ऑब्स्टेट्रिक फिस्टुला : कहा जाता है कि एक बच्चे को जन्म देना उसकी मां के लिए भी नए जन्म जैसा ही होता है. इसलिए प्रसव के पहले और प्रसव के बाद भी उसकी विशेष देखभाल के साथ ही सुरक्षित प्रसव कराने की बात कही जाती है. क्योंकि कई बार प्रसव के दौरान किसी गलती, अवस्था या समस्या तथा प्रसव उपरांत स्वास्थ्य की सही देखभाल के अभाव में महिलाओं को कई तरह की गंभीर समस्याओं का सामना भी करना पड़ सकता है. Obstetric Fistula . Obstetric Fistula 2023 theme
ऑब्स्टेट्रिक फिस्टुला एक ऐसी ही समस्या है जो जटिल प्रसव के दौरान ध्यान ना देने के कारण जच्चा में विकसित हो सकती है. हालांकि सर्जरी के माध्यम से इसका इलाज संभव है लेकिन समस्या व उसके उपचार को लेकर जागरूकता में कमी तथा सामाजिक व आर्थिक सहित कई कारणों से महिलाओं को समय पर इसका इलाज नहीं मिल पाता है. ऑब्स्टेट्रिक फिस्टुला व उसकी रोकथाम तथा इलाज को लेकर दुनियाभर में लोगों में जागरूकता फैलाने तथा ज्यादा से ज्यादा महिलाओं को इस समस्या का शिकार होने से बचाने के लिए स्वास्थ्य सेवाओं व उपचार की उपलब्धता सुनिश्चित करने के उद्देश्य से हर साल 23 मई को “ऑब्स्टेट्रिक फिस्टुला को समाप्त करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय दिवस” मनाया जाता है.
क्या है ऑब्स्टेट्रिक फिस्टुला : Obstetric Fistula
ऑब्स्टेट्रिक फिस्टुला या जिसे हिन्दी में प्रसूति नालव्रण भी कहा जाता है दरअसल एक प्रकार की इंजूरी है जो प्रसव के दौरान योनी में होती है. कम उम्र में प्रसव, लंबे समय तक प्रसव पीड़ा में रहने, जरूरत पड़ने पर जरूरी चिकित्सीय मदद ना मिलने तथा आवश्यकता के बावजूद सी-सेक्शन सर्जरी ना मिल पाने के चलते कई बार शिशु के सिर व जच्चा महिला की पेल्विक बोन के बीच कुछ नाजुक टिश्यू दब जाते हैं, जिससे उनमें रक्त प्रवाह बाधित हो जाता हैं. जिससे वे क्षतिग्रस्त या और नष्ट हो जाते हैं. यह स्थिति कई बार गर्भवती महिला की योनी और ब्लेडर के बीच छेद का कारण बन जाती है. इस समस्या के कारण पीड़त की मूत्र व मल त्यागने की क्रिया असंयमित व अनियंत्रित हो जाती है. जिससे कारण कभी भी उनका मल या मूत्र अपने आप निकलने लगता है. इसी समस्या को ऑब्स्टेट्रिक फिस्टुला कहा जाता है.
इसके कारणों की बात की जाए तो यूएन के अनुसार इसके लिए कम उम्र में प्रसव या टीनएज प्रेगनेंसी, प्रसव में बाधा या ऑब्स्ट्रक्टेड लेबर , चिकित्सीय सुविधाओं व मेडिकल केयर में कमी, जच्चा में कुपोषण, गरीबी और अशिक्षा जैसे कारक जिम्मेदार होते हैं. इस वर्ष यह दिवस वर्ष 2030 तक ऑब्स्टेट्रिक फिस्टुला को खत्म करने के संकल्प के साथ "20 साल - प्रगति लेकिन पर्याप्त नहीं! 2030 तक फिस्टुला को समाप्त करने के लिए अभी कार्य करें!" थीम पर मनाया जा रहा है.
महिलाओं के स्वास्थ्य पर इसका असर
ऑब्स्टेट्रिक फिस्टुला के मामले आमतौर पर कम विकसित देशों या गरीब देशों में ज्यादा देखने में आते हैं. वहीं इसकी शिकार महिलाएं ज्यादातर कम उम्र की होती है. वैश्विक स्तर पर हुए कुछ शोधों के अनुसार मिडिल ईस्ट, नॉर्थ अफ्रीका, ईस्ट व साउथ एशिया, एशिया पेसिफिक तथा उप-सहारा अफ्रीका के कई देशों में प्रत्येक 1000 डिलीवरी के दौरान एक से तीन गर्भवती महिलाओं में ऑब्स्टेट्रिक फिस्टुला की समस्या होती है.
आंकड़ों की माने तो उप-सहारा अफ्रीका, एशिया और प्रशांत, अरब राज्यों, लैटिन अमेरिका और कैरिबियन के 55 से अधिक देशों में लगभग 500,000 महिलाएं और लड़कियां फिस्टुला के साथ रह रही हैं. तथा हर साल इसके हजारों मामले सामने आते हैं. जानकार मानते हैं एक बार यह समस्या होने के बाद इसका असर ना सिर्फ महिला के शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य पर भी पड़ता है, बल्कि उनके ग्रहस्थ व सामाजिक जीवन पर भी काफी असर पड़ता हैं.
यूएन के अनुसार इस समस्या की शिकार महिलाओं में मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याएं तथा गंभीर अवसाद जैसी समस्याएं भी देखने में आती हैं. वहीं यह स्थिति कई बार संक्रमण, अल्सरेशन, गुर्दे की बीमारी, पीड़ादायक घावों, बांझपन और मृत्यु का कारण भी बन सकती है. इसके अलावा कई बार ऑब्स्टेट्रिक फिस्टुला के मामलों में स्टील बर्थ के मामले भी देखे जाते हैं. विभिन्न वेबसाइट्स पर उपलब्ध सूचना के अनुसार ऑब्स्टेट्रिक फिस्टुला के लगभग 85% मामलों में महिलाओं को स्टिलबर्थ का सामना करना पड़ता है.
कैसे है बचाव संभव
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार सही समय पर सही देखभाल व इलाज से ना सिर्फ इस समस्या से बचा जा सकता है बल्कि सही उपचार से इससे राहत भी पाई जा सकती है. ऑब्स्टेट्रिक फिस्टुला पर रोकथाम में कुछ बातें काफी मददगार हो सकती हैं, जैसे कम उम्र में गर्भवती होने से बचे तथा गर्भावस्था के दौरान व प्रसव के समय महिला को आवश्यक प्रसूति देखभाल यानी ऑब्स्टेट्रिक केयर दी जाय. इसके अलावा प्रसव के दौरान कुछ ऐसी परंपराओं से बचा जाय जिसके चलते महिलाओं के स्वास्थ्य पर हानिकारक प्रभाव पड़ सकते हैं. गौरतलब है कि ऑब्स्टेट्रिक फिस्टुला होने की अवस्था में सर्जरी के माध्यम से इस समस्या का उपचार संभव है.
इंटरनेशनल डे टू एंड ऑब्स्टेट्रिक फिस्टुला
ऑब्स्टेट्रिक फिस्टुला की रोकथाम और इसके समग्र उपचार के लिए एक वैश्विक प्रतिबद्धता को लेकर प्रयास करने व आमजन में इसे लेकर जागरूकता बढ़ाने के उद्देश्य से यूएन व कई अन्य सामाजिक व स्वास्थ्य संबंधी संस्थाओं द्वारा पिछले 20 साल से एक अभियान चलाया जा रहा है. संयुक्त राष्ट्र (यूएन) द्वारा इस अवसर पर जारी सूचना में बताया गया है कि संगठन अपने सतत विकास लक्ष्यों के तहत वर्ष 2030 तक फिस्टुला को समाप्त करने के लिए वैश्विक लक्ष्य लेकर चल रहा है. जिसके लिए यूएनएफपीए कमजोर महिलाओं और लड़कियों के जीवन को बदलने के लिए व फिस्टुला को समाप्त करने के लिए वैश्विक अभियान का नेतृत्व कर रहा है.
इस अभियान का एक उद्देश्य बाल विवाह जैसी हानिकारक प्रथा को खत्म करना भी है. क्योंकि इसके चलते कम उम्र में मां बनने पर ज्यादातर बच्चियों में ना सिर्फ ऑब्स्टेट्रिक फिस्टुला बल्कि कई अन्य जानलेवा समस्याओं का जोखिम भी बढ़ जाता है. यूएन के अनुसार लगभग 95% फिस्टुला के मामले सर्जरी से ठीक हो सकते हैं लेकिन उपचर के महंगे होने, इस संबंध में जानकारी का अभाव होने तथा सामाजिक अवहेलना व उपहास के डर से बड़ी संख्या में महिलायें समय पर इलाज नहीं करवा पाती है. प्रसूति फिस्टुला या ऑब्स्टेट्रिक फिस्टुला को समाप्त करने सबसे पहले वर्ष 2003 में यू.एन.एफ.पी.ए. ने 'कैंपेन टू एंड फिस्टुला' लॉन्च किया था, इस अवसर पर अंतर्राष्ट्रीय दिवस का भी आयोजन किया गया था . लेकिन एक वार्षिक अभियान के तौर पर इस आयोजन को मनाए जाने की शुरुआत यूएन द्वारा वर्ष 2013 में की गई .