्कि यौन जीवन भी काफी प्रभावित होता है.
क्या कहते हैं शोध
माउंट सिनाई स्कूल ऑफ मेडिसिन द्वारा बचपन की परवरिश और किशोरावस्था के यौन व्यवहार को लेकर किए गए एक शोध के निष्कर्षों में सामने आया है कि बचपन में भावनात्मक उपेक्षा या गंभीर यौन शोषण का शिकार हुई महिलाओं के मानसिक और यौन स्वास्थ्य पर उनके साथ हुए अपराध का काफी नकारात्मक असर पड़ता है. इस शोध में 882 ऐसी महिलाओं (किशोरियों) को विषय बनाया गया था जिन्होंने बचपन में दुर्व्यवहार का सामना किया था. इस अध्ययन के सह लेखक ली नियू बताते हैं कि शोध के दौरान पीड़िताओं की सामाजिक-आर्थिक स्थिति तथा समुदाय आधारित आंकड़ों का भी अध्ययन किया था, जिसमें सामने आया की अधिकतर निम्न सामाजिक आर्थिक स्थिति तथा उपेक्षित समुदाय की लड़कियां यौन हिंसा का ज्यादा शिकार होती हैं. शोध में सामने आया कि इस तरह की घटनाएं पीड़ितों विशेषकर महिलाओं के यौन विकास को भी प्रभावित करती हैं
वहीं यौन हिंसा पर आधारित एक अन्य अध्ययन में सामने आया कि ऐसी महिलाएं जिन्होंने अपने जीवन में यौन हिंसा का अनुभव किया हो उनके मस्तिष्क में रक्त प्रवाह में रुकावट की आशंका अधिक होती है जिसके कारण उनमें मनोभ्रंश (dementia) तथा स्ट्रोक जैसे मनोविकार होने की आशंका बढ़ जाती है. नॉर्थ अमेरिकन मेनोपॉज सोसाइटी की 2021 की एक बैठक में इस अध्ययन की प्रमुख लेखिका तथा पिट्सबर्ग विश्वविद्यालय में महिला जैव व्यवहार स्वास्थ्य प्रयोगशाला की निदेशक व मनोचिकित्सा की प्रोफ़ेसर रिबेका थस्ट्रन ने बताया कि यौन हिंसा का अनुभव करने वाली महिलाओं को पोस्ट ट्रोमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (PTSD), चिंता और अवसाद जैसे मानसिक विकारों का सामना करना पड़ सकता है. यही नहीं कुछ अन्य प्रकार के रोगों या मनों विकारों के कारण उनमें नींद संबंधी विकारों के साथ डिमेंशिया, या स्ट्रोक के मामले भी देखने में आते हैं.
इन दोनों ही शोधों में शोधकर्ताओं ने समाज में व्याप्त लैंगिक असमानता और दूरियों जैसे कारकों को दूर करने का प्रयास करते हुए पीड़ितों की मदद के लिए क्लीनिकल उपकरणों की व्यवस्था करने की बात कही थी.
क्या कहते हैं आँकड़े
महिलाओं के साथ हिंसा की समस्या पूरी दुनिया में एक समान है. यूएस सेंटर्स फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रीवेंशन (CDC) द्वारा प्रकाशित आंकड़ों के अनुसार उत्तरी अमेरिका में हर तीसरी महिला अपने जीवन में कम से कम एक बार यौन हिंसा का अनुभव अवश्य करती है. संयुक्त राष्ट्र की संस्था यू.एन वुमन का कहना है कि दुनिया भर में लगभग 736 मिलियन महिलाओं को अपने सेक्स पार्टनर या अनजान व्यक्ति द्वारा यौन हिंसा का जीवन में कम से कम एक बार सामना करना पड़ा है.
वहीं भारत के आंकड़ों की बात करें तो राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की वार्षिक रिपोर्ट-2019 के अनुसार, उक्त वर्ष में देश भर में 32033 बलात्कार के मामले दर्ज किए गए थे. जिनमें प्रतिदिन औसतन 88 मामले दर्ज हुए. वर्ष 2018 में हर दिन औसतन 91 बलात्कार की घटनाएं हुईं.
वर्ष 2015 में महिलाओं के साथ बलात्कार के कुल 34,651 मामले दर्ज किए गए थे, जबकि वर्ष 2016 में ये संख्या बढ़कर 38,947 हो गई थी. इसके अलावा वर्ष 2018 में लगभग 33,356 बलात्कार के मामले दर्ज किए गए थे.
यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि यौन हिंसा के अपराधियों को सजा मिलने का आंकड़ा काफी कम है. एनसीआरबी के अनुसार देश में दुष्कर्म के दोषियों को सजा मिलने की दर महज 27.2% है. जो कि चिंतनीय है.
क्या कहते हैं मनोचिकित्सक
वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ वीना कृष्णन बताती हैं कि महिलाओं के साथ अपराध विशेषकर यौनिक हिंसा उनके जीवन तथा स्वास्थ्य को इस कदर प्रभावित करती हैं कि वे कई प्रकार के मानसिक विकारों का शिकार बन जाती हैं . जिसका प्रभाव उन पर आजीवन बना रहता है. यहाँ तक की वे कई बार स्वयं को ही अपराध के लिए दोषी मानने लगती हैं, और आत्महत्या का प्रयास करती हैं.
डॉ कृष्णन बताती हैं कि बड़ी संख्या में यौन हिंसा के पीड़ित, चाहे वे किसी अनजान द्वारा या घर में या अपने साथी द्वारा ही हिंसा का शिकार बनी हों, समाज के डर से अपने साथ हुए अपराध के बारें में दूसरों को बताती ही नही हैं. लेकिन ऐसी अवस्था में ज्यादातर पीड़ित मानसिक समस्याएं तो झेलते ही हैं साथ ही वे सामान्य यौन जीवन भी नहीं जी पाती हैं. यौन हिंसा का शिकार हुई महिलायें अपने जीवन को सामान्य तरीके से जी पाए इसके लिए बहुत जरूरी है कि उन्हे उनकी मानसिक अवस्था से उबारने के लिए चिकित्सीय या बाहरी मदद मिलें. जो उन्हे यह मानने में मदद कर सके की उनके साथ जो हुआ है उसके लिए वे दोषी नही हैं और वे सामान्य जीवन जी सकती हैं. इसके लिए चिकित्सीय थेरेपियों के साथ ही परिवार व दोस्तों का साथ और उनका भरोसा पीड़ित को उसकी मानसिक अवस्था से उबरने में मदद कर सकता है.